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हिन्दू जातिवाद :- संविधान बनाम मनुस्मृति |

13 मई 2023

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 मित्रों विधर्मियों और कुपढो ने सर्वप्रथम सनातन धर्म के जिस पुस्तक पर अपनी ओछी दृष्टि डाली उसे हम मनुस्मृति के नाम से जानते हैं | मनुस्मृति सम्पूर्ण मनवा सभ्यता को सुसंकृत और सुशिक्षित बनाने के लिए रचा गया एक ग्रंथ है | इसमें मनुष्य को सदाचार का पालन करते हुए किस प्रकार अपना सम्पूर्ण जीवन यापन करना चाहिए इस का सारगर्भित चित्रण किया गया है | यह अत्यंत प्राचीन ग्रंथ है | २६ जनवरी १९५० को हमारे देश में संविधान लागू  किया गया और इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है | मनुस्मृति को जंहा सनातन धर्मियों को जातियों में बाटने का आरोप लगाया जाता है , वंही संविधान को सभी को एकजुट करने वाला माना जाता है | आइये इस मुद्दे पर दोनों ही पुस्तकों की वास्तविक स्थिति का विश्लेषण कर लेते हैं |  

 उत्पत्ति :-  

मनुस्मृति :- 

प्रथम मानव मनु ने इसकी रचना की थी , इस पर वेदो का व्यापक प्रभाव है | इसकी रचना आज से हजारों वर्ष पूर्व की गयी थी , जब प्रथम बार मानव का अवतरण हुआ था | इसमें कुल १२ अध्याय और २६६४ श्लोक हैं | मनुस्मृति के विषय में  बाइबल इन इण्डिया' नामक ग्रन्थ में लुई जैकोलिऑट (Louis Jacolliot) लिखते हैं: "मनुस्मृति ही वह आधारशिला है जिसके ऊपर मिस्र, परसिया, ग्रेसियन और रोमन कानूनी संहिताओं का निर्माण हुआ। आज भी यूरोप में मनु के प्रभाव का अनुभव किया जा सकता है। Anthony Reid (1988), Southeast Asia in the Age of Commerce, 1450-1680: The lands below the winds, Yale University Press, pages 137-138 में स्प्ष्ट लिखा है कि बर्मा, थाइलैण्ड, कम्बोडिया, जावा-बाली आदि में धर्मशास्त्रों और प्रमुखतः मनुस्मृति, का बड़ा आदर था। इन देशों में इन ग्रन्थों को प्राकृतिक नियम देने वाला ग्रन्थ माना जाता था और राजाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे इनके अनुसार आचरण करेंगे। वी कृष्णा राव अपनी पुस्तक "Expansion of Cultural Imperalism Through Globalisation" के पेज संख्या ८२ पर लिखते हैं "Manu Smriti was the foundation upon which the Egyptian, the
Persian, the Grecian and the Roman codes of law were built and that the
influence of Manu is still felt in Europe".  

 संविधान :- 

भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर के नेतृत्व वाली संविधान समिति ने २ वर्ष ११ महीने १८ दिनों में लगभग १८६ घंटे काम करके तैयार किया था | इस पर कुल ११४ दिन चर्चा की गयी थी | भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा २६ नवम्बर १९४९  को पारित हुआ तथा २६  जनवरी १९५०  से प्रभावी हुआ।भारत के संविधान का मूल आधार भारत सरकार अधिनियम १९३५ को माना जाता है, जिसे ब्रिटिश संसद द्वारा ३२१ धाराओं और १०  अनुसूचियों के साथ पारित किया गया था और इसके २५० धाराओं को हमारे संविधान का हिस्सा बना दिया गया | हमारे संविधान में एक उद्देशिका, ४७० अनुच्छेदों से युक्त २५  भाग, १२  अनुसूचियाँ, ५  अनुलग्नक (appendices) और १०५ संशोधन हैं | इस संविधान में आयरलैंड और अमेरिका के संविधान से भी कुछ लेकर सम्मिलित किया गया है |  

 अब आइये देखते हैं कि सनातन धर्म में फैले इस जातिवाद को मनुस्मृति और संविधान में कैसे निरूपित किया गया है |  सर्वप्रथम हम देखते हैं, हमारे संविधान के द्वारा दिए गए प्रावधान जातिवाद के विषय में क्या व्यवस्था करते हैं |  

मित्रों चूँकि हमारे संविधान का मूल आधार अंग्रेजों द्वारा दिया गया भारतीय सरकार अधिनियम १९३५, है अत: निसंदेह उनके षड्यंत्र को स्वीकार कर लिया गया और भारतीय सनातनी समाज को जातियों में विभक्त करने के असमाजिक कार्य को संवैधानिक ढांचा प्रदान कर दिया गया | इस संविधान के तहत सनातन समाज को अगड़ा (General) पिछड़ा (backword ) अनुसूचित जाती (Schedule Caste) और अनुसूचित जनजाति ( Schedule Tribes) में बाँट कर पिछड़ा (backword ) अनुसूचित जाती (Schedule Caste) और अनुसूचित जनजाति ( Schedule Tribes) इत्यादि के लिए विशेष प्रावधान कर दिए गए | आइये देखते हैं कुछ प्रावधानों को  

 भारत के संविधान के अनुच्छेद ३३०  से लेकर ३४२ तक पिछड़ा (backword ) अनुसूचित जाती (Schedule Caste) और अनुसूचित जनजाति ( Schedule Tribes) इत्यादि के लिए के लिए विशेष उपबंध किए गए हैं |  

 अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजातियां- भारत के संविधान के अंतर्गत इनको विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया अनुच्छेद ३४१ और  ३४२ हमारे देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति को इन जातियों को उल्लेखित करने की शक्ति प्रदान करता है। राष्ट्रपति संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए जिन जातियों को अनुसूचित जाती में या अनुसूचित जनजाति  में सम्मिलित करते हैं वो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जातियां समझी जाती हैं । ऐसी कोई अधिसूचना किसी राज्य से संबंधित होती है तो वह उस राज्य के राज्यपाल के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं।  

 संसद विधि द्वारा खंड १ के अधीन निर्गमित की गयी अधिसूचना में उल्लेखित सूची के अंतर्गत किसी क्षेत्र में जनजातीय समुदायों को सम्मिलित कर सकती है या निकाल सकती है। कोई जनजाति क्षेत्र के अंतर्गत जनजाति है या नहीं हमें राष्ट्रपति के द्वारा निकाली गई अधिसूचना के आधार पर तय करना होता है। अनुसूचित जातियों की श्रेणी के संबंध में राष्ट्रपति का आदेश पर्याप्त है। इस सूची की मान्यता पर इस आधार पर आपत्ति नहीं की जा सकती है  कि इसमें किसी जाति को अनुसूचित जाति के रूप में उल्लेखित नहीं किया गया है।  

 भारत के संविधान के  अनुच्छेद ३३२  के अधीन दिए गए प्रावधानों के अनुसार लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित किए जाने का उपबंध किया गया है। अनुच्छेद ३३२ उपबंध करता है कि लोकसभा तथा  प्रत्येक राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित होंगे। वर्ष १९७६ में किये गए ४२ वें संविधान संशोधन  द्वारा  अनुच्छेद ३३२  में संशोधन करके यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इस आयोजन के लिए जनसंख्या से तात्पर्य वर्ष  १९७१ में की गई जनगणना पर आधारित जनसंख्या है और वह वर्ष  २०००  तक वैसे ही बनी रहेगी। इसका तात्पर्य यह था कि इन वर्गों के लिए लोकसभा और राज्यसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं में स्थानों का आरक्षण वर्ष २०००  तक वर्ष १९७१ ई में की गई जनगणना के आधार पर किया जाएगा और नई जनगणना पर इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।  

 इसके पश्चात वर्ष २००० ई में  संविधान में किये गए ८४वे  संशोधन द्वारा अनुच्छेद ३३२  में संशोधन किया गया और इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद ३३२ के स्पष्टीकरण के प्रवर्तक में वर्ष २००० के स्थान पर वर्ष २०२६ और वर्ष १९७१  के स्थान परवर्ष १९९१ स्थापित कर दिया गया  अर्थात उपर्युक्त व्यवस्था का आधार वर्ष १९९१ ई में हुई जनसंख्या जनगणना को आधार बनाकर वर्ष २०२६ तक के लिए निर्धारित  कर दिया गया।  

 संविधान के ७३ वें संशोधन अधिनियम २००३  द्वारा अनुच्छेद ३३२  के स्पष्टीकरण को फिर से संशोधित किया गया और सन १९९१  के लिए सन २००१  प्रतिस्थापित किया गया। इसका तात्पर्य यह है कि इस प्रयोजन के लिए जनसंख्या का आधार २००१  की जनगणना होगी न कि १९९१  की जनगणना। इनमें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान सभा में आरक्षण जिलों को छोड़कर पूरे प्रदेश में होगा।  

 प्रथम आरक्षण संविधान लागू होने की तारीख से १०  वर्ष के लिए किया गया था। इसके पश्चात अवधि को समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा। संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसे बढ़ाकर २०  वर्ष के लिए कर दिया गया।  

अनुच्छेद ३२५  निर्वाचन के लिए एक साधारण निर्वाचन नामावली का उपबंध करता है इसका अर्थ यह है कि पिछड़ा (backword ) अनुसूचित जाती (Schedule Caste) और अनुसूचित जनजाति ( Schedule Tribes)  जातियों के लोग सामान्य जातियों के लिए आरक्षित स्थानों के लिए भी निर्वाचित किए जा सकते हैं।  

 अनुच्छेद ३३५  में संशोधन करके निर्धारित किया गया कि अनुच्छेद ३३५  की कोई भी बात राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के सहयोग के लिए उपबंध करने से नहीं रोकेगा जो संघ ने राज्य से संबंधित किसी वर्ग या सेवा के वर्गों में पदोन्नति के संबंध में आरक्षित है या फिर किसी परीक्षा में और उनको या मूल्यांकन की मांगों को लेकर बनाया गया। 

 संविधान में वर्ष २००३ में किये गए ८९वें संशोधन के द्वारा अनुच्छेद ३३८ के अंतर्गत अनुसूचित जातियों के लिए एक "राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग" की स्थापना का उपबंध किया गया है। संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए आयोग एक अध्यक्ष उपाध्यक्ष व तीन अन्य सदस्यों से मिलकर बनता है । आयोग के सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।  

 इस संशोधन द्वारा एक  नया अनुच्छेद ३३८  (ए) जोड़ा गया है जो  आयोग के कार्य करने की प्रक्रिया और उसके कर्तव्यों के सम्बन्ध में उपबंध करता  है। आंग्ल भारतीय समुदाय को आरक्षण आंग्ल भारतीय समुदाय (एक समुदाय हैं जो भारत से आए ब्रिटिश लोगों के वंश के हैं तथा स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश लोगों के भारत से जाने के पश्चात भी यह लोग भारत में निष्ठा रखकर स्वतंत्र भारत में बने रहे) लोगों को भारत के संविधान में कुछ आरक्षण दिए हैं।  

 यदि राष्ट्रपति की राय में लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह इस समुदाय से अधिक से अधिक २  सदस्यों को लोकसभा में नामजद कर सकता है। इसी प्रकार किसी राज्य का राज्यपाल यह कर सकता है कि राज्य की विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो समुदाय के एक सदस्य को विधानसभा में नामजद कर सकता है। संविधान के साथ प्रारंभ की गई यह सुविधा प्रारंभ में १०  वर्ष के लिए की गई थी और ४५ वें संशोधन द्वारा इसे बढ़ाकर ४०  वर्ष तक के लिए कर दिया गया है।  

 भारतीय संविधान आंग्ल समुदाय के संविधान पूर्व अधिकारों और विशेष अधिकारों को भी संरक्षण प्रदान करता है। अनुच्छेद ३३६ कहता है कि संविधान के प्रारंभ के पश्चात प्रथम २ 2 वर्ष में संघ की रेल,सीमा शुल्क, डाक संबंधित सेवाओं में पदों के लिए आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों की नियुक्तियां १५  अगस्त १९४७  ईस्वी के पूर्व वाले आधार पर की जाएगी। इसके पश्चात प्रत्येक २  वर्ष के बाद उक्त समुदाय के लिए आरक्षित पदों की संख्या १० % कम हो जाएगी और संविधान के प्रारंभ से १०  वर्ष के बाद ऐसे सब आरक्षणों का अंत हो जाएगा। संविधान के लागू होने के बाद प्रथम २  वर्षों में आंग्ल भारतीय समुदाय के लिए शिक्षा के संबंधों में संघ द्वारा वही अनुदान दिए जाएंगे ३१  मार्च १९४७  ईस्वी तक दिए जाते रहे थे। ऐसा कोई अनुदान अगले ३  वर्षों बाद १० % कम होता जाएगा और संविधान के प्रारंभ से १०  वर्ष के बाद समाप्त हो जाएगा पर आंग्ल भारतीय समुदाय द्वारा चलाई जाने वाली किसी शिक्षा संस्था को अनुदान पाने का हक तब तक न होगा जब तक कि उसके वार्षिक प्रवेशों में कम से कम ४० % दूसरे समुदाय के लोगों को प्रवेश दिया गया हो। 

 पिछड़े वर्ग के लिए भी  विशेष उपबंध भारत के संविधान में किया गया है। पिछड़े वर्ग में कौन जाती सम्मिलित है इसको उल्लेखित करने की शक्ति संघ तथा राज्य सरकार में निहित है अर्थात कौन पिछड़े वर्ग का है इसे उल्लेखित करने की शक्ति भारत के संघ और राज्य के पास है।  

अनुच्छेद ३४० (१ ) के अंतर्गत राष्ट्रपति को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशा तथा उनकी कठिनाइयों के अनुसंधान के लिए आयोग की नियुक्ति करने की शक्ति है। आयोग वर्गों की कठिनाइयों को दूर करने के उपायों के बारे में या उनके दिए गए अनुदान या अनुदान के बारे में राज्य सरकारों को अपनी सिफारिश भेजेगा और वह अनुसंधान करेगा। उसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजेगा। राष्ट्रपति आयोग द्वारा दिए गए प्रतिवेदन को उस पर की गई कार्यवाहियों सहित संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रख पाएगा। आयोग के प्रतिवेदन प्राप्त होने के पश्चात राष्ट्रपति आदेश द्वारा पिछड़े वर्गों को उल्लेखित करेगा। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियां, आदिम जातियों के लिए नियुक्त विशेष पदाधिकारी पिछड़े वर्गों के लिए भी कार्य करेंगे।  

हे मित्रों पिछले अंक में आपने देखा कि किस प्रकार भारतीय सरकार अधिनियम १९३५ को आधार बनाकर संविधान की रचना की गयी और हिन्दू समाज को संवैधानिक रूप से अगड़ा (Forward), पिछड़ा (Backward) अनुसूचित जाती (Schedule Caste) और अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribes) में सदैव के लिए बाँट दिया | इस अंक में देखेंगे कि किस प्रकार मनुस्मृति द्वारा प्रदान की गयी वर्ण व्यवस्था इस संवैधानिक जातिगत व्यवस्था से न केवल श्रेष्ठ है अपितु समाज को जोड़ने वाली है, थी और हमेशा रहेगी:-  

 अनुच्छेद १५ (४ ) के अंतर्गत राज्य को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए प्रावधान बनाने की शक्ति प्राप्त है।  

अनुच्छेद १६ ४ ) के अंतर्गत राज्य को इन वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान पर आरक्षित करने की शक्ति प्राप्त है। संविधान में पिछड़े वर्ग की कोई परिभाषा नहीं दी गई है। सरकार को श्रेणी में आने वाले लोगों को लिखित करने की शक्ति प्राप्त है। रामकृष्ण बनाम मैसूर राज्य के मामले में सरकार ने एक आदेश द्वारा राज्य की जनसंख्या के २५ % भाग को पिछड़ा वर्ग घोषित कर दिया। यह वर्गीकरण आर्थिक सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर नहीं बल्कि जातिगत आधार पर किया गया था। मैसूर उच्च न्यायालय ने उक्त आदेश को अवैध घोषित कर दिया। न्यायालय ने कहा कि पिछड़े वर्गों को उल्लेखित करने वाला सरकारी आदेश न्यायिक जांच के अधीन है। इस विषय में सरकार का निर्णय अंतिम नहीं है। न्यायालय इस बात की मांग कर सकते हैं कि सरकार का निर्णय किसी युक्तियुक्त सिद्धांत पर आधारित है या नहीं। न्यायालय इस बात की भी जांच कर सकते हैं कि किसी पद के लिए आरक्षित स्थानों नियुक्त है या नहीं।  

मित्रों इसी संविधान के दायरे रहकर मंडल कमीशन की नियुक्ति की गयी | जी हाँ वर्ष १९७९ ई में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग  की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग को स्थापित किया गया। आयोग के पास उपजाति, जो अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी (OBC)) कहलाती है, का कोई सटीक आँकड़ा था और ओबीसी की ५२ % आबादी का मूल्यांकन करने के लिए १९३०  की जनगणना के आँकड़े का इस्तेमाल करते हुए पिछड़े वर्ग के रूप में १,२५७   समुदायों का वर्गीकरण किया। वर्ष १९८० ई में आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की और मौजूदा कोटा में बदलाव करते हुए २२ % से ४९. ५ % वृद्धि करने की सिफारिश की| वर्ष २००६ ई जनसंख्या विवरण  के अनुसार  पिछड़ी जातियों की सूची में जातियों की संख्या ३७४३  तक पहुँच गयी, जो मण्डल आयोग द्वारा तैयार समुदाय सूची में ६० % की वृद्धि है। वर्ष १९९० ई में  मण्डल आयोग की सिफारिशें विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया। छात्र संगठनों ने राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन शुरू किया। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह की कोशिश की। कई छात्रों ने इसका अनुसरण किया। 

 तो मित्रों इस प्रकार हम देखे तो संविधान के द्वारा निम्न तथ्यों को निर्धारित कर दिया गया :- 

१ :- व्यक्ति जन्म से जाती समूहों में बँटा होता है , अर्थात कोई यादव कुल में पैदा हुआ है तो वो यादव ही रहेगा और संविधान के अनुसार भले ही वो उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन जाये पर वो पिछड़े में ही गिना जायेगा | इसी प्रकार यदि अनुसूचित जनजाति या जाती का मनुष्य देश का राष्ट्रपति ही क्यों ना बन जाये वो और उसके परिवार के लोग अनुसूचित जनजाति या जाती के ही रहेंगे ;  

२:- संविधान ने भारत के कर्म प्रधान वर्ण व्यवस्था को नकार दिया ; 

३:- जातिगत दुर्व्यवस्था को संवैधानिक ढांचा और आरक्षण का आवरण प्राप्त हो जाने के पश्चात ये और भी मजबूत हो गयी ; 

४:- अनुसूचित जनजाति या अनुसूचित जाती आयोग तथा पिछड़ा आयोग बनाकर सनातन समाज को पूर्णतया विभक्त कर दिया गया; 

५:- संविधान की आड़ में जातिगत जनगड़ना की बात भी बड़ी ही बेशर्मी से उठायी जा रही है , ताकि संख्या के आधार पर पहले से विभक्त सनातन समाज को और बाँट दिया जाये; 

अत: जिस सनातन समाज के वेद , सम्पूर्ण रामायण, भगवत गीता, उपनिषद, ब्राह्मण, पुराण तथा महाभारत जातिगत व्यवस्था का निषेध करते है और कर्म के आधार पर दी गयी वर्ण व्यवस्था को अपनाने का संदेश देते है, वंही हमारा संविधान जन्म पर आधारित जातिगत व्यवस्था को हो आधार मान कर अपनी सम्पूर्ण रूप रेखा तैयार करता है |  

 अब आइये जरा मनुस्मृति के द्वारा दिए गए प्रावधानों को देखते हैं :- 

 मनुस्मृति मानव समाज को व्यवस्थित और सदाचारी बनाने का एक दर्पण है। वो असभ्य दो पैर वाले जीवो को सभ्यता की ओर अग्रसित करने वाला एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। मनुस्मृति अध्याय १ श्लोक ८७ 

सर्वस्यास्य तु सर्गस्य गुप्त्यर्थं स महाद्युतिः । मुखबाहूरुपज्जानां पृथक्कर्माण्यकल्पयत् । ।1/87 

इस सारे संसार का कार्य चलाने के हेतु ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण शरीर के चार भाग मुख, वाहु, उरु और पाँव के अनुसार बनाये। और चारों वर्णों के काम पृथक्-पृथक् निर्धारित किये।इस श्लोक के द्वारा मनुस्मृति स्पष्ट करती है की ब्रह्मा के शरीर को समाज मानकर "मानव समाज" की सम्पूर्ण व्यवस्था को चार वर्ण में विभाजित किया गया, जो शरीर के अंगों के कर्म से जुड़े थे, जो निम्न प्रकार है:- 

मुख:- से ब्राह्मण के उत्पत्ति का अर्थ:- शरीर में मुख हि वो अंग है जो बोलने या वार्तालाप में भाग लेने के लिए उपयोग में लाया जाता है।  

मनुस्मृति अध्याय १ श्लोक ८८ 

अध्यापनं अध्ययनं यजनं याजनं तथा । दानं प्रतिग्रहं चैव ब्राह्मणानां अकल्पयत् । ।1/88 

अत: मुख को केंद्र बनाकर मानव समाज के जो मनुष्य वेद पढ़ना, वेद पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान देना और दान लेना, इन छह कर्मो में युक्त थे उन्हें  ब्राह्मण वर्ण में रखा गया। 

वाहु: - से क्षत्रिय की उत्पत्ति का अर्थ:- मानव समाज में जो मनुष्य अपने अपने समाज कि रक्षा करने और दुष्टो तथा शत्रुओ  से युद्ध करने के लिए तैयार रहते थे, उन्हें क्षत्रिय वर्ण में रखा गया। यंहा हमारे शरीर में जो "वाहु" नामक २अङ् हैं वो शरीर की रक्षा करने और शारीरिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अन्य सभी प्रकार के कार्य करते हैं जिससे शरीर के सभी अंगों की बराबर देखभाल कर सके अत: क्षत्रिय को वाहु से जोड़ा गया। 

मनुस्मृति अध्याय १ श्लोक ८९ 

प्रजानां रक्षणं दानं इज्याध्ययनं एव च । विषयेष्वप्रसक्तिश्च क्षत्रियस्य समासतः । ।1/89 

दुसरे और आसान शब्दों में " न्याय से प्रजा की रक्षा अर्थात् पक्षपात छोड़के श्रेष्ठों का सत्कार और दुष्टों का तिरस्कार करना, विद्या-धर्म के प्रवर्तन और सुपात्रों की सेवा में धनादि पदार्थों का व्यय करना, अग्निहोत्रादि यज्ञ करना, वेदादि शास्त्रों का पढ़ना, और विषयों में न फंसकर जितेन्द्रिय रह के सदा शरीर और आत्मा से बलवान् रहना, ये संक्षेप से क्षत्रिय के कर्म आदिष्ट किये" अर्थात समाज के जो भी नर या मादा उस प्रकार के गुणों से युक्त होते हैँ, उन्हें क्षत्रिय कहा गया। 

उरु:- उरु से वैश्य की उत्पति का अर्थ है कि जिस प्रकार मानव शरीर का उरु या पेट भोजन को संग्रहित कर उसे पकाता है पचाता है और उससे उतपन्न ऊर्जा को सम्पूर्ण शरीर में परीसन्चरित कर देता है, ठीक उसी प्रकार वैश्य वर्ण के अंतर्गत आने वाले मनुष्य भी अपने देश या राष्ट्र या समाज के लिए व्यवसाय करते हैं। 

मनुस्मृति अध्याय १ श्लोक ९० 

पशूनां रक्षणं दानं इज्याध्ययनं एव च । वणिक्पथं कुसीदं च वैश्यस्य कृषिं एव च । ।1/90 

चौपायों की रक्षा करना, दान देना, यज्ञ करना, वेद पढ़ना, व्यापार करना, ब्याज लेना, खेती (कृषि) करना, ये सात कर्म वैश्यों के लिये नियत किये हैं।अर्थात समाज के जो भी नर या मादा उस प्रकार के गुणों से युक्त होते हैँ, उन्हें वैश्य कहा गया। 

पैर: - पैर से शूद्र की उत्पत्ति का अर्थ है कि जिस प्रकार पैर सम्पूर्ण मनुष्य शरीर को आधार प्रदान करता है, वैसे हि जो मनुष्य हर वर्ण को अपना सहयोग दे सकते हैं  और उन्हें किसी ना किसी प्रकार अपना सहयोग प्रदान करते हैं, उन्हें शूद्र वर्ण में  रखा गया। 

 मनुस्मृति अध्याय १ श्लोक ९१ 

एकं एव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत् । एतेषां एव वर्णानां शुश्रूषां अनसूयया । ।1/91 

इस श्लोक के द्वारा उन सभी व्यक्तियों के बारे में बात कि जा रही है, जिनकी इच्छा ना तो वेदो को पढ़ाने में, ना युद्ध इत्यादि में भाग लेने में और ना व्यापार में होती है परन्तु यदि उन्हें आधार प्रदान किया जाए और कार्य सौपा जाए तो वो पढ़ाने, रक्षा करने और व्यापार करने में अपना अमूल्य सहयोग दे सकते हैं, ऐसे मनुष्यों को शूद्र वर्ण में रखा गया। 

ये सभी वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित है, किसी व्यक्ति के जन्म से संबंधित नहीं है।  संत रविदास  निम्न कुल में पैदा हुए थे परन्तु वो अपने कर्म से संत शिरोमणि बन गए और मीराबाई (जो कि एक क्षत्रिय कुल में जन्मी थी) उनकी शिष्या बनी और उन्हें अपना गुरु माना। इसी प्रकार वाल्मीकि समुदाय के वाल्मीकि अपने कर्म से भगवान् वाल्मीकि के पद को प्राप्त किये और महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वामित्र जैसे महान तपस्वीयों के रहते भी उन्हें प्रभु श्रीराम के जीवन चरित्र् को लेख बद्ध करने का शुभ कार्य प्राप्त हुआ। इसी प्रकार महाराणा प्रताप ने भील प्रजाति की सहायता से युद्ध करके मुगलो के दांत खट्टे किये। इसी प्रकार भारत रत्न बाबासाहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर भी अपने ज्ञान और कर्म से कानून मंत्री और फिर भारत रत्न बन गये, उन्होंने अपने कर्मो से ब्राह्मण तत्व को प्राप्त कर लिया। इसी प्रकार बिरसा मुंडा जी जो एक आदिवासी समुदाय से आते थे, उन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष किया और तिर धनुष का प्रयोग करके युद्ध किया और अपने कर्म से वो भगवान बिरसा मुंडा कहलाने लगे। 

निष्कर्ष:- संविधान जंहा जातिगत व्यवस्था को अपनाने के कारण  अनुसूचित जाति /जनजाति या पिछड़ा वर्ग को सामान्य वर्ग में आने से वर्जित करता है, वहीं मनुस्मृति कर्म प्रधान वर्ण व्यवस्था  को अपनाती है, अत: यह शूद्र कुल में जन्में मनुष्य को उसके कर्मों के आधार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण में शामिल हो जाने का पूर्ण अवसर प्रदान करती है। आज आधुनिक काल में कई मंदिरों में अनुसूचित जाती/जनजाति के मनुष्य मुख्य पुजारी का दायित्व संभालने लगे हैँ, अत: ये पुजारी संविधान की दृष्टि में तो आजीवन अनुसूचित जाति/जनजाति के हि बने रहेंगे परन्तु मनुस्मृति की दृष्टि से ये ब्राह्मण माने जाएंगे। 

आज भारत के विभिन्न विश्व विद्यालयों में अनुसूचित जाति/जनजाति या पिछड़ा वर्ग के अनगिनत अध्यापक/प्रोफ़ेसर शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैँ, अब ये सभी भले हि पढ़ने या पढ़ाने का कार्य कर रहे हैँ पर संविधान की दृष्टि से तो सदैव अनुसूचित जाति/जनजाति के हि बने रहेंगे, जबकी अपने कर्म के आधार पर ये सभी मनुस्मृति के अनुसार ब्राह्मण माने जाएंगे। 

इसी प्रकार भारतीय सेना में जितने भी सैनिक अनुसूचित जाति/जनजाति या पिछड़ा वर्ग से आते हैँ, संविधान की दृष्टि में  वो सदैव उसी जाति या जनजाति के माने जायँगे परन्तु मनुस्मृति की दृष्टि में ये सभी क्षत्रिय माने जायँगे। खैर मित्रों मनुस्मृति को अत्यधिक अपमानित किया और बदनाम किया गया है और हम सनातनियों का यह कर्तव्य है कि हम इसको उचित सम्मान और समुचित स्थान दिलाये। 

 लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)  aryan_innag@yahoo.co.in 

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Nikki Singh

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मित्रों वामपंथियों और तर्कवादियों ने सदैव "सनातन धर्म" के सभ्यता, संस्कृति, भाषा, इतिहास, भूगोल और समाजिक व्यवस्था को अपने आलोचना का केंद्र बनाया है। ये हमारे जितने भी धार्मिक और ऐतिहासिक पुस्तके हैँ

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हिन्दू जातिवाद :- संविधान बनाम मनुस्मृति |

13 मई 2023
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 मित्रों विधर्मियों और कुपढो ने सर्वप्रथम सनातन धर्म के जिस पुस्तक पर अपनी ओछी दृष्टि डाली उसे हम मनुस्मृति के नाम से जानते हैं | मनुस्मृति सम्पूर्ण मनवा सभ्यता को सुसंकृत और सुशिक्षित बनाने के लिए रच

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मोदी का पैसा आया क्या? एक वामपंथी से सनातनी का शास्त्रार्थ।

29 मई 2023
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मित्रों आप तो जानते हैँ कि मेरे एक मित्र हैँ जो जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हैँ । ये सनातन धर्म, उसकी सभ्यता, उसकी संस्कृति और उसके समीपस्थ जो पार्टी है भाजपा उसको पानी पी पीकर कोसते हैँ। वामप

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साम्यवाद अर्थात कम्युनिज्म का काला स्वरूप। प्रथम अंक:- कार्ल हेनरिक मार्क्स!

29 मई 2023
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आइये इस कम्युनिज्म के काले, भयानक और अंधेरी दुनिया का तथ्यात्मक विश्लेषण करते हैँ। आरम्भ करते हैँ जर्मनी के उस छोटे से कस्बे से जंहा पर इस भयानक और समाजविरोधी सिद्धांत का जन्म हुआ था। आइये इस कम्

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जो अपनी पत्नी की लाश को अपने हाथों में उठाकर आम आदमी की तरह रोता घूमता हो वो GOD कैसे हो सकता है?

29 मई 2023
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मित्रों जब "The Kerala Story" में वो कन्वर्ट मुस्लिम लड़की पूछती है यह प्रश्न तो हिन्दु लड़कियों के पास इसका उत्तर नहीं होता है, क्योंकि वो अपने धर्म से कोसो दूर थी। मित्रों जब "The Kerala Story" म

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जो व्यक्ति अपनी पत्नी कर रक्षा ना कर सका और जिसे अपनी पत्नि को प्राप्त करने के लिए वानरो की सहायता लेनी पड़ी, वो भगवान कैसे हो सकता है?

29 मई 2023
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मित्रों ये प्रश्न "The Kerala Story" में  एक कन्वर्टेड मुस्लिम युवती ने जब हिन्दु लड़कियों से पूछी तो वो इसका उत्तर ना दे सकी, क्यों, क्योंकि वो अपने धर्म के ज्ञान से अत्यंत दूर थी। मित्रों ये प्र

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झूठे इतिहासकारों और कन्वर्टों हैसियत है तो साबित करो:- ये कुतुब मिनार है।

29 मई 2023
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मित्रों जो लोग आज भी कबिलाई संस्कृति से मुक्ति नहीं पा सके हैँ, वो लोग इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के महरौली में खड़े विष्णु स्तम्भ को "कुतुब मिनार" होने का दावा करते हैँ और इसमे उनका साथ देते हैँ अनपढ़ औ

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बेचारा और असहाय कम्युनिस्ट बाप- "The Kerala Story"

29 मई 2023
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वो कम्युनिस्ट बाप बेतहाशा अपनी पत्नी के साथ दौड़ता हुआ, अपनी बेटी के कमरे की ओर दौड़ता है और जैसे हि कमरे का दरवाजा खोलता है, कमरे के पंखे से लटक रहे अपनी बेटी के बेजान हो चुके शरीर को झूलता देख अवाक

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विज्ञान (नासा) शास्त्रों में लिखी बातों को सच साबित कर रहा है।

29 मई 2023
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NASA  द्वारा प्राप्त किया गया चित्र, तनिक ध्यान से देखें।NASA  द्वारा प्राप्त किया गया चित्र, तनिक ध्यान से देखें। जी हाँ कई आसमानी किताबों में आपको निम्नलिखित बाते मिल जाएंगी जैसे:-जी हाँ कई आसम

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अरे अदालते तो उस समय भी थी संविधान तो उस समय भी था।

29 मई 2023
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मित्रों जब से अतिक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की हत्या होने पर  तथा उसके बेटे असद अहमद का पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर, इस देश के तथाकथित संविधानवादी (जिनका संविधान से कोई लेना देना नहीं) और अदालतवाद

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हाँ तुम सावरकर कभी नहीं हो सकते क्योंकि:- "सावरकर बनने के लिए"

29 मई 2023
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१:- भोगी नहीं योगी बनना पड़ेगा; १:- भोगी नहीं योगी बनना पड़ेगा;१:- भोगी नहीं योगी बनना पड़ेगा; २:+ राष्ट्रद्रोही नहीं राष्ट्रवादी बनना पड़ेगा; ३:- अंधकार नहीं प्रकाश फैलाना पड़ेगा; ४:-अधर्म के साथ नहीं

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कैसा भगवान है तुम्हारा, जिसकी १६१०८ पत्नियां है, कैसे तुम इन्हें GOD कह सकते हो?

30 मई 2023
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एक वामपंथी से सनातनी का शास्त्रार्थ:-एक वामपंथी से सनातनी का शास्त्रार्थ:- मित्रों जैसा की आपको पता है कि मेरे एक मित्र हैँ जो जन्म से ब्राह्मण पर कर्म और सोच से वामपंथी हैँ और वामपंथी होकर सनातन

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आदरणीय न्यायालयों ने भी "The Kerla Story" का सम्मान किया:-

30 मई 2023
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मित्रों शांतिदूतो से पैसा मिलने पर पाकिस्तानी आतंकवादियों का भी केस लड़ने का हुनर रखने वाले सर्वोच्च न्यायालय के तथाकथित वकील ने अपने मस्तिष्क के पश्च भाग का सम्पूर्ण बल प्रयोग कर लिया अपनी समस्त ज

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अनपढ़ कौन:- प्रधानमंत्री या दिल्ली का मुख्यमंत्री।

30 मई 2023
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मित्रों आपने यादी ध्यान दिया होगा तो अबकारी (शराब) मंत्री श्री मनीष सिसोदिया के तुरूंगवासित होते हि,( वर्ष २०१६ के पश्चात )श्री अरविन्द केजरीवाल ने एक बार फिर हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दाम

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भगत सिंह कम्युनिस्ट नहीं थे।

30 मई 2023
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वामपंथी के साथ एक सनातनी का शास्त्रार्थ। मित्रों जैसा कि आप जानते हैँ कि  हमारे एक, जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी मित्र हैँ, जो सनातन धर्म की आलोचना करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। आज उन्होंन

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खुशबु सुंदर के पिता तो यौन शोषण कर सकते हैँ पर स्वाति मालीवाल के पिता कैसे?

30 मई 2023
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पितृन्नमस्येदिवि ये च मूर्त्ताः स्वधाभुजः काम्यफलाभिसन्धौ ॥ प्रदानशक्ताः सकलेप्सितानां विमुक्तिदा येऽनभिसंहितेषु ॥ अर्थात :-मैं अपने पिता को नमन करता हूँ जो सभी देवताओं का प्रत्यक्ष रूप हैं,

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हिन्दू जातिवाद :- संविधान बनाम मनुस्मृति |

30 मई 2023
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मित्रों विधर्मियों और कुपढो ने सर्वप्रथम सनातन धर्म के जिस पुस्तक पर अपनी ओछी दृष्टि डाली उसे हम मनुस्मृति के नाम से जानते हैं | मनुस्मृति सम्पूर्ण मनवा सभ्यता को सुसंकृत और सुशिक्षित बनाने के लिए

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क्या आपने कभी सुना है कि, प्यार और युद्ध में सबकुछ उचित है"!

30 मई 2023
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मित्रों कलयुग में अनेक घटनाये ऐसी घटित होती हैं, जिनसे मानवता और संस्कृति शर्मशार हो उठती है। कुछ उदाहरण देख लें: - १:-क्षणिक आकर्षण के मोहपाश में बंधकर एक बेटी ने अपने पिता कि पगड़ी उछाल कर अपने प्रे

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बापे पूत परापत घोड़ा बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा। अतिक अहमद और असद अहमद।

6 जून 2023
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हर आदमी और जानवर में अपने बाप की मिज़ाजी ख़ुसूसीयात पाई जाती है, अपनी नसल का असर ज़रूर आता है, तुख़्म की तासीर फ़ित्री होती है। जी हाँ मित्रों  आज भारत के सबसे खूंखार आतंकी अतिक अहमद और उसके पुत्र असद

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वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की :- एक मसखरा जो अपने अहंकार के कारण यूक्रेन के लिए बना शॉप |

6 जून 2023
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जी हाँ मित्रों यदि राजा देश और देश की प्रजा से अधिक स्वयं के अहंकार को महत्व देता है तो वह  देश पाकिस्तान या फिर यूक्रेन जैसी भयानक परिस्थितियों का शिकार हो जाता है | यूक्रेन में २०१९ से पूर्व एक संजी

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स्वास्थ्य, शराब, शिक्षा और सिसोदिया।

6 जून 2023
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मित्रों आज हम इस लेख में कट्टर ईमानदार और क्रांतिकारी शिक्षा मंत्री आदरणीय श्री मनीष सिसोदिया जी के विषय में चर्चा और परिचर्चा करेंगे। मित्रों शिक्षा के विषय में हमारे शास्त्र कहते हैँ:- विद्य

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एक सनातनी का एक वामपंथी तर्कवादी के साथ शास्त्रार्थ भाग-१० " चार्ल्स डार्विन और दशावतार"।

6 जून 2023
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हे मित्रों जैसा की आप जानते हैं की हमारे  एक जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र हैं और उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये है कि वो सनातन धर्म के धुर विरोधी हैं और सनातन धर्म को निचा दिखने का कोई अवसर

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एक नेता जिसने किया कुछ भी नहीं पर पाया सब कुछ!

6 जून 2023
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हे मित्रों आप सोच रहे होंगे कि मैं ये क्या कह रहा रहूँ या किस नेता के बारे में बात कर रहा हूँ? आइये ये लेख जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा आपको अपने आप उस नेता का चेहरा दिखलाई देना शुरू कर देगा। जी हाँ

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एक सनातनी का वामपंथी से शस्त्रार्थ्-६ प्रसंग:- गुरु द्रोण - एकलव्य और गुरु दक्षिणा।

6 जून 2023
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हे मित्रों कैसे हैं आप लोग, आप तो जानते हैं कि हमारे एक मित्र हैं जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हैं। आज एक बार पुन: मेरे आवास पर आ बिराजे और वामपन्थ के एक और झूठ को हथियार बना मुझसे शास्रा

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मनुस्मृति को बदनाम और अपमानित क्यों किया?

6 जून 2023
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हे मित्रों, कार्ल मार्क्स के उलूल जुलूल और आधारहीन सिद्धांतो के अँधेरी और भयावह दुनिया में फांसकर कई व्यक्तियों ने ना केवल अपना सम्पूर्ण जीवन नष्ट कर दिया अपितु करोड़ो लोगों कि हत्या भी उन्होंने कर

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हमारा देश "धर्म निरपेक्ष" है या "पंथ निरपेक्ष"। एक सनातनी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023
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हे मित्रों, नमस्कार जैसा कि आप जानते हैं कि सनातन धर्म का विरोध करने वाले तथा जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे एक मित्र हैं,  और अक्सर हमारे जैसे सनातनी के साथ वो शास्त्रार्थ के लिए आते रहत

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वामपन्थियों का जीता जगता झूठ:- "लाल कोट शाहजंहा नामक किसी मुग़ल ने बनवाया। हा हा हा"

6 जून 2023
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हे मित्रों वामपंथी और मुसलिम इतिहासकारो ने अपने झूठ बोलने और लिखने कि कला का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया और झूठ को बार बार लिखकर बोलकर उसे सच साबित करने का प्रयास किया। पर मित्रों या जितने तथाकथि

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Bhar OS भारत का अपना ओपरेटिंग सिस्टम।

6 जून 2023
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हे मित्रों आत्मनिर्भर भारत कि दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए हमारे देश ने अपना एक ओपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है, जो अतिशीघ्र Android और IOS को टक्कर देने और बाजार में उनके एकाधिकार को

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अंग्रेजी वैज्ञानिक सर आईजैक न्यूटन के संदर्भ में एक सनातनी और वामपंथी के मध्य शास्त्रार्थ भाग-९

6 जून 2023
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मित्रों जैसा कि आप जानते हि हैं कि हमारे एक मित्र हैं जो जनम से ब्राह्मण है पर कर्म से वामपंथी है। अब वामपंथी लोगों का कर्म कैसा होता है, ये बताने की अवश्यक्ता नहीं है। मित्रों वामपंथी मित्र हमारे

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दहेज प्रथा। वामपंथी और सनातन धर्मी में शास्त्रार्थ भाग्-६

6 जून 2023
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मित्रों मेरा और मेरे वामपंथी मित्र (जो जनम से ब्राह्मण और कर्म से पूरे वामपंथी हैं) के मध्य शास्त्रार्थ तो चलता हि रहता है।  मेरे वामपंथी मित्र बुराइयाँ ढूंढ ढूंढ कर लाते हैं पर जब उसका उदगम उन्हीं

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सतीप्रथा सनातन धर्मी और वामपन्थी में शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023
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मित्रों एक बार पुन: जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथ अनुगामी मेरे मित्र मार्ग में मुझे देखते ही मेरे साथ हो लिए  कुशलक्षेम का आदान प्रदान करने के पश्चात तुरंत अपने मुख्य उद्देश्य " सनातन धर्म की अ

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निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाये। बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करत सुभाय।।"

6 जून 2023
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हे मित्रों जब महाकवि कबीरदास जी ने उक्त दोहे की रचना कि थी, तब निंदा करने वाले व्यक्ति भी कुछ मर्यादा के साथ गुण और अवगुण पर विचार कर निंदा या आलोचना करते थे। उस वक़्त के म्लेच्छ वर्ग को छोड़ दिया जाए

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मनुस्मृति में नारी का स्थान! सनातन धर्मी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ भाग्-४

6 जून 2023
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मित्रों जैसा कि आप अब तक हमारे वामपंथी मित्र को जान चुके होंगे, जो कि जन्म से तो ब्राह्मण है, परन्तु कर्म से  वामपंथी हैं ।उन्हें एक बार पुन: सनातन धर्म में बुराई दिखाने कि महत्वकान्छा और उनकी प्रवृ

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सनातन धर्म और विज्ञान। एक सनातन धर्मी का वामपन्थि के मध्य शास्त्रार्थ -८(क)

6 जून 2023
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हे मित्रों मेरे मित्र के विष्य में तो आप जानते हि होंगे, जी हाँ वहीं मित्र जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी और धुर सनातन विरोधी हैं। वो सदैव कि भांति एक बार पुन: मेरे घर आ धमके और शास्त्रार्थ

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सनातन धर्म और विज्ञान एक सनातनी और वामपंथी के मध्य शस्त्रार्थ्- ८(ख)

6 जून 2023
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मित्रों पिछले अंक में आपने देखा था कि जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे मित्र ने सनातन धर्मीयो को अनपढ़, अंधविश्वासी, कर्मकांडी और विज्ञान से परे बताते हुए जबरदस्त आलोचना कि थी। उन्होंने सनात

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सनातन धर्म और विज्ञान सनातन धर्मी और वामपन्थ के मध्य शास्त्रार्थ भाग-८(ग)

6 जून 2023
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हे मित्रों, जब हमारे जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र तुलसी के पौधे और नीम के वृक्ष में सनातन धर्मीयों के आस्था का मजाक उड़ाने में जब असफल हो गए तो एक दिन फिर हमारे घर पर उपस्थित हुए और इस ब

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सत्य की जीत:- श्री एकनाथ शिंदे।

6 जून 2023
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जी हाँ मित्रों, दिनांक १९जुन १९६६ को जब स्व. बाळासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना का गठन हुआ, तो इसके पीछे केवल २ उद्देश्य थे, जिसमें से एक था भूमिपूत्रों का विकास और दूसरा था हिंदुत्व की अवधारणा।

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सनातनी और वामपंथी के मध्य मनुस्मृति को लेकर शास्त्रार्थ। भाग्-१

6 जून 2023
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मित्रों मैं एक सनातनी हूँ कल अंग्रेजी वर्ष २०२२ का अंतिम दिन था और अचानक मार्क्स को अपना पिता, लेनिन को अपना मार्गदर्शक और माओ को अपना सगा मानकर उनका गुणगान करने वाला एक वामपंथी मित्र मुझसे टकरा गये।

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हिंदू नूतनवर्ष:- वामपंथी और सनातन धर्मी के मध्य शास्त्रार्थ भाग-२

6 जून 2023
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मित्रों मैं सनातन धर्मी हूँ और मेरे एक मित्र हैं जो केवल जन्म  से सनातनी हैं और कर्म से वामपंथी हैं,  अंग्रेजी मान्यता के अनुसार नए वर्ष के आगमन पर मुझसे पुन:  शास्त्रार्थ की अभिलाषा से आ टपके और आते

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श्रीरामचरितमानस: - सनातन धर्मी और वामपंथी के मध्य शास्त्रार्थ भाग्-३

6 जून 2023
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मित्रों  मेरे मित्र जो जन्म  से तो सनातनी  हैं परन्तु कर्म से महा वामपंथी, आज अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लेकर आए और अपने सिकुड़ चुके छाती को फुलाने का असफल प्रयास करते हुए मुझे ललकारा कि अब बोलो बड़ा स

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पीसा कि मीनार विश्व धरोहर पर रत्नेश्वर मंदिर का कोई स्थान नहीं।

7 जून 2023
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मित्रों हमारे शास्त्रों ने हमें शिक्षित करते हुए बताया है कि:- न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्। विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत्।। अर्थात जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी

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परम बलिदानी बच्चे :- कोटी कोटी नमन।

7 जून 2023
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🌹🌸🌻🌼🙏 शुभप्रभात 🙏🌹🌸🌻🌼 दो बच्चे निर्भीकता से उस स्थान पर अपने तेज और शौर्य का प्रकाश फैलाये खड़े थे।उनको चारों ओर से म्लेच्छ प्रजाति के भयानक और डरवाने लोगों ने घेर रखा था। वे सैकड़ो कि संख्या

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हाँ तुम सावरकर कभी नहीं हो सकते क्योंकि:- "सावरकर बनने के लिए"

7 जून 2023
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१:- भोगी नहीं योगी बनना पड़ेगा; २:+ राष्ट्रद्रोही नहीं राष्ट्रवादी बनना पड़ेगा; ३:- अंधकार नहीं प्रकाश फैलाना पड़ेगा; ४:-अधर्म के साथ नहीं धर्म के साथ खड़ा रहना पड़ेगा; ५:+ असत्य या झूठ नहीं सत्य क

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भारत और विश्व कि अर्थव्यवस्था।

7 जून 2023
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हे मित्रों, ईश्वर की असीम अनुकम्पा है हम भारतीयों के ऊपर कि हमने सही समय पर सही निर्णय लिया और किसी के बहकावे में ना आकर हम अपने निर्णय पर अडिग रहे। आइये हम एक विश्लेषण करते हैं कि, हमारा निर्णय

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जार्ज सोरोस, कांग्रेस और इनके पालतू भारत विद्रोही।

7 जून 2023
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मित्रों शीर्षक से हि आपको लेख के तथ्यों के विषय में आभाष हो गया होगा, आइये देखते हैँ की किस प्रकार जार्ज सोरोस और कांग्रेस तथा उनके पालतू भारत विद्रोही, भारत की बढ़ रही वैश्विक साख और विश्वसनीयता क

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कौन सा पठान?

8 जून 2023
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मित्रों हमारे बॉलीवुड को घटिया, अश्लील और् अतिहिन्सक बनाकर उसे हम सनातन धर्मीयों की दृष्टि से पूर्णतया गिरा देने वालो में से एक शाहरुख़ खान, एक "पठान" नामक चलचित्र लेकर आ रहा है, सुना है ये चलचित्र प

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