हे मित्रों मेरे मित्र के विष्य में तो आप जानते हि होंगे, जी हाँ वहीं मित्र जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी और धुर सनातन विरोधी हैं। वो सदैव कि भांति एक बार पुन: मेरे घर आ धमके और शास्त्रार्थ के लिए ललकारते हुए बोले कि:-
हे सनातनी सुनो, तुम लोग केवल अन्धविश्वास, कर्मकाण्ड और दकियानुसी सोच में पलने वाले लोग हो, तुम्हारा तो विज्ञान से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं।
फिर कुछ सोचकर बोले अंग्रेजो को देखो न्यूटन, डाल्टन, केप्लर, मेण्डल, जेम्स वाट तथा पाश्चर जैसे महान वैज्ञानिक पैदा हुए, आइंस्टीन और स्टीफेन हॉकिन्स का तो कोई तोड़ हि नहीं। तुम लोगो ने विज्ञान का नाम भी सुना है।
मित्रों मैं उनकी हर बात को ध्यान से सुनता रहा और प्रश्न करते तथा सनातन धर्म को कोसते हुए उनकी आँखों में उभर रही चमक और मुखारबिंद पर खिल रही कुटिल मुस्कान को भी परखता रहा, फिर जब वो शांत हो गए तो मैंने उनसे पूछा:-
हे जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी मित्र, तनिक तुम कुछ सामान्य से प्रश्नों का उत्तर दोगे !
वामपंथी:- पूछो तुम सनातनी के पास विज्ञान तो है नहीं फिर तुम पूछोगे हि क्या ?
मैंने पूछा :- हे वामपंथी मित्र क्या तुमने कभी भी किसी अंग्रेज या मुग़ल के घर के आंगन में या बालकनी में तुलसी का पौधा देखा है?
वामपंथी:- अरे अंग्रेज या मुग़ल अनपढ़ थोड़े हैं, तुम लोगों कि भांति, ये तुम्हीं लोगों के पास तुलसी माता के रूप में रहती हैं, पढ़े लिखें लोगों को इससे क्या कार्य?
मैंने पुन: पूछा :- हे वामपंथी मित्र क्या तुम्हारे पढ़े लिखें अंग्रेज या मुग़ल ने तुलसी नामक पौधे के बारे में कुछ भी नहीं बताया, तो वामपंथी मित्र ने कहा, अरे सनातनी ये तुलसी एक वनस्पति है, जैसे अन्य वनस्पतियां हैं, यदि इसमें कुछ विज्ञान होता तो ईसाइ अंग्रेज और मुग़ल नहीं बताते, ये अंध विश्वास तुम लोगों का है, समझे।
मैंने कहा: - हे वामपंथी मित्र सुनो, ये सच है कि तुलसी के पौधे को हम "सनातनी तुलसी माता" कह कर सम्बोधित और पूजा करते हैं, क्योंकि हमारे ऋषियों को लाखों वर्ष पूर्व तुलसी के औषधीय गुणों का ज्ञान था इसलिए इसको हर सनातनी के दैनिक जीवन में प्रयोग हेतु इतनी प्रमुखता से स्थान दिया गया है।आयुर्वेद में तुलसी के पौधे के हर भाग को स्वास्थ्य के दृष्टि से लाभदायक बताया गया है। तुलसी की जड़, शाखाएं, पत्ती और बीज सभी का अपना-अपना महत्व है। इसीलिए जब हमें तुलसीदल मिला हुआ चरणामृत पंडित जी या पुजारी जी देते हैं तो वो निम्न श्लोक का पथ करते हैं: -
"अकाल मृत्यु हरणं सर्वव्याधि विनाशनम् " ।
अर्थात तुलसी को अकालमृत्यु - हरण करनेवाली और सम्पूर्ण रोगों को दूर करनेवाली कहा गया है ।
हे वामपंथी सुनो:- तुलसी विटामिन और खनिज का भंडार है। इसमें मुख्य रुप से विटामिन सी, कैल्शियम, जिंक, आयरन और क्लोरोफिल पाया जाता है। इसके अलावा तुलसी में सिट्रिक, टारटरिक एवं मैलिक एसिड भी पाया जाता।
हे वामपंथी आओ तुम्हें इसका वैज्ञानिक गुण और लाभ बताते हैं:-
१:- मानव के मस्तिष्क कि कार्यक्षमता को अत्यधिक तीव्र
बनाने के लिए तुलसी अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है। तुलसी के पत्तों के रोजाना सेवन से मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है और याददाश्त तेज होती है।
२:- तुलसी के पौधे से प्राप्त तेल कि एक या दो बुँदे नाक में डालने से इसका तीव्र प्रभाव होता है और तनाव के कारण शीश मे उतपन्न होने वाले दर्द से छुटकारा मिलता है।यह पुराने सिरदर्द तथा सर से संबंधित अन्य रोगो को दूर कर आराम पहुंचाता है।
३:- साइनसाइटिस व्याधि से पीड़ित व्यक्ति को तुलसी की पत्तियों या मंजरी को मसलकर सूंघाने से साइनसाइटिस रोग से शीघ्र आराम मिलता है।
४:- मौसम में परिवर्तन से या फिर किसी एलर्जी के कारण सर्दी-जुकाम जैसी बीमारी आम तौर पर हो जाती है, अत: ऐसी बीमारी होने पर तुलसी (Tulsi plant) की पत्तियां को काली मिर्च और गुड के साथ मिलाकर काढ़ा पीने से अत्यंत लाभ होता है।
इसीलिए हमारे शास्त्र तुलसी का गुणगान करते हुए कहते हैं: -
तुलसी गन्धमादाय यत्र गछन्ति मारुतः ।
दिशादिशश्च पूतास्युर्भुतग्रामश्चतुर्विधः । ।
अर्थात - तुलसी की गंध लेकर वायु जहाँ - कहीं पहुँचती है , उस दिशा में रहनेवाले प्राणी तथा स्थान सभी पवित्र हो जाते हैं ।
५:- तुलसी कि पत्तियॉ गले से जुड़े विकारों को दूर करने में बहुत ही लाभप्रद हैं। गले की समस्याओं से आराम पाने के लिए तुलसी के रस (Tulsi juice) को हल्के गुनगुने पानी में मिलाकर उससे कुल्ला करने से तथा इसके अलावा तुलसी रस-युक्त जल में हल्दी और सेंधानमक मिलाकर कुल्ला करने से भी मुख, दांत तथा गले के सब विकार दूर होते हैं।
६:- तुलसी की पत्तियों से बने शर्बत को आधी से डेढ़ चम्मच की मात्रा में बच्चों को तथा 2 से चार चम्मच तक बड़ों को सेवन कराने से, खांसी, श्वास, कुक्कुर खांसी और गले की खराश में लाभ होता है! आयुर्वेद के ग्रंथ चरक संहिता में तुलसी के गुणों का वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है:-
हिक्काल विषश्वास पार्श्व शूल विनाशिनः।
पितकृतात्कफवातघ्र सुरसः पूर्ति गंधहा।।
अर्थात् तुलसी हिचकी, खांसी, विष विकार, पसली के दाह को मिटाने वाली होती है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित कफ तथा वायु का शमन होता है। "भाव प्रकाश" में तुलसी को रोगनाशक, हृदयोष्णा, दाहिपितकृत शक्तियों के सम्बन्ध में लिखा है।
७:-तुलसी की पत्तियां अस्थमा के मरीजों और सूखी खांसी से पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत गुणकारी हैं। इसके लिए तुलसी की मंजरी, सोंठ, प्याज का रस और शहद को मिला लें और इस मिश्रण को चाटकर खाएं, इसके सेवन से सूखी खांसी और दमे में लाभ होता है।
८:-गलत खानपान या प्रदूषित पानी के सेवन से अक्सर लोग डायरिया की चपेट में आ जाते हैं, खासतौर पर बच्चों को यह समस्या बहुत होती है। तुलसी की पत्तियां डायरिया, पेट में मरोड़ आदि समस्याओं से आराम दिलाने में कारगर हैं। इसके लिए तुलसी की 10 पत्तियां और 1 ग्राम जीरा दोनों को पीसकर शहद में मिलाकर उसका सेवन करने से डायरिया जैसे व्याधि में आराम मिलता है।आयुर्वेद के ग्रंथ चरक संहिता में तुलसी के गुणों का वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है:-
तुलसी कटुका तिक्ता हृदयोष्णा दाहिपितकृत।
दीपना कष्टकृच्छ् स्त्रार्श्व रुककफवातेजित।।
अर्थात् तुलसी कटु, तिक्त, हृदय के लिए हितकर, त्वचा के रोगों में लाभदायक, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली मूत्रकृच्छ के कष्ट को मिटाने वाली होती है। यह कफ और वात सम्बन्धी विकारों को ठीक करती है।
९:-तुलसी का उपयोग चेहरे का खोया हुआ निखार वापस लाने के लिए भी किया जाता है, क्योंकि इसमें रूक्ष और रोपण गुण होता है | रूक्ष गुण के कारण यह चेहरे से की त्वचा को अत्यधिक तैलीय होने से रोकती है, जिससे कील मुंहासों को दूर करने मदद मिलती है इसके अलावा रोपण गुण से त्वचा पर पड़े निशानों और घावों को हटाने में भी सहायता मिलती है | यदि तुलसी का सेवन किया जाये तो इसके रक्त शोधक गुण के कारण अशुद्ध रक्त को शुद्ध कर चेहरे की त्वचा को निखारा जा सकता है | इसीलिए हमारे शास्त्रों द्वारा कहा गया है:-
त्रिकालं विनतापुत्र प्राशर्य तुलसी यदि ।
विशिष्यते कायशुद्धिश्चान्द्रिणं शतं बिना । ।
अर्थ - हे विनता - पुत्र ! प्रातः , मध्याह्न तथा सायंकाल जो तीनों संध्याओं में तुलसी का सेवन करता है , उसकी काया वैसी ही शुद्ध हो जाती है जैसा कि सैकड़ों चान्द्रायण व्रतों से होती है ।
१०:-हे मित्र दाद और खुजली जैसे रोग से तो आप कभी ना कभी पीड़ित अवश्य हुए होंगे। दाद, खाज और खुजली में तुलसी का अर्क अपने रोपण गुण के कारण लाभदायक होता है | यह दाद में होने वाली खुजली को कम करता है, और साथ ही उसके घाव को जल्दी भरने में सहायता करता है | यदि तुलसी के अर्क का सेवन किया जाए तो यह रक्त शोधक (रक्त को शुद्ध करने वाला) होने के कारण अशुद्ध रक्त का शोधन अर्थात रक्त को साफ़ करता है और त्वचा संबंधित परेशानियों को दूर करने में सहायक होता है|
११:-तुलसी का पौधा (Tulsi Plant) मलेरिया प्रतिरोधी है। तुलसी के पौधों को छूकर वायु में कुछ ऐसा प्रभाव उत्पन्न हो जाता है कि मलेरिया के मच्छर वहां से भाग जाते हैं, इसके पास नहीं फटकते हैं। तुलसी-पत्रों का काढ़ा बनाकर सुबह, दोपहर और शाम को पीने से मलेरिया में लाभ होता है।
१२:-किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाए गए जूस को शहद के साथ 6 महीनों तक रोज़ाना पीने से पथरी खत्म होकर बाहर निकल जाती है|
हे वामपंथी मित्र, मैंने जो आपको बताया वो तो मात्र कुछ गुण है, तुलसी के पौधे में तो नपुंसकता को भी दूर करने के गुण विद्दमान हैं, इनसे कई प्रकार कि औषधियो का निर्माण होता है, जो मानव जीवन को निरोगी बनाए रखने के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं और इसीलिए इस पौधे के संवर्धन और घर घर में विद्दमान रखने हेतु हमारे महर्षियो (जो आधुनिक वैज्ञानिक वर्ग के जन्मदाता थे) ने इसे आस्था से जोड़ दिया और तुलसी कि वैज्ञानिक महत्ता आध्यात्मिक और धार्मिक महत्ता में परिवर्तित हो गई। इसीलिए इनकी स्तुति करते हुए हमारे शास्त्र कहते हैं:-
महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी ।
आधि व्याधि हरिनित्यं तुलसित्वं नमोऽस्तुते । ।
अर्थात - हे तुलसी ! आप सम्पूर्ण सौभाग्यों को बढ़ानेवाली हैं , सदा आधि - व्याधि को मिटाती हैं , आपको नमस्कार है ।
हे वामपंथी आयुर्वेद कि सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक " चरक- संहिता" में तुलसी के औषधिय गुणों का अद्भुत वर्णन किया गया है।
हे वामपंथी तुलसी का वानस्पतिक नाम: "ओसिमम बेसिलिकम" है, इन्हे अंग्रेजी में "बांसल" कहते हैं और संस्कृत में "तुलसी या तुगी" कहते हैं। ये लामिफसिएई परिवार का पौधा है और इनके वाणिज्यिक अंग: पत्ते और बीज हैं।
तो हे वामपंथी मित्र, तुलसी के औषधिय गुण के विषय में केवल सनातनी जानते थे अत: उन्होंने अपने घर में तुलसी को अपने परिवार के चिकित्सक के रूप में स्थान दिया और माता के रूप में पूजकर इनकी सुरक्षा और संवर्धन किया।
हे वामपंथी अब बताओ विज्ञान को जानने और समझने वाले कौन सनातनी या वो जो तुलसी माता कि पूजा को पाखंड या अन्धविश्वास मानते है
अब वामपंथी मित्र यंहा पर निरुत्तर हो गए और हैकड़ी दिखाते हुए बोले अरे तो क्या हुआ , ये जो तुम लोग "निम" का वृक्ष जो लगाते हो उसका क्या, जंहा देक्बो वंही नीम का पेड़ और तो और तुम लोग इसके डण्ठल से दांत भी साफ करते हो, अरे ये सब पीछड़ेपन कि निशानी हां, दुनिया चाँद पर पहुंच गई और तुम सनातनी अभी डण्ठल से दांत साफ करते हो।
अगले अंक में उत्तर पढे. ...
लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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