*मनुष्य का निर्माण प्रकृति के कई तत्वों से मिलकर हुआ है | मानव जीवन में मुख्य रूप से दो ही चीजें क्रियान्वित होती है एक तो मनुष्य का शरीर दूसरी मनुष्य की आत्मा | जहां शरीर भौतिकता का वाहक होता है वही आत्मा आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर रहती है | मनुष्य भौतिक उन्नति के लिए तो सतत प्रयत्नशील रहता है परंतु अपनी आत्मिक उन्नति की ओर ध्यान नहीं दे पाता है | प्राचीन काल में हमारा देश भारत उन्नति के शिखर पर था हमारे ऋषि महर्षियों ने आत्मोत्थान के लिए अध्यात्म पथ का जो चयन किया था उसी कारण हमारा देश विश्वगुरु कहा जाता था | किसी भी देश का गौरव उसकी भूमि , प्राकृतिक वैभव , वनस्पति या जलवायु के आधार पर नहीं निश्चित होता है बल्कि किसी भी देश का गौरव वहां के विकास , आचार - विचार एवं आचरण के आधार पर निश्चित होता है | प्राचीन काल में हमारे पूर्वजों ने शरीर की अपेक्षा आत्मा की उन्नति के लिए आध्यात्मिक जीवन पद्धति को अपनाकर के यह गौरव प्राप्त किया है | यही वह देश है जहां धनवान से लेकर निर्धन तक एवं एक श्रमिक से लेकर शासक तक ने अपने जीवन में आध्यात्मवाद को ही महत्व दिया है | इसी आध्यात्मिकता के कारण यहां के लोग संपूर्ण विश्व में गौरव पाते थे और साथ ही गौरवान्वित होता था हमारा देश | मनुष्य का वास्तविक विकास आध्यात्म से ही संभव है इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने यह प्रयास किया था कि प्रत्येक मनुष्य भले ही अध्यात्म के अलौकिक स्तर पर ना पहुंच पाए परंतु इतना अध्यात्म अवश्य ग्रहण कर ले जिससे कि वह अपने जीवन में पूरी तरह से संतुष्ट और शांत रहे | उन्होंने इसी मंतव्य को ध्यान में रखकर नैतिकता को सर्वोपरि रखते हुए स्वाध्याय एवं चिंतन - मनन का मार्ग प्रत्येक मनुष्य के लिए दिखाया था | यदि मनुष्य पूर्ण रूप से नैतिकता का पालन करते हुए समय-समय पर अपने किए हुए कार्यों का अवलोकन करते हुए उस पर सतत चिंतन एवं मनन करता रहे तो वह आध्यात्मिक पथ का पथिक समय बन जाएगा | अध्यात्म का पथ मनुष्य के प्रगति एवं विकास का आधार है हमें यह बात आज समझनी होगी |*
*आज भौतिकवाद अपने चरम पर है , भौतिकता के मद में चूर हो करके मनुष्य स्वयं की सद्गति एवं दुर्गति के विषय में विचार नहीं कर पा रहा है | आज यदि आध्यात्म की जन्मस्थली हमारे देश के भारत में ही आध्यात्म की उपेक्षा हो रही है तो उसका एक ही कारण है कि आज का मनुष्य अपने स्वर्णिम इतिहास को भूलकर अज्ञानतावश भौतिकता के वशीभूत हो गया है | आज के मनुष्य को विषय वासना एवं भोग ऐषणाओं ने बुरी तरह जकड़ लिया है जिससे बाहर निकल कर मनुष्य चिंतन करना ही नहीं चाहता है क्योंकि उसमें ही उसको जीवन का संपूर्ण आनंद मिला है | आज कुछ लोग यह भी कहते हैं कि यह विज्ञान का युग हैै | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" विज्ञान के मानने वाले ऐसे सभी लोगों को बताना चाहूंगा कि भारतीय अध्यात्मवाद बहुत ही विशाल एवं शक्तिशाली विज्ञान है , यदि इसका प्रमाण जानना चाहते हैं तो आपको इतिहास पढ़ना होगा | जहां आपको यह देखने को मिल जाएगा कि भारतीय ऋषियों , तपस्वियों और साधको का जीवन कितना दिव्य था | इसी आध्यात्मिकता के बल पर हमारे पूर्वजों ने आवश्यकतानुसार आविष्कार भी कर लिया है जिन की कथाएं पढ़कर आज वे घटनाएं हमको चमत्कार लगती हैं | वास्तविकता यह है कि वह कोई चमत्कार नहीं था बल्कि आध्यात्मिकता का विज्ञान ही था | आध्यात्मिकता के बल पर तपस्या करके हमारे ऋषि-मुनियों ने अनेकों लोगों को श्राप से मुक्ति दिलाई तो अनेकों लोगों को श्रापित करके जड़ भी कर दिया था | ऐसी अनेक कथाओं से हमारे इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं | जंगलों में एकाकी जीवन व्यतीत करने वाले अनेक महात्माओं में आध्यात्म की ही शक्ति थी जिसके कारण अनेक बलधारी राजा भी उनके समक्ष नतमस्तक हो जाया करते थे | आज आध्यात्म की शक्ति को समझने की आवश्यकता है | यह एक विज्ञान है , जीवन जीने की कला है , मानव जीवन के प्रगति का आधार है | ऐसा नहीं है कि आज आध्यात्मिक शक्ति बची ही नहीं है आज भी अनेकों संत महात्मा ऐसे हैं जिन्होंने तप साधना करके आध्यात्मिक शक्ति संचय कर रखी है और यह शक्ति उनके चेहरे की चमक के तेज से परिलक्षित हो जाती है | प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में आध्यात्मिक पथ का पथिक बनने का प्रयास अवश्य करना चाहिए क्योंकि शरीर के भोजन की व्यवस्था तो मनुष्य येन केन प्रकारेण करता ही रहता है परंतु आत्मा का भोजन आध्यात्म से ही प्राप्त हो सकता है इसका भी ध्यान रखना चाहिए |*
*मनुष्य को स्वयं एवं समाज की वर्तमान अधोदशा का सुधार करने के लिए पूर्वजों के द्वारा निर्देशित आत्मा के महाविज्ञान अध्यात्मवाद को अपने व्यवहारिक जीवन में उतारना ही होगा |*