कहते हैं मेरा वतन बात-बात में वाण। आतंकी के देश से आया कैसे गैर- मिला मंच खैरात का नृत्य कर रहा भाण॥-१ लेकर आओ हौसला हो जाए दो हाथ। क्यों करते गुमराह तुम सबके मालिक नाथ। बच्चे सभी समान हैं तेरे मेरे लाल- उनसे छल तो मत करों खेलें खाएँ साथ॥-२शौर्य तुम्हारा देखता सीधा सकल ज
रोटी के रेशों में चेहरा दिखेगा, उजली सहर में रंग गहरा दिखेगा। सच्चे किस्सों पर झूठा मोल मिलेगा,बीते दिनों का रास्ता गोल मिलेगा।किसको मनाने के ख्वाब लेकर आये हो?घर पर इस बार क्या बहाना बनाये हो?रहने दो और बातें बढ़ेंगी,पहरेदार की त्योरियां चढेगीं। चलो हम कठपुतली बनकर देखें,जलते समाज से आँखें सेंके।हाथ
“मुक्तक” बदला हुआ मौसम बहक बरसात हो जाए। उड़ता हुआ बादल ठहर कुछ बात हो जाए। क्यों जा रहे चंदा गगन पर किस लिए बोलो- कर दो खबर सबको पहर दिन रात हो जाए॥-१ अच्छी नहीं दूरी डगर यदि प्रात हो जाए। नैना लगाए बिन गर मुलाक़ात हो जाए। ले हवा चिलमन उडी कुछ तो शरम करो-सूखी जमी बौंछार
“मुक्तक” शांति का प्रतीक लिए उड़ता रहता हूँ। कबूतर हूँ न इसी लिए कुढ़ता रहता हूँ। कितने आए-गए सर के ऊपर से मेरे- गुटरगूं कर-करके दाना चुँगता रहता हूँ॥-१ संदेश वाहक थे पूर्वज मेरे सुनता रहता हूँ। इस मुंडेर से उस मुंडेर भटकता रहता हूँ। कभी खत लटक जाते गले कभी मैं तार से- रास
विधान - २५ मात्रा १३ १२ पर यति यति से पूर्व वाचिक १२/लगा अंत में वाचिक २२/गागा क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त कुल चार चरण पर मुक्तक में तीसरा चरण का तुक विषम “छंद मुक्तामणि मुक्तक”अतिशय चतुर सुजान का छद्मी मन हर्षायामीठी बोली चटपटी सबका दिल उलझाया पौरुष अपने आप में नरमी गरमी स
मापनी- २१२ २१२ १२२२ “मुक्तक” हर पन्ने लिख गए वसीयत जो। पढ़ उसे फिर बता हकीकत जो। देख स्याही कलम भरी है क्या- क्या लिखे रख गए जरूरत जो॥-१ गाँव अपना दुराव अपनों से। छाँव खोकर लगाव सपनों से। किस कदर छा रही बिरानी अब- तंग गलियाँ रसाव नपनों से
मापनी-२१२२ २१२२ २१२२ २१२“मुक्तक”समांत- आने पदांत – के लिएघिर गए जलती शमा में मन मनाने के लिए। उड़ सके क्या पर बिना फिर दिल लगाने के लिए। राख़ कहती जल बनी हूँ ख्वाइसें इम्तहान में- देख लो बिखरी पड़ी हूँ पथ बताने के लिए॥-१ समांत- आम पदांत – अबकौन किसका मानता है देखते अंजाम सब
“मुक्तक”अस्त-व्यस्त गिरने लगी पहली बारिश बूँद। मानों कहना चाहती मत सो आँखें मूँद। अभी वक्त है जाग जा मेरे चतुर सुजान- जेठ असाढ़ी सावनी भादों जमे फफूँद॥-१याद रखना हर घड़ी उस यार का। जिसने दिया जीवन तुम्हें है प्यार का। हर घड़ी आँखें बिछाए तकती रहती- है माँ बहन बेटी न भार्या
छंद–दिग्पाल (मापनी युक्त) मापनी -२२१ २१२२ २२१ २१२२ “मुक्तक” जब गीत मीत गाए मन काग बोल भाए। विरहन बनी हूँ सखियाँ जीय मोर डोल जाए। साजन कहाँ छुपे हो ले फाग रंग अबिरा- ऋतुराज बौर महके मधुमास घोल जाए॥-१ आओ न सजन मेरे कोयल कसक रही है। पीत सरसो फुलाए फलियाँ लटक रही है। महुवा
“रोला मुक्तक”करो जागरण जाग सुहाग सजाओ सजना। एक पंथ अनुराग राग नहिं दूजा भजना। नैहर जाए छूट सजन घर लूट न लेना- अपने घर दीवार बनाकर प्यार न तजना॥-१ शयन करें संसार रात जब आ फुसलाती। दिन का करें विचार दोपहर शिर छा जाती। बचपन बीता झार जवानी कि
“मुक्तक” पड़ जाती हैं आ गले द्वंद- फंद व्यवहार। उठते सोते जागते लिपटे रहते प्यार। कहती प्रेम पहेलियाँ मुझसे लिपटो मीत-उत्कंठित प्रिय भावना कत प्रपंच प्रतिकार॥-१ अब तो शीतलम न रही बहती नदी समीर। कचरा कहता मैं जहाँ कैसे वहाँ जमीर। पंख नहीं म
जगत् में वो जगह है कौन जिसे अभिराम कहते हैं, कहां पर सृष्टि के विज्ञान के सिद्धान्त पलते हैं। बताओ उस जगह को तुम जहां भगवान रहते हैं, कहां की नारियों का देवता यशगान करते हैं।। वो घर होता है घर जिसमें अतिथि सम्मान पाते हैं , जहां पर गाय वायस श्वान भी
“दोहा मुक्तक”परिणय की बेला मधुर मधुर गीत संवाद। शोभा वरमाला मधुर मधुर मेंहदी हाथ। सप्तपदी सुर साधना फेरा जीवन चार- नवदंपति लाली मधुर मधुर नगारा नाद॥-१“मुक्तक” छंद मधुमालती मापनी अहसान चित करते रहो। पहचान बिन तरते रहो। कोई पुकारे सड़क महीं-
“मुक्तक” सुधबुध वापस आय करो कुछ मनन निराला। जीत गई है हार भार किसके शिर डाला। मीठी लगती खीर उबल चावल पक जाता-रहा दूध का दूध सत्य शिव विजय विशाला॥-१हम बचपन के साथी क्या डगर चाहना है। अभी क्या उमर है क्या जिगर भावना है। खेलते तो हैं खग मृग मिल लड़ाते हैं पंजे- क्या पता कि
“मुक्तक”तुझे छोड़ न जाऊँ री सैयां न कर लफड़ा डोली में। क्या रखा है इस झोली में जो नहीं तेरी ठिठोली में। आज के दिन तूँ रोक ले आँसू नैन छुपा ले नैनों से- दिल ही दिल की भाषा जाने क्या रखा है बोली में॥-१ “मुक्तक” २१२२ २१२२ २१२२ २१२२दर किनारे हो गए जब तुम किनारे खो गए थे उस समय
“मुक्तक”सम्मानित है किर्ति कहीं भी कैसी भी हो मंदिर मंदिर राम मूर्ति सीता जैसी हो मर्यादा बहुमान दिलाये वन में मन मेंशासक पालक नेक बाग मधुबन ऐसी हो॥-१ धोखा दे अपकीर्ति अचानक आँधी आए सुख सुविधा अरु आन मान माटी मिल जाएसोचो समझो यार रार मत पालों मन में सुलभ शुद्ध संगीत राग क
मुन्तज़िर, ये दिन नहीं ढलते मेरे ... तन्हा रातों में मुझे नींद कहाँ आती है...!अब तो बता दो मुझे कुछ इल्म-ए-बशर ज़िन्दगी ज़ख़्म से नासूर बनी जाती है...!!...................✍️💔✍️..................
" मुक्तक"पारिजात उपवन छटा शम्भू के कैलाश।पार्वती की साधना पुष्पित अमर निवास।महादेव के नगर में अतिशय मोहक फूल-रूप रंग महिमामयी महके शिखर सुवास।।-१हिमगिरि सुंदर छावनी देवों का संसार।कल्पतरु का बाग जहाँ फल फूले साकार।जटा छटा शिर चाँदनी पहिने शिव मृगछाल-नयन रम्यता शिवपुरी स्व
आज़ फ़िर अहसास में टूटन का मंज़र आ गया...जब तेरी यादों की आँधी का बवण्डर आ गया...!मैंने तन्हाई को अपनी फ़िर से इक आवाज़ दी...बस मेरी पलकों में सै
आधार छन्द गीतिकामापनी -- २१२२ २१२२ २१२२ २१२ “मुक्तक”हे जगत के अन्नदाता भूख को भर दीजिये। हों सभी के शिर सु-छाया संग यह वर दीजिये। उन्नति के पथ डगर पिछड़े शहर का भी नाम हो- टप टपकती छत जहाँ उस गाँव को दर दीजिये॥-१ भूल कर शायद गए होगें सिपाही आप के। बेटियों की हो रहीं कैसी