*आदिकाल से इस धरा धाम पर मनुष्य अपने संस्कारों , संस्कृति एवं मर्यादा को अवलंब बनाकर निरंतर विकास करता चला गया | यहां प्रत्येक मनुष्य की (नर एवं नारी दोनों की ) मर्यादा निर्धारित थी परंतु धीरे धीरे संपूर्ण समाज पुरुष प्रधान होता चला गया और पुरुष प्रधान समाज ने मर्यादा पालन का सारा दायित्व नारियों को सौंप दिया | समय-समय पर नदियों को मर्यादा में रहने की शिक्षा पुरुष समाज से प्राप्त होने लगी | अनेकों प्रकार के प्रतिबंध एवं तरह तरह के नियम नित्य प्रति समाज में बनते रहते हैं परंतु यह भी सत्य है यह सारे नियम दूसरों के लिए ही होते हैं स्वयं इसका कोई भी पालन नहीं करनाा चाहता | समाज की यह दशा देखकर कविकुल शिरोमणि परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई याद आ जाती है जहां उन्होंने लिखा है "पर उपदेश कुशल बहुतेरे ! जे आचरहिं ते नर न घनेरे !!" अर्थात दूसरों को उपदेश देना लोगों को बड़ा अच्छा लगता है परंतु स्वयं उसका पालन करना बड़ा कठिन हो जाता है | किसी भी मर्यादा का पालन करने वाले मनुष्य विरले ही पाए जाते हैं | महिलाओं के लिए घर की चौखट को सीमारेखा बना देने वाला पुरुष स्वयं उसका पालन नहीं कर पाता है | रामायण में लक्ष्मण रेखा का प्रसंग सुनने को मिलता है जहां लक्ष्मण ने कुटिया के चारों ओर एक रेखा खींचकर सीता जी से कहा था किसी भी अवस्था में इस रेखा को पार करके बाहर न निकलना यदि आप बाहर नहीं निकलेगी तो कोई भी व्यक्ति कुटिया के भीतर प्रवेश करने का प्रयास करेगा तो वह भस्म हो जाएग | सीता जी ने गृहस्थधर्म का पालन करने के लालच में उस रेखा का उल्लंघन कर दिया और परिणाम हुआ कि रावण नें उनका हरण कर लिया | कहने का तात्पर्य है कि जो नियम हम दूसरों के लिए या विशेष कर महिलाओं के लिए बनाते हैं क्या हमने कभी उसका पालन किया ? या करने का प्रयास किया ? यह विचारणीय विषय है |*
*आज हमारा देश विषम परिस्थितियों में अदृश्य संक्रमण "कोरोना" से उत्तपन्न महामारी से जूझ रहा है | यह संक्रमण इतना घातक है कि नित्य प्रति पूरे विश्व में हजारों की संख्या में लोग काल के गाल में समा रहे | विषम परिस्थिति यह है कि इस संक्रमण का इलाज आज विश्व में किसी भी देश के पास उपलब्ध नहीं है | ऐसे में इसका एक ही उपचार है कि लोग एक दूसरे से दूरी बना कर रहें | सामाजिक दूरी बनाकर रहने वाले इस संक्रमण से बच पाएंगे , ऐसे में सरकार ने एक लक्ष्मण रेखा खींची है और कह दिया है कि प्रत्येक मनुष्य अपने घर की चौखट पर खींची हुई लक्ष्मण रेखा को पार न करें , यदि कोई भी इस लक्ष्मण रेखा को पार करने का प्रयास करेगा तो "कोरोना" रूपी रावण उसका हरण कर सकता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि वहीं पुरुष समाज जो महिलाओं को अनेक नियम कानून बता करके घर की चारदीवारी के अंदर रहने की शिक्षा देता रहता है आज कुछ दिनों के लिए स्वयं नियम कानूनों एवं मर्यादा का पालन नहीं कर पा रहा है | तो क्या सारे नियम दूसरों के लिए ही हैं ? पुरुष समाज उसका पालन क्यों नहीं कर पा रहा है ? महिलाओं का जीवन घर के भीतर ही व्यतीत हो जाता है परंतु पुरुष समाज संकट काल में भी घर के भीतर नहीं बैठ पा रहा है और अनजाने में ही सही परंतु "कोरोना" नामक रावण को स्वयं को उठा ले जाने का निमंत्रण दे रहा है | जब यह स्पष्ट हो चुका है कि सकती है कि प्राणों की रक्षा तभी तक है जब तक लक्ष्मण रेखा के भीतर रहा जाय , लक्ष्मण रेखा पार करने के बाद प्पाणों की कुशल नहीं हो सकती , इतना जानने के बाद भी आज मनुष्स उस लक्ष्मण रेखा के भीतर नहीं रह पा रहा है जिसे देश की सरकारों ने प्रत्येक घर की चौखट पर खींच दिया है | दूसरों के ऊपर दोषारोपण करने वाला मनुष्य अपना दोष नहीं देख पा रहा है जिसके कारण स्वयं तो संक्रमित हो ही रहा है साथ ही अपने परिवार एवं समाज को संक्रमित करके देश के लिए घातक बन रहा है | दूसरों को उपदेश देकर लक्ष्मण रेखा के भीतर रहने को कहने वाला पुरुष स्वयं उसका पालन नहीं कर पा रहा है यही कारण है कि आज समस्त विश्व में हाहाकार मचा हुआ है | यदि इस त्रासदी को रोकना है तो प्रत्येक मनुष्य को स्वयं भी अपने घर की चौखट पर खींची हुई लक्ष्मण रेखा के भीतर ही रहना होगा अन्यथा घातक परिणाम स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है |*
*जो लोग दूसरों को घरों में रहने को कह रहे हैं यह स्वयं किसी न किसी बहाने से घर के बाहर घूमते हुए देखे जा सकते हैं | इस प्रकार हम इस महामारी से कदापि नहीं जीत सकते | यदि इस संकट से छुटकारा पाना है तो सामाजिक दूरी को बनाना ही होगा |*