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सतीप्रथा सनातन धर्मी और वामपन्थी में शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023

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मित्रों एक बार पुन: जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथ अनुगामी मेरे मित्र मार्ग में मुझे देखते ही मेरे साथ हो लिए  कुशलक्षेम का आदान प्रदान करने के पश्चात तुरंत अपने मुख्य उद्देश्य " सनातन धर्म की अनावश्यक आलोचना" कि ओर बढ़ते हुए मुझ पर प्रश्नों का वृष्टिपात कर दिया और पूछा कि :-

"मित्र तुम्हारे यंहा ये "सतीप्रथा" जैसा संसार कि सबसे विभत्स कुरुति है, आखिर तुम सनातन धर्मी स्त्रियों के प्रति इतने क्रूर कैसे हो सकते हो? इतना कहने के पश्चात अल्पावधि कि शांति के पश्चात फिर बोले कि अच्छा हुआ जो मदरसा में पढ़ने वाले राजा राम मोहन राय ने इस गंदगी और क्रूरता से स्त्रियों को बचा लिया।"

मैं वामपन्थी मित्र के कुटिल मंतव्य को पढ़ चुका था " एक ओर जंहा उन्होंने सनातन धर्म को क्रूर बताया वंही उन्होंने मदरसा की प्रशन्सा कर उस मजहब को अच्छा बताने का कुप्रयास किया था।

मैंने कहा हे वामपंथी सुनो जिस सनातन धर्म में स्त्री को माता, भगिनी, पुत्री, अर्धांगिनी और भाभी के रूप में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया जाता हो, भला उस सनातन धर्म में पति के स्वर्गवास के पश्चात उसकी पत्नी को "सती" होने के लिए बाध्य क्यों किया जाएगा?

हे वामपंथी मित्र जिस सनातन धर्म में स्त्रियों को आदि शक्ति के रूप में पूजा जाता है उस धर्म में स्त्रियों के प्रति सतीप्रथा जैसी क्रूरता भला क्यों होगी? हे वामपंथ अनुगामी तुम लोगों ने जिस पवित्र पुस्तक के विषय में विषवमन कर प्रदुषित कर दिया है, वहीं पुस्तक स्त्री के संदर्भ में कहती है कि:-

मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५७

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।

न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।

अर्थात जिस कुल में स्त्रियों को कष्ट होता है वह कुल शीघ्र ही नाश हो जाता है। और जहाँ नारियों को सुख होता है वह कुल सदैव फलता फूलता है।

अब तनिक विचार करो की तुम्हारे दृष्टि में जो अच्छी पुस्तक नहीं है, वो मनुस्मृति स्त्री के विषय में ऐसे पवित्र विचार रखती है और यही नहीं वो आगे भी कहती है कि:-

मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५८

जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः ।

तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः।।

‘अर्थात जो विवाहित स्त्रियाँ पति, माता, पिता, बन्धु और देवर आदि से दुःखित होके जिन घर वालों को शाप देती हैं, वे जैसे किसी कुटुम्ब भर को विष देके मारने से एक बार सबके सब मर जाते हैं, वैसे उनके पति आदि सब ओर से नष्ट - भ्रष्ट हो जाते हैं ।’’

अब ऐसी स्थिति में हे वामपंथी तुम स्वय विचार करो कि सनातन समाज में ये कुरुति आखिर कैसे पनप सकती है।

वामपंथी ने गर्व से अपनी ग्रीवा में अकड़ लाते हुए कहा " पर मित्र तुम इतिहास को तो नहीं झुठला सकते"।

मैंने इसका उत्तर देते हुए अब उनका यथार्थ से परिचय करवाना शुरू किया। मैंने कहा सुनो मित्र, ध्यान से सुनो, सनातन धर्म में कुछ भी अनायास या केवल किसी को कष्ट देने या  अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने या फिर आसमानी संदेश बताकर शुरू नहीं किया जाता, उसके पृष्ठभूमि में कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ युक्ति युक्तकारक अवश्य होता है।

सतीप्रथा की शुरुआत:- इस ब्रह्माण्ड के सर्वाप्राचीन ईश्वरीय वाणी "वेदो" में कंही भी किसी प्रकार का नारियो के "सती" होने अथवा " सतीप्रथा" जैसी कुरुती का संदर्भ या प्रसंग नहीं प्राप्त होता।

मनुस्मृति में भी सतीप्रथा के संदर्भ में कुछ भी अंकित नहीं है। सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में भी सतीप्रथा जैसी विभत्स कुरुती का कोई भी उदाहरण नहीं प्राप्त होता। यद्यपि कि कुछ म्लेच्छ प्रजाति के और मनोरोग से पीड़ित वामपंथीयो द्वारा अवश्य एक दो मिथ्या उदाहरण प्रस्तुत करने का प्रयास होता है।

सती प्रथा की पृष्ठभूमि ये है कि, जिस स्त्री के पति कि मृत्यु हो जाती थी, उसे उसके पति की चिता की अग्नि में स्वय को जिंदा समर्पित कर देना पड़ता था अर्थात एक पत्नी अपने मृत पति की जलती चिता पर बैठकर जल कर मृत्यु का आलिंगन कर लेती है।

परन्तु सनातन धर्म की महानता से अपने ह्रदय से वैमनस्य रखने वाले म्लेच्छ और अन्य समाजिक (वामपंथी) मनोरोगीयो ने इस प्रथा को, परमेश्वर शिव की अर्धांगिनी माता "सती" के द्वारा अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा आयोजित यज्ञ के हवन कुंड में प्रवेश कर स्वय को अग्नि में तिरोहित कर दिया था,( क्योंकि अपने पिता द्वारा अपने पति के अपमान को वो सहन ना कर पायी थी), से जोड़कर दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया और उक्त घटना को हि "सती प्रथा" का आधार बना डाला।

मित्रों सनातन धर्म को अपमानित करने वाले नीच और नकारात्मक शक्तियों के इस कुप्रयास को आसानी से समझा जा सकता है।

भारत के अधिकांश भागो पर अपनी सत्ता स्थापित करने वाले जितने भी गौरवशाली वंश (शिशुनाग, हरयक, चोल, चालुक्य, सातवाहन, गुप्त, मौर्य, शुंग नन्द, हर्ष और कुशाण इत्यादि) हुए उनमें से किसी भी के सत्ता के दौरान "सती प्रथा" जैसी कुरुति आपको ढूढने से भी नहीं मिलती।अब यदि हम सूक्ष्म विवेचना करें तो इस्लाम के भारत में पर्दापण से पूर्व कलयुग में भी सतीप्रथा जैसी कुरुति नहीं प्राप्त होती है। बहुत से विदेशी यात्री भारत आए जिनमें ह्वेनसांग, फाहयान और मेगस्थनीज इत्यादि प्रमुख हैं, इन्होने भी कभी सतीप्रथा का जिक्र नहीं किया।

सती प्रथा का आरम्भ:-

भारत में इस्लामिक चरमपन्थि आक्रान्ताओ के आक्रमण की शुरुआत ७१२ ई पूर्व के आस पास शुरू हुई जब  इस्लाम के शुरूआती काल में उमय्यद ख़िलाफ़त के अंतर्गत राज करने वाले "इराक" के तत्कालीन गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ ने अपने एक रिश्तेदार और सिपहसालार मोहम्मद बिन काशिम को भारत के सीमावर्ती राज सिंध पर आक्रमण करने हेतु लश्कर के साथ रवाना किया। काशिम भारत आया और अपने साथ अपने समाज कि कुरीतियों और नीचता को भी ले आया।

मित्रों इस्लामिक तारीखे साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं कि अरब में इस्लाम के उदय के पश्चात जितने भी युद्ध हुए उसमें जितने वाला पक्ष हारने वाले पक्ष के सम्पूर्ण कबिले को लूट लेता था,, जिसमें धन और आभूषण के अतिरिक्त लड़कियां और औरते भी होती थी, जिन्हें जितने वाले पक्ष के सैनिक आपस में बाँट कर "लौंडी" अर्थात दासी बना लेते थे। यंहा तक की लूट में मिली इन औरतों को जानवरो के बदले में खरीदा और बेचा जाता था। अरब में विशेष तौर पर बाजार लगता था जिसमें औरतों और लडकियो को बेचा और खरीदा जाता था।

इसी लौंडियाबाजी और हवस की कुरुती भी अरब इस्लामिक आतंकियों के साथ भारत में आ गई। उसके पश्चात तो मंगोल, तुर्क, अफगानी, ईरानी, इराकी, समरकंद तथा उज्बेकिस्तान इत्यादि देशों से जितने भी आतंकी भारत पर आक्रमण और लूटपाट करने के उद्देश्य से या फिर अपनी सत्ता स्थापित करने कभी खिलजी, कभी अब्दाली, कभी तुगलक, कभी गोरी, कभी गजनवी तो कभी लोदी तो कभी बाबर के रूप में आए तो इन सभी ने भयंकर लूटपाट और रक्तपात के अतिरिक्त सनातनी नारियों का भी अपहरण किया और उन्हें लूट के माल कि तरह अपने अपने देशों में इन्ही सबके लिए बनाये गए बाजारों में बेचने के लिए भिजवा दिया या अपने साथ ले गए।

सनातन धर्म में भी राजाओं के आपस में युद्ध होते थे, परन्तु शत्रु राज्य की स्त्रियों, वृद्ध मनुष्यो और साधारण जनता को कभी नहीं परेशान किया जाता था। भारत का इतिहास ऐसे अनेको उदाहरण से भरा पड़ा है, जिसमें सम्पूर्ण राज्य को जितने के पश्चात भी उन्होंने वंहा कि साधारण जनता, स्त्री, बच्चे और वृद्ध प्रजा पर कभी भी प्रहार नहीं किया। उन्होंने कभी भी लूटपाट नहीं किया।

हिन्दुस्तान पर विदेशी मुसलमान हमलावरों ने जब आतंक मचाना शुरू किया और पुरुषों की हत्या के बाद स्त्रियों का अपहरण करके उनके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू किया तो बहुत-सी स्त्रियों ने उनके हाथ आने से, अपने जीवन को समाप्त करना बेहतर समझा। उस काल में भारत में इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा सिंध, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान आदि के छत्रिय या राजपूत क्षेत्रों पर आक्रमण किया जा रहा था।

जब इस्लामिक आतंकी और हवस का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने महारानी पद्मावती को प्राप्त करने की अनैतिक इच्छा लिए चित्तौड़ में नरसंहार किया था तब उस समय सनातनी  सम्मान को सुरक्षित रखने हेतु पद्मावती ने सभी राजपूत विधवाओं के साथ सामूहिक जौहर किया था। राजपूती वीरांगनाओ के इस बलिदान को याद रखने के लिए उक्त स्थान पर मंदिर बना दिये गए और उन स्त्रियों को सती कहा जाने लगा और उसी समय से सती के प्रति सम्मान बढ़ गया और सती प्रथा प्रचलन में आ गई।

इस प्रथा के लिए धर्म नहीं, अपितु उस समय की परिस्थितियां और लालचियों की नीयत जिम्मेदार थी।

शोधकर्ता मानते हैं कि इस प्रथा का प्रचलन मुस्लिम काल में हि देखने को मिला जबकि मुस्लिम आक्रांता महिलाओं को लूटकर अरब ले जाते थे या राजाओं के मारे जाने के बाद उनकी रानियां जौहर की रस्म अदा करती थी अर्थात या तो कुएं में कूद जाती थी या आग में कूदकर जान दे देती थी।

इसके पश्चात जब अंग्रेजो और पुर्तगालीयो डकैत और लुटेरों के शाशनकाल के दौरान भी वहीं लूटपाट, भयानक रक्तपात और स्त्रियों पर अत्याचार यूँ हि बदस्तुर जारी रहा। इन ईसाई आतंकी आक्रमणकारीयो ने भी अरबी इस्लामिक आतंकवादियो कि तरह हि स्त्रियों के साथ अपहरण, हत्या और बलात्कार के हिंसक अपराध जारी रखे और इस प्रकार सतीप्रथा समाज में बनी रही।

कालांतर में जाकर सनातन समाज के निकृष्ट मानसिकता वाले और लालचियों के समूह ने इसे धर्म से जोड़कर धन सम्पदा , जमीन जायदाद को हथियाने का एक तरीका बना लिया जो कई वर्षो तक बदस्तुर जारी रहा।

४ दिसंबर, साल १८२९ को  विलियम बेंटिक की अगुवाई और राजा राम मोहन राय जैसे भारतीय समाज सुधारकों के प्रयासों से सती प्रथा पर भारत में पूरी तरह से रोक लगी थी।

विलियम बेंटिक ने ब्रिटिश भारत में कंपनी के अधिकार क्षेत्र में सती पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून पारित किया। अधिनियम को अदालतों द्वारा सती प्रथा को अवैध और दंडनीय बनाया गया था। बंगाल संहिता का सती विनियमन XVII AD 1829 मे स्पष्ट रूप से कहा गया।

"हिंदुओं की विधवाओं को सती, या जिंदा जलाने या दफनाने की प्रथा मानव स्वभाव की भावनाओं के प्रति विद्रोह है; यह हिंदुओं के धर्म द्वारा अनिवार्य कर्तव्य के रूप में कहीं भी आदेशित नहीं है; इसके विपरीत विधवा की ओर से पवित्रता और सेवानिवृत्ति का जीवन अधिक विशेष रूप से और अधिमानतः मन में बिठाया जाता है, और पूरे भारत में लोगों के एक विशाल बहुमत द्वारा इस प्रथा को नहीं रखा जाता है, न ही इसका पालन किया जाता है: कुछ व्यापक जिलों में यह मौजूद नहीं है : जिनमें यह सबसे अधिक बार हुआ है, यह कुख्यात है कि कई मामलों में अत्याचार के कृत्यों को अंजाम दिया गया है, जो स्वयं हिंदुओं के लिए चौंकाने वाला रहा है, और उनकी नजर में गैरकानूनी और दुष्ट है। हिन्दुओं की विधवाओं को जीवित गाड़ना, एतद्द्वारा अवैध घोषित किया जाता है, और फौजदारी न्यायालयों द्वारा दंडनीय है।"

इस कानून के लागू होने के बाद, भारत में रियासतों में इस प्रथा को प्रतिबंधित करने वाले समान कानून पारित किए गए। १८६१ में, भारत का नियंत्रण सीधे ब्रिटिश क्राउन पर चला जाने के बाद, महारानी विक्टोरिया ने पूरे भारत में सती प्रथा पर सामान्य प्रतिबंध जारी कर दिया। राजस्थान की राज्य सरकार ने सती (रोकथाम) अधिनियम, १९८७ पारित किया, जिसके द्वारा विधवाओं को स्वेच्छा से या जबरन जलाना या जिंदा दफन करना, और सती के किसी भी जुलूस में भाग लेने सहित ऐसे कृत्यों का महिमामंडन दंडनीय हो गया। यह अधिनियम १९८८ में भारतीय संसद का एक अधिनियम बन गया जब सती (रोकथाम) अधिनियम, १९८७ अधिनियमित किया गया था।

तो हे वामपंथी मित्र अब तो आपको इस तथ्य की जानकारी प्राप्त हो गई की "सती प्रथा" की शुरुआत क्यों और कैसे हुई और उसके पश्चात उसने क्या स्वरूप ले लिया। और रही बात राजा राम मोहन राय की तो सुनो:-

राजा राम मोहन राय ने मदरसे में केवल और केवल अरबी/फारसि भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए दाखिला लिया था। वो अंग्रेजी, हिंदी और बंगाली भाषाओ के जानकार थे।१५ वर्ष की आयु तक उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी तथा फ़ारसी का ज्ञान हो गया था।

राजा राममोहन रॉय का जन्म दिनांक २२ मई १७७२ को पश्चिम बंगाल में हुआ था। इनको भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। इनके पिता का नाम रमाकांत तथा माता का नाम तारिणी देवी था।भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में उनका विशिष्ट स्थान है। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की। उनके आन्दोलनों ने जहाँ पत्रकारिता को चमक दी, वहीं उनकी पत्रकारिता ने आन्दोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया।

हे वामपंथी सुनो

सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्याऽभ्यासेन रक्ष्यते।

मृज्यया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।।

धर्म की रक्षा सत्य से, ज्ञान से अभ्यास से, रूप से स्वच्छता से और परिवार की रक्षा आचरण से होती है। और हम सनातनी सदैव सत्य को धारण करते हैं।

और मित्रों

तस्याग्निर्जलमर्णवः स्थलमरिर्मित्रं सुराः किंकराः

कान्तारं नगरं गिरि र्गृहमहिर्माल्यं मृगारि र्मृगः।

पातालं बिलमस्त्र मुत्पलदलं व्यालः श्रृगालो विषं

पीयुषं विषमं समं च वचनं सत्याञ्चितं वक्ति यः।।

सत्य बोलने वाले के लिए अग्नि जल बन जाती है, समुद्र भूमि बन जाता है, शत्रु मित्र, देव सेवक, जंगल नगर, पर्वत घर, सर्प पुष्पों की माला, सिंह हिरण, अधोलोक, कमल, सिंह, लोमड़ी, जल का अमृत और विषमताएँ सम हो जाती हैं।

उपरोक्त श्लोक कह कर मैंने अपनी वाणी को विराम दिया और अब जनम से ब्रह्मण पर कर्म से वामपंथी मेरे मित्र एक बार पुन: स्वय को पराजित महसूस कर चल दिए।

लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

aryan_innag@yahoo.co.in

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रचनाएँ
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मित्रों आज हम इस लेख में कट्टर ईमानदार और क्रांतिकारी शिक्षा मंत्री आदरणीय श्री मनीष सिसोदिया जी के विषय में चर्चा और परिचर्चा करेंगे। मित्रों शिक्षा के विषय में हमारे शास्त्र कहते हैँ:- विद्य

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एक सनातनी का एक वामपंथी तर्कवादी के साथ शास्त्रार्थ भाग-१० " चार्ल्स डार्विन और दशावतार"।

6 जून 2023
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हे मित्रों जैसा की आप जानते हैं की हमारे  एक जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र हैं और उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये है कि वो सनातन धर्म के धुर विरोधी हैं और सनातन धर्म को निचा दिखने का कोई अवसर

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एक नेता जिसने किया कुछ भी नहीं पर पाया सब कुछ!

6 जून 2023
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हे मित्रों आप सोच रहे होंगे कि मैं ये क्या कह रहा रहूँ या किस नेता के बारे में बात कर रहा हूँ? आइये ये लेख जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा आपको अपने आप उस नेता का चेहरा दिखलाई देना शुरू कर देगा। जी हाँ

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एक सनातनी का वामपंथी से शस्त्रार्थ्-६ प्रसंग:- गुरु द्रोण - एकलव्य और गुरु दक्षिणा।

6 जून 2023
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हे मित्रों कैसे हैं आप लोग, आप तो जानते हैं कि हमारे एक मित्र हैं जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हैं। आज एक बार पुन: मेरे आवास पर आ बिराजे और वामपन्थ के एक और झूठ को हथियार बना मुझसे शास्रा

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मनुस्मृति को बदनाम और अपमानित क्यों किया?

6 जून 2023
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हे मित्रों, कार्ल मार्क्स के उलूल जुलूल और आधारहीन सिद्धांतो के अँधेरी और भयावह दुनिया में फांसकर कई व्यक्तियों ने ना केवल अपना सम्पूर्ण जीवन नष्ट कर दिया अपितु करोड़ो लोगों कि हत्या भी उन्होंने कर

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हमारा देश "धर्म निरपेक्ष" है या "पंथ निरपेक्ष"। एक सनातनी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023
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हे मित्रों, नमस्कार जैसा कि आप जानते हैं कि सनातन धर्म का विरोध करने वाले तथा जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे एक मित्र हैं,  और अक्सर हमारे जैसे सनातनी के साथ वो शास्त्रार्थ के लिए आते रहत

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वामपन्थियों का जीता जगता झूठ:- "लाल कोट शाहजंहा नामक किसी मुग़ल ने बनवाया। हा हा हा"

6 जून 2023
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हे मित्रों वामपंथी और मुसलिम इतिहासकारो ने अपने झूठ बोलने और लिखने कि कला का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया और झूठ को बार बार लिखकर बोलकर उसे सच साबित करने का प्रयास किया। पर मित्रों या जितने तथाकथि

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Bhar OS भारत का अपना ओपरेटिंग सिस्टम।

6 जून 2023
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हे मित्रों आत्मनिर्भर भारत कि दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए हमारे देश ने अपना एक ओपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है, जो अतिशीघ्र Android और IOS को टक्कर देने और बाजार में उनके एकाधिकार को

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अंग्रेजी वैज्ञानिक सर आईजैक न्यूटन के संदर्भ में एक सनातनी और वामपंथी के मध्य शास्त्रार्थ भाग-९

6 जून 2023
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मित्रों जैसा कि आप जानते हि हैं कि हमारे एक मित्र हैं जो जनम से ब्राह्मण है पर कर्म से वामपंथी है। अब वामपंथी लोगों का कर्म कैसा होता है, ये बताने की अवश्यक्ता नहीं है। मित्रों वामपंथी मित्र हमारे

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दहेज प्रथा। वामपंथी और सनातन धर्मी में शास्त्रार्थ भाग्-६

6 जून 2023
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मित्रों मेरा और मेरे वामपंथी मित्र (जो जनम से ब्राह्मण और कर्म से पूरे वामपंथी हैं) के मध्य शास्त्रार्थ तो चलता हि रहता है।  मेरे वामपंथी मित्र बुराइयाँ ढूंढ ढूंढ कर लाते हैं पर जब उसका उदगम उन्हीं

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सतीप्रथा सनातन धर्मी और वामपन्थी में शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023
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मित्रों एक बार पुन: जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथ अनुगामी मेरे मित्र मार्ग में मुझे देखते ही मेरे साथ हो लिए  कुशलक्षेम का आदान प्रदान करने के पश्चात तुरंत अपने मुख्य उद्देश्य " सनातन धर्म की अ

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निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाये। बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करत सुभाय।।"

6 जून 2023
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हे मित्रों जब महाकवि कबीरदास जी ने उक्त दोहे की रचना कि थी, तब निंदा करने वाले व्यक्ति भी कुछ मर्यादा के साथ गुण और अवगुण पर विचार कर निंदा या आलोचना करते थे। उस वक़्त के म्लेच्छ वर्ग को छोड़ दिया जाए

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मनुस्मृति में नारी का स्थान! सनातन धर्मी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ भाग्-४

6 जून 2023
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मित्रों जैसा कि आप अब तक हमारे वामपंथी मित्र को जान चुके होंगे, जो कि जन्म से तो ब्राह्मण है, परन्तु कर्म से  वामपंथी हैं ।उन्हें एक बार पुन: सनातन धर्म में बुराई दिखाने कि महत्वकान्छा और उनकी प्रवृ

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सनातन धर्म और विज्ञान। एक सनातन धर्मी का वामपन्थि के मध्य शास्त्रार्थ -८(क)

6 जून 2023
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हे मित्रों मेरे मित्र के विष्य में तो आप जानते हि होंगे, जी हाँ वहीं मित्र जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी और धुर सनातन विरोधी हैं। वो सदैव कि भांति एक बार पुन: मेरे घर आ धमके और शास्त्रार्थ

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सनातन धर्म और विज्ञान एक सनातनी और वामपंथी के मध्य शस्त्रार्थ्- ८(ख)

6 जून 2023
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मित्रों पिछले अंक में आपने देखा था कि जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे मित्र ने सनातन धर्मीयो को अनपढ़, अंधविश्वासी, कर्मकांडी और विज्ञान से परे बताते हुए जबरदस्त आलोचना कि थी। उन्होंने सनात

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सनातन धर्म और विज्ञान सनातन धर्मी और वामपन्थ के मध्य शास्त्रार्थ भाग-८(ग)

6 जून 2023
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हे मित्रों, जब हमारे जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र तुलसी के पौधे और नीम के वृक्ष में सनातन धर्मीयों के आस्था का मजाक उड़ाने में जब असफल हो गए तो एक दिन फिर हमारे घर पर उपस्थित हुए और इस ब

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सत्य की जीत:- श्री एकनाथ शिंदे।

6 जून 2023
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जी हाँ मित्रों, दिनांक १९जुन १९६६ को जब स्व. बाळासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना का गठन हुआ, तो इसके पीछे केवल २ उद्देश्य थे, जिसमें से एक था भूमिपूत्रों का विकास और दूसरा था हिंदुत्व की अवधारणा।

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सनातनी और वामपंथी के मध्य मनुस्मृति को लेकर शास्त्रार्थ। भाग्-१

6 जून 2023
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मित्रों मैं एक सनातनी हूँ कल अंग्रेजी वर्ष २०२२ का अंतिम दिन था और अचानक मार्क्स को अपना पिता, लेनिन को अपना मार्गदर्शक और माओ को अपना सगा मानकर उनका गुणगान करने वाला एक वामपंथी मित्र मुझसे टकरा गये।

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हिंदू नूतनवर्ष:- वामपंथी और सनातन धर्मी के मध्य शास्त्रार्थ भाग-२

6 जून 2023
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मित्रों मैं सनातन धर्मी हूँ और मेरे एक मित्र हैं जो केवल जन्म  से सनातनी हैं और कर्म से वामपंथी हैं,  अंग्रेजी मान्यता के अनुसार नए वर्ष के आगमन पर मुझसे पुन:  शास्त्रार्थ की अभिलाषा से आ टपके और आते

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श्रीरामचरितमानस: - सनातन धर्मी और वामपंथी के मध्य शास्त्रार्थ भाग्-३

6 जून 2023
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मित्रों  मेरे मित्र जो जन्म  से तो सनातनी  हैं परन्तु कर्म से महा वामपंथी, आज अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लेकर आए और अपने सिकुड़ चुके छाती को फुलाने का असफल प्रयास करते हुए मुझे ललकारा कि अब बोलो बड़ा स

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पीसा कि मीनार विश्व धरोहर पर रत्नेश्वर मंदिर का कोई स्थान नहीं।

7 जून 2023
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मित्रों हमारे शास्त्रों ने हमें शिक्षित करते हुए बताया है कि:- न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्। विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत्।। अर्थात जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी

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परम बलिदानी बच्चे :- कोटी कोटी नमन।

7 जून 2023
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🌹🌸🌻🌼🙏 शुभप्रभात 🙏🌹🌸🌻🌼 दो बच्चे निर्भीकता से उस स्थान पर अपने तेज और शौर्य का प्रकाश फैलाये खड़े थे।उनको चारों ओर से म्लेच्छ प्रजाति के भयानक और डरवाने लोगों ने घेर रखा था। वे सैकड़ो कि संख्या

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हाँ तुम सावरकर कभी नहीं हो सकते क्योंकि:- "सावरकर बनने के लिए"

7 जून 2023
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१:- भोगी नहीं योगी बनना पड़ेगा; २:+ राष्ट्रद्रोही नहीं राष्ट्रवादी बनना पड़ेगा; ३:- अंधकार नहीं प्रकाश फैलाना पड़ेगा; ४:-अधर्म के साथ नहीं धर्म के साथ खड़ा रहना पड़ेगा; ५:+ असत्य या झूठ नहीं सत्य क

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भारत और विश्व कि अर्थव्यवस्था।

7 जून 2023
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हे मित्रों, ईश्वर की असीम अनुकम्पा है हम भारतीयों के ऊपर कि हमने सही समय पर सही निर्णय लिया और किसी के बहकावे में ना आकर हम अपने निर्णय पर अडिग रहे। आइये हम एक विश्लेषण करते हैं कि, हमारा निर्णय

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जार्ज सोरोस, कांग्रेस और इनके पालतू भारत विद्रोही।

7 जून 2023
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मित्रों शीर्षक से हि आपको लेख के तथ्यों के विषय में आभाष हो गया होगा, आइये देखते हैँ की किस प्रकार जार्ज सोरोस और कांग्रेस तथा उनके पालतू भारत विद्रोही, भारत की बढ़ रही वैश्विक साख और विश्वसनीयता क

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कौन सा पठान?

8 जून 2023
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मित्रों हमारे बॉलीवुड को घटिया, अश्लील और् अतिहिन्सक बनाकर उसे हम सनातन धर्मीयों की दृष्टि से पूर्णतया गिरा देने वालो में से एक शाहरुख़ खान, एक "पठान" नामक चलचित्र लेकर आ रहा है, सुना है ये चलचित्र प

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