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दहेज प्रथा। वामपंथी और सनातन धर्मी में शास्त्रार्थ भाग्-६

6 जून 2023

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मित्रों मेरा और मेरे वामपंथी मित्र (जो जनम से ब्राह्मण और कर्म से पूरे वामपंथी हैं) के मध्य शास्त्रार्थ तो चलता हि रहता है।  मेरे वामपंथी मित्र बुराइयाँ ढूंढ ढूंढ कर लाते हैं पर जब उसका उदगम उन्हीं वामपन्थ जैसी विष्ठा को जनम देने वाले धूर्त और मक्कार समाज से निकलता साबित होता है, तो वो चरम रूप से शर्मिंदा होकर मेरे पास से दूर चले जाते हैं।

मित्रों ये सर्वविदित है कि वामपंथ एक AIDS नामक रोग की तरहहै,। इसका स्वरूप केवल और केवल पाखंड , धूर्तता, मक्कारी और निकृष्टता पर आधारित है और अत्यंत जानलेवा है।

खैर वामपंथी मित्र एक बार पुन: मेरे पास आए और गर्व से बोले की भाई तुम सनातनि लोगों के समाज में "दहेज प्रथा" नामक एक घटिया बीमारी है, तुम लोग पैसों के लिए अपनी बहुओं को जला देते हो उनकी हत्या कर देते हो, धिक्कार है तुम पर। अरे सुनो उन अंग्रेज ईसाइयों को देखो उन मुसलमानो को देखो उनके यंहा इस प्रकार का कुछ भी नहीं।

मैंने अपने वामपंथी मित्र की ओर देखा और उनके द्वारा उगले गए विष के प्रभाव में आए बिना, मैंने पूछा कि हे वामपंथी तनिक ये बताओ की ये दहेज प्रथा की शुरुआत कंहा और कैसे हुई?

वामपंथी ने कहा: - अरे सनातन धर्मी तुम्हारे यंहा ये कुप्रथा है तो तुम्हीं लोगों ने शुरू किया होगा, अंग्रेज या मुग़ल थोड़े लेकर आए होंगे।

मैंने मुस्करा कर उत्तर दिया सुनो हे वामपंथी ध्यान से सुनो:-

विश्व की सबसे प्राचीन ईश्वरीय पुस्तक " वेदो" में कंही भी इस दहेज प्रथा के संदर्भ में कुछ भी नहीं कहा गया है। यदि होती तुम वामपंथी गला फाड़ फाड़ कर पूरी दुनिया में सनातन को अपमानित कर रहे होते। वैदिक युग में कंही भी दहेज प्रथा से संबंधित उदाहरण नहीं दिखाई देता। सनातन धर्म के अनुसार इन चार युगो में से सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में भी दहेज प्रथा का तनिक भी संकेत नहीं मिलता।

प्राचीन भारत में दहेज के अस्तित्व के संबंध में उस दौरान विदेशो से आये कुछ यात्रियों ने स्पष्ट रूप से अपनी किताबों में उल्लेख करते हुए बताया हा कि " दहेज नामक कोई प्रथा प्राचीन भारत में नहीं थी।

इनमें से एक सिकंदर की  भारत मे हुई पराजय के साक्षीदार  ( लगभग 300 ई.पू.)  " एरियन"  ने अपनी पहली किताब में दहेज की कमी का जिक्र किया है,

"वे (ये प्राचीन भारतीय लोग) अपने विवाह इस सिद्धांत के अनुसार करते हैं, क्योंकि दुल्हन का चयन करने में वे इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि उसके पास दहेज और एक सुंदर भाग्य है, लेकिन केवल उसकी सुंदरता और बाहरी व्यक्ति के अन्य लाभों को देखते हैं।"

एरियन , सिकंदर महान द्वारा भारत पर आक्रमण , तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व ,"एरियन" की दूसरी किताब इसी तरह व्यक्त करती है, "वे (भारतीय) दहेज दिए या लिए बिना शादी करते हैं, लेकिन जैसे ही वे विवाह योग्य होती हैं, महिलाओं को उनके पिता द्वारा सार्वजनिक रूप से सामने लाया जाता है, कुश्ती या मुक्केबाजी या दौड़ में विजेता या किसी अन्य मर्दाना व्यायाम में उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले को चुना जाता है।"

मेगस्थनीज ने भी अपनी पुस्तक, "इंडिका", जो तीसरी शताब्दी ई.पू. अस्तित्व में आयी थी, बताया है कि " भारत में उस समय दहेज लेन देन की  परम्परा नहीं थी।

"दो अन्य स्रोतों का सुझाव है कि दहेज अनुपस्थित था, या एरियन द्वारा देखे जाने के लिए पर्याप्त दुर्लभ था।

एरियन की यात्रा के लगभग १२०० वर्ष बाद, एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी विद्वान ने भारत का दौरा किया, जिसका नाम अबू रेहान अल-बिरूनी था , जिसे लैटिन में अल-बिरूनी या अलबेरोनियस के नाम से भी जाना जाता है।

अल-बिरूनी एक इस्लामिक युग का फारसी विद्वान था जो १०१७ ईस्वी से १६ वर्षों तक भारत गया और रहा। उन्होंने कई भारतीय ग्रंथों का अरबी में अनुवाद किया, साथ ही भारतीय संस्कृति और उनके द्वारा देखे गए जीवन पर एक संस्मरण भी लिखा। अल-बिरूनी ने दावा किया,

"शादी की खुशियों के औजार आगे लाए जाते हैं। उनके बीच कोई उपहार (दहेज या दहेज) तय नहीं है। पुरुष पत्नी को केवल एक उपहार देता है, जैसा कि वह उचित समझता है, और एक शादी का उपहार अग्रिम में देता है, जिसे वापस लेने का उसे कोई अधिकार नहीं है, लेकिन (प्रस्तावित) पत्नी अपनी इच्छा से उसे वापस दे सकती है (यदि वह शादी नहीं करना चाहता)।" अल-बिरूनी , भारत में विवाह पर अध्याय (लगभग १०३५ ई.)।

परन्तु आइये सर्वप्रथम हम इस "दहेज" शब्द का अर्थ समझ लेते हैं।

संस्कृत में दहेज के लिए समानार्थी शब्द ‘दायज’ है । ‘दायज’ का सही अर्थ है- उपहार या दान । दहेज वस्तुत: विवाह के अवसर पर कन्यापक्ष की ओर से स्वेच्छा और संतोष के साथ वर को दिया जानेवाला उपहार है । प्राचीन भारतीय ग्रंथों से संकेत मिलता है कि भारत में "वर दक्षिणा" वर दान या "गुप्त दान"  का प्रचलन था ।

इसमें कन्या पक्ष अपनी ख़ुशी से बिना किसी दबाव के स्वय कि प्रेरणा से कुछ उपहार (जिसमें धन, आभूषण या वस्त्र इत्यादि होते थे) का दान करते थे। ये प्रक्रिया पूर्णतया कन्या पक्ष के द्वारा स्वइच्छा से अपनाई जाती थी।

दहेज को उर्दू , फ़ारसी और अरबी में "जहेज़" कहा जाता है ; हिंदी में "दाहेज" , पंजाबी में "दाज" , नेपाली में "डेजो" , तुर्की में "सेइज़" , बंगाली में "जौटुक" , मंदारिन में "जियाझुआंग" , तमिल में "वरधाचनई" , मलयालम में "स्त्रीधनम" , सर्बो-क्रोएशियाई में "मिराज" और अफ्रीका के विभिन्न भागों में "सेरोत्वाना" , "इदाना" , "सदुक़ुआत" या "मुगताफ़" के रूप में जाना जाता है।

मैंने पूछा हे जनम से ब्रह्मण और कर्म से अंधे अर्थात वामपंथी ये बताओ तुम्हारी दृष्टि में "मनुस्मृति" सबसे बेकार पुस्तक है। वामपंथी ने कहा " बिलकुल" । मैंने कहा पर मित्र  सुनो ये मनुस्मृति क्या कहती है:-

मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५२

स्त्रीधनानि तु ये मोहादुपजीवन्ति बान्धवाः ।

नारी यानानि वस्त्रं वा ते पापा यान्त्यधोगतिम।।

पितृकुल या पतिकुल के जो बन्धुलोग मूढ़तावश स्त्री के घर, यान व वस्त्रादि से जीविका चलाते हैं, वे पापीलोग दुर्गति को पाते हैं। अत: स्पष्ट है की प्राचीन और वैदिक के साथ साथ मध्य युग के मध्य तक भारत में दहेज प्रथा का कोई अस्तित्व नहीं था।

मैंने फिर कहा हे वामपंथी अब तनिक तुम उन ईसाइयो के समाज को भी टटोल लो, यूरोप में फैले हुए थे।

वैश्विक इतिहास

प्राचीन बेबीलोन कि विश्व प्रसिद्द हम्मुराबी की संहिता में , दहेज को पहले से मौजूद प्रथा के रूप में वर्णित किया गया है। बेटियों को आमतौर पर अपने पिता की संपत्ति का कोई हिस्सा नहीं मिलता था। इसके बजाय, शादी के साथ, दुल्हन को उसके माता-पिता से दहेज मिलता था, जिसका उद्देश्य उसे जीवन भर की सुरक्षा प्रदान करना था, जितना उसका परिवार वहन कर सकता था।

इसी प्रकार पुरातन ग्रीस में, सामान्य प्रथा दुल्हन की कीमत ( हेडनॉन ) देना था। दहेज ( फर्ने ) बाद के शास्त्रीय काल (5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व) तक आदान-प्रदान किया गया था।

रोमनों ने दहेज ( डॉस ) का लेन देन था । दहेज वह संपत्ति थी जो दुल्हन द्वारा, या उसकी ओर से किसी और के द्वारा दूल्हे या दूल्हे के पिता को उनकी शादी में हस्तांतरित की जाती थी।

दहेज चीन के विभिन्न ऐतिहासिक काल में आम था और आधुनिक इतिहास के माध्यम से जारी रहा। स्थानीय रूप से "( जियाझुआंग ) कहा जाता है, दहेज भूमि, गहने, धन से लेकर कपड़ों के संग्रह, सिलाई उपकरण और घरेलू सामानों के संग्रह तक होता है। दहेज बेटियों के लिए विरासत का एक रूप था। चाइनीज ट्रेडिशन में दोनों तरफ से गिफ्टिंग का सिस्टम था। शादी से तीन महीने पहले ही दूल्हे का परिवार दुल्हन के लिए तोहफे भिजवाता था। जिसे बेथरोथल कहा जाता है। इसे अच्छे शगुन के नाम से दिया जाता था। शादी के समय लड़की का परिवार भी अपनी बेटी को दहेज देता था, जिसमें वह सभी चीजें शामिल होती थी जो एक जोड़े को जीवन की नई शुरुआत करने के लिए चाहिए होती है।

प्रारंभिक आधुनिक युग तक यूरोप में दहेज का व्यापक रूप से प्रचलन था। इंग्लैंड में दहेज का प्रचलन था। इंग्लैंड में चाहे भिखारी हो या फिर राजशाही खानदान बगैर दहेज के विवाह हो हि नहीं सकता था।पुर्तगाल के सेंट एलिजाबेथ और सेंट मार्टिन डी पोरेस को विशेष रूप से इस तरह के दहेज प्रदान करने के लिए जाना जाता था, और "द आर्ककोफ्रेटरनिटी ऑफ द एनाउंसमेंट", दहेज प्रदान करने के लिए समर्पित एक रोमन चैरिटी ने तो पोप अर्बन VII की पूरी संपत्ति हि प्राप्त कर ली थी । १४२५ ई में, फ्लोरेंस गणराज्य ने फ्लोरेंटाइन दुल्हनों को दहेज प्रदान करने के लिए मोंटे डेले डॉटी नामक एक सार्वजनिक कोष बनाया ।

पुर्तगालीयो ने १६६१ ई में ब्रिटिश क्राउन को दहेज के रूप में भारत और मोरक्को में दो शहर दिए थे, जब इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रगेंज़ा से शादी की थी।

"रूस" में दहेज को 'पोसाग' या 'प्रिडानोई' के नाम से जाना जाता है। जहां मां की जिम्मेदारी सही रिश्ता ढूंढने की होती है जबकि पिता शादी का आर्थिक इंतजाम करते हैं। लोग इसे इसलिए भी अपनाने थे क्योंकि इस तरह से लड़की को आर्थिक रूप से मजबूती मिलती थी। वहीं इन मामलों में चर्च भी दखल नहीं देता था, क्योंकि घर का कंट्रोल भी महिलाओं के हाथ में रहता था। लड़की को दहेज मिलने पर भी वह उसके कंट्रोल में ही रहता था। रूस में भी दहेज के नाम पर लड़की के परिवारवाले उसे अच्छी रकम देते थे।

भारत में दहेज प्रथा के वर्तमान स्वरूप का विकास:-

रिसर्च स्कॉलर डॉ सौमी चैटर्जी ने वर्ष २०१८ में "इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ह्यूमैनिटी एंड सोशल साइंस इन्वेंशन में  प्रकाशित अपने लेख 'कॉन्सेप्ट एंड इवोल्यूशन ऑफ डाउरी' में बताया है कि "भारत में दहेज प्रथा का विकास भी अंग्रेजों के शासन के साथ ही हुआ है।"

भारत में ब्रिटिश के वायसराय श्री कॉर्नवालिस ने वर्ष १७९३ ई में जमीन के मालिकाना हक पर नया क़ानून लागू किया था, जिसे "परमानेंट सेटलमेंट एक्ट" कहते है, तभी भारत में जमींदारी प्रथा का आरम्भ हुआ। इस क़ानून  ने महिलाओं से किसी भी तरह की प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक रखने का अधिकार भी छीन लिया।

यह ऐसा समय था जब शादी के समय बेटी को मिलने वाली किसी भी तरह के तोहफे और संपत्ति पर महिला के बजाय उसके पति का स्वामित्व रहने लगा। विवाहिता के स्त्री धन पर पूरी तरह से पति का अधिकार रहता था।

भारत में दहेज की परिभाषा को एक बार फिर तोड़ा-मरोड़ा गया और तब विवाह के लिए नया विचार यह बना कि शादी के समय वधु पक्ष, वर पक्ष को अच्छा धन देगा।

प्राचीन समय में वधु पक्ष स्वइच्छा से वर दक्षिणा देता था, परन्तु अंग्रेजो के आने के पश्चात अब वर पक्ष ने इसे अधिकार के स्वरूप मांगना शुरू कर दिया। प्राचीन समय में वर दक्षिणा या स्त्री धन के रूप में वधु पक्ष कन्या के सुखी जीवन के आधार के रूप में स्वय अपनी इच्छा के अनुसार दान या उपहार देता था, परन्तु अंग्रेजो ने पुत्री का अपने पिता की सम्पत्ति में जो अधिकार था उसे छीनकर, वर द्वारा दहेज की माँग को आधार प्रदान कर दिया। अंग्रेजो के आने के पश्चात दहेज प्राप्त करना समाज में उच्चता का पैमाना बन गया।

यदि वर किसी सरकारी नौकरी में है तो उसके सरकारी पद (चपरासी, बाबू, पटवारी, मुंशी, अधिकारी, बड़ा अधिकारी, पुलिस अधिकारी, चिकित्सक, इंजिनियर, अधिवक्ता और न्यायधीश इत्यादि) उसके पिता उसकी बोली लगाने लगे। वर वधू की कुंडली मिलाने के साथ साथ वधु पक्ष कि आर्थिक स्थिति भी देखी जाने लगी और यही से लालच ने अपना पाँव पसारना शुरू कर दिया।

दुल्हन से इस तरह का धन पाने के लिए दबाव बनाया जाने लगा। उसे तरह-तरह की यातनाएं दी जाने लगी ताकि लड़की का परिवार डर के कारण बेटी को ज्यादा दहेज के साथ विदा करे। वायसराय कार्नवालिस के समय में लाए गए परमानेंट सेटलमेंट एक्ट से महिलाओं को जमीनी संपत्ति रखने का कानूनी अधिकार नहीं दिया गया। उस समय भी लोग दहेज प्रथा को अपनाते थे पर वो स्वैछिक् दान या उपहार तक सिमित था मगर कानूनी रूप बदलने के बाद धीरे-धीरे दान या उपहार की परिभाषा बदलती गई।

ब्रिटेन में दहेज प्रथा काफी समय से चली आ रही है। जब अंग्रेज भारत में आए तो उनकी दहेज वाली संस्कृति भी भारत में आ गई। इसलिए यह भी कहा जा सकता है भारत में दहेज प्रथा पर भी इसका कुछ असर जरूर पड़ा होगा। क्योंकि अंग्रेजो के आने से पहले भारत में दहेज प्रथा या स्त्री धन का जो उल्लेख है वह पूर्णतया भिन्न है।

यह बात कई इतिहासकारों की चर्चित किताबों में लिखी है।३०० ईसापूर्व में यूनानी लेखक मेगास्थनीज ने अपनी किताब 'इंडिका' में भी भारत की शादियों में दहेज प्रथा की बात कही थी। उन्होंने लिखा है कि भारत में लड़की को इस पैमाने पर नहीं चुना जाता है कि वह कितना दहेज लेकर आ रही है, बल्कि उसकी खूबसूरती और कला को ध्यान में रखकर रिश्ता किया जाता है। इस बात पर जोर नहीं दिया जाता है कि शादी में दहेज दिया जा रहा है या नहीं।

और मेरे वामपंथी मित्र जैसा कि मैं आपको पहले हि बता चुका हूँ इस तथ्य को कि मेगस्थनीज के भारत आने के १२०० वर्ष  के पश्चात सन १०३५ ईसवी में पर्शियन लेखक अल-बरूनी ने अपनी किताब 'चेप्टर ऑन मेट्रीमोनी इन इंडिया' में लिखा है कि भारत में शादी के समय कोई दहेज तय नहीं किया जाता। दूल्हा अपनी होने वाली पत्नी को शादी से पहले तोहफे देता है, जिसे वह वापस नहीं मांगते। अगर महिला को शादी नहीं करनी होती है तो वह तोहफा लौटा देती है।

मुस्लिम समाज में इसे 'जहेज़' के नाम से जाना जाता था। शादी के दौरान गहने, घर का सामान आदि दिया जाता था, जिसे बाद में बारात से बदल दिया गया। वहीं मुस्लिम समाज में शादी के समय 'मेहर' की रकम तय की जाती है। जिसे महिलाओं का सुरक्षित धन माना जाता है। तलाक होने पर मेहर का पैसा पति द्वारा पत्नी को दिया जाता है ताकि वह अपना जीवन गुजर कर सके। इसे भी लिखित रूप से दर्ज किया जाता है।

दहेज निषेध अधिनियम, १९६१ (Dowry Prohibition Act, १९६१):-जब दहेज के लोभ ने विभत्स रूप धारण कर लिया और स्त्रियां दहेज के लिए जलाई जाने लगी या किसी अन्य प्रकार से बड़ी निर्ममता से उनकी हत्या की जाने लगी तो, भारत सरकार ने इसे दहेज लेने और देने दोनों क्रियाओ को अपराध घोषित करते हुए दहेज निषेध अधिनियम, १९६१ (Dowry Prohibition Act, १९६१) को दिनांक २० मई १९६१ को  लागू कर दिया।

इस अधिनियम के अंतर्गत धारा  ३ के तहत दहेज लेना और देना दोनों अपराध है और १५ हजार तक के जुर्माने और ५ साल की सजा सुनाई जा सकती है। वहीं धारा ४ के अनुसार दहेज की मांग करने पर ६ महीने से २ वर्ष तक की सजा हो सकती हैं।

समय-समय पर इसमें संशोधन करके इस प्रथा पर कठोर नियंत्रण लाने की चेष्टा की गई। क्रिमिनल लॉ (द्वितीय संशोधन) अधिनियम १९८३ जो २५ सितम्बर, १९८३ को प्रभावी हुआ, के द्वारा- पति और उसके संबंधियों को सजा देने की

व्यवस्था की गई, जिन्हें स्त्री के साथ क्रूरता के व्यवहार का दोषी पाया गया।

वर्ष १९८४ में दहेज प्रतिषेध (वर-वधू को दिए गए उपहारों की सूची का रखरखाव) नियम १९८४ पारित करके उपहार के नाम पर दहेज लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने का प्रयास किया गया। पुनः वर्ष १९८६ ई में दहेज प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम, १९८६ द्वारा दहेज मृत्यु को परिभाषित करके उसके लिए कड़ी सजा की व्यवस्था की गई। दहेज मृत्यु कारित न करने का साक्ष्य अधिभार भी अभियुक्त पर रखे जाने का प्रावधान किया गया।दहेज प्रतिषेध अधिनियम में इसे गैर-जमानतीय एवं संज्ञेय आपरध माना गया है। इसी १९८६ के संशोधन के अंतर्गत नई धारा "४-क" जोड़ी गई जो विज्ञापन पर रोक लगाते हुए निम्न प्रावधान करती है:-

यदि कोई व्यक्ति-

( ए ) किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका, जर्नल में किसी विज्ञापन के माध्यम से या किसी अन्य मीडिया के माध्यम से, अपनी संपत्ति में किसी भी हिस्से या किसी भी धन या दोनों को अपने बेटे की शादी के लिए विचार के रूप में किसी भी व्यवसाय या अन्य हित में हिस्से के रूप में पेश करता है या बेटी या कोई रिश्तेदार,

( बी ) खंड ( ए ) में निर्दिष्ट किसी भी विज्ञापन को प्रिंट या प्रकाशित या प्रसारित करता है ;

वह कारावास से, जिसकी अवधि छह माह से कम नहीं होगी, किंतु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पंद्रह हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

बशर्ते कि न्यायालय निर्णय में दर्ज किए जाने वाले पर्याप्त और विशेष कारणों से छह महीने से कम अवधि के लिए कारावास की सजा दे सकता है।"।

भारतीय दंड संहिता में धारा ४९८अ है जिसके अंतर्गत प्रथम सुचना प्रतिवेदन (FIR) पंजिकृत होने पर  पति के अलावा अन्य परिवार वालों पर भी एक्शन लिया जाता है। दहेज की मांग से जुड़े मामले पर ३ वर्ष की सजा सुनाई जा सकती है। बता दें कि यह सेक्शन दहेज नहीं बल्कि किसी भी तरह की क्रूरता के लिए बनाया गया है। दहेज के मामलों पर भी संज्ञान लिया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त घरेलू हिंसा अधीनियम को भी लागू किया गया, स्त्रियों की सुरक्षा हेतु, अत: हे जनम से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी अब आप स्वय बताओ कि आखिर ये बुराई भारत में आयी कंहा से थी।

अब मेरे वामपंथी मित्र दहेज प्रथा की सच्चाई को सहन ना कर पाये और एक बार फिर पराजित और दुःखी ह्रदय से कुछ बुदबुदाते हुए चलें गए।

जय हिंद भारत माता की जय।

लेखन और संकलन: - नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

aryan_innag@yahoo.co.in

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मित्रों शांतिदूतो से पैसा मिलने पर पाकिस्तानी आतंकवादियों का भी केस लड़ने का हुनर रखने वाले सर्वोच्च न्यायालय के तथाकथित वकील ने अपने मस्तिष्क के पश्च भाग का सम्पूर्ण बल प्रयोग कर लिया अपनी समस्त ज

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अनपढ़ कौन:- प्रधानमंत्री या दिल्ली का मुख्यमंत्री।

30 मई 2023
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मित्रों आपने यादी ध्यान दिया होगा तो अबकारी (शराब) मंत्री श्री मनीष सिसोदिया के तुरूंगवासित होते हि,( वर्ष २०१६ के पश्चात )श्री अरविन्द केजरीवाल ने एक बार फिर हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दाम

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भगत सिंह कम्युनिस्ट नहीं थे।

30 मई 2023
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वामपंथी के साथ एक सनातनी का शास्त्रार्थ। मित्रों जैसा कि आप जानते हैँ कि  हमारे एक, जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी मित्र हैँ, जो सनातन धर्म की आलोचना करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। आज उन्होंन

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खुशबु सुंदर के पिता तो यौन शोषण कर सकते हैँ पर स्वाति मालीवाल के पिता कैसे?

30 मई 2023
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पितृन्नमस्येदिवि ये च मूर्त्ताः स्वधाभुजः काम्यफलाभिसन्धौ ॥ प्रदानशक्ताः सकलेप्सितानां विमुक्तिदा येऽनभिसंहितेषु ॥ अर्थात :-मैं अपने पिता को नमन करता हूँ जो सभी देवताओं का प्रत्यक्ष रूप हैं,

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हिन्दू जातिवाद :- संविधान बनाम मनुस्मृति |

30 मई 2023
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मित्रों विधर्मियों और कुपढो ने सर्वप्रथम सनातन धर्म के जिस पुस्तक पर अपनी ओछी दृष्टि डाली उसे हम मनुस्मृति के नाम से जानते हैं | मनुस्मृति सम्पूर्ण मनवा सभ्यता को सुसंकृत और सुशिक्षित बनाने के लिए

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क्या आपने कभी सुना है कि, प्यार और युद्ध में सबकुछ उचित है"!

30 मई 2023
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मित्रों कलयुग में अनेक घटनाये ऐसी घटित होती हैं, जिनसे मानवता और संस्कृति शर्मशार हो उठती है। कुछ उदाहरण देख लें: - १:-क्षणिक आकर्षण के मोहपाश में बंधकर एक बेटी ने अपने पिता कि पगड़ी उछाल कर अपने प्रे

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बापे पूत परापत घोड़ा बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा। अतिक अहमद और असद अहमद।

6 जून 2023
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हर आदमी और जानवर में अपने बाप की मिज़ाजी ख़ुसूसीयात पाई जाती है, अपनी नसल का असर ज़रूर आता है, तुख़्म की तासीर फ़ित्री होती है। जी हाँ मित्रों  आज भारत के सबसे खूंखार आतंकी अतिक अहमद और उसके पुत्र असद

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वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की :- एक मसखरा जो अपने अहंकार के कारण यूक्रेन के लिए बना शॉप |

6 जून 2023
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जी हाँ मित्रों यदि राजा देश और देश की प्रजा से अधिक स्वयं के अहंकार को महत्व देता है तो वह  देश पाकिस्तान या फिर यूक्रेन जैसी भयानक परिस्थितियों का शिकार हो जाता है | यूक्रेन में २०१९ से पूर्व एक संजी

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स्वास्थ्य, शराब, शिक्षा और सिसोदिया।

6 जून 2023
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मित्रों आज हम इस लेख में कट्टर ईमानदार और क्रांतिकारी शिक्षा मंत्री आदरणीय श्री मनीष सिसोदिया जी के विषय में चर्चा और परिचर्चा करेंगे। मित्रों शिक्षा के विषय में हमारे शास्त्र कहते हैँ:- विद्य

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एक सनातनी का एक वामपंथी तर्कवादी के साथ शास्त्रार्थ भाग-१० " चार्ल्स डार्विन और दशावतार"।

6 जून 2023
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हे मित्रों जैसा की आप जानते हैं की हमारे  एक जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र हैं और उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये है कि वो सनातन धर्म के धुर विरोधी हैं और सनातन धर्म को निचा दिखने का कोई अवसर

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एक नेता जिसने किया कुछ भी नहीं पर पाया सब कुछ!

6 जून 2023
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हे मित्रों आप सोच रहे होंगे कि मैं ये क्या कह रहा रहूँ या किस नेता के बारे में बात कर रहा हूँ? आइये ये लेख जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा आपको अपने आप उस नेता का चेहरा दिखलाई देना शुरू कर देगा। जी हाँ

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एक सनातनी का वामपंथी से शस्त्रार्थ्-६ प्रसंग:- गुरु द्रोण - एकलव्य और गुरु दक्षिणा।

6 जून 2023
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हे मित्रों कैसे हैं आप लोग, आप तो जानते हैं कि हमारे एक मित्र हैं जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हैं। आज एक बार पुन: मेरे आवास पर आ बिराजे और वामपन्थ के एक और झूठ को हथियार बना मुझसे शास्रा

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मनुस्मृति को बदनाम और अपमानित क्यों किया?

6 जून 2023
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हे मित्रों, कार्ल मार्क्स के उलूल जुलूल और आधारहीन सिद्धांतो के अँधेरी और भयावह दुनिया में फांसकर कई व्यक्तियों ने ना केवल अपना सम्पूर्ण जीवन नष्ट कर दिया अपितु करोड़ो लोगों कि हत्या भी उन्होंने कर

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हमारा देश "धर्म निरपेक्ष" है या "पंथ निरपेक्ष"। एक सनातनी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023
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हे मित्रों, नमस्कार जैसा कि आप जानते हैं कि सनातन धर्म का विरोध करने वाले तथा जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे एक मित्र हैं,  और अक्सर हमारे जैसे सनातनी के साथ वो शास्त्रार्थ के लिए आते रहत

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वामपन्थियों का जीता जगता झूठ:- "लाल कोट शाहजंहा नामक किसी मुग़ल ने बनवाया। हा हा हा"

6 जून 2023
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हे मित्रों वामपंथी और मुसलिम इतिहासकारो ने अपने झूठ बोलने और लिखने कि कला का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया और झूठ को बार बार लिखकर बोलकर उसे सच साबित करने का प्रयास किया। पर मित्रों या जितने तथाकथि

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Bhar OS भारत का अपना ओपरेटिंग सिस्टम।

6 जून 2023
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हे मित्रों आत्मनिर्भर भारत कि दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए हमारे देश ने अपना एक ओपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है, जो अतिशीघ्र Android और IOS को टक्कर देने और बाजार में उनके एकाधिकार को

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अंग्रेजी वैज्ञानिक सर आईजैक न्यूटन के संदर्भ में एक सनातनी और वामपंथी के मध्य शास्त्रार्थ भाग-९

6 जून 2023
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मित्रों जैसा कि आप जानते हि हैं कि हमारे एक मित्र हैं जो जनम से ब्राह्मण है पर कर्म से वामपंथी है। अब वामपंथी लोगों का कर्म कैसा होता है, ये बताने की अवश्यक्ता नहीं है। मित्रों वामपंथी मित्र हमारे

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दहेज प्रथा। वामपंथी और सनातन धर्मी में शास्त्रार्थ भाग्-६

6 जून 2023
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मित्रों मेरा और मेरे वामपंथी मित्र (जो जनम से ब्राह्मण और कर्म से पूरे वामपंथी हैं) के मध्य शास्त्रार्थ तो चलता हि रहता है।  मेरे वामपंथी मित्र बुराइयाँ ढूंढ ढूंढ कर लाते हैं पर जब उसका उदगम उन्हीं

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सतीप्रथा सनातन धर्मी और वामपन्थी में शास्त्रार्थ भाग्-५

6 जून 2023
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मित्रों एक बार पुन: जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथ अनुगामी मेरे मित्र मार्ग में मुझे देखते ही मेरे साथ हो लिए  कुशलक्षेम का आदान प्रदान करने के पश्चात तुरंत अपने मुख्य उद्देश्य " सनातन धर्म की अ

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निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाये। बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करत सुभाय।।"

6 जून 2023
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हे मित्रों जब महाकवि कबीरदास जी ने उक्त दोहे की रचना कि थी, तब निंदा करने वाले व्यक्ति भी कुछ मर्यादा के साथ गुण और अवगुण पर विचार कर निंदा या आलोचना करते थे। उस वक़्त के म्लेच्छ वर्ग को छोड़ दिया जाए

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मनुस्मृति में नारी का स्थान! सनातन धर्मी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ भाग्-४

6 जून 2023
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मित्रों जैसा कि आप अब तक हमारे वामपंथी मित्र को जान चुके होंगे, जो कि जन्म से तो ब्राह्मण है, परन्तु कर्म से  वामपंथी हैं ।उन्हें एक बार पुन: सनातन धर्म में बुराई दिखाने कि महत्वकान्छा और उनकी प्रवृ

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सनातन धर्म और विज्ञान। एक सनातन धर्मी का वामपन्थि के मध्य शास्त्रार्थ -८(क)

6 जून 2023
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हे मित्रों मेरे मित्र के विष्य में तो आप जानते हि होंगे, जी हाँ वहीं मित्र जो जनम से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी और धुर सनातन विरोधी हैं। वो सदैव कि भांति एक बार पुन: मेरे घर आ धमके और शास्त्रार्थ

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सनातन धर्म और विज्ञान एक सनातनी और वामपंथी के मध्य शस्त्रार्थ्- ८(ख)

6 जून 2023
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मित्रों पिछले अंक में आपने देखा था कि जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे मित्र ने सनातन धर्मीयो को अनपढ़, अंधविश्वासी, कर्मकांडी और विज्ञान से परे बताते हुए जबरदस्त आलोचना कि थी। उन्होंने सनात

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सनातन धर्म और विज्ञान सनातन धर्मी और वामपन्थ के मध्य शास्त्रार्थ भाग-८(ग)

6 जून 2023
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हे मित्रों, जब हमारे जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र तुलसी के पौधे और नीम के वृक्ष में सनातन धर्मीयों के आस्था का मजाक उड़ाने में जब असफल हो गए तो एक दिन फिर हमारे घर पर उपस्थित हुए और इस ब

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सत्य की जीत:- श्री एकनाथ शिंदे।

6 जून 2023
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जी हाँ मित्रों, दिनांक १९जुन १९६६ को जब स्व. बाळासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना का गठन हुआ, तो इसके पीछे केवल २ उद्देश्य थे, जिसमें से एक था भूमिपूत्रों का विकास और दूसरा था हिंदुत्व की अवधारणा।

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सनातनी और वामपंथी के मध्य मनुस्मृति को लेकर शास्त्रार्थ। भाग्-१

6 जून 2023
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मित्रों मैं एक सनातनी हूँ कल अंग्रेजी वर्ष २०२२ का अंतिम दिन था और अचानक मार्क्स को अपना पिता, लेनिन को अपना मार्गदर्शक और माओ को अपना सगा मानकर उनका गुणगान करने वाला एक वामपंथी मित्र मुझसे टकरा गये

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हिंदू नूतनवर्ष:- वामपंथी और सनातन धर्मी के मध्य शास्त्रार्थ भाग-२

6 जून 2023
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मित्रों मैं सनातन धर्मी हूँ और मेरे एक मित्र हैं जो केवल जनम से ब्राह्मण हैं और कर्म से वामपंथी हैं,  अंग्रेजी मान्यता के अनुसार नए वर्ष के आगमन पर मुझसे पुन:  शास्त्रार्थ की अभिलाषा से आ टपके और आत

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श्रीरामचरितमानस: - सनातन धर्मी और वामपंथी के मध्य शास्त्रार्थ भाग्-३

6 जून 2023
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मित्रों आज मेरे मित्र जो जनम से तो ब्राह्मण हैं परन्तु कर्म से महा वामपंथी, आज अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लेकर आए और अपने सिकुड़ चुके छाती को फुलाने का असफल प्रयास करते हुए मुझे ललकारा कि अब बोलो बड़

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पीसा कि मीनार विश्व धरोहर पर रत्नेश्वर मंदिर का कोई स्थान नहीं।

7 जून 2023
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मित्रों हमारे शास्त्रों ने हमें शिक्षित करते हुए बताया है कि:- न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्। विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत्।। अर्थात जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी

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परम बलिदानी बच्चे :- कोटी कोटी नमन।

7 जून 2023
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🌹🌸🌻🌼🙏 शुभप्रभात 🙏🌹🌸🌻🌼 दो बच्चे निर्भीकता से उस स्थान पर अपने तेज और शौर्य का प्रकाश फैलाये खड़े थे।उनको चारों ओर से म्लेच्छ प्रजाति के भयानक और डरवाने लोगों ने घेर रखा था। वे सैकड़ो कि संख्या

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हाँ तुम सावरकर कभी नहीं हो सकते क्योंकि:- "सावरकर बनने के लिए"

7 जून 2023
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१:- भोगी नहीं योगी बनना पड़ेगा; २:+ राष्ट्रद्रोही नहीं राष्ट्रवादी बनना पड़ेगा; ३:- अंधकार नहीं प्रकाश फैलाना पड़ेगा; ४:-अधर्म के साथ नहीं धर्म के साथ खड़ा रहना पड़ेगा; ५:+ असत्य या झूठ नहीं सत्य क

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भारत और विश्व कि अर्थव्यवस्था।

7 जून 2023
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हे मित्रों, ईश्वर की असीम अनुकम्पा है हम भारतीयों के ऊपर कि हमने सही समय पर सही निर्णय लिया और किसी के बहकावे में ना आकर हम अपने निर्णय पर अडिग रहे। आइये हम एक विश्लेषण करते हैं कि, हमारा निर्णय

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जार्ज सोरोस, कांग्रेस और इनके पालतू भारत विद्रोही।

7 जून 2023
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मित्रों शीर्षक से हि आपको लेख के तथ्यों के विषय में आभाष हो गया होगा, आइये देखते हैँ की किस प्रकार जार्ज सोरोस और कांग्रेस तथा उनके पालतू भारत विद्रोही, भारत की बढ़ रही वैश्विक साख और विश्वसनीयता क

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कौन सा पठान?

8 जून 2023
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मित्रों हमारे बॉलीवुड को घटिया, अश्लील और् अतिहिन्सक बनाकर उसे हम सनातन धर्मीयों की दृष्टि से पूर्णतया गिरा देने वालो में से एक शाहरुख़ खान, एक "पठान" नामक चलचित्र लेकर आ रहा है, सुना है ये चलचित्र प

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