*मानव जीवन देवता , दानव , यक्ष , गंधर्व आदि सबसे ही श्रेष्ठ कहा गया है | इस मानव जीवन को सभी योनियों में श्रेष्ठ इसलिए कहा गया है क्योंकि मनुष्य के समान कोई दूसरी योनि है ही नहीं | यह दुर्लभ मानव शरीर हमें माता-पिता के सहयोग से प्राप्त होता है यदि माता-पिता का सहयोग ना होता तो शायद यह दुर्लभ मानव तन न प्राप्त होता | मानव का स्वभाव कि वह यदि किसी के द्वारा स्वयं के ऊपर कोई उपकार कर दिया जाता है तो उसके प्रति जीवन भर कृतज्ञता प्रकट करता रहता है | विचार कीजिए मनुष्य के लिए इस संसार में सबसे बड़ा उपकारी कौन हो सकता है ? सभी तथ्यों को देखने के बाद , अपने ऊपर उपकार करने वालों की एक सूची तैयार करने पर परिणाम यही निकलता है कि सबसे बड़ा उपकार तो हमारे ऊपर माता-पिता का होता है जिनके कारण हमें इस दुर्लभ मानव शरीर में आकर ईश्वर की अनुपम कृति संसार के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है | शायद इसीलिए हमारे मनीषियों ने तैंतीस करोड़ देवताओं के मध्य माता पिता को सबसे ऊपर रखा है | अनेकों प्रकार के व्रत / अनुष्ठान एवं पूजा - पाठ करने वाला मनुष्य यदि अपने माता-पिता का तिरस्कार करता है तो उसके द्वारा किया गया कोई भी व्रत अनुष्ठान सफल नहीं हो सकता क्योंकि कृतघ्न मनुष्य को कोई भी सुखद परिणाम नहीं प्राप्त कर सकता | संसार के प्रति अनेकों प्रकार की कृतज्ञता का भाव प्रकट करने वाला मनुष्य अपने जीवन के सबसे बड़े उपकारी अपने माता पिता के प्रति यदि सम्मान का भाव नहीं रख पाता तो वह किसी अन्य से क्या कृतज्ञता प्रकट करेगा ? विचार करने वाली बात है कि जो माता पिता जन्म देकर के इस संसार में समाज के भीतर अपनी संतान को स्थापित करते हैं उन्हीं संतानों के द्वारा जब उनका तिरस्कार या अवहेलना होती है तो मानव जीवन की सार्थकता पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है , परंतु लोग अपनी पत्नी एवं अपनी संतान के चक्रव्यूह में इस प्रकार फस जाते हैं कि वह अपने जन्म देने वाले माता पिता को वह सम्मान नहीं दे पाते जो उन्हें देना चाहिए | संसार का सबसे बड़ा कृतघ्न उसको ही कहा जा सकता है जो अपने ऊपर उपकार करने वाले के प्रति सम्मान का भाव ना रख पाए और संसार में सबसे बड़े उपकारी माता-पिता ही होते हैं जिनकी कृपा से मनुष्य संसार में पदार्पण करता है इसलिए आजीवन उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना प्रत्येक मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है |*
*आज मनुष्य आधुनिकता की चकाचौंध में सारे रिश्ते नातों को स्वार्थ की तराजू से तौल रहा है , यहां तक की जन्म देने वाले माता पिता भी इसी तराजू पर बैठाये जा रहे हैं | आज अधिकतर माता पिता अपनी वृद्धावस्था में या तो बंद कमरे में अपना समय काट रहे हैं या फिर उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ दिया जाता है | इस समय अपने पितरों के लिए श्राद्ध करने का समय चल रहा है , पितृपक्ष में लोग अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध - तर्पण आदि करते हुए देखे जा सकते हैं | परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है की यदि जीवित माता-पिता को संतान के द्वारा सुख नहीं प्रदान किया गया है तो उनकी मृत्यु के बाद उनके लिए श्राद्ध एवं तर्पण करने से कोई फल नहीं प्राप्त होने वाला है | यदि पूर्वजों की कृपा प्राप्त करनी है तो मनुष्य को जीवित माता पिता की सेवा करके यह कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए , परंतु आज का समाज ऐसा है कि जीवित माता-पिता को तो ठोकर मार दी जा रही है परंतु उनके मरने के बाद समाज को दिखाने के लिए उनके नाम से विशाल शांति खोज एवं भंडारा किया जाता है , पितृपक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है , अपने माता पिता के लिए श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है | जिस माता-पिता को जीते जी एक अंजलि जल बेटा नहीं पिला पाता उसी माता पिता के लिए अंजुरी भर-भर के जल देने का ढोंग करता है | अपने प्रति उपकार करने वाले माता-पिता के प्रति उनके जीवन में ही कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए ना कि उनकी मृत्यु के बाद कृतज्ञता प्रकट करने का दिखावा करना चाहिए | जिसने भी अपने जीवित माता पिता की सेवा की है उसका नाम इस संसार में अमर हो गया है | प्रत्येक मनुष्य को पितृपक्ष की प्रतीक्षा ना करके अपने माता-पिता की सेवा प्रतिदिन करनी चाहिए जिससे कि पितृपक्ष में उसे विशेष आयोजन करने का सुखद फल प्राप्त होता रहे |*
*जीवित माता - पिता का तिरस्कार करके उनके मरने पर श्राद्ध आदि करना उनके प्रति कृतज्ञता नहीं बल्कि दिखावा मात्र ही कहा जा सकता है | जीवित माता पिता की सेवा करने वालों के ही तर्पण एवं श्राद्ध सफल माने जा सकते हैं |*