सुना है कि ' चीनी ' ही है जो,
विगत दो वर्षों से ,
लील रही है कितनों को।
त्रसित है इससे ,
पूरा ,देश,हर वर्ग और समाज,
फिर रो रहे हैं 'चीनी कम है'आज?
अरे खानी है तो शकर खाइये,
गुड़ खाइये पर ,
' चीनी 'से दिल न लगाइये।
ये मीठी छुरी है जनाब,
हधरों पर जो मुस्कान सजाती है,
आप पडे़ हुये मिठास में इसकी,
और ये चुपके से खंजर घुसाकर,
अपना काम करके चली जाती है।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'