----- तत्कालीन रचना -----
उस भारत में भय?
जो सबसे सहिष्णु,
और सुरक्षित है।
जिसने जीवन संवार दिया,
मान-सम्मान,प्यार दिया।
जहां छुईं तुमने बुलंदियां,
सबने पलकों पर बैठा लिया।
भय कहां और किससे नहीं?
क्या भय उन्हें नहीं?
जो मुंबई हमले के पीडित हैं,
क्या भय उन्हें नहीं?
जो शेष काश्मीरी पंडित हैं।
क्या भय उन्हें नहीं?
जो स्वजनों का अत्याचार सहे,
क्या भय उन्हें नहीं?
जिनकी बेटी निर्भया बने।
क्या भय उन्हें नहीं?
जो जबरन धर्म परिवर्तन का शिकार हैं,
क्या भय उन्हें नहीं?
जिनके सर आतंक की तलवार है।
क्या भय उन्हें नहीं?
जो सीमा पर तैनात हैं,
उसे भय?जिसकी बिरादरी,
सिर्फ और सिर्फ विनाश करे?
इंसान हो या बेजुबान,
सोच विचार ना करे ।
भय बस उन्हें नहीं,
जिन्हें विभीषण मिले हुये,
अपनों की हत्याओं पर,
जिनके होंठ सिले हुये।
भय बस उन्हें नहीं,
जो चाटुकार,घूसखोर,
बेइमान और गद्दार हैं।
भय बस उन्हें नहीं,
जिन्हें उन हत्यारों की,
दासता स्वीकार है।
भय बस उन्हें नहीं,
जिनके मस्तिष्क हैं मरे,
जो जीवित हैं पर,
रहते मृत समान हैं।
ऐसे जन निकृष्ठ,अधम,
जो ऐसी फिल्म देखते,
जिसमें देव का अपमान है।
गालियों वाली फिल्म को,
जो देखते ससम्मान हैं,
ऐसे ही लोगों से तो ,
धरा हुयी बदनाम है।
वर्ना भारत आज भी,
संस्कृति,सभ्यता की खान है।
क्या भय के लिये,
जन्मभूमि छोड़ दे?
जो भारत मां भारती,
उससे नाता तोड़ ले?
उस भारत का अपमान?
जो स्वप्न पंखों को दे उडा़न।
रहना है रहो पर,
मत देश का अपमान करो,
नीति ये स्वीकार नहीं,
फूट डालो,राज्य करो।
प्रभा मिश्रा 'नूतन '