*ईश्वर की बनाई हुई यह सृष्टि बहुत ही दिव्य एवं रोचक है इसके साथ ही इस संसार को मायामय एवं नश्वर भी कहा गया है | जिसका भी यहां पर जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है चाहे वह जड़ हो या चेतन | इस संसार में जो भी जन्म लेता है उसको एक दिन जाना ही पड़ता है यही संसार का शाश्वत सत्य है और यह सत्य प्रायः सभी लोग जानते भी हैं कि इस संसार में खाली हाथ आए हैं और खाली हाथ जाना भी है | इतना जानने के बाद भी मनुष्य जीवन भर एक दूसरे से प्रेम , ईर्ष्या , द्वेष आदि का व्यवहार करता है | मनुष्य के द्वारा ऐसे कृत्य क्यों किए जाते हैं जिसके कारण समाज में अनेक प्रकार की व्याधियों उत्पन्न होती हैं इसे ही भगवान की माया कहा गया है | जिस प्रकार बरसात में बादल से गिरी हुई एक बूंद बहुत ही स्वच्छ एवं उज्ज्वल होती है परंतु जब वह धूल में गिरती है तो धूल उसको चारों ओर से लपेट लेती है और वह बूंद मलिन हो जाती है , उसी प्रकार एक निर्मल जीव इस संसार में बहुत ही दिव्य बन करके आता है परंतु इस पृथ्वी पर आते हैं धूल की ही भांति माया उसको चारों ओर से लपेट लेती है और उसी माया में वह यह भूल जाता है कि यह संसार नश्वर है | इस सत्यता को जानते हुए भी वह इसे झुठलाने का प्रयास जीवन भर क्या करता है | इसका कारण क्या है कि लोग एक दूसरे के प्रति नैतिक / अनैतिक कृत्य करने लगते हैं | संसार में मनुष्य के द्वारा ऐसे कृत्य क्यों होते हैं जिससे कि किसी दूसरे को कष्ट हो | इसका कारण बताते हुए तुलसीदासजी श्रीरामचरितमानस में लिखते हैं :-- "मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला" अनेक प्रकार के मोह से ग्रसित होकर के मनुष्य ऐसे कृत्य करता है | धनबल , जनबल एवं बाहुबल के अहंकार में मनुष्य अपनी ही सगे संबंधियों को पहचानना बंद कर देता है | इसका एक ही कारण है जिसे मोह कहा गया है | इस मोह से कोई भी बच नहीं पाया है ! यही भगवान की माया है !! यही इस नश्वर संसार का सत्य है |*
*आज संसार में मोह की प्रबलता पहले की अपेक्षा अधिक दिखाई पड़ रही है , जहां पूर्वकाल में हमारे पूर्वजों ने मोह का त्याग करते हुए अनेकों कीर्तिमान स्थापित किए थे वही आज मोह ने संसार को अपने चक्रव्यूह में जकड़ लिया है | यद्यपि इस मोह का प्राकट्य सृष्टि के साथ ही हुआ है परंतु आज इसकी प्रबलता कुछ अधिक ही दिखाई पड़ रही है | यदि आज मोह की प्रबलता है तो इसका कारण मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही मानता हूं कि आज मनुष्य ने अपने पूर्वजों से सीख लेना बंद कर दिया है | मोह से छुटकारा पाने का एकमात्र साधन सत्संग से मनुष्यों ने किनारा कर लिया है | जब मनुष्य को मोह जकड़ता है तो उसके हृदय में काम - क्रोध स्वयं प्रकट हो जाते हैं | तुलसीदास जी ने स्पष्ट कर दिया है कि मनुष्य के हृदय में जितने भी मानस रोग प्रकट होते हैं उसका एकमात्र कारण मनुष्य का मोह ही है और इस मोह से बड़े-बड़े तपस्वी भी नहीं बच पाए हैं | जिस दिन मनुष्य मोह आदि से छुटकारा पा जाता है उसी दिन उसको संसार में सब कुछ समान दिखाई पड़ने लगता है , परंतु इस मायामय संसार में स्वयं को मोह से बचा लेने वाला बिरला ही दिखाई पड़ता है | आज यदि इसकी अधिकता है तो उसका यही कारण है कि मनुष्य का अपने मन पर नियंत्रण नहीं है | अपने भाव पर नियंत्रण न कर पाने के कारण मनुष्य मोह रूपी भंवर में फंसता चला जाता है | इस मोह से बचने का एक ही उपाय है और वह है सत्संग | सत्संग करने वाला मनुष्य मोह से स्वयं को बचाने में सफल हो जाता है परंतु आज मनुष्यों ने सत्संग में जाना बंद कर दिया है | यही कारण है कि आज संसार मोह का प्रबल साम्राज्य दिखाई पड़ रहा है जिसके कारण मनुष्य काम क्रोध के वशीभूत होकर अपने कृत्य कर रहा है |*
*हमारे महापुरुषों मनुष्यों को बार-बार चेतावनी देते हुए इन षडरिपुओ से बचने का उपाय बताया है परंतु आज हम इन उपायों पर ध्यान नहीं देना चाहते हैं और अनेक प्रकार की व्याधियों से ग्रसित हो रहे हैं |*