उसके लौटने की खबर सुनकर,
चमक उठी हैं पिता की आंखें,
बहन रंगोली बनाने लगी चौखट पर,
आ गयी है जान ,
दौड़ने लगीं स्वागत में ,
बूढी़ं हड्डियां इधर -उधर
बिस्तर से उठकर।
सजाने लगी पत्नी,
आंखों में फिर से नव ,मधुर स्वप्न,
करने लगी है श्रृंगार,सिंदूर मांग में भर,
नये खिलौने आयेंगे,
पापा जल्दी लायेंगे,कहते बच्चे चहक कर।
फिर बज रहीं मंदिर की घंटियां
हंसी हैं पगडंडियां,
हंस रहे घर के रास्ते खिलखिलाकर।
फिर रौशन हो रहा है घर,
फिर सूनापन छिपा कोने मे जाकर
फिर दीवाली सी छाई उमंग,
फिर घुल रहे वातावरण में,
जैसे होली के सारे रंग।
फिर राखी में स्फू़र्ति भरी,
फिर कलाई मुसकाई उसका चिंतन कर।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'