*आदिकाल से इस धरा धाम सनातन
धर्म अपनी दिव्यता एवं स्थिरता के कारण समस्त विश्व में अग्रगण्य एवं पूज्य रहा है | सनातन धर्म की मान्यतायें एवं इसके विधान का पालन करके मनुष्य ने समस्त विश्व में सनातन धर्म की धर्म ध्वजा फहरायी | सनातन के सारे सिद्धांत सनातन धर्म के धर्मग्रंथों में उद्धृत हुए हैं , जिनका पठन पाठन एवं श्रवण करके मनुष्य विवेकवान तो बना ही साथ ही जीवन जीने की कला भी सीखी | सनातन ते सभी धर्मग्रंथों में मानवमात्र के लिए "दस कर्तव्यों" का पालन करने का दिशानिर्देश दिया गया है | ये दस कर्तव्य हैं :- १- संध्यावन्दन , २- व्रत/उद्यापन , ३- तीर्थसेवन , ४- सामूहिक उत्सव , ५- दान , ६- सेवा ७- संस्कार पालन , ८- यज्ञ/हवन आदि , ९- वेदपाठ एवं १०- धर्म प्रचार | हमारे पूर्वजों ने इन्हीं दस सिद्धांतों का अक्षरस: पालन करके ही हमारे
देश भारत को विश्वगुरु बनाया था | संध्यावन्दन करके मनुष्य प्रकृति से ऊर्जा प्राप्त करते हुए आंतरिक शक्ति अर्जित करता था | व्रत आदि का पालन करके
स्वास्थ्य को व्यवस्थित रखते हुए तीर्थों का भ्रमण समूह में सम्मिलित होकर दान जैसा दिव्य कर्म कर तो करते ही थे साथ ही माता - पिता या किसी भी अक्षम जीव की सेवा करके हमारे पूर्वज अपने संस्कारों का पालन भी करते थे | यज्ञ/हवन आदि से वायु का संसर्ग पाकर दिशायें सुगन्धित होती थीं तो वेदपाठ करने से वेदमंत्रों की ध्वनि से पापों का विनाश होता है | इतना सब कर लेने पर धर्म का प्रचार स्वयं हो जाता था और एक सनातनधर्मी पूज्य माना जाता था |* *आज हम जिस आधुनिक युग में जीवन यापन कर रहे हैं वहां पर न तो संस्कार का कोई पालन करना चाहता है और न ही सनातन धर्म के कर्तव्यों का | दिखाने के लिए तो अनेक सनातन धर्मी धर्मध्वजा को फहराने का कार्य कर रहे है परंतु यदि सत्यता देखी जाए तो कुछ एक को छोड़कर के शेष सभी सिर्फ सनातन धर्म के अगुआ बनने का ढकोसला मात्र कर रहे हैं | आज संध्यावंदन करने वालों की हंसी उड़ाई जाती है तो आज के व्रत / उद्यापन नाना प्रकार के फलाहारों को सेवन करने का माध्यम बन गये हैं | तीर्थों में लोग जाते तो हैं लेकिन तीर्थ सेवन की भावना कम एवं
मनोरंजन की भावना अधिक हो गई है | आज के सामूहिक उत्सव भी कम होने लगे हैं | यदि दान की बात की जाय तो दान भी अब वहीं दिया जाता है जहां दानदाता का नाम बड़े बड़े अक्षरों में लिखा जाता है | दिखाने के लिए लोग सेवा कर रहे हैं परंतु इसी समाज में यह भी देखने को मिल रहा है कि अनेकों वृद्ध माता पिता संतानों से उपेक्षित होकर जीवन यापन कर रहे हैं | यज्ञ / हवन भी अब
व्यापार बनकर रह गया है | वेद पाठ मात्र कुछ संस्कृत विद्यालयों एवं आश्रमों तक सीमित रह गए हैं वहीं धर्म का प्रचार करने के लिए भी लोग अब धन की इच्छा रखने लगे हैं | आज हमारी स्थिति यह हो गई है कि हम कोई भी कार्य करते हैं तो उसके बदले हम धन या अपने यश की कामना करते हैं , उसके बाद यह शिकायत होती है कि आज तो सनातन धर्म का प्रभाव कम हो रहा है | यदि आज सनातन प्रभाव कम हुआ है तो इसका कारण कौन है इस पर विचार करना बहुत आवश्यक है |* *प्रत्येक सनातनी को स्वयं को टटोलना चाहिए कि क्या वह सनातन धर्म में बताये गये दस कर्तव्यों का पालन कर पा रहा है ? शायद नहीं | सनातन धर्म नहीं बल्कि हम प्रभावहीन हो गये हैं |*