JNU में लगे भारत विरोधी नारों पर युवाओं से एक आहवाहन करती तत्कालीन रचना
उठो वीर जवानों जागो,
गद्दारों ने ललकारा है,
देशद्रोह बर्दाश्त नहीं,
अपना सब मिल नारा है।
शिक्षा के मंदिर में,
लगे बरबादी के नारे हैं,
संसद हमले के दोषी,
उनको वतन से बढ़कर प्यारे हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न हुयी,
भस्मासुर का वरदान हुआ,
हत्यारे सरगना का समर्थन करना,
यह कह, उसका बलिदान हुआ?
उठो जागो कि हमारी,
जन्मभूमि का अपमान हुआ।
कन्हइया के चोले में,
इन कंसों की अब खैर नहीं,
शहीदों की शहादत पर,
होगी मनमर्जी की सैर नहीं।
हमारे चुने बबूल बो रहे,
बैठ हमारी छाती पर,
सबके अपने ठाठ मन रहे,
उनकी दी आजादी पर!
क्या सोचें अभिव्यक्ति आड़ में,
जो चाहें वो कह लेंगे?
और हम चुपचाप सब,
बैठे बैठे सह लेंगे?
शहीदों के परिवारों में,
बिखरी गहन उदासी है,
जन्मभूमि का कर्ज उतारो,
मां गद्दार लहू की प्यासी है।
पठानकोट,सियाचिन वीरों,
के बलिदान न जायं पानी में,
जो सरहद पर शहीद हो रहे,
भारत की निगरानी में।
आतंकियों की सरपरस्ती,
कदापि है स्वीकार नहीं,
वतन हमारे दिल में है,
हम हुक्मरानों के चाटुकार नहीं।
मफलर टोपी वालों का,
अपना कोई ईमान नहीं,
और पंजे वालों के पंजे से,
यहां कोई अनजान नहीं।
मन की बातों से अब,
होगा कोई काम नहीं।
अपने अपने शस्त्र उठाओ,
पैनी पैनी धार धरो,
बाहर भीतर जो दुश्मन ,भेदी,
सब मिलकर उनका संहार करो।
अखण्ड एकता की मशालें थामो,
न मिले हत्यारों को मुकाम यहां,
जान की बाजी लगा दो पर,
न बने दूजा पाकिस्तान यहां।
प्रभा मिश्रा 'नूतन '