सदा से तो अपना,
मैंने फर्ज निभाया है।
चुपचाप रहे,बिन कहे,
हर गुण,दोष दिखाया है।
पर रह गयी शायद,
कुछ न कुछ कमीं।
जो देखते स्वयं को
मुझमें,कि उर मे हूं या नहीं।
कैसे कहूं कि,
सदा वफादारी निभाउंगा।
कभी भी पीठ में,
खंजर न लगाउंगा।
कैसे कहूं?भरोसा करो,
मैं आइना हूं,
इंसान नहीं।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'