*सनातन काल से ही समस्त विश्व में महानतम कही जाने वाली भारतीय संस्कृत का आधार स्तंभ रही है नारियां | विश्व के अन्य देशों की बात तो नहीं कर सकता परंतु भारतीय नारियों ने अपने प्राण गंवाने के बाद भी भारतीय संस्कृति की मान्यताओं को बनाए रखा है | वैदिक काल से ही भारतीय
समाज में उथल-पुथल होने के बाद भी नारियों को देवी का स्थान दिया गया है | पौराणिक मान्यताओं से लेकर के वर्तमान मान्यताओं तक यदि हम दृष्टिपात करें तो हमें मिलता है कि :-- धरती मां से लेकर के
भारत मां के रूप में तथा गंगा मां से लेकर के अपनी मां के रूप में समाज के प्रत्येक क्षेत्र में नारियों का आदर्श प्रमुख रहा है | हमारा
देश भारत नारियों का कितना सम्मान करता है इसका उदाहरण यदि देखना हो तो हमारी पूजा पद्धति देखनी चाहिए जहां देवियों की पूजा देवों से पहले किए जाने का विधान रहा है , उनके नामोच्चारण में भी पहले सीता तब राम , पहले लक्ष्मी तब नारायण , पहले गौरी तब शंकर कहे जाने पर ही पूर्णता मानी गई है | जब वैदिक काल से लेकर के आज तक नारियों का सम्मान होता रहा है तो ऐसे में नारियों के गौरवपूर्ण इतिहास को भुला देना अन्याय होगा | इसमें कोई संदेह नहीं है कि नारियों में अपरिमित शक्तियों की क्षमता होती है | भारत के गौरवशाली इतिहास को देखें सीता , सावित्री , अनुसूईया , दमयंती , सांडिली , अरुंधति और देवहूति जैसी प्रसिद्ध नारियों के नाम हमें देखने को मिलते हैं , जिनमें से प्रत्येक का जीवन एक अतुलनीय शक्ति का प्रतीक था | भारत की सती नारियों ने यदि अपने सतीत्व बल से कीर्तिमान स्थापित किया है तो वहीं ममता , त्याग एवं तपस्या के लिए भी जानी जाती है | पिता के घर से चलकर पति के घर तक का सफर पूरा करने के बाद पति को ही पूर्ण समर्पित होकर के जीवन यापन कर देने वाली नारियां सदैव से महान रही है | और उन का गौरवशाली इतिहास सदैव प्रेरणादायी रहेगा |* *आज के परिवेश में यदि देखा जाए तो मानवीय जीवन का कोई भी क्षेत्र हो , प्रत्येक क्षेत्र में भारतीय नारियां अपना कीर्तिमान स्थापित करती हुई सफलता की ऊंचाइयों को छू रही हैं | विश्व के किसी भी देश का इतिहास उठा लिया जाए उसकी अपेक्षा यदि वर्तमान भारतीय इतिहास को देखा जाए तो भारतीय नारियां आज भी श्रेष्ठ ही सिद्ध होंगी | घर से लेकर बाहर तक समाज से लेकर कार्यालय तक नारियों ने अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाया है | परंतु आज भी समाज के कुछ विकृत मानसिकता के लोग नारियों को अबला कह कर के उनका शोषण करने पर उतारू रहते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे विक्षिप्तों से एक ही बात कहना चाहूंगा कि नारी सृष्टि का मूल है | जैसे जड़ के कट जाने पर वृक्ष धराशायी हो जाता है ठीक उसी प्रकार जिस दिन नारियां नहीं रह जाएंगी उस दिन समाज रूपी विशाल वृक्ष धराशायी हो जाएगा | अत: आवश्यकता है कि जिस नारी ने आपको जन्म देकर के इस योग्य बनाया कि समाज में स्थापित हो सके उस नारी जाति का संरक्षण पुरुष समाज को ही करना होगा , जिससे कि सृष्टि का सामंजस्य बना रहे | यदि पुरुष के बिना नारी सुरक्षित नहीं है तो यह भी सत्य है कि नारी के बिना पुरुष का भी कोई अस्तित्व ही नहीं है | दोनों के सामंजस्य से ही एक सुंदर समाज का निर्माण संभव है |* *आज आवश्यकता है कि हम अपने पुरातन काल के इतिहास को देखते हुए विकृत मानसिकता एवं रूढवादिता से निकल कर नारी सम्मान करना सीखें |*