नश्वर और अनश्वर
*सृष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक अनेकानेक जीव इस पृथ्वी पर अपने कर्मानुसार आये विकास किये और एक निश्चित अवधि के बाद इस धराधाम से चले भी गये | श्री राम , श्रीकृष्ण , हों या बुद्ध एवं महावीर जैसे महापुरुष इस विकास एवं विनाश (मृत्यु) से कोई भी नहीं बच पाया है | इसका मूल कारण यह है कि यह समस्त सृष्टि परिवर्तन एवं विनाश के मूलाधार पर टिकी हुई है | हमारे पूर्वजों ने शायद इसीलिए इस संसार को क्षणभंगुर कहा है और इस त्थ्य को मानने के लिए हमें किसी भी मत मतांतर की या किसी साक्ष्य की आवश्यकता भी नहीं है | किसी साक्ष्य की आवश्यकता शायद इसलिए नहीं हैं क्योंकि इस संसार में रहते हुए हम नित्य ही जन्म - मृत्यु तो देख ही रहे हैं साथ ही बचपन को युवावस्था एवं युवावस्था को वृद्धावस्था में परिवर्तित होते भी देख रहे हैं | इतना सब देखने के बाद भी हम इस अकाट्य क्षणभंगुरता की चिन्ता किये बिना किसी भी नवजात के जन्म पर प्रसन्नता , किसी की भी वृद्धावस्था पर ग्लानि एवं मृत्यु पर शोक मनाते चले आ रहे हैं | प्रतिपल यह प्रकृति सृजन व विनाश के खेल को खेलती रहती है | इस सृष्टि में जो भी आया पहले उसका विकास फिर विनाश सुनिश्चित है |
अपने कर्मानुसार जीव अन्यान्य योनियों में एक निश्चित अवधि के लिए ही जाता है | जैसे ही जीव का कार्यकाल या कर्मों का भोग पूर्ण होता वैसे ही वह इस धराधाम का त्याग कर देता है | कहने का तात्पर्य यह है कि इस सृष्टि में जड़ चेतन कोई भी हो वह अपने कर्मभोग के बाद एक क्षण भी अतिरिक्त यहाँ नहीं रह सकता है | यह नियम मात्र जीवों के लिए ही नहीं है बल्कि पता नहीं कितने वृक्षों का विनाश हुआ , आज कितने पर्वत धराधाम से लुप्त हैं , नदियाँ सूख गई हैं ! यह सृष्टि स्वयं में परिवर्तन को समेटे हुए सबके कार्यकाल पर बराबर दृष्टि जमाये हुए है |* *आज कभी कभी बच्चे प्रश्न कर देते हैं या स्वयं के मन में कहीं न कहीं यह पिरश्न उठता है कि :- इस नश्वर सृष्टि का सृजनकर्ता कौन है ? वह शक्ति जिसे हम ईश्वर या ब्रह्म कहते हैं क्या उसका भी जन्म हुआ होगा ? यदि जन्म हुआ तो कैसे ? और जन्म लेने वाले की मृत्यु भी होती है तो क्या वह ईश्वर भी नश्वर है ?? ऐसे अनेकानेक प्रश्न सुनने को प्राय: मिलते हैं |
निज विवेकानुसार मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही कहना चाहूँगा कि :- आदिकाल से निरन्तर विस्तारित हो रहे इस अनंत ब्रह्माण्ड और सम्पूर्ण सृष्टि को संचालित करने वाली वह परम शक्ति कोई नश्वर तो हो ही नहीं सकता | मृत्यु या विनाश उसका होता है जिसका जन्म एवं सृजन होता है | वह परब्रह्म परमात्मा अजन्मा है उसका कभी जन्म नहीं होता | वह ईश्वर जड़ - चेतन में निहित माला के मनकों को एकत्र करके सम्हालने वाले धागे की तरह है | यह सत्य है कि सृष्टि के समस्त जड़ - चेतन में उस अजन्मा , निराकार , चैतन्यरूपी चिन्मय का ही वास है | जिस प्रकार किसी नरितक में नृत्य तो समाया होता है परंतु जब तक उसकी आवश्यकता नहीं होती तब तक प्रदर्शित नहीं होता उसी प्रकार इस समस्त सृष्टि में वह स्रष्टा समाहित है और आवश्यकता पड़ने पर ही अपना आभास कराता है | इस क्षणभंगुर / नश्वर संसार को उत्पन्न करके गतिमान रखने वाली परमशक्ति को अजन्मा एवं निराकार कहा गया है अत: इस प्रकार के किसी भी संदेह को हृदय में स्थान न देकरके उसकी बनाई सुंदर सृष्टि में नश्वरता का दर्शन करते हुए अपने विषय में विचार करना चाहिए कि एक दिन हमें भी यह संसार छोड़ देना है तो कुछ ऐसा कार्य किया जाय जिससे कि जाने के बाद भी यह संसार सदैव याद रखे |* *परमात्मा सागर स्वरूप है , उनके विषय में जानने के लिए सागर की गहराई में उतरना ही पड़ेगा | जो जितने गहरे गया चला गया उसको उतने ही सच्चे मोती मिल जाते हैं |*