------तत्कालीन रचना (जाट आंदोलन पर )-----
यह है ,
बदलते भारत की मिसाल,
जिसमे है --
सत्ता से अंधप्रीति,
उकसावे की,
घृणित नीति,
आरक्षण की,
बेमानी बयार,
जगह जगह
आंदोलन,
आगजनी,तोड़फोड़,
सड़कों पर,
मानवता शर्मसार।
मान -मर्यादा तार तार,
आक्रोश का,
जहरीला गुबार,
झेलता जनसमूह,
विवश,लाचार।
मांग मनवाने को,
हो रही हैं क्रांतियां,
दम तोड़तीं शांतियां,
मौन का,
गूंज रहा चीत्कार,
रो रही है व्यथा,
कर रही चरितार्थ,
वो चार बैलों की कथा,
ज्यों बलपूर्वक,
दाब से,
गेंद कोई उछाल ले,
आंदोलन दिनों दिन,
कुछ ऐसे ही उबाल ले।
साथी सब,
विदेशी नस्ल
की सांढ़ के,
देशी बैलों,
को उकसा रहे,
अतुलनीय,
इनके देशप्रेम,
जो देशद्रोहियों,
के समर्थन में,
बखूबी नज़र आ रहे।
जिसे देखो,
जब देखो,
अडा़ ,
आरक्षण की मांग पर,
जन-धन की हानि कर।
सोचनीय,
क्यों नहीं,
सियाचिन सीमा पर,
आरक्षण कोई मांगता,
शोकाकुल परिजनों,
की पीडा़ में,
बाढ़ पीडितों ,
कश्मीरी पंडितों,
मरते किसानों,
की वेदना में,
प्यासी धरती,
की हरियाली में,
मैली गंगा की,
साफ सफाई में,
जन जन के सहयोग में,
आतंकवाद से लड़ने में,
कोई क्यों नहीं?
आरक्षण मांगता,
हाल बेहाल ,
भारत का,
किसी को ,
नज़र कहां आता है?
यह वह ,
भारत है ,जिसके
स्वार्थों के आगे,
सब फीका पड़ जाता है।
जो हर उपकार ,
भूल जाता है।
जरा से,
भूमिखण्ड पर,
मरने मारने,
को उतारू हो जाता है।
जो देशभूमि,
से द्रोह कर,
याकूब मेमन,
अफजल गुरू,
के साथ खडा़ हो जाता है।
प्रभा मिश्रा 'नूतन '