
*इस संसार को कर्म प्रधान कहा गया है | जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है यहां तक कि मृत्यु के बाद कर्म की भूमिका के कारण ही जीव को अनेक गतियां प्राप्त होती है | अपने कर्म के अनुसार मृत्यु के उपरांत कोई देवता , कोई पितर , कोई प्रेत , कोई हाथी / चींटी या वृक्ष आदि बन जाता है | ऐसे में कुछ लोगों के हृदय में संदेह उत्पन्न हो जाता है कि पितृपक्ष में जो श्राद्ध किया जाता है वह पितरों को कैसे प्राप्त होता है ? ऐसे सभी शंकालु लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि स्कंद पुराण में स्वयं भूत भावन भोलेनाथ ने अपने मुखारविंद से वर्णन किया है कि परमात्मा कि ऐसी व्यवस्था है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप हो करके पितरों के पास पहुंच कर उनको तृप्त करती है | देवता एवं पितरों का मुख अग्नि को कहा गया है | अग्नि में देवताओं के निमित्त अर्पित की गई वस्तु (अन्नादि) हव्य के रूप में उनको प्राप्त होती है , वहीं पितरों के निमित्त जो भी अन्न आदि अग्नि में समर्पित किया जाता है उसे कव्य कहा जाता है | यही कव्य रूप भोजन पितरों को प्राप्त होता है | जिस प्रकार मनुष्य में पाँच तन्मात्रायें मन , बुद्धि , अहंकार एवं प्रकृति आदि नौ तत्व होते हैं उसी प्रकार पितरों में दसवें तत्व के रूप में साक्षात परमात्मा निवास करता है , इसलिए देवता एवं पितर गंध एवं रस तत्वों से तृप्त हो जाते है | जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है , पशुओं का आहार तृण आदि है उसी प्रकार से पितरोॉ का आहार अन्न का सार तत्व अर्थात गंध एवं रस है जो कव्य के माध्यम से उनको प्राप्त होता है | प्रत्येक मनुष्य पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त कव्य प्रदान करके उन्हें तृप्त करने का प्रयास करता है | नाम एवं गोत्र का उच्चारण करके जो भी अन्न जल आदि अग्नि के माध्यम से जो भी आहार के रूप में पितरों को प्रदान किया जाता है वह जिस योनि में भी होते हैं उनको उस योनि में जा करके प्राप्त हो जाता है | यही कव्य कहा गया है |*
*आज हम आधुनिक युग में जीवन यापन कर रहे हैं ! धीरे धीरे मनुष्य अपने दिवताओं एवं पितरों को भूलता चला जा रहा है साथ ही भूल रहा है अपनी सनातन व्यवस्थायें एवं मान्यतायें | आज प्राय: लोग हव्य एवं कव्य के विषय में जानते ही नहीं | आज के युग को देखते हुए आने वाली पीढ़ियों को इसका ज्ञान होना परम आवश्यक है परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आने वाली पीढ़ी इन शब्दों का ज्ञान नहीं रखना चाहती है या फिर यूं कहा जाय कि उनरो अपने अभिभावकों के द्वारा इसका ज्ञान मिल ही नहीं रहा है इसका कारण यह है कि अभिभावक स्वयं हव्य एवं कव्य के विषय में नहीं जानते | आज की लगभग आधी आबादी अपने पितरों के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण आदि तो करती है परंतु उसके विषय में बहुत अधिक ज्ञान नहीं रखती | हमारे द्वारा दिया गया भोजन पितरों को कैसे प्राप्त होता है ? प्राप्त होता है या नहीं प्राप्त होता है ? इस विषय पर प्रायः लोग भ्रमित ही रहते हैं | मेरा मानना है कि कोई भी कर्म किया जाय तो उसके विषय में ज्ञान होना बहुत आवश्यक है | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने सनातन मान्यताओं एवं विधानों का ज्ञान रखना चाहिए | देवताओं का मुख है अग्नि एवं पितरों का मुख है पितरों में अग्निष्वात अत: देवताओं के निमित्त अग्नि में आहुति की वस्तु हव्य रूप में उनको प्राप्त होती है तथा पितरों के निमित्त अग्नि में समर्पित की गयी वस्तु कव्यरूप में पितरों तक पहुँचती है | इसके अतिरिक्त पितर गंध , रस एवं जलतत्व से भी तृप्त होकर अपने वंशजों पर कृपा बरसाते हैं और मनुष्य सुखी जीवन व्यतीत करता है |*
*जिनकी सम्पत्ति पर हम ऐश्वर्य एवं सुख भोग रहे हैं उनके निमित्त श्रद्धा पूर्वक जल अन्न आदि अर्पित करके हमें उनकी (पितरों की) कृपा अवश्य प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए |*