सोने दो ना माँ ,
क्या !मेहनत से पढ़ना है,
नोटों से जेबें भरनी,
और उनका मुँह बंद करना है।
ध्यान लगाऊँ,नजर गढा़ऊँ,
वजन घटाऊँ,फल क्या मिलना है?
लद गये दिन कछुये के,
आगे खरगोश को ही निकलना है।
क्यों मेहनत की सीढी़ चढूँ?
जिसमें पीछे ही रह जाना है,
जालसाजी की लिफ्ट पकड़नी,
सबसे ऊपर छाना है।
सबसे अक्लमंद नौंवी फेल,
जिन्हें मंत्री तो बन जाना है,
डिग्री वालों को डिग्री लेकर,
सिर धुनना,पछताना है।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'