मित्रों जो लोग आज भी कबिलाई संस्कृति से मुक्ति नहीं पा सके हैँ, वो लोग इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के महरौली में खड़े विष्णु स्तम्भ को "कुतुब मिनार" होने का दावा करते हैँ और इसमे उनका साथ देते हैँ अनपढ़ और झूठे वामपंथी इतिहासकार।
मित्रों जो लोग आज भी कबिलाई संस्कृति से मुक्ति नहीं पा सके हैँ, वो लोग इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के महरौली में खड़े विष्णु स्तम्भ को "कुतुब मिनार" होने का दावा करते हैँ और इसमे उनका साथ देते हैँ अनपढ़ और झूठे वामपंथी इतिहासकार।मित्रों जो लोग आज भी कबिलाई संस्कृति से मुक्ति नहीं पा सके हैँ, वो लोग इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के महरौली में खड़े विष्णु स्तम्भ को "कुतुब मिनार" होने का दावा करते हैँ और इसमे उनका साथ देते हैँ अनपढ़ और झूठे वामपंथी इतिहासकार।
आइये इसका विश्लेषण करते हैँ।आइये इसका विश्लेषण करते हैँ।
आजकल NCERT के द्वारा पढ़वाई जा रही "OUR PASTS " नामक पुस्तकों में इस विष्णु स्तम्भ के विषय में लिखा है, " यह कुतुब मिनार है, इसे मोहम्मद गौरी के गुलाम सेनापति क़ुतुबुद्दीन एबक ने ११९३ ई में बनवाना शुरु किया और उसके गुलाम इल्तुत्मिश ने १२२४ ई के आस पास इसके निर्माण का कार्य पूर्ण किया।"आजकल NCERT के द्वारा पढ़वाई जा रही "OUR PASTS " नामक पुस्तकों में इस विष्णु स्तम्भ के विषय में लिखा है, " यह कुतुब मिनार है, इसे मोहम्मद गौरी के गुलाम सेनापति क़ुतुबुद्दीन एबक ने ११९३ ई में बनवाना शुरु किया और उसके गुलाम इल्तुत्मिश ने १२२४ ई के आस पास इसके निर्माण का कार्य पूर्ण किया।"
अब मित्रों कुछ जागृत हिन्दुओ ने जब "राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद" अर्थात Nationalised Council of Educational Research and Training (NCERT) से महती अधिकार अधिनियम (RTI Act 2005) के अंतर्गत दिनांक ०३/१२/२०१२ को अर्जी प्रेषित कर पूछा कि: -अब मित्रों कुछ जागृत हिन्दुओ ने जब "राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद" अर्थात Nationalised Council of Educational Research and Training (NCERT) से महती अधिकार अधिनियम (RTI Act 2005) के अंतर्गत दिनांक ०३/१२/२०१२ को अर्जी प्रेषित कर पूछा कि: -
१:- सत्यप्रमाणित प्रतिलिपि प्रदान करे उस स्त्रोत या संदर्भ का जिससे आपको पता चला कि "यह कुतुब मीनार है" और इसे इसे मोहम्मद गौरी के गुलाम सेनापति ने ११९३ ई में बनवाना शुरु किया और उसके गुलाम इल्तुत्मिश ने १२२४ ई के आस पास इसके निर्माण का कार्य पूर्ण किया।"१:- सत्यप्रमाणित प्रतिलिपि प्रदान करे उस स्त्रोत या संदर्भ का जिससे आपको पता चला कि "यह कुतुब मीनार है" और इसे इसे मोहम्मद गौरी के गुलाम सेनापति ने ११९३ ई में बनवाना शुरु किया और उसके गुलाम इल्तुत्मिश ने १२२४ ई के आस पास इसके निर्माण का कार्य पूर्ण किया।"
२:- सत्यप्रमाणित प्रतिलिपि प्रदान करें किसी एक साक्ष्य या एपिग्राफी का जिससे आपको उपर्युक्त तथ्य का पता चला।२:- सत्यप्रमाणित प्रतिलिपि प्रदान करें किसी एक साक्ष्य या एपिग्राफी का जिससे आपको उपर्युक्त तथ्य का पता चला।
मित्रों उस RTI अर्जी में दो और प्रश्न पूछे गये थे पर महत्वपूर्ण प्रश्न को हि हमने यंहा पर उल्लेखित किया है।मित्रों उस RTI अर्जी में दो और प्रश्न पूछे गये थे पर महत्वपूर्ण प्रश्न को हि हमने यंहा पर उल्लेखित किया है।
आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि NCERT के पास उपर्युक्त तथ्य को सबित करने के लिए ना कोई स्त्रोत है, ना कोई संदर्भ है, ना कोई साक्ष्य है और ना कोई एपिग्राफी हि है जिससे वे OUR PASTS नामक इतिहास की किताबों में छापी गये तथ्यों को सच साबित कर सके।आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि NCERT के पास उपर्युक्त तथ्य को सबित करने के लिए ना कोई स्त्रोत है, ना कोई संदर्भ है, ना कोई साक्ष्य है और ना कोई एपिग्राफी हि है जिससे वे OUR PASTS नामक इतिहास की किताबों में छापी गये तथ्यों को सच साबित कर सके।
जी हाँ उन्होंने दोनो प्रश्नों के उत्तर में कहा कि "No Such Certified copy is available with the department. " यह उत्तर Dress &Public Information Officer Prof: Suraj Bala Yadav ने १ जनवरी २०१३ को दिया था।जी हाँ उन्होंने दोनो प्रश्नों के उत्तर में कहा कि "No Such Certified copy is available with the department. " यह उत्तर Dress &Public Information Officer Prof: Suraj Bala Yadav ने १ जनवरी २०१३ को दिया था।
अब आप स्वयं सोचिये, जिसका ना तो कोई, ऐतिहासिक, ना कोई अर्कियोलाजिक, ना कोई वैज्ञानिक और ना कोई साक्ष्यिक आधार है, उस तथ्य को इतिहास की किताबों में घुसेड़ कर झूठे और धूर्त इतिहासकार हमारे बच्चों को पढ़ा रहे हैँ। ये तो रही NCERT के निकम्मेपन की बात।अब आप स्वयं सोचिये, जिसका ना तो कोई, ऐतिहासिक, ना कोई अर्कियोलाजिक, ना कोई वैज्ञानिक और ना कोई साक्ष्यिक आधार है, उस तथ्य को इतिहास की किताबों में घुसेड़ कर झूठे और धूर्त इतिहासकार हमारे बच्चों को पढ़ा रहे हैँ। ये तो रही NCERT के निकम्मेपन की बात।
अब आइये थोड़ा इतिहास को भी खंगाल लेते हैँ। वामपंथी इतिहासकारों की तो कोई विश्वसनीयता नहीं है, ये झूठे, झूठे और केवल झूठे हैँ। पर बात है कन्वर्ट इस्लामिक समुदाय की तो मित्रों इस्लामिक इतिहासकारों में ये चार नाम सबसे अधिक प्रसिद्ध और विश्वसनीय माने जाते हैँ, जो निम्नवत हैँ:-अब आइये थोड़ा इतिहास को भी खंगाल लेते हैँ। वामपंथी इतिहासकारों की तो कोई विश्वसनीयता नहीं है, ये झूठे, झूठे और केवल झूठे हैँ। पर बात है कन्वर्ट इस्लामिक समुदाय की तो मित्रों इस्लामिक इतिहासकारों में ये चार नाम सबसे अधिक प्रसिद्ध और विश्वसनीय माने जाते हैँ, जो निम्नवत हैँ:-
१:- हसन निजामी
२:- इब्न नसीर
३:- मौलाना नुरुद्दीन मोहम्मद
४:- अलाउद्दीन जुवैनी
और मजे की बात ये है कि इनमे से किसी भी इस्लामिक इतिहासकार ने अपनी पुस्तक में "कुतुब मीनार" का जिक्र नहीं किया है।और मजे की बात ये है कि इनमे से किसी भी इस्लामिक इतिहासकार ने अपनी पुस्तक में "कुतुब मीनार" का जिक्र नहीं किया है।
इन सबमें सबसे अधिक विश्वसनीय इतिहासकार हसन निजामी को माना जाता है, ये इतिहासकार कुतुबुद्दीन एबक के दरबार का एक इतिहासकार था। इस इतिहासकार ने कुतुबुद्दीन एबक के जीवन को अपनी आँखों से देखा है और जिया है, पर इसने भी अपनी किताब "ताज उल मसीर" (जो कुतुबुद्दीन एबक के इतिहास को संजोती है!) में कंही भी कुतुब मीनार का जिक्र नहीं करता है, ऐसा क्यों, क्या इसका जवाब किसी भी वामपंथी झूठे इतिहासकार के पास होगा, नहीं ना।इन सबमें सबसे अधिक विश्वसनीय इतिहासकार हसन निजामी को माना जाता है, ये इतिहासकार कुतुबुद्दीन एबक के दरबार का एक इतिहासकार था। इस इतिहासकार ने कुतुबुद्दीन एबक के जीवन को अपनी आँखों से देखा है और जिया है, पर इसने भी अपनी किताब "ताज उल मसीर" (जो कुतुबुद्दीन एबक के इतिहास को संजोती है!) में कंही भी कुतुब मीनार का जिक्र नहीं करता है, ऐसा क्यों, क्या इसका जवाब किसी भी वामपंथी झूठे इतिहासकार के पास होगा, नहीं ना।
अब थोड़ा आगे बढ़ते हैँ तो आपने "इब्ने बतुता" का नाम तो अवश्य सुना होगा । इसका पुरा नाम मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बतुता था। यह एक महान अरबी यात्री और लेखक था।अब थोड़ा आगे बढ़ते हैँ तो आपने "इब्ने बतुता" का नाम तो अवश्य सुना होगा । इसका पुरा नाम मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बतुता था। यह एक महान अरबी यात्री और लेखक था।
भारत के उत्तर पश्चिम द्वार से प्रवेश करके वह सीधा दिल्ली पहुँचा, जहाँ तुगलक सुल्तान मुहम्मद ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया और उसे राजधानी का काज़ी नियुक्त किया। इस पद पर पूरे सात बरस रहकर, जिसमें उसे सुल्तान को अत्यंत निकट से देखने का अवसर मिला, इब्न बत्तूता ने हर घटना को बड़े ध्यान से देखा सुना। १३४२ में मुहम्मद तुगलक ने उसे चीन के बादशाह के पास अपना राजदूत बनाकर भेजा।
ये इब्न बतुता इसको "फिरोज शाह की मीनार" कहता है।ये इब्न बतुता इसको "फिरोज शाह की मीनार" कहता है।
उजबेकिस्तान का लुटेरा और कुरूप मुगल (जिसके चेहरे की भयानकता एक जंगली सियार से भी अधिक थी) बाबर ने अपनी पुस्तक "बाबरनामा" में इसे "खिलजी की मीनार" कहकर सम्बोधित किया है।उजबेकिस्तान का लुटेरा और कुरूप मुगल (जिसके चेहरे की भयानकता एक जंगली सियार से भी अधिक थी) बाबर ने अपनी पुस्तक "बाबरनामा" में इसे "खिलजी की मीनार" कहकर सम्बोधित किया है।
इस प्रकार हमने देखा कि इतिहास स्वयं इस बात को झुठला देता है कि ये कोई कुतुबुद्दीन एबक और उसके गुलाम इल्तुत्मिश के द्वारा २७ वर्षो में तैयार की गयी "कुतुब मीनार" है।इस प्रकार हमने देखा कि इतिहास स्वयं इस बात को झुठला देता है कि ये कोई कुतुबुद्दीन एबक और उसके गुलाम इल्तुत्मिश के द्वारा २७ वर्षो में तैयार की गयी "कुतुब मीनार" है।
तर्कशीलता की कसौटी पर देखते हैँ:-तर्कशीलता की कसौटी पर देखते हैँ:-
हमारे कुछ तथाकथित इतिहासकार मानते हैँ कि जब मुहम्मद गोरी और उसके सेनापति कुतुबुद्दीन एबक ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में पराजित कर दिया ११९२-९३ ई के आस पास तो उसके जश्न में मुहम्मद गोरी के भाई ने अफगानिस्तान में, "जाम की मीनार" का निर्माण करवाया और ये मीनार मात्र २ से ढाई वर्ष में तैयार हो गयी।
इसी से प्रेरित होकर और उससे भी आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक, ने सन ११९३ में इस कुतुब मीनार के निर्माण का कार्य आरंभ करवाया, परंतु केवल इसका आधार ही बनवा पाया। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया और १२२० ई में इसके निर्माण का कार्य पुरा किया।इसी से प्रेरित होकर और उससे भी आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक, ने सन ११९३ में इस कुतुब मीनार के निर्माण का कार्य आरंभ करवाया, परंतु केवल इसका आधार ही बनवा पाया। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया और १२२० ई में इसके निर्माण का कार्य पुरा किया।
(कुतुबुद्दीन ऐबक पृथ्वीराज चौहान को हराने वाले मोहम्मद गोरी का पसंदीदा गुलाम और सेनापति था। गोरी ऐबक को दिल्ली और अजमेर का शासन सौंपकर वापस लौट गया था। १२०६ ई में गोरी की मौत के बाद ऐबक आजाद शासक बन गया और उसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की।)(कुतुबुद्दीन ऐबक पृथ्वीराज चौहान को हराने वाले मोहम्मद गोरी का पसंदीदा गुलाम और सेनापति था। गोरी ऐबक को दिल्ली और अजमेर का शासन सौंपकर वापस लौट गया था। १२०६ ई में गोरी की मौत के बाद ऐबक आजाद शासक बन गया और उसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की।)
अब ये बात भी गले नहीं उतरती, मित्रों, क्योंकि भारत किसी भी विदेशी लुटेरे के आने से पूर्व अभियांत्रिकी और वस्तुकला के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व में सबसे अग्रणी था, अत: इस लुटेरे कुतुबुद्दीन एबक के लिए तो यह बाए हाथ का खेल था कि इस मीनार को वो ढाई वर्ष से भी कम समय में बनवा लेता परन्तु इस मीनार को खड़ा होने में २७ वर्ष लग गये, जो कि केवल बकवास के अलावा कुछ भी नहीं है। जाम की मीनार अफगानिस्तान जैसे कबिलाई और पिछड़े इलाके में बनाई गयी, जबकी कुतुब मीनार विश्व के सबसे अगड़े और विकसित देश भारत में बनाई गयी फिर भी २७ वर्ष लग गये। ये टोपीबाज इतिहासकार किसको टोपी पहनाना चाहते थे।अब ये बात भी गले नहीं उतरती, मित्रों, क्योंकि भारत किसी भी विदेशी लुटेरे के आने से पूर्व अभियांत्रिकी और वस्तुकला के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व में सबसे अग्रणी था, अत: इस लुटेरे कुतुबुद्दीन एबक के लिए तो यह बाए हाथ का खेल था कि इस मीनार को वो ढाई वर्ष से भी कम समय में बनवा लेता परन्तु इस मीनार को खड़ा होने में २७ वर्ष लग गये, जो कि केवल बकवास के अलावा कुछ भी नहीं है। जाम की मीनार अफगानिस्तान जैसे कबिलाई और पिछड़े इलाके में बनाई गयी, जबकी कुतुब मीनार विश्व के सबसे अगड़े और विकसित देश भारत में बनाई गयी फिर भी २७ वर्ष लग गये। ये टोपीबाज इतिहासकार किसको टोपी पहनाना चाहते थे।
झूठ का पिटारा यही नहीं थम रहा है, ये टॉपिबाज आगे बताते हैँ कि वर्ष १३६८ में फीरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई और तो और कुछ तो इसका नाम मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर पड़ा है, ऐसा बताते हैँ।झूठ का पिटारा यही नहीं थम रहा है, ये टॉपिबाज आगे बताते हैँ कि वर्ष १३६८ में फीरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई और तो और कुछ तो इसका नाम मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर पड़ा है, ऐसा बताते हैँ।
असलियत:-असलियत:-
यह एक विष्णु स्तम्भ है। इसकी स्थापना चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने करवाया था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार कै विद्वानों और विशेषज्ञों से समृद्ध था। उसी में से एक थे वराहमिहिर जो एक उच्चकोटी के खगोलशास्त्री होने के साथ साथ महान वैज्ञानिक थे। यह विष्णु स्तम्भ और उसके आस पास का सम्पूर्ण क्षेत्र उनकी वेधशाला थी, जंहा वो नक्षत्रों, ग्रहो, उपग्रहो, सूर्य, चंद्र व तारामंडल का अध्ययन करते थे। इसी वराहमिहिर ने खगोल विज्ञान के ऊपर एक पुस्तक लिखी जिसे "वृहत संहिता" के नाम से जाना जाता है। ये महाराज चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नो में से एक थे।
यह विष्णु स्तम्भ ( क़ुतुब मीनार) भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित, लाल बलुवा ईंट से बना विश्व का सबसे ऊँचा स्तम्भ है। यह दिल्ली का एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। इसकी ऊँचाई ७३ मीटर (२३९.५ फीट) और व्यास १४.३ मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर २.७५ मीटर (९.०२ फीट) हो जाता है। इसमें ३७९ सीढियाँ हैं।यह विष्णु स्तम्भ ( क़ुतुब मीनार) भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित, लाल बलुवा ईंट से बना विश्व का सबसे ऊँचा स्तम्भ है। यह दिल्ली का एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। इसकी ऊँचाई ७३ मीटर (२३९.५ फीट) और व्यास १४.३ मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर २.७५ मीटर (९.०२ फीट) हो जाता है। इसमें ३७९ सीढियाँ हैं।
इस विष्णु स्तम्भ ( मीनार) के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, यह परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है। इस विष्णु स्तम्भ ( मीनार) के चारों ओर बने अहाते में भारतीय कला के कई उत्कृष्ट नमूने हैं, यह परिसर युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है।
ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर श्री धर्मवीर शर्मा का भी दावा है कि( कुतुब मीनार) विष्णु स्तम्भ को राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। धर्मवीर शर्मा ने इससे पहले बताया था कि कुतुब मीनार एक सन टावर है जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के विक्रमादित्य ने बनवाया था। उन्होंने दावा किया कि इस संबंध में उनके पास बहुत सारे साक्ष्य हैं। ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर श्री धर्मवीर शर्मा का भी दावा है कि( कुतुब मीनार) विष्णु स्तम्भ को राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। धर्मवीर शर्मा ने इससे पहले बताया था कि कुतुब मीनार एक सन टावर है जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के विक्रमादित्य ने बनवाया था। उन्होंने दावा किया कि इस संबंध में उनके पास बहुत सारे साक्ष्य हैं।
ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर श्री धर्मवीर शर्मा का दावा है कि (कुतुब मीनार) विष्णु स्तम्भ में 25 इंच का झुकाव है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसे सूर्य का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था। २१ जून को जब सूर्य आकाश में जगह बदलता है तो भी कुतुब मीनार की उस जगह पर आधे घंटे तक छाया नहीं पड़ती। यह विज्ञान और आर्कियोलॉजिकल फैक्ट है। शर्मा ने कहा कि (कुतुब मीनार) विष्णु स्तम्भ एक स्वतंत्र इमारत है और इसका संबंध करीब की मस्जिद से नहीं है। दरअसल, इसके दरवाजे नॉर्थ फेसिंग हैं, ताकि इससे रात में ध्रुव तारा देखा जा सके।ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर श्री धर्मवीर शर्मा का दावा है कि (कुतुब मीनार) विष्णु स्तम्भ में 25 इंच का झुकाव है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसे सूर्य का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था। २१ जून को जब सूर्य आकाश में जगह बदलता है तो भी कुतुब मीनार की उस जगह पर आधे घंटे तक छाया नहीं पड़ती। यह विज्ञान और आर्कियोलॉजिकल फैक्ट है। शर्मा ने कहा कि (कुतुब मीनार) विष्णु स्तम्भ एक स्वतंत्र इमारत है और इसका संबंध करीब की मस्जिद से नहीं है। दरअसल, इसके दरवाजे नॉर्थ फेसिंग हैं, ताकि इससे रात में ध्रुव तारा देखा जा सके।
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान अयोध्या में खुदाई में शामिल रहे प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट श्री केके मुहम्मद ने हाल ही में कहा था कि कुतुब मीनार के पास स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को बनाने के लिए २७ हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ गया था। श्री केके मुहम्मद के मुताबिक, ‘’मस्जिद के पूर्वी गेट पर लगे एक शिलालेख में भी इस बात का जिक्र है।’’राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान अयोध्या में खुदाई में शामिल रहे प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट श्री केके मुहम्मद ने हाल ही में कहा था कि कुतुब मीनार के पास स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को बनाने के लिए २७ हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ गया था। श्री केके मुहम्मद के मुताबिक, ‘’मस्जिद के पूर्वी गेट पर लगे एक शिलालेख में भी इस बात का जिक्र है।’’
और इसी (कुतुब मीनार) विष्णु स्तम्भ परिसर में स्थित लौह स्तंभ या लोहे के खंभे का इतिहास भी बहुत रोचक है। इस स्तंभ का निर्माण चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय ने ३७५ से ४१५ ईस्वी के दौरान कराया था। इस स्तंभ की लंबाई २३.८ फीट है, जिनमें से ३.८ फीट जमीन के अंदर है। इसका वजन ६०० किलो से ज्यादा है। और अभियांत्रिकी का चमत्कार है कि आज तक इस लौह स्तम्भ पर जंग नहीं लगा।और इसी (कुतुब मीनार) विष्णु स्तम्भ परिसर में स्थित लौह स्तंभ या लोहे के खंभे का इतिहास भी बहुत रोचक है। इस स्तंभ का निर्माण चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय ने ३७५ से ४१५ ईस्वी के दौरान कराया था। इस स्तंभ की लंबाई २३.८ फीट है, जिनमें से ३.८ फीट जमीन के अंदर है। इसका वजन ६०० किलो से ज्यादा है। और अभियांत्रिकी का चमत्कार है कि आज तक इस लौह स्तम्भ पर जंग नहीं लगा।
मित्रों विष्णु स्तम्भ जिसे बिना किसी आधार के और बगैर किसी साक्ष्य के वामपंथी इतिहासकारों ने कुतुब मीनार बना दिया है, कि असली सच्चाई आपको श्री अभिषेक सिंह के द्वारा जाँच और अनवेशण और खोज के आधार पर ठोस प्रमाणो के साथ लिखी गयी पुस्तक "Genesis of Time unveiling the hidden history" में आपको मिल जाएगी।मित्रों विष्णु स्तम्भ जिसे बिना किसी आधार के और बगैर किसी साक्ष्य के वामपंथी इतिहासकारों ने कुतुब मीनार बना दिया है, कि असली सच्चाई आपको श्री अभिषेक सिंह के द्वारा जाँच और अनवेशण और खोज के आधार पर ठोस प्रमाणो के साथ लिखी गयी पुस्तक "Genesis of Time unveiling the hidden history" में आपको मिल जाएगी।
इस पुस्तक को पढ़ने से आपको महरौली क्षेत्र के वैज्ञानिक महत्व, इस तथाकथित मीनार में बनी २७ खिड़कियां और उनका रहस्य, २१ जून को इस मीनार की छाया का ना बनना चन्द्रमा और सूर्य के गतिविधियों का अध्ययन इत्यादि क्यों, कैसे और किसके द्वारा का उत्तर मिल जायेगा आप संतुष्ट होकर मान लेंगे कि यह एक झूठी मिनार पर सच्चा स्तम्भ है।इस पुस्तक को पढ़ने से आपको महरौली क्षेत्र के वैज्ञानिक महत्व, इस तथाकथित मीनार में बनी २७ खिड़कियां और उनका रहस्य, २१ जून को इस मीनार की छाया का ना बनना चन्द्रमा और सूर्य के गतिविधियों का अध्ययन इत्यादि क्यों, कैसे और किसके द्वारा का उत्तर मिल जायेगा आप संतुष्ट होकर मान लेंगे कि यह एक झूठी मिनार पर सच्चा स्तम्भ है।
विख्यात इतिहासकार श्री सीताराम गोयल के अनुसार इस्लामिक आतंकवादियों ने करीब ४००००/- मंदिरो को तोड़ा।विख्यात इतिहासकार श्री सीताराम गोयल के अनुसार इस्लामिक आतंकवादियों ने करीब ४००००/- मंदिरो को तोड़ा।
यही सच है।
लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in