
*आदिकाल से ही हमारे देश भारत को पुण्यभूमि कहा जाता रहा है | आध्यात्मिकता के उच्चशिखर को इस देश ने छुआ है तो उसका एक प्रमुख कारण यह रहा है कि यहाँ समय - समय पर महापुरुषों ने जन्म लेकर मानवता की स्थापना करने का प्रयास किया है | आदिकाल से लेकर अब तक आध्यात्मिकता एवं मानव धर्म एवं समसरता का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले राम , कृष्ण , शिवाजी , पृथ्वीराज चौहान , महाराणा प्रताप आदि महापुरुष तो हुए ही साथ ही वेदों का विन्यास करने वाले भगवान वेदव्यास , शुकदेव मुनि , वाल्मीकि जैसे पुराणवेत्ता इसी पावन धरा पर अवतरित हुए | चैतन्य महाप्रभु , सूर , मीरा , तुलसी , शबरी आदिक भक्तों ने भक्तिमयी धारा यहीं से प्रवाहित की है | कहने का तात्पर्य यही है कि सम्पूर्ण विश्व में पुण्यभूमि / देवभूमि के नाम से जाने जाने वाले हमारे देश भारत में मानवता का विकास तो हुआ ही साथ ही प्रत्येक मनुष्य को जीवन जीने की कला भी यहीं से सीखने को मिली | मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गुणों :- क्षमा , दया , धृति , शुद्धता , करुणा , गाम्भीर्य का प्रचलन हमारे देश से ही सम्पूर्ण विश्व में हुआ | सबको महाराज मनु की सन्तान मानकर मानवमात्र को एक समान यदि कहीं बताया गया है तो वह हमारा भारत ही है | सभी धर्मों से ऊपर उठकर सर्वप्रथम मानवधर्म का पाठ पढ़ने का अवसर हमें अपने देश में मिलता है | ऐसी संस्कृति एवं सभ्यता विश्व में अन्यत्र देखने को नहीं मिलती है | हम उस देश के वासी हैं जहाँ की चर्चा देश देशान्तर में होती है परन्तु आज हमारे ही द्वारा अपनी सभ्यता , संस्कृति एवं संस्कारों का गला घोंटा जा रहा है |*
*आज का परिदृश्य देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आज हमारे देश भारत एवं यहाँ के निवासियों का यह प्रबल दुर्भाग्य है कि वे अपनी सभ्यता , संस्कृति एवं संस्कारों को प्पतिदिन तिलांजलि देते चले जा रहे हैं | आज सारी मान्यतायें एवं आपसी सौहार्द्र एवं मानवमात्र एक समान की धारणायें देश के राजनैतिक दलोॉ दलों के द्वारा प्रायोजित षडयंत्र की भेंट चढ़ती चली जा रही हैं | ऐसा प्पतीत होता हौ कि आज हमारे देश के लोगों ने स्वविवेक का प्रयोग करना बन्द कर दिया है | राम - रहीम की गंगा - जमुनी संस्कृति को स्वयं में समाहित करने वाला देश आज कुछ चंद लोगों के चंगुल मों कसमसाता हुआ दिख रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज हमारे देश में प्रत्येक सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं को राजनैतिक दृष्टि से देखने वाले लोग उस मान्यता में सर्वप्रथम अपना स्वार्थ देखते हैं तब उस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए क्रियकलाप करते हैं | राजनैतिक दलों की प्रतिक्रियाओं पर लोग अपने विवेक का प्रयोग न करके नैतिक - अनैतिक कृत्य करने लगते हैं | कभी - कभी तो यह प्रतिक्रिया इतनी घातक होती है कि सम्पूर्ण देश में हिंसा तक होने लगती है | ऐसे क्रियाकलाप करने वालों को सर्वप्रथम अपने देश के इतिहास को पढ़ना चाहिए और फिर अपना हित - अनहित सोंचना चाहिए परंतु आज का मनुष्य अंधभक्त हो गया है | उचित - अनुचित का विचार किये बिना किसी भी आवाहन पर निकल पड़ने वाले लोगों को एक बार विचार अवश्य करना चाहिए |*
*यदि आज ऐसे कृत्य हो रहे हैं तो यही कहा जा सकता है कि आज लोग पढ़कर भी अनपढ़ों जैसा कृत्य कर रहे हैं और राजनेताओं के आगे अपने देश के इतिहास को भी भूलते जा रहे हैं |*