सिंधु बार्डर पर निर्मम हत्या कांड से से व्यथित रचना
मनुष्य देह में कौन है तू?
समझ न आ रहा है,
जब से देखी है वो खबर,
मैने टेलीविजन पर,
मन दहलता जा रहा है।
व्यथित मन,कर रहा है चिंतन,
ऐ मनुष्यता का आवरण डाले,
इंसान, तुझे क्या होता जा रहा है?
रूठ गया तेरे भीतर का भगवान भी,
तू इंसानियत क्यों खोता जा रहा है?
इतनी निर्मम हत्या?नर है या कि पिशाच,
ये जघन्य कर्म करते कांपते न तेरे हाथ?
जरा भी न आती है तुझे लाज?
इतना पाप कहां ले जायेगा?
धरा भी करेगी इंकार
तुझे गोद में लिटाने से,
मरेगा ,जायेगा ऊपर,वो जो ईश्वर
उसे क्या मुंह तू दिखायेगा?
हा!ये राक्षसी प्रवत्तियां,
भ्रष्ट हुयीं बुद्धियां ये दुराचरण,
कलिकाल ने कर दिया पदार्पण,
मनुज तुझे कौन दिखाये दर्पण?
कैसी चला रहा है अपने भीतर हवायें
जिसमें हर सद्गुण,बहता,मिटता जा रहा है
बस प्रभु अब अवतार ले,कर संहार,
धरती का सीना दर्द से फटता जा रहा है।
बस प्रभु और नहीं होता इंतजा़र ,
अब और नहीं।
प्रभा मिश्रा 'नूतन '