शोक संतप्त सोचे मन,
कहां चले गये प्राणधन?
देह छोड़,हर नेह छोड़।
कहां ,किससे मिलने को,
जीव परिंदा उड़ गया,सारे बंधन तोड़।
जल रही उनकी चिता,
जिनकी उंगली जलने पर,
जी स्वयं का जलता दिनभर,
कि हाय!लाल को जलता होगा।
नहीं पता था,तब उनकी मुस्कानों में,
ख्वाब देशसेवा का पलता होगा।
किससे कहें बूढी़ आंखें अब,
त्योहारों पर तो आओगे?
किससे कहे वो चहक चहक कर,
ढे़र खिलौनों के लाओगे?
किससे कहे वो दरवाजे से सटकर,
बोलो न,जल्दी आओगे?
गर्व से चौडी़ होती छाती,
जब बच्चा सरहद पर जाता है।
मातृभूमि की सेवा करते,
कुरबान वतन पर हो जाता है।
चुभता यह नहीं कि,
असमय कालकलवित हुयी जवानी।
चुभता ये है कि,
फेर दिया जाता शहादत पर पानी।
जिस वतन की रक्षा में,
वे लड़ते,शहीद हो जाते हैं।
उसी वतन को ' वे ',
चरते,खाते जाते हैं।
जिन आतंकियों से वे अपनी,
माटी का मान बचाते हैं।
वही आतंकी ससम्मान,
जेड प्लस सी सुरक्षा पाते हैं।
चुभता है जब हम,
अपनी तनहाई में तनहा होते हैं।
और उनकी फांसी के विरोध में,
अनगिनत स्वर सम्मिलित होते हैं।
कोई नहीं रोता है,
शहीदों की शहादत पर।
पर फूट फूट कर रोते कितने,
आतंकियों की फांसी पर।
याद आते हैं बलिदानी,
सिर्फ गणतंत्र दिवस पर।
जैसे अपना बोझ उतारते,
परिजनों को स्मृति चिन्ह देकर।
कौन कहे,कि वे शहीद हुये,
मत ऐसा कोई काम करो।
आतंकियों की खातिरदारी कर,
मत शहादत को बदनाम करो।
प्रभा मिश्रा ' नूतन '