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भगत सिंह कम्युनिस्ट नहीं थे।

30 मई 2023

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वामपंथी के साथ एक सनातनी का शास्त्रार्थ।

मित्रों जैसा कि आप जानते हैँ कि  हमारे एक, जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी मित्र हैँ, जो सनातन धर्म की आलोचना करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। आज उन्होंने भगत सिंह पर वामपंथियों के पुराने मिथ्या प्रवंचना और अनर्गल प्रलाप को  दोहराते हुए मुझसे चर्चा और परिचर्चा करने के लिए आ गये।

हमारे वामपंथी मित्र ने छूटते हि कहना शुरु किया कि "देखो भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी मार्क्स और लेनिन को पढ़कर नास्तिक हो गये थे और वो  कम्युनिस्ट बन गये थे। यदी तुम्हारे सनातन धर्म में जान होती तो भगत सिंह जैसा देशभक्त कम्युनिस्ट नही बनता।

मित्रों हमने अपने मित्र की बाते ध्यान से सुनी और उनसे प्रश्न किया कि,  हे वामपंथी मित्र हमें बताये कि " भगत सिंह कम्युनिस्ट थे" ये बात तुम्हे किसने बताई?

वामपंथी मित्र ने तुरंत उत्तर देते हुए बताया कि अरे हमारे वामपंथी नेताओं ने बताई और यही नहीं भगत सिंह ने स्वयं एक किताब " मै नास्तिक क्यों बना" लिखकर ये बात बताई और तो और फांसी वाले दिन तक वो "लेनिन" को पढ़ रहे थे।

हमने हमारे वामपंथी मित्र से पुन: प्रश्न किया हे मित्र आप बताएं कि क्या हर नास्तिक वामपंथी होता है?

वामपंथी ने उत्तर देते हुए कहा नहीं यह आवश्यक नहीं कि हर नास्तिक वामपंथी हो जाये।

हमने हमारे वामपंथी मित्र को अब बलिदानियों के बलिदानी और सर्वोत्तम देशभक्तों में से एक भगत सिंह के बारे में वामपंथियों के एक एक झूठ को परत दर परत खोलना शुरु किया।

भगत सिंह ने पहली बार बन्दुक उठाई:-

ये सभी जानते हैँ कि भगत सिंह के राजनितिक गुरु " स्व. लाला लाजपत राय" थे! लाला जी एक प्रखर हिंदूवादी नेता थे। लाला जी "हिन्दुमहासभा" के अध्यक्ष भी रह चुके थे और यह सर्वविदित है कि इसी "हिन्दु महासभा" को वामपंथी अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे और अब भी मानते हैँ और प्रत्येक क्षण इसकी आलोचना करते रहते हैँ।

मित्रों "पंजाब केसरी" के नाम से सुविख्यात लाला जी का जन्म पंजाब के मोगा जिले में दिनांक २८ जनवरी १८६५ को एक अग्रवाल परिवार में हुआ था। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेताओ में से एक थे। स्व. बाल गंगाधर तिलक और स्व. बिपिन चंद्र पाल के साथ लाला जी को "लाल-बाल-पाल" के नाम से जाना जाता था। इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया। लालाजी ने  स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। लाला हंसराज एवं कल्याण चन्द्र दीक्षित के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया, लोग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जानते है।

लाला जी मुसलमानों को लेकर हमेशा संशय में रहते थे, जिसका उदाहरण खलीफत आंदोलन के पश्चात, स्व. चितरंजन दास को उनके द्वारा लिखी गयी चिट्ठी से मिलता है। इस चिट्ठी को प्रियवंद ने अपनी पुस्तक "भारत विभाजन कि अंत:कथा" में  सम्मिलित किया है जिसके अनुसार लाला जी ने  श्री चितरंजन दास को चिट्ठी लिखते हुए कहा " मैने पिछले ६ महीनें मुस्लिम इतिहास और मुस्लिम मजहबी कानून पढ़ने में गुजारे हैँ। इसके बाद मै इस निष्कर्ष पर पहुंचा हुँ कि मुस्लिम नेताओं का धर्म उनकी राह में एक तरह का रूकावट डालता है।... क्या कोई मुस्लिम नेता कुरान के खिलाफ जा सकता है?... मुझे आशंका है कि अफगानिस्तान, मध्य एशिया, अरब और टर्की के हथियार बंद गिरोह हिंदुस्तान के ७ करोड़ मुसलमानों के साथ मिलकर मुश्किल हालात पैदा कर देंगे। मै मुस्लिम नेताओं पर विश्वास करने के लिए तैयार हुँ , लेकिन क्या ये लोग कुरान और हदीस के आदेशों का विरोध कर पाएंगे।"

तो हे वामपंथी मित्र तनिक बताओ कि क्या लाला जी के इन विचारों को भगत सिंह नहीं जानते थे। क्या वो नहीं जानते थे कि लाला जी प्रखर हिंदूवादी और आर्यसमाज को पसंद करने वाले व्यक्तित्व हैँ।

दिनांक ३० अक्टूबर १९२८ को इन्होंने लाहौर में "साइमन कमीशन" के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जिसके दौरान हुए बर्बर लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये और उस समय इन्होंने कहा था: "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।" और वही हुआ भी,  लालाजी के बलिदान के २० वर्ष के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया। उस बर्बर लाठी चार्ज से घायल "पंजाब केसरी" दिनांक १७ नवंबर १९२८ को स्वर्गवासी हो गये।

लाला जी की इस प्रकार निर्मम और सुनियोजित हत्या से सारा देश उत्तेजित हो उठा और अपने राजीनीतिक गुरु क यह् ह्श्र देख युवा भगत सिंह के हृदय में प्रतिशोध कि ज्वाला धधक उठी और उन्होंने अपने शुरवीर साथियों चंद्रशेखर आज़ाद,  राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर दिनांक १७ दिसम्बर १९२८ को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर "सांडर्स" को गोली से उड़ा दिया।

इससे स्पष्ट है की एक प्रखर हिंदूवादी और आर्यसमाज प्रेमी परम देशभक्त लाला जी को अपना राजनितिक गुरु मानने वाले भगत सिंह वामपंथी तो हो हि नहीं सकते।

हमारे वामपंथी मित्र से रहा नहीं गया और वो चित्कार उठे और बोले सुनो सनातनी नास्तिकता सदैव वामपंथ से प्रभावित होती है और यादी ऐसा नहीं होता तो भगत सिंह स्वयं को नास्तिक कैसे कहते,  वो कम्युनिस्ट @ वामपंथ के प्रभाव से हि नास्तिक हुए।

हमने वामपंथी मित्र से कहा, चलो आपका ये भरम भी हम दूर कर देते हैँ। अमर बलिदानी भगत सिंह ने अपने लेख " मै नास्तिक क्यों हुँ" में स्वयं बताया है, नो निम्न प्रकार है:-

मेरे दादा , जिनके प्रभाव में मै बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्यसमाजी हैँ। एक आर्यसमाजी और कुछ भी हो, परन्तु नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पुरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लहौर में प्रवेश लिया और एक साल तक उसके छात्रावास में रहा। वंहा सुबह और शाम की प्रार्थना के आलावा मै घंटो गायत्री मंत्र का जाप करता था।उन दिनों मै पुरा भक्त था। बाद मे मैने अपने पिता के साथ रहना शुरु किया। उन्ही की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं है। ईश्वर में उनका दृढ विश्वाश है। वे मुझे पूजा प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन पोषण हुआ।

भगत सिंह आगे लिखते हुए बताते हैँ:-

"मेरा नास्तिकतवाद कोई हाल की उत्पत्ति नहीं है" मैने ईश्वर पर विश्वाश करना तब छोड़ दिया था, जब मै एक अप्रसिद्ध नौजवान था। कम से कम एक कालेज का विद्यार्थी तो ऐसे किसी अनुचित अहंकार को पाल पोस नहीं सकता, जो उसे नास्तिकता की ओर ले जाये।

तो हे मेरे वामपंथी मित्र भगत सिंह की नास्तिकता पर वामपंथ या कम्युनिज्म का कोई प्रभाव नहीं था। आओ मै तुम्हें भगत सिंह के क्रांतिकारी गुरु सचिंद्र नाथ सान्याल के शब्दों में यथार्थ का परिचय कराता हुँ।

शचीन्द्रनाथ सान्याल , इनका जन्म दिनांक ३ अप्रैल १८९३ में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में हुआ था। इनका स्वर्गवास दिनांक ७ फरवरी १९४२ को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ। क्वींस कालेज (बनारस) में अपने अध्ययनकाल में उन्होंने काशी के प्रथम क्रांतिकारी दल का गठन वर्ष १९०८ में किया। वर्ष १९१३ में फ्रेंच बस्ती चंदननगर में सुविख्यात क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से उनकी मुलाकात हुई। और फिर इन्होने इतिहास बना डाला।

भगत सिंह के क्रांतिकारी गुरु सचिंद्र नाथ सान्याल ने अपने एक लेख के द्वारा वामपंथियों के षड्यंत्र का खुलासा करते हुए बताया कि " गदर पार्टी  के एक नेता संतोष सिंह को रूस बुलाया गया। वंहा से वे पैसा और साहित्य लेकर वापस लौटे। उन्होंने रूस से प्राप्त धन के सहारे पंजाब में किरती किसान पार्टी की स्थापना की। संतोष सिंह की तरफ से सरदार गुरूमुख सिंह ने भगत सिंह को क्रांतिकारी पार्टी से अलग करके अपने दल में लाने की भारी कोशिश की।गुरूमुख सिंह ने भगत सिंह को बहुत बार समझाया कि " तुम बंगालियों के झांसे में मत पड़े, इनके चक्कर में पड़ोगे तो फांसी पर लटक जाओगे और कुछ भी काम नहीं कर पाओगे।" लेकिन बहुत बहकाने पर भी भगत सिंह ने हम लोगों का साथ नहीं छोड़ा।

बाद में यही किरती ग्रुप भगत सिंह को अराजकतावादी और आतंकवादी कहता था। सोवियत संघ पोषित किरती पार्टी उन पर उठावलेपन और व्यक्तिगत दुस्साहस का आरोप लगाता था।

अभी तक के ज्ञान से वामपंथी मित्र के सिर से कम्युनिज्म का भूत अपने चरम पर पहुंच गया और वो लगभग चीखते हुए बोले , "तो क्या हमारे कम्युनिस्ट नेताओं ने जो दावा किया है, वो सब झूठ है?

हमने सोचा क्यों ना कुछ प्रमुख कम्युनिस्ट नेताओं के वक्तव्यों के द्वारा इस तथ्य को साबित कर दिया जाये। हमने कहा हे वामपंथी मित्र अब मै तुम्हे दो तत्कालीन बड़े कद के नेताओ का साक्ष्य देता हुँ: -

मित्रों कम्युनिस्टो की दुनिया में अजय कुमार घोष एक जाना माना नाम है। ये भगत सिंह के साथी थे। इनका जन्म पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में दिनांक २० फरवरी १९०९ को हुआ था। ये "कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया" के वर्ष १९५१ से लेकर १९६५ तक राष्ट्रीय महासचिव रहे। इन्होने एक किताब लिखी " "Bhagat Singh and his Comareds" और उसमें उन्होंने बताया कि, "ये कहना अतिश्योक्ति होगी कि भगत सिंह ने मार्कसवाद को स्वीकार कर लिया था। हमारी कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाक़ाते होती थी, परन्तु जब हमने जाना कि कम्युनिस्ट व्यक्तिगत हथियारबंद प्रयासों को अपने आंदोलन के लिए हानिकारक समझते हैँ  तब हमने उनके साथ जाने का विचार छोड़ दिया। हम कम्युनिस्टो को क्रांतिकारी नहीं समझते थे। हमारी दृष्टि में क्रांति का अर्थ था सशस्त्र कार्यवाही।"

अब भगत सिंह का वो क्रांतिकारी साथी जो बाद में चलकर कम्युनिस्टो की प्रति का महासचिव बना, स्वयं इस तथ्य को स्वीकार कर रहा है कि उसने और भगत सिंह ने कम्युनिस्टो को अपना साथी नहीं बनाया क्योंकि उनकी दृष्टि में कम्युनिस्ट क्रांतिकारी नहीं थे।

मित्रों मैने सोचा की वामपंथ के झूठ को और उजागर किया जाये और इसीलिए मैने यंहा " भगत सिंह- एक ज्वलन्त इतिहास" नामक किताब को  संदर्भित किया है। इस किताब को डॉ हंसराज रहबर ने लिखा है।

डॉ हंसराज रहबर (1913-23 जुलाई 1994) हिन्दी और उर्दू के महत्त्वपूर्ण लेखक, कवि और आलोचक थे । उनका जन्म हरिआऊ संगवां (पूर्व रियासत पटियाला) ज़िला सुनाम में हुआ। आर्य हाई स्कूल, लुधियाना से मैट्रिक करने के बाद डी.ए.वी. कालेज, लाहौर से बी.ए. का इम्तिहान पास किया। इन्होने अपनी किताब " भगत सिंह- एक ज्वलन्त इतिहास" में स्पष्ट रूप से बताया कि " कम्युनिस्ट नेताओं ने यह झूठ फैलाया कि भगत सिंह और उनके साथी जेल में मार्कसवाद पढ़कर क्रांतिकारी बने और कम्युनिस्ट पार्टी में आ गये। कम्युनिस्ट नेताओं कि कठानी और करनी में जो अंतर था, भगत सिंह और उनके साथियों ने अच्छी तरह समझ लिया था। इसलिए वे कभी कम्युनिस्ट पार्टी  में शामिल नहीं हुए। कम्युनिस्ट नेताओं ने भगत सिंह और उनके साथियों की ख्याति का लाभ अवश्य उठाया, पर अपनी जवानियाँ स्वतन्त्रता की बली बेदी पर धुपबत्ती की तरह जलाकर उन्होंने क्रांति का जो मार्ग प्रसष्त किया था, कम्युनिस्ट नेताओं में उन पर चलने का ना तो साहस था और ना बुद्धि थी। हुआ ये कि भगत सिंह के जो भी साथी जेलों से रिहा होकर  कम्युनिस्ट पार्टी में आये, उन्होंने भी क्रांति की भूमिका नहीं निभाई, बल्कि नमक के खान में आकर स्वयं भी नमक बन गये।"

मित्रों अब एक ऐसे व्यक्ति के विचारों से आपको अवगत कराता  हुँ, जिसके बारे में ये वामपंथी कुछ भी काला काला नहीं बोल सकते। यशपाल (३ दिसम्बर १९०३ - २६ दिसम्बर १९७६) हिन्दी साहित्य के प्रेमचंदोत्तर युगीन कथाकार हैं। ये विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े थे। इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् १९७० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

यशपाल और उनके क्रांतिकारी साथियों का सशस्त्र क्रांति का जो मार्ग था, गाँधी का अहिंसा का सिद्धांत उसके विरोध में आ जाता था। महात्मा गाँधी द्वारा धर्म और राजनीति का घाल-मेल यशपाल जी को कहीं बुनियादी रूप से ग़लत लगता था। मैट्रिक के बाद लाहौर आने पर यशपाल नेशनल कॉलेज में भगतसिंह, सुखदेव और भगवतीचरण बोहरा के संपर्क में आए। नौजवान भारत सभा की गतिविधियों में उनकी व्यापक और सक्रिय हिस्सेदारी वस्तुतः गाँधी और गाँधीवाद से उनके मोहभंग की एक अनिवार्य परिणाम थी। नौजवान भारत सभा के मुख्य सूत्राधार भगवतीचरण और भगत सिंह थे।

यशपाल जी ने अपनी पुस्तक "सिंहावलोकन" में लिखा है कि " चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह आज जिंदा होते तो उनकी तत्काल प्रवृत्ति के अनुसार उनके लिए कांग्रेस में कोई स्थान नहीं होता। भगत और आज़ाद कम्युनिस्ट पार्टी से पूर्णतया सहमत हो जाते ये भी मै पूर्ण विश्वाश के साथ नहीं कह सकता। मै स्वयं भी समाजवादी लक्ष्य को मानने के बाद भी कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित नहीं हो सका।"

अब हमारे जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र पूर्णतया निरुत्तर हो चुके थे परन्तु उन्होंने एक हारे हुए जुआरी की तरह खिझ कर बोले यदि ये सत्य है तो फिर वो लेनिन से इतने प्रभावित क्यों थे?

: हमने भी अब स्वयं भगत सिंह के द्वारा अदालत में  दिये गये बयान का उल्लेख करते हुए वामपंथी को बताया कि ९जुन् १९२९ को अदालत में दिये गये अपने बयान में भगत सिंह ने कहा था "हिंसा भले हि नैतिक तौर पर अनुचित है पर जब ये सही उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाये तो ये नैतिक रूप से उचित होती है। इसकी प्रेरणा हमें गुरु गोविंद सिंह, शिवाजी, कमाल पाशा, रिजा खान, वाशिंगटन, गारबाल्डी, लफेती और लेनिन से मिली है।"

ये बयान सिद्ध करता है कि भगत सिंह केवल लेनिन से नहीं अपितु गुरु गोविंद और  छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे भारतवर्ष के परमवीर सपूतों से अधिक प्रभावित थे। भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव अपने अंत समय में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा रचित देशभक्ति गीत " मेरा रंग दे बसंती चोला, माही रंग दे" पूरे हृदय से गा रहे थे। और ये बसंती रंग उसी भगवा से प्रेरणा लेता था, जिसके लिए महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, रानी लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे इत्यादि भारत माता के वीर सपुतो ने अपना सर्वश्य बलिदान कर दिया।

मेर रंग दे बसंती चोला

हो आज रंग दे हो माँ ऐ रंग दे

मेर रंग दे बसंती चोला

आज़ादी को चली ब्याहने दीवानों की टोलियाँ

खून से अपने लिखे देंगे हम इंक़लाब की बोलियाँ

हम वापस लौटेंगे लेकर आज़ादी का डोला

मेर रंग दे ...

ये वो चोला है के जिस पे रंग न चढ़े दूजा

हमने तो बचपन से की थी इस चोले की पूजा

कल तक जो चिंगारी थी वो आज बनी है शोला

मेर रंग दे ...

सपनें में देखा था जिसको आज वही दिन आया है

सूली के उस पार खड़ी है माँ ने हमें बुलाया है

आज मौत के पलड़े में जीवन को हमने तौला

मेर रंग दे बसंती चोला

हो आज रंग दे हो माँ ऐ रंग दे

मेर रंग दे बसंती चोला

लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

aryan_innag@yahoo.co.in

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बापे पूत परापत घोड़ा बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा। अतिक अहमद और असद अहमद।

6 जून 2023
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हर आदमी और जानवर में अपने बाप की मिज़ाजी ख़ुसूसीयात पाई जाती है, अपनी नसल का असर ज़रूर आता है, तुख़्म की तासीर फ़ित्री होती है। जी हाँ मित्रों  आज भारत के सबसे खूंखार आतंकी अतिक अहमद और उसके पुत्र असद

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वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की :- एक मसखरा जो अपने अहंकार के कारण यूक्रेन के लिए बना शॉप |

6 जून 2023
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जी हाँ मित्रों यदि राजा देश और देश की प्रजा से अधिक स्वयं के अहंकार को महत्व देता है तो वह  देश पाकिस्तान या फिर यूक्रेन जैसी भयानक परिस्थितियों का शिकार हो जाता है | यूक्रेन में २०१९ से पूर्व एक संजी

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स्वास्थ्य, शराब, शिक्षा और सिसोदिया।

6 जून 2023
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मित्रों आज हम इस लेख में कट्टर ईमानदार और क्रांतिकारी शिक्षा मंत्री आदरणीय श्री मनीष सिसोदिया जी के विषय में चर्चा और परिचर्चा करेंगे। मित्रों शिक्षा के विषय में हमारे शास्त्र कहते हैँ:- विद्य

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एक सनातनी का एक वामपंथी तर्कवादी के साथ शास्त्रार्थ भाग-१० " चार्ल्स डार्विन और दशावतार"।

6 जून 2023
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हे मित्रों जैसा की आप जानते हैं की हमारे  एक जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र हैं और उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये है कि वो सनातन धर्म के धुर विरोधी हैं और सनातन धर्म को निचा दिखने का कोई अवसर

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एक नेता जिसने किया कुछ भी नहीं पर पाया सब कुछ!

6 जून 2023
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हे मित्रों आप सोच रहे होंगे कि मैं ये क्या कह रहा रहूँ या किस नेता के बारे में बात कर रहा हूँ? आइये ये लेख जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा आपको अपने आप उस नेता का चेहरा दिखलाई देना शुरू कर देगा। जी हाँ

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एक सनातनी का वामपंथी से शस्त्रार्थ्-६ प्रसंग:- गुरु द्रोण - एकलव्य और गुरु दक्षिणा।

6 जून 2023
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हे मित्रों कैसे हैं आप लोग, आप तो जानते हैं कि हमारे एक मित्र हैं जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हैं। आज एक बार पुन: मेरे आवास पर आ बिराजे और वामपन्थ के एक और झूठ को हथियार बना मुझसे शास्रा

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मनुस्मृति को बदनाम और अपमानित क्यों किया?

6 जून 2023
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हे मित्रों, कार्ल मार्क्स के उलूल जुलूल और आधारहीन सिद्धांतो के अँधेरी और भयावह दुनिया में फांसकर कई व्यक्तियों ने ना केवल अपना सम्पूर्ण जीवन नष्ट कर दिया अपितु करोड़ो लोगों कि हत्या भी उन्होंने कर

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हमारा देश "धर्म निरपेक्ष" है या "पंथ निरपेक्ष"। एक सनातनी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023
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हे मित्रों, नमस्कार जैसा कि आप जानते हैं कि सनातन धर्म का विरोध करने वाले तथा जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे एक मित्र हैं,  और अक्सर हमारे जैसे सनातनी के साथ वो शास्त्रार्थ के लिए आते रहत

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वामपन्थियों का जीता जगता झूठ:- "लाल कोट शाहजंहा नामक किसी मुग़ल ने बनवाया। हा हा हा"

6 जून 2023
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हे मित्रों वामपंथी और मुसलिम इतिहासकारो ने अपने झूठ बोलने और लिखने कि कला का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया और झूठ को बार बार लिखकर बोलकर उसे सच साबित करने का प्रयास किया। पर मित्रों या जितने तथाकथि

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Bhar OS भारत का अपना ओपरेटिंग सिस्टम।

6 जून 2023
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हे मित्रों आत्मनिर्भर भारत कि दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए हमारे देश ने अपना एक ओपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है, जो अतिशीघ्र Android और IOS को टक्कर देने और बाजार में उनके एकाधिकार को

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अंग्रेजी वैज्ञानिक सर आईजैक न्यूटन के संदर्भ में एक सनातनी और वामपंथी के मध्य शास्त्रार्थ भाग-९

6 जून 2023
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मित्रों जैसा कि आप जानते हि हैं कि हमारे एक मित्र हैं जो जनम से ब्राह्मण है पर कर्म से वामपंथी है। अब वामपंथी लोगों का कर्म कैसा होता है, ये बताने की अवश्यक्ता नहीं है। मित्रों वामपंथी मित्र हमारे

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दहेज प्रथा। वामपंथी और सनातन धर्मी में शास्त्रार्थ भाग्-६

6 जून 2023
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मित्रों मेरा और मेरे वामपंथी मित्र (जो जनम से ब्राह्मण और कर्म से पूरे वामपंथी हैं) के मध्य शास्त्रार्थ तो चलता हि रहता है।  मेरे वामपंथी मित्र बुराइयाँ ढूंढ ढूंढ कर लाते हैं पर जब उसका उदगम उन्हीं

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सतीप्रथा सनातन धर्मी और वामपन्थी में शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023
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मित्रों एक बार पुन: जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथ अनुगामी मेरे मित्र मार्ग में मुझे देखते ही मेरे साथ हो लिए  कुशलक्षेम का आदान प्रदान करने के पश्चात तुरंत अपने मुख्य उद्देश्य " सनातन धर्म की अ

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निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाये। बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करत सुभाय।।"

6 जून 2023
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हे मित्रों जब महाकवि कबीरदास जी ने उक्त दोहे की रचना कि थी, तब निंदा करने वाले व्यक्ति भी कुछ मर्यादा के साथ गुण और अवगुण पर विचार कर निंदा या आलोचना करते थे। उस वक़्त के म्लेच्छ वर्ग को छोड़ दिया जाए

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मनुस्मृति में नारी का स्थान! सनातन धर्मी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ भाग्-४

6 जून 2023
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मित्रों जैसा कि आप अब तक हमारे वामपंथी मित्र को जान चुके होंगे, जो कि जन्म से तो ब्राह्मण है, परन्तु कर्म से  वामपंथी हैं ।उन्हें एक बार पुन: सनातन धर्म में बुराई दिखाने कि महत्वकान्छा और उनकी प्रवृ

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सनातन धर्म और विज्ञान। एक सनातन धर्मी का वामपन्थि के मध्य शास्त्रार्थ -८(क)

6 जून 2023
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हे मित्रों मेरे मित्र के विष्य में तो आप जानते हि होंगे, जी हाँ वहीं मित्र जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी और धुर सनातन विरोधी हैं। वो सदैव कि भांति एक बार पुन: मेरे घर आ धमके और शास्त्रार्थ

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सनातन धर्म और विज्ञान एक सनातनी और वामपंथी के मध्य शस्त्रार्थ्- ८(ख)

6 जून 2023
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मित्रों पिछले अंक में आपने देखा था कि जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे मित्र ने सनातन धर्मीयो को अनपढ़, अंधविश्वासी, कर्मकांडी और विज्ञान से परे बताते हुए जबरदस्त आलोचना कि थी। उन्होंने सनात

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सनातन धर्म और विज्ञान सनातन धर्मी और वामपन्थ के मध्य शास्त्रार्थ भाग-८(ग)

6 जून 2023
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हे मित्रों, जब हमारे जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र तुलसी के पौधे और नीम के वृक्ष में सनातन धर्मीयों के आस्था का मजाक उड़ाने में जब असफल हो गए तो एक दिन फिर हमारे घर पर उपस्थित हुए और इस ब

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सत्य की जीत:- श्री एकनाथ शिंदे।

6 जून 2023
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जी हाँ मित्रों, दिनांक १९जुन १९६६ को जब स्व. बाळासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना का गठन हुआ, तो इसके पीछे केवल २ उद्देश्य थे, जिसमें से एक था भूमिपूत्रों का विकास और दूसरा था हिंदुत्व की अवधारणा।

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सनातनी और वामपंथी के मध्य मनुस्मृति को लेकर शास्त्रार्थ। भाग्-१

6 जून 2023
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मित्रों मैं एक सनातनी हूँ कल अंग्रेजी वर्ष २०२२ का अंतिम दिन था और अचानक मार्क्स को अपना पिता, लेनिन को अपना मार्गदर्शक और माओ को अपना सगा मानकर उनका गुणगान करने वाला एक वामपंथी मित्र मुझसे टकरा गये

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हिंदू नूतनवर्ष:- वामपंथी और सनातन धर्मी के मध्य शास्त्रार्थ भाग-२

6 जून 2023
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मित्रों मैं सनातन धर्मी हूँ और मेरे एक मित्र हैं जो केवल जनम से ब्राह्मण हैं और कर्म से वामपंथी हैं,  अंग्रेजी मान्यता के अनुसार नए वर्ष के आगमन पर मुझसे पुन:  शास्त्रार्थ की अभिलाषा से आ टपके और आत

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श्रीरामचरितमानस: - सनातन धर्मी और वामपंथी के मध्य शास्त्रार्थ भाग्-३

6 जून 2023
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मित्रों आज मेरे मित्र जो जनम से तो ब्राह्मण हैं परन्तु कर्म से महा वामपंथी, आज अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लेकर आए और अपने सिकुड़ चुके छाती को फुलाने का असफल प्रयास करते हुए मुझे ललकारा कि अब बोलो बड़

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पीसा कि मीनार विश्व धरोहर पर रत्नेश्वर मंदिर का कोई स्थान नहीं।

7 जून 2023
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मित्रों हमारे शास्त्रों ने हमें शिक्षित करते हुए बताया है कि:- न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्। विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत्।। अर्थात जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी

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परम बलिदानी बच्चे :- कोटी कोटी नमन।

7 जून 2023
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🌹🌸🌻🌼🙏 शुभप्रभात 🙏🌹🌸🌻🌼 दो बच्चे निर्भीकता से उस स्थान पर अपने तेज और शौर्य का प्रकाश फैलाये खड़े थे।उनको चारों ओर से म्लेच्छ प्रजाति के भयानक और डरवाने लोगों ने घेर रखा था। वे सैकड़ो कि संख्या

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हाँ तुम सावरकर कभी नहीं हो सकते क्योंकि:- "सावरकर बनने के लिए"

7 जून 2023
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१:- भोगी नहीं योगी बनना पड़ेगा; २:+ राष्ट्रद्रोही नहीं राष्ट्रवादी बनना पड़ेगा; ३:- अंधकार नहीं प्रकाश फैलाना पड़ेगा; ४:-अधर्म के साथ नहीं धर्म के साथ खड़ा रहना पड़ेगा; ५:+ असत्य या झूठ नहीं सत्य क

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भारत और विश्व कि अर्थव्यवस्था।

7 जून 2023
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हे मित्रों, ईश्वर की असीम अनुकम्पा है हम भारतीयों के ऊपर कि हमने सही समय पर सही निर्णय लिया और किसी के बहकावे में ना आकर हम अपने निर्णय पर अडिग रहे। आइये हम एक विश्लेषण करते हैं कि, हमारा निर्णय

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जार्ज सोरोस, कांग्रेस और इनके पालतू भारत विद्रोही।

7 जून 2023
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मित्रों शीर्षक से हि आपको लेख के तथ्यों के विषय में आभाष हो गया होगा, आइये देखते हैँ की किस प्रकार जार्ज सोरोस और कांग्रेस तथा उनके पालतू भारत विद्रोही, भारत की बढ़ रही वैश्विक साख और विश्वसनीयता क

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कौन सा पठान?

8 जून 2023
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मित्रों हमारे बॉलीवुड को घटिया, अश्लील और् अतिहिन्सक बनाकर उसे हम सनातन धर्मीयों की दृष्टि से पूर्णतया गिरा देने वालो में से एक शाहरुख़ खान, एक "पठान" नामक चलचित्र लेकर आ रहा है, सुना है ये चलचित्र प

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