
मित्रों हमारे शास्त्रों ने हमें शिक्षित करते हुए बताया है कि:-
न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्।
विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत्।।
अर्थात जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी भी विश्वास न करें। परन्तु जो विश्वासपात्र है, उस पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करें। क्योंकि अधिक विश्वास से भय उत्पन्न होता है। इसलिए बिना उचित परीक्षा लिए किसी पर भी विश्वास न करें।
आप सोच रहे होंगे कि इस लेख के "शीर्षक" और उपरोक्त श्लोक का क्या सम्बन्ध है? जी हाँ मित्रों अपनी अज्ञानता को विद्वता समझने वाले जीवों ने विश्व के सात आश्चर्य में से "पीसा कि झुकती मीनार" को भी शामिल किया है, परन्तु उससे कंही अधिक प्राचीन और कहीं अधिक झुकाव के साथ खड़े हमारे देश के अकल्पनीय पर अद्भुत वास्तु शास्त्र का प्रत्यक्ष उदाहरण बने "रत्नेश्वर महादेव मंदिर" के विषय में हम भारतीय स्वय नहीं सोचते तो यूरोप और अरब के के स्वार्थी मजहबी क्या समझेंगे।
आइये हम कुछ तुलनात्मक विश्लेषण करते हैं।
पीसा की झुकती मीनार:- पीसा यूरोप में स्थित इटली नामक देश का एक प्रमुख नगर है। यह टस्कनी प्रदेश की राजधानी है। मध्य ऐतिहासिक काल तक यह नगर समुद्रतट पर स्थित था, परंतु आरनी नदी द्वारा मुहाने पर अवसादों के निरंतर संचय से समुद्र पीछे हट गया है। यहाँ विश्वप्रसिद्ध "लीनिंग टावर ऑफ पीसा" अर्थात् "पीसा की झुकी मीनार" है, जो १७९ फुट ऊँची है तथा लंब से लगभग ५ डिग्री झुकी हुई है। मीनार में कुल आठ मंजिलें हैं।कहा जाता है कि दिनांक ९ अगस्त पीसा की मीनार का निर्माण ११७३ में शुरू हुआ था और २०० वर्षों तक यह कार्य चलता रहा। विकिपीडिया के अनुसार "टॉमासो पिसानो" ने वर्ष १३९९ में इस टावर का काम पूरा किया। ८ मंजिलों वाली इस मीनार की जब ३ मंजिल ही बनी थी, तभी से इस मीनार में झुकाव होने लगा था। इसकी नींव बनाने में एक विशेष मुलायम मिट्टी का उपयोग किया गया था, जिस वजह से यह मीनार झुक गई थी और अब तक झुकी हुई है।
रत्नेश्वर महादेव मंदिर:-रत्नेश्वर महादेव मंदिर (जिसे मातृ-ऋण महादेव या "काशी का झुका हुआ मंदिर" भी कहा जाता है) भारत के उत्तर प्रदेश के पवित्र शहर वाराणसी में गंगा तट पर स्थित प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह मंदिर, हालांकि अच्छी तरह से संरक्षित है, फ़िर भी उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर ओर झुकता हुआ है, और इसका गर्भगृह आमतौर पर गर्मियों के दौरान कुछ महीनों को छोड़कर, वर्ष के अधिकांश समय में पानी में डूबा हुआ होता है। रत्नेश्वर महादेव मंदिर मणिकर्णिका घाट, वाराणसी में स्थित है। मंदिर में कुल ९ अंश (डिग्री) का झुकाव है।
मंदिर का निर्माण शास्त्रीय शैली में नागर शिखर और फामसन मंडप के साथ किया गया है। मंदिर का स्थान बहुत ही असामान्य है क्योंकि वाराणसी में गंगा के तट पर अन्य सभी मंदिरों के विपरीत, यह मंदिर बहुत निचले स्तर पर बनाया गया है, जिसके कारण जल स्तर मंदिर के शिखर के निचले भाग तक पहुंच जाता है। यह मंदिर भी करीब ४०० वर्ष प्राचीन बताया जाता है।
पीसा की मीनार झुकी क्यों है?
१६ इंजीनियर्स के रिसर्च ग्रुप ने पता लगाया और बताया कि इस मीनार के खड़े रहने के लिए इसकी नींव में डाली गई मिट्टी जिम्मेदार है,वैज्ञानिकों ने बताया था कि इसकी नींव में डाली गई मिट्टी ने जमीन के नीचे हुई गतिविधि के कारण मीनार में हुई गतिविधि पर प्रभाव डालती है. इस प्रक्रिया को "डायनमिक सॉयल-स्ट्रक्चर इंटरेक्शन" कहा जाता है। रिसर्च ग्रुप में ब्रिटेन के ब्रिसल यूनिवर्सिटी के इंजीनियर्स भी शामिल थे, उनका कहना था कि मीनार की ऊंचाई और कठोरता के साथ-साथ नींव में डाली गई मिट्टी की कोमलता से भूकंप आने पर यह हिलती नहीं है और यही इसके बचे रहने की तथा झुके होने का मुख्य कारण है।
रत्नेश्वर महादेव मंदिर झुका क्यों है?
पहले इस मंदिर के छज्जे की ऊंचाई ज़मीन से जहां ७ से ८ फ़ीट हुआ करती थी, वहीं अब केवल ६ फ़ीट रह गईहै। वैसे तो ये मंदिर सैकड़ों सालों से ९ डिग्री पर झुका हुआ है पर समय के साथ इसका झुकाव बढ़ता जा रहा है, जिसका पता वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाएं।मंदिर के एक तरफ झुके होने के कारण इस मंदिर का पुरातत्व विभाग द्वारा निरीक्षण भी किया जा चुका है। भू-वैज्ञानिकों ने इसकी लंबाई व चौड़ाई भी नापी थी और मंदिर का झुकाव भी देखा जो कि ९ डिग्री पर झुका हुआ बताया गया. मंदिर की लंबाई ४० मीटर बताई गई है. इस मंदिर का एक तरफ झुका होना पीसा की मीनार से भी ज्यादा है। पीसा का मीनार ५ डिग्री एंगल में एक तरफ झुका हुआ है तो वहीं यह मंदिर ९ डिग्री एंगल में झुका हुआ है।
खतरनाक परिस्थितियां:-
पीसा की झुकी मीनार को केवल वायु और स्थल से खतरा उत्पन्न होता है, जैसे यदि कोई तीव्र हवाओं का आक्रमण उस पर हो जाता हो या फिर भूकंप के आने से उसे खतरा उतपन्न हो जाता हो और इन सभी को झेलते हुए वो मीनार अपने ५ डिग्री का झुकाव लिए खड़ी है।
रत्नेश्वर महादेव मंदिर:- इस मंदिर को वायु, स्थल और जल तीनो प्रकार के तत्वों से खतरा सदैव बना रहता है, जैसा कि पहले हि बताया गया है कि वर्ष के अधिकांश अर्थात लगभग ८ से ९ महिने यह गंगा माता के जल से अच्छादित रहता है और जब बाढ़ आती है तो मंदिर का शिखर तक जल में डूब जाता है। इसके अतिरिक्त वायु के अति तीव्र हवाओ का आक्रमण के साथ साथ भूकंप का खतरा भी सदैव बना रहता है। इस मंदिर पर एक बार अकाशीय बिजली भी गिर चुकी है।
मित्रों यूरोप और अरब के मजहबी लोगों ने विश्व के ७ आश्चर्य में से अपने द्वारा निर्माण किये गए सामान्य सी वास्तुकला को भी सम्मिलित कर लिया है जबकि हमारे देश में तमिलनाडु के धनुष कोटि से श्रीलंका को मिलाने वाला हजारों वर्ष प्राचीन "राम सेतु", महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एलोरा गुफाओ से जुड़ा " कैलाशा मंदिर" या फिर उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पूरी में स्थित "भगवान् जगन्नाथ" जी का मंदिर तथा भारत के दक्षिणी भाग में स्थित अनेक पवित्र मंदिर जैसे अप्रतिम, अद्भुत, अलौकिक और अकल्पनीय वास्तु शास्त्र के आश्चर्य साक्षात उपस्थित हैं, परन्तु हमारे स्वय की उपेक्षा के कारण इनकी कोई गणना नहीं होती।
हम स्वय जब अपनी वास्तुकला को महत्व नहीं देते तो भला वो लोग क्या देंगे, जिनका सम्पूर्ण जीवन लूट खसोट, झूठ, फरेब और मक्कारी पे हि टीका है। आज यूरोप का कोई भी शक्तिशाली देश ऐसा नहीं है जो छाती ठोक के कह सके कि उसने स्वय का विकास वंहा के लोगों कि परिश्रम और ज्ञान के बल पर किया है। ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, इटली, जर्मनी या फिर पुर्तगाल ये सबके सब लूट के माल पर विकसित हुए हैं।
न विज्ञातं न चागम्यं नाप्राप्यं दिवि चेह वा।
उद्यतानां मनुष्याणां यतचित्तेन्द्रियात्मनाम्।।
अर्थात विद्वान पुरुषों के लिए कौन सा कार्य असाध्य है। जो अपने मन, बुद्धि और इंद्रियों को संयमित रखकर उद्यम में लगे रहते हैं। उनके लिए पृथ्वी, आकाश और पाताल में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं जो अगम्य, अप्राप्य अथवा अज्ञात हो।
जी हाँ यदि हम कोशिश करें तो क्या नहीं कर सकते। आज विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा " स्टेचू ऑफ़ यूनिटी" हमारे देश के गुजरात राज्य के एकता नगर स्थान पर पूरे आन, बान और शान के साथ खड़ी है। इसी प्रकार दुनिया का सबसे ऊँचा पूल कश्मीर के चिनाब नदी पर बनाया जा रहा है। इसी प्रकार यदि हम अपने मंदिरो और अन्य स्मारकों के वास्तु शास्त्र को पूरे जोश और खरोश से विश्व के समक्ष प्रस्तुत करें तो उन्हें वास्तविक वास्तु शास्त्र से परिचय कराया जा सकता है।
लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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