शहीदों की याद में
यह दर्द की लहरें हैं,
कैसे सहे कोई?
बात जब सुरक्षा की हो,
तो क्यों चुप रहे कोई?
मात्र एक श्रृद्धाजंलि,
और परिजनों को सांत्वना,
कर्तव्य की कर इतिश्री,
बैठ मौन साधना।
बूढी़ आंखों की चिंतायें,
क्या उन्हें सताती नहीं?
या पीरें वो प्रीति की,
उन्हें पास बुलाती नहीं।
बच्चों की मासूम यादें,
क्या उन्हें सताती नहीं?
या कि सूनी कलाइयां,
याद अवसरों की दिलाती नहीं।
पर बांध,ह्रदय पर बांध,
होली रिपु लहू से हैं खेलते,
दुश्मन पर प्रहार कर,
वार स्वयं भी झेलते।
माँ भारती पर आंच आये,
यह उन्हें गवारा नहीं,
कि मातृभूमि से बढ़कर,
उन्हें कुछ भी प्यारा नहीं।
न्योछावर कर प्राण वतन पर,
वो ओढ़ तिरंगा सो जाते हैं,
और महज एक श्रृद्धाजंलि दे,
हम अपनी दुनिया में खो जाते हैं।
दाद उनकी हिम्मत की,
जो राज दुश्मन में हैं खोलते,
चंद सिक्कों के तराजू में,
ईमान अपना तोलते।
और दाद उन्हें भी कि जो,
दौड़ जाते अमन की तलाश में,
मानों सांप तृप्ति पाता,
दूध की प्यास में।
सबकुछ जानकर भी,
क्यों अनजान रहे कोई?
बात जब सुरक्षा की हो,
तो क्यों चुप रहे कोई?
ये उन्हीं की कुर्बानियां,
कि अमृत सुरक्षा का पी रहे,
कभी सोचा उनके परिजन,
किस हाल में जी रहे?
यह हमारी कमजोरियां,
जो दुश्मन को बुला रहीं,
और हमारी ही गद्दारियां,
जो पांव उनका अंगद सा जमा रहीं।
यह हमारी नमकहरामियां,
जो हर बलिदान को भुला रहीं,
अपने अंतस के चूल्हों में,
अपना स्वार्थ पका रहीं।
यह हमारी ही बेशर्मियां,
कि वो कुर्बान वतन पर हो जाते हैं,
और हम जिसका पलडा़ भारी,
उसी तरफ झुक जाते हैं।
वो खोकर अपना सर्वस्व,
मात्र सांत्वना पाते हैं,
हम उनकी शहादत किनारे रख,
वर्षों से राग अमन का गाते हैं।
क्यों न कट गिरती जुबान,?
उन्हें देशद्रोही जब बताते हैं
यह पसरी रिक्तता,
किससे कहे कोई?
बात जब मानवता की हो,
तो क्यों चुप रहे कोई?
प्रभा मिश्रा 'नूतन'