*इस धराधाम पर जन्म लेकर मनुष्य परमपिता परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेकों प्रकार के उपाय करता है यहां तक कि कभी-कभी वह संसार से विरक्त होकर के अकेले में बैठ कर परमात्मा का ध्यान तो करता ही रहता है साथ ही वह भावावेश में रोने भी लगता है और मन में विचार करता है कि हमको परमात्मा ने इस संसार में क्यों भेज दिया ? यह एकाट्य सत्य है कि संसार में आवागमन मनुष्य के कर्मानुसार होता है | परमात्मा को प्राप्त करने के लिए पहले परमात्मा के रहस्य को समझना चाहिए कि परमात्मा है क्या ? उस परमात्मा को सच्चिदानंद कहा गया है | जो सत् चित एवं आनंद तीन शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है सत्य को पहचानो | सत्य क्या है ? सत्य है यह संसार , जहां पर हमारा जन्म हुआ | यह जन्म क्यों हुआ ? तो जीव को कर्मों के वशीभूत होकर के हमें मानव योनि प्राप्त हुई | यह जान लेना ही जीवन में प्रकाश फैला देता है | जब सत्य का प्रकाश हो जाएगा तब मनुष्य को आनंद की प्राप्ति होती है | सत्य को जाने बिना आनन्द कभी भी नहीं प्राप्त हो सकता | परमात्मा को प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय है प्रेम | जब मनुष्य परमात्मा के प्रति प्रेम का प्रकाश अपने हृदय में प्रकाशित करता है तब वह संसार में रहकर समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए परमात्मा से प्रेम तो करता ही है साथ ही प्रतिपल आनंदित होता रहता है | ईश्वर के प्रेम की व्याख्या करते हुए हमारे महापुरुषों ने बताया है कि इस सृष्टि के कण-कण में परमात्मा का वास है अतः यदि परमात्मा को प्राप्त करना है तो समाज के प्रत्येक अंग से प्रेम करना होगा | सब में ईश्वर को देखने वाला ही ईश्वर को प्राप्त कर सकता है , जब तक सब के प्रति हृदय में प्रेम उत्पन्न नहीं होगा तब तक मनुष्य के हृदय में भक्ति का उदय नहीं हो सकता और बिना भक्ति के भगवान को प्राप्त नहीं किया जा सकता |*
*आज अनेकों लोग परमात्मा के लिए अपने परिवार एवं समाज से विमुख होकर के उसकी आराधना करने में लीन हो जाते हैं परंतु उन्हें परमात्मा नहीं प्राप्त हो पाता क्योंकि वह ईश्वर भी इस धरा धाम पर जन्म लेकर के समाज एवं परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करके ही पूज्यनीय हुआ है | मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने अपने परिवार एवं समाज के प्रति जो मर्यादा एवं आदर्श स्थापित किया है उसे नहीं भुलाया जा सकता है | कुछ लोग कहते हैं कि हमें परमात्मा की चर्चा के अलावा और कुछ भी नहीं अच्छा लगता | ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सद्गुरु से मिले ज्ञान के आधार पर इतना ही कहना चाहूंगा कि यदि परमात्मा को प्राप्त करना है तो संसार के सभी प्राणियों यहां तक कि जड़ - चेतन से भी प्रेम का प्रसार करना होगा , क्योंकि वह परमात्मा सब में व्याप्त है | कुछ लोग अपने इष्ट देव के अतिरिक्त किसी भी देवी देवता या सांसारिक व्यक्ति की चर्चा तक सुनना नहीं पसंद करते हैं , यह उनकी बुद्धिमत्ता नहीं की जा सकती , क्योंकि हमारे वेदों ने बताया है कि उस एक ईश्वर ने ही इस संसार का संचालन करने के लिए अनेकों रूप में स्वयं को विभाजित किया और संसार का सृजन हुआ | विचार कीजिए कि जब वही परमात्मा सब में व्याप्त है तो किसी एक को छोड़कर किसी अन्य की चर्चा न करना या ना सुनना परमात्मा का अनादर करना ही है | ऐसे लोगों को परमात्मा कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता , जो लोग यह कहते हैं कि मुझे परमपिता ने अपना पुत्र समझकर अपने पास क्यों नहीं रखा ? क्यों इस संसार में भेज दिया ? उनके लिए यही कहना है कि वह परमात्मा भी कर्म की गति से नहीं बच पाया है , और कर्मानुसार भोग भोगने की लीला करके इस संसार में आदर्श प्रस्तुत किया है , तो ऐसा विचार करके मनुष्य को संशय का शिकार नहीं होना चाहिए और अपने हृदय में प्रतिपल प्रेम की वृद्धि करते हुए समाज के नियमानुसार सबसे प्रेम करके ही परमात्मा को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए , क्योंकि इससे सरल व सुगम कोई दूसरा मार्ग परमात्मा को प्राप्त करने का नहीं हो सकता |*
*ईश्वर प्रत्येक प्राणी के हृदय में बैठा हुआ है इस सृष्टि के समस्त जीवो का आदर एवं उनसे प्रेम करना ही उस परमपिता की सच्ची पूजा एवं आराधना कही जा सकती है , परंतु आज मनुष्य नहीं कर पा रहा है इसीलिए अनेक विसंगतियों से जूझ रहा है |*