मित्रों मेरे मित्र जो जन्म से तो सनातनी हैं परन्तु कर्म से महा वामपंथी, आज अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लेकर आए और अपने सिकुड़ चुके छाती को फुलाने का असफल प्रयास करते हुए मुझे ललकारा कि अब बोलो बड़ा सनातनी बनते थे। मैंने पूछा कि हे वामपन्थ अनुगामी तुम्हारी प्रसन्नता का कारण क्या है? वामपंथी ने कहा "बिहार के शिक्षा मंत्री ने जो श्री रामचरित मानस के छ्न्दो को आधार बनाकर उसे नफ़रत फैलाने वाला ग्रंथ बताया है, उसके बारे में तुम्हें क्या कहना है? इससे पहले की मैं कुछ कहता उन्होंने तुरंत चाय और नाश्ता लाने का आदेश दे दिया | मैंने मुस्कराकर उनके लिए चाय और नाश्ते का प्रबंध कर दिया | वामपंथी मित्र चाय की चुस्की के साथ नाश्ते का निवाला अपने बड़े से मुंह में रखते हुए बोले , अब बताओ |
मैंने पूछा:- हे मित्र "तनिक बताओ कौन से छ्न्द को आधार बनाया है।" वामपंथी ने कहा:- तुम सनातनी लोग भी कैसे हो तुम्हें पता ही नहीं तो तुम क्या उत्तर दोगे। मैं समझ गया कि इस वामपंथी को कुछ नहीं पता ये तो बस इसलिए खुश है कि सनातन धर्म अपमान हो रहा है। मैंने पूछा "हे वामपंथी क्या तुम बिहार की शिक्षा मंत्री के कथन से सहमत हो? वामपंथी ने उत्तर दिया "बिलकुल सहमत हूँ, इसमें कोई दो राय नहीं, अगर तुम उनके कथन को मिथ्या साबित कर सकते हो तो करो, मैं भी देखना चाहता हूँ कि तुम उस कटु सत्य को कैसे असत्य साबित करते हो ?
मैंने परिस्थिति को समझ वामपंथी मित्र को उत्तर देना शुरू किया और कहा, हे वामपंथी किसी भी कविता, छ्न्द, दोहा व गीत इत्यादि को समझने के लिए सर्वप्रथम उसकी भाषा और पृष्ठभूमि को जानना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि उसको जाने बिना हम किसी भी रचना कि व्याख्या नहीं कर सकते हैं , अत: सुनो " शिक्षा मंत्री ने जो प्रथम छ्न्द को गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित और घर घर में पढ़ी जाने वाली श्रीरामचरित मानस का अपमान करने का आधार बनाया वो निम्नवत है:-
"हर कहुँ हरि सेवक गुर कहेऊ। सुनि खगनाथ हृदय मम दहेऊ॥ अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ॥"
हे वामपंथी सुनो प्रस्तुत छ्न्द उत्तर कांड में काकभुशुन्डी और पक्षीराज गरुड के मध्य हुए संवाद से लिया गया है। इसमें काकभुशुन्डी अपनी अज्ञानता का बोध करते हुए पश्चाताप की भावनाओं से भरकर स्वयं को उनके अंदर उत्पन्न हुई क्लेशयुक्त भावनाओं के लिए दोषी मानते हुए कहते हैं -"गुरुजी ने शिवजी को हरि का सेवक कहा। यह सुनकर हे पक्षीराज! मेरा हृदय जल उठा। अधर्म कर्म से युक्त मैं विद्या पाकर ऐसा हो गया जैसे दूध पिलाने से साँप॥" यँहा "अधम जाती" से तात्पर्य है "अधर्म युक्त कर्म" करने वाला कारक। यँहा काकभुशुन्डी अपने आप को सांप कह रहे हैं और दूध को गुरु द्वारा प्रदान किया गया सर्वोच्च ज्ञान। वो ये कह रहे हैं कि जिस प्रकार सांप को दूध पिलाने से सांप की स्थिति हो जाती है बस वैसे हि अधर्म कार्य करने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने पर हो जाता है।
फिर मैंने कुछ उदाहरण दिया कि हे वामपंथी:- बुरहान वानी तो software Engineer था, याकुब मेनन तो Chartered Accountant था, ओसामा बिन लादेन भी इंजीनियर था, अफजल गुरु अध्यापक था, रियाज भटकल भी तो इंजीनियर था जनरल डायर भी पढ़ा लिखा था, लेनिन, स्टालिन, मुसोलिनी, अबू बकर अल बगदादी, पी चिदम्बरम और माओ ये सभी पढ़े लिखें थे और ऐसे अनगिनत उदाहरण आपको प्राप्त हो जाएँगे जो अधर्म कार्यों से युक्त ज्ञानी थे, जिन्होंने करोड़ो लोगों का सर्वनाश किया, मानवता को अपमानित किया और हैवानियत और अंधकार का साम्राज्य फैलाया।
फिर मैंने वामपंथी को समझाया सुनो वामपंथी, बिहार के शिक्षा मंत्री ने पूरा छ्न्द ना कहकर अधूरा छ्न्द बतलाया और उसमें भी उन्होंने अपने चरित्र् के विशैलेपन के अनुसार अपना अधार्मिक कार्य कर दिया वो इस प्रकार है:-
"अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ॥"
शिक्षा मंत्री ने केवल इसी भाग को पढ़ा और विषवमन किया और यही नहीं उन्होंने इसे अपने प्रोपेगेंडा के अनुसार परिवर्तित भी कर दिया, देखो:-"अधम जाति मैं बिद्या पाएँ।" ये है वास्तविक शब्द पर शिक्षा मंत्री ने इसमें "मैं" के स्थान पर "में" शब्द जोड़कर इसे कुछ इस प्रकार कहा: - "अधम जाति में बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ॥" अब हे वामपंथी तुम स्वयं परख सकते हो कि कितना बड़ा षड्यंत्र है जो बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा निष्पादित किया जा रहा है।
मित्रों वामपंथी महाशय एक बार पुन: नीरूत्तर हो गए और फिर से छाती को फुलाने का असफल प्रयास करते हुआ बोले अच्छा चलो अब दूसरे वाले छ्न्द के बारे में भी तनिक बता दो, तुम लोग शूद्र और नारी को पशु समान मानकर उन्हें पीटने लायक समझते हो , धिक्कार है। मैंने वामपंथी के ह्रदय में उत्पन्न हो रही घृणा को महसूस किया पर स्वयं कि भावनाओं पर पूर्णतया नियंत्रण करते हुए और उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा " हे वामपंथी, इस पूरे ब्रह्माण्ड में केवल एक धर्म है और वो है सनातन धर्म। सनातन धर्म में स्त्री का सबसे अधिक सम्मान है यँहा तक की प्रत्येक कुटुंब में प्रथम तो माता ही होती है, इसीलिए हम जय सियाराम, जय राधेकृष्णा या जय गौरीशंकर या फिर जय लक्ष्मी नारायण कहते हैं।
हमारे शास्त्र भी यही कहते हैं: -
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।मनुस्मृति ३/५६ ।।
अर्थात जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
अब आ जाते हैं बिहार के दुर्भाग्य शिक्षा मंत्री के द्वारा रामचरित मानस के छ्न्द के अर्थ का अनर्थ बनाकर व्यक्त करने के कार्य पर। उन्होंने सुंदर कांड के उस छ्न्द के विषय में अपने दूषित विचार व्यक्त किये हैं, जिसका समुद्र के कथन के रूप में गोस्वामी जी द्वारा वर्णन किया गया है। जब प्रभु श्रीराम तीन दिनों तक समुद्र से विनती करते रहे मार्ग देने के लिए परन्तु समुद्र ने उनकी प्रार्थना का कोई उत्तर नहीं दिया, तब प्रभु क्रोधित होकर अपने धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढा कर उसे दण्डित करने के लिए तैयार हो जाते हैं :-
"बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥"
जब प्रभु क्रोधित देखा तो सारे समुद्री जीव बेचैन हो गए, उन्हें अपने अस्तित्व के समाप्त हो जाने का स्पष्ट खतरा दिखाई देने लगा। तब समुद्र देव स्वय प्रकट होकर दुहाई देते हुए विनती करते हैं और अनेक कथन करते हैं, उन्हीं में से एक कथन यह है कि:-
"प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥ ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥"
यंहा समुद्र जी कहते हैं कि ये अच्छा किया प्रभु ने कि मुझे दण्डित करने का विचार कर अच्छा ज्ञान दिया परन्तु प्रभु सभी की मर्यादा भी तो आप के हि द्वारा उत्पन्न कि गई है। समुद्र की मर्यादा ये है कि वो किसी को मार्ग नहीं देता, अपितु उसे जानकर, परख कर अर्थात ताड़ कर जीव मात्र को स्वयं मार्ग बनाना पड़ता है। ढोल गवार, शूद्र पशु और नारी ये सभी ताड़ने अर्थात जानने योग्य हैं अर्थात इनको जाने बिना इनसे सहकार्य नहीं किया जा सकता। अब इसी " ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥" वाले हिस्से को माननीय शिक्षा मंत्री जी जैसे विषधारीयो के द्वारा नारी, पशु और शूद्र के विरुद्ध बताकर समाज में घृणा फैलाई जाती है। इस चौपाई के इस हिस्से का अर्थ समझने के लिए हे जन्म से सनातनी पर कर्म से वामपंथी सुनो, हमें सर्वप्रथम इसमें प्रयोग किये गए शब्दों के अर्थ को समझना होगा, जो इस प्रकार हैं “ढोल अर्थात ढोलक, गवार अर्थात अज्ञानी या अनपढ़, शूद्र अर्थात वंचित वर्ग, पशु का अर्थ जानवर, नारी का अर्थ स्त्री, सकल मतलब पूरा या सम्पूर्ण, "ताड़ना" (जो सबसे अधिक बहुअर्थी शब्द है) का अवधि भाषा में अर्थ है देखना, पहचनाना या परख करना और अधिकारी का मतलब हक़दार”। इस प्रकार इस चौपाई के इस हिस्से का अर्थ यह हुआ कि “ढोलक, अनपढ़, वंचित, जानवर और नारी, यह पांच पूरी तरह से जानने या परखने के विषय है।"
मित्रों इसके पश्चात मैंने अपने वामपंथी मित्र को पुन: समझाया और कहा आओ, इसे विस्तारपुर्वक इस प्रकार समझते हैं: -
१:-ढोलक को अगर सही तरिके से नहीं ताड़ा अर्थात सही ढंग से थाप नहीं दी तो उससे संगीत के सुर और ताल से जोड़ा नहीं जा सकता अत: उससे संगीत के मधुर स्वर उत्पन्न करने के लिए उसे जानना अत्यंत आवश्यक है। अतः ढोलक पूरी तरह से जानने या अध्ययन का विषय है । एक अज्ञानी व्यक्ति ढोल से संगीत की ध्वनि नहीं उत्पन्न कर सकता है परन्तु ढोल को अच्छी प्रकार समझने वाला व्यक्ति उससे सुर लय ताल से बद्ध संगीत उतपन्न कर सकता हैं। " ढोल बाजे, ढोल बाजे, ढोल बाजे ढोल की ढम ढम बाजे ढोल" ये तभी हो सकता है जब हम उसे अच्छे तरिके से ताड़ ले।
२:-इसी तरह अनपढ़ व्यक्ति आपकी किसी बात का गलत अर्थ निकाल सकता है या आप उसकी किसी बात को ना समझकर अनायास उसका उपहास उड़ा सकते हैं अतः उसके बारे में अच्छी तरह से जान लेना चाहिए! हे वामपंथी चिन के वामपंथी शासक "माओ" ने "Opression Sparrow" चलाकर करीब १०० करोड़ गौरैय्या पक्षी को मार डाला, जिसका परिणाम हुआ कि चिन कि खेती पूरी तरह से बर्बाद हो गयी और भुखमरी से करीब २.५ करोड़ चीनी तडप तडप कर मर गए, ये गवांर होने का सबसे बड़ा उदाहरण है। यदि माओ अर्थात एक गवार की प्रकृति को समझकर उसके वैज्ञानिकों ने सलाह दी होती तो इतनी भयानकता का सामना नहीं करना पड़ता।
3 :-इसी प्रकार वंचित व्यक्ति अर्थात शूद्र को भी जानकर ही आप किसी कार्य में उसका सहयोग ले सकते हैं अन्यथा कार्य में असफलता का डर बना रहता है और यदि हम शूद्र व्यक्ति की योग्यता के बारे में जानकर उनका सहयोग प्राप्त करना चाहे किसी लक्ष्य कि प्राप्ति हेतु तो किसी भी असफलता के बगैर हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए जैसे लेनिन एक सत्ता से वंचित व्यक्ति था। यद्यपि उसे शासन करने का कोई अनुभव नहीं था, परन्तु उसके द्वारा उत्पन्न की गई क्रांति पर विश्वास करके सोवियत संघ की जनता ने उसे ताड़े बिना उसका साथ दिया और बदले में लेनिन ने सोवियत संघ की जनता की स्वतन्त्रता को बाधित कर दिया और विरोध करने पर करोड़ो नागरिकों का वध करवा दिया। यदि जनता ने उसे अच्छे से ताड़ लिया होता तो शायद उनका नरसंहार नहीं होता।
4 :-हम सब जानते हैं कि चार पैर वाले जीव के पास सोचने एवं समझने की क्षमता मनुष्य जितनी नहीं होती इसलिए कई बार वो हमारे किसी व्यवहार, आचरण, क्रियाकलाप या गतिविधि से आहत हो जाते हैं और ना चाहते हुए भी असुरक्षा के भाव में असामान्य कार्य कर बैठते हैं अतः पशु को भी भली-भांति जान लेना चाहिए, उनसे किसी भी प्रकार का कार्य लेने से पूर्व। अब एक उदाहरण से समझो एक वामपंथी अपने गांव से कभी बाहर नहीं गए थे, अत: उन्होंने केवल कुत्ता, गाय, बैल या भैंस इत्यादि को हि देखा था। एक बार वो अपने कुछ साथियो के साथ जंगल से होते हुए किसी दूसरे गांव में जा रहे थे। अचानक मार्ग में ५ -६ कि संख्या में जंगली कुत्ते आ जाते हैं। बाकी के साथी तो तुरंत पेड़ पर चढ़ जाते हैं पर वामपंथी उन्हें देखकर हँसते हैं और कहते हैं कि "अरे तुम लोग इन कुत्तो से डर रहे हो" और तभी वो कुत्ते उन पर आक्रमण कर देते हैं और वामपंथी को काटना शुरू कर देते हैं और फिर अत्यंत मुश्किल से वामपंथी उनके चंगुल से बचकर पेड़ पर चढने में सफल होते हैं और उनकी जान बच जाती है। अब यदि वामपंथी ने अपने अन्य साथियो कि बात मानकर जंगली और गाव वाले कुत्तो के मध्य अंतर ताड़ लिए होते तो ये हाल ना होता।
5 :-अब हम आ जाते हैं "नारी" पर :-यदि आप स्त्रियों को नहीं समझते तो उनके साथ जीवन निर्वहन मुश्किल हो जाता है यहां स्त्री का तात्पर्य माता, बहन, पत्नी, मित्र या किसी भी ऐसी स्त्री से है जिनसे आप जीवनपर्यन्त जुड़े रहते हैं, ऐसे में आपसी सूझबूझ अत्यधिक आवश्यक होती है। आधुनिक परिवेश में जितने सम्बन्ध विच्छेद या तलाक के मामले सामने आ रहे हैं, ये सभी एक दूसरे को ताड़ ना पाने के कारण हि हो रहे हैं।
और जब तुलसीदास जी स्वय एक साधारण मनुष्य का जीवन यापन कर रहे थे, तब उन्हें उनकी पत्नी रत्नावली केवल एक साधारण और रुपवती स्त्री ही लगती हैं। परन्तु जब रत्नावली ने उनके अपने प्रति अति आकर्षण को देख कहा
"अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ! नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?"
अर्थात रत्नावली कहती हैं ”मेरे इस हाड – मांस के शरीर के प्रति जितनी तुम्हारी आसक्ति है, उसकी आधी भी अगर प्रभु से होती तो तुम्हारा जीवन संवर गया होता.” यह अनमोल शब्द सुनकर तुलसी जी निशब्द से खड़े रह गये,इन प्रेरक शब्दों ने उनके हृदय में गहराई तक उतरकर असर डाला और उनके ज्ञान चक्षु खुल गये। तुलसीदास जी को अपनी जडता का अनुभव होगया। इन्ही शब्दों की शक्ति ने तुलसीराम को महान गोस्वामी तुलसीदास बना दिया।
वैसे कई विद्वानो ने अपने लेखो में स्पष्ट किया है कि, गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित उक्त पंक्ति कुछ इस प्रकार है:-
ढोल गंवार सूद्र पसु रारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥"
अर्थात जंहा पर गोस्वामी जी ने "रॉरी" शब्द का उपयोग किया है, उसे चन्द्रशेखर (बिहार के शिक्षा मंत्री) जैसे मानसिक रूप से बीमार लोगों ने "नारी" शब्द से बदल दिया।अब यंहा "रॉरी" शब्द का अर्थ है "झगड़ा करने वाला व्यक्ति" अर्थात ऐसा व्यक्ति जो हर बात में झगड़ा करने का तत्व ढूढने का प्रयास करता है, तो ऐसे व्यक्ति को ताड़ने की अत्यंत अवश्यक्ता होती है।तो मित्रों इस प्रकार हम सबने देखा कि किस प्रकार बिहार को एक बार पुन: हिन्दुओ को आपस में लडाने की पूरी योजना बना ली गई है और समाज में जहरीले बयान देकर बस अग्नि प्रज्वलित करने का प्रयास किया जा रहा है।
जब मैंने वामपंथी मित्र को उक्त उदाहरण देकर समझाया तो उनके चेहरे पर खिल रही कुटिल मुस्कान के स्थान पर हवाइया उड़ने लगी और एक बार पुन: पराजित भाव से बुदबुदाते हुए उठ कर चलें गए। "सत्यमेव जयते"|
लेखन और सन्कलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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