NASA द्वारा प्राप्त किया गया चित्र, तनिक ध्यान से देखें।NASA द्वारा प्राप्त किया गया चित्र, तनिक ध्यान से देखें।
जी हाँ कई आसमानी किताबों में आपको निम्नलिखित बाते मिल जाएंगी जैसे:-जी हाँ कई आसमानी किताबों में आपको निम्नलिखित बाते मिल जाएंगी जैसे:-
१:- धरती चपाती की तरह चपटी है; २:- सूरज धरती के चक्कर लगाता है; ३:-सूरज एक कीचड़ भरे तालाब में जाकर गिर जाता है; ४:- पुरी दुनिया ६ दिनों में बनी और ईश्वर ने ७ वे दिन आराम किया; ५:- मिट्टी से पहला पुरुष बनाया और फिर उसके कूल्हे की हड्डी से औरत बनाया तथा ६:- धरती उड़ ना जाये इसके लिए बड़े बड़े पहाड़ और समुद्र से इसको स्थिर कर दिया इत्यादि।
पर सच तो मित्रों केवल १६१०८ ऋचाओ में हि सम्मिलित है, जिन्हें चार वेदों में बाँटा गया है। १:- ऋग्वेद , २:- यजुर्वेद ३:- अथर्ववेद और ४:- सामवेद ।पर सच तो मित्रों केवल १६१०८ ऋचाओ में हि सम्मिलित है, जिन्हें चार वेदों में बाँटा गया है। १:- ऋग्वेद , २:- यजुर्वेद ३:- अथर्ववेद और ४:- सामवेद ।
मित्रों वेदों को छोड़ दिया जाए तो इस दुनिया में जितनी भी किताबे हैँ, उनका कोई ना कोई लेखक अवश्य रहा है फिर वो चाहे मजहबी हों, या समाजिक हों, या राजनितिक हों, या आर्थिक हों या फिर ऐतिहासिक हों।मित्रों वेदों को छोड़ दिया जाए तो इस दुनिया में जितनी भी किताबे हैँ, उनका कोई ना कोई लेखक अवश्य रहा है फिर वो चाहे मजहबी हों, या समाजिक हों, या राजनितिक हों, या आर्थिक हों या फिर ऐतिहासिक हों।
धारयति इति धर्म: अर्थात जो धारण करना है, वो धर्म हैँ।धारयति इति धर्म: अर्थात जो धारण करना है, वो धर्म हैँ।
अब प्रश्न ये है मित्रों की मनुष्य के लिए धारण की जा सकने वाली कौन सी वस्तु, गुण या वातावरण है, और यंहा पर धारण किये जाने से क्या तात्पर्य है?
मित्रों जंहा पर धर्म की बात आती है वंहा कर्म का विधान अपने आप प्रस्तुत हो जाता है। अत: यंहा पर धारण करने से सीधा और स्पष्ट अर्थ है अपने कर्म या कर्तव्य को धारण करना।मित्रों जंहा पर धर्म की बात आती है वंहा कर्म का विधान अपने आप प्रस्तुत हो जाता है। अत: यंहा पर धारण करने से सीधा और स्पष्ट अर्थ है अपने कर्म या कर्तव्य को धारण करना।
अब मित्रों यदि हम "प्रकृति के धर्म" की चर्चा करें तो अवश्य हमें अनुभव होगा प्रकृति के व्यवहार के विषय में अर्थात जीवन किसी भी प्रकार का हो (जैसे जीवाणु, विषाणु, किट पतंगे, जलचर, स्थलचर, नभचर या उभयचर इत्यादि ) प्रकृति सभी को अपना जीवन यापन करने का बराबर अवसर प्रदान करती है, सभी के साथ उसका प्रेम, क्षमा, दया, करुणा, स्नेह और ज्ञान का संबंध होता है। प्रकृति कभी भी भेदभाव नहीं करती। प्रकृति इन्हीं गुणों को धारण कर सभी जीवों (जिसमें पेड़ पौधे भी सम्मिलित हैँ) के प्रति सत गुण, रजो गुण और तमो गुण के आधार पर अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने धर्म का निर्वाह करती है।अब मित्रों यदि हम "प्रकृति के धर्म" की चर्चा करें तो अवश्य हमें अनुभव होगा प्रकृति के व्यवहार के विषय में अर्थात जीवन किसी भी प्रकार का हो (जैसे जीवाणु, विषाणु, किट पतंगे, जलचर, स्थलचर, नभचर या उभयचर इत्यादि ) प्रकृति सभी को अपना जीवन यापन करने का बराबर अवसर प्रदान करती है, सभी के साथ उसका प्रेम, क्षमा, दया, करुणा, स्नेह और ज्ञान का संबंध होता है। प्रकृति कभी भी भेदभाव नहीं करती। प्रकृति इन्हीं गुणों को धारण कर सभी जीवों (जिसमें पेड़ पौधे भी सम्मिलित हैँ) के प्रति सत गुण, रजो गुण और तमो गुण के आधार पर अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने धर्म का निर्वाह करती है।
उसी प्रकार मनुष्य के लिए भी धारण करने का अर्थ है "सत्य, क्षमा, विद्या, दान, दया और प्रेम रूपी गुणों को धारण कर अपने कर्तव्यों का पालन करना। उसी प्रकार मनुष्य के लिए भी धारण करने का अर्थ है "सत्य, क्षमा, विद्या, दान, दया और प्रेम रूपी गुणों को धारण कर अपने कर्तव्यों का पालन करना।
अब यदि हम पुन: इसका विश्लेषण करें तो पायेंगे की हमारा शरीर तिन भागों में विभक्त है, जिसमें प्रथम है:- भौतिक शरीर, दूसरा है:- एंटी बॉडी (अर्थात प्रतिरोधी क्षमता) और तीसरा है :- आत्मा। अब प्रश्न ये है कि, भौतिक शरीर हि केवल दृष्टिगोचित होता है, परन्तु एंटी बॉडी और आत्मा दिखाई नहीं देते, तो फिर ये धारण करने में संतुलन कैसे स्थापित होता है या होना चाहिए।अब यदि हम पुन: इसका विश्लेषण करें तो पायेंगे की हमारा शरीर तिन भागों में विभक्त है, जिसमें प्रथम है:- भौतिक शरीर, दूसरा है:- एंटी बॉडी (अर्थात प्रतिरोधी क्षमता) और तीसरा है :- आत्मा। अब प्रश्न ये है कि, भौतिक शरीर हि केवल दृष्टिगोचित होता है, परन्तु एंटी बॉडी और आत्मा दिखाई नहीं देते, तो फिर ये धारण करने में संतुलन कैसे स्थापित होता है या होना चाहिए।
मित्रों इसका भी उत्तर हमारे वेदों और अन्य धार्मिक पवित्र पुस्तकों में दिया गया है। मित्रों आत्मा क्या धारण कर सकती है? जो स्वयं मात्र एक ऊर्जा के समान अदृश्य होती है, वो क्या धारण कर सकती है अर्थात इसका क्या धर्म हो सकता है। इसका उत्तर है " परमात्मा" अर्थात आत्मा अपने अनन्य भक्ति से केवल परमात्मा को धारण कर भौतिक शरीर और एंटी बॉडी के साथ मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। परमात्मा को धारण करने का अर्थ है, उनकी निस्वार्थ और कामना रहित भक्ति, इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को अमूल्य ज्ञानामृत कराते हुए कहते हैँ, "भगवद गीता अध्याय २ श्लोक १९:-मित्रों इसका भी उत्तर हमारे वेदों और अन्य धार्मिक पवित्र पुस्तकों में दिया गया है। मित्रों आत्मा क्या धारण कर सकती है? जो स्वयं मात्र एक ऊर्जा के समान अदृश्य होती है, वो क्या धारण कर सकती है अर्थात इसका क्या धर्म हो सकता है। इसका उत्तर है " परमात्मा" अर्थात आत्मा अपने अनन्य भक्ति से केवल परमात्मा को धारण कर भौतिक शरीर और एंटी बॉडी के साथ मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। परमात्मा को धारण करने का अर्थ है, उनकी निस्वार्थ और कामना रहित भक्ति, इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को अमूल्य ज्ञानामृत कराते हुए कहते हैँ, "भगवद गीता अध्याय २ श्लोक १९:-
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥
भावार्थ : जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी द्वारा मारा जाता है॥ावार्थ : जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी द्वारा मारा जाता है॥
इसी प्रकार मित्रों इस भौतिक शरीर का धर्म क्या है? ये शरीर क्या धारण कर सकता है, तो इस प्रश्न का उत्तर है "माया"। अर्थात इस संसार में केवल तिन तत्व हैँ " परमात्मा", "आत्मा" और "माया"! आत्मा तो परमात्मा का हि एक अंश मात्र है इसीलिए उसका धर्म परमात्मा की प्राप्ति है। पर " माया" तो परमात्मा की लीला अर्थात क्रियाकलाप है जो विभिन्न जीवों में विभिन्न रूप से उनके पारिस्थितिक तंत्र के अंतर्गत उत्पन्न और लुप्त होते हैँ। ये माया प्रकृति के आठ प्रकारों से जैसे जल, वायु, अग्नि, आकाश, धरा, बुद्धि, अहंकार और मन। और पंचभूतों से बना यह नश्वर भौतिक शरीर माया के पांच प्रकारों से बना है पर धारण करता है आठो प्रकारों को और यही इसका धर्म है।इसी प्रकार मित्रों इस भौतिक शरीर का धर्म क्या है? ये शरीर क्या धारण कर सकता है, तो इस प्रश्न का उत्तर है "माया"। अर्थात इस संसार में केवल तिन तत्व हैँ " परमात्मा", "आत्मा" और "माया"! आत्मा तो परमात्मा का हि एक अंश मात्र है इसीलिए उसका धर्म परमात्मा की प्राप्ति है। पर " माया" तो परमात्मा की लीला अर्थात क्रियाकलाप है जो विभिन्न जीवों में विभिन्न रूप से उनके पारिस्थितिक तंत्र के अंतर्गत उत्पन्न और लुप्त होते हैँ। ये माया प्रकृति के आठ प्रकारों से जैसे जल, वायु, अग्नि, आकाश, धरा, बुद्धि, अहंकार और मन। और पंचभूतों से बना यह नश्वर भौतिक शरीर माया के पांच प्रकारों से बना है पर धारण करता है आठो प्रकारों को और यही इसका धर्म है।
भगवद गीता अध्याय २ श्लोक २४भगवद गीता अध्याय २ श्लोक २४
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥
भावार्थ : क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है॥ावार्थ : क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है॥
मित्रों किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा धर्म को अपने बुद्धि, अहंकार, ज्ञान और मन से व्याख्यित कर ईश्वर को प्राप्त करने का जो मार्ग या पथ बताया जाता है, वो पंथ या मजहब कहलाता है, जैसे:- मूसा के द्वारा "यहूदी पंथ", इसा के द्वारा "ईसाई पंथ" और मोहम्मद के द्वारा "इस्लाम" मजहब या पंथ।मित्रों किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा धर्म को अपने बुद्धि, अहंकार, ज्ञान और मन से व्याख्यित कर ईश्वर को प्राप्त करने का जो मार्ग या पथ बताया जाता है, वो पंथ या मजहब कहलाता है, जैसे:- मूसा के द्वारा "यहूदी पंथ", इसा के द्वारा "ईसाई पंथ" और मोहम्मद के द्वारा "इस्लाम" मजहब या पंथ।
तो इस प्रकार मित्रों सनातन हि एक मात्र धर्म है, जो प्रकृति के साथ हि उत्पन्न हुआ है। हम सनातनी मुख्यत: परमपिता ब्रह्मा, परमेश्वर विष्णु और देवादिदेव महादेव की परमात्मा के रूप में उपासना करते हैँ। जिसमें ब्रह्म देव (सतगुण विज्ञान के अनुसार Newtron) को सृष्टि की रचना करने वाला, परमेश्वर विष्णु (रजोगुण विज्ञान की दृष्टि से Proton ) को सृष्टि का पालनहार और महादेव (तमों गुण विज्ञान कि दृष्टि से Electron ) को सृष्टि का संहार करने वाला माना जाता है।तो इस प्रकार मित्रों सनातन हि एक मात्र धर्म है, जो प्रकृति के साथ हि उत्पन्न हुआ है। हम सनातनी मुख्यत: परमपिता ब्रह्मा, परमेश्वर विष्णु और देवादिदेव महादेव की परमात्मा के रूप में उपासना करते हैँ। जिसमें ब्रह्म देव (सतगुण विज्ञान के अनुसार Newtron) को सृष्टि की रचना करने वाला, परमेश्वर विष्णु (रजोगुण विज्ञान की दृष्टि से Proton ) को सृष्टि का पालनहार और महादेव (तमों गुण विज्ञान कि दृष्टि से Electron ) को सृष्टि का संहार करने वाला माना जाता है।
अब मित्रों भगवान विष्णु सभी जीवों के पालनहार हैँ और जिस प्रकार भगवत गीता के अध्याय ८ श्लोक ४ में कहते हैँअब मित्रों भगवान विष्णु सभी जीवों के पालनहार हैँ और जिस प्रकार भगवत गीता के अध्याय ८ श्लोक ४ में कहते हैँ
अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम् ।अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम् ।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥
भावार्थ : उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है) अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ॥ावार्थ : उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है) अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ॥
इससे स्पष्ट है कि कण कण में भगवान का जो अध्यात्मिक सिद्धांत हमारे शास्त्रों ने हमे बताया है उसे विश्व अब स्वीकार करने लगा है।इससे स्पष्ट है कि कण कण में भगवान का जो अध्यात्मिक सिद्धांत हमारे शास्त्रों ने हमे बताया है उसे विश्व अब स्वीकार करने लगा है।
अब शास्त्रों को देखे तो गौड़ीय वैष्णववाद (जिसे चैतन्य वैष्णववाद के नाम से भी जाना जाता है) के "सात्वत तंत्र" में परमेश्वर विष्णु के तीन अलग-अलग रूपों का वर्णन किया गया है जैसे: महा विष्णु, इन्हें कारणोंदकशायी विष्णु के नाम से भी जानते हैँ। यही विष्णु संसार रूपी वृक्ष का बिजारोपण करते हैँ। पंचभूत (जल, आकाश, भूमि, अग्नि और वायु), मन, महत, अहंकार, आकाश, अवकाश और प्रकृति इत्यादि इन्हीं की माया के स्वरूप हैँ।अब शास्त्रों को देखे तो गौड़ीय वैष्णववाद (जिसे चैतन्य वैष्णववाद के नाम से भी जाना जाता है) के "सात्वत तंत्र" में परमेश्वर विष्णु के तीन अलग-अलग रूपों का वर्णन किया गया है जैसे: महा विष्णु, इन्हें कारणोंदकशायी विष्णु के नाम से भी जानते हैँ। यही विष्णु संसार रूपी वृक्ष का बिजारोपण करते हैँ। पंचभूत (जल, आकाश, भूमि, अग्नि और वायु), मन, महत, अहंकार, आकाश, अवकाश और प्रकृति इत्यादि इन्हीं की माया के स्वरूप हैँ।
महामाया द्वारा रचित समस्त ब्रह्माण्ड की आत्मा के रूप मे यह एक हजार नेत्र और एक हजार भुजाओं के साथ विराजमान होते है । ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में इसका ही विस्तार है ।महामाया द्वारा रचित समस्त ब्रह्माण्ड की आत्मा के रूप मे यह एक हजार नेत्र और एक हजार भुजाओं के साथ विराजमान होते है । ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में इसका ही विस्तार है ।
२:-गर्भोदकशायी विष्णु उन सभी महा माया द्वारा रचित ब्रह्मांडो मे गर्भोदकशायी विष्णु के रूप मे प्रवेश करते हैं । हर एक ब्रह्मांड मे एक गर्भोदकशायी विष्णु । यह गर्भोदकशायी विष्णु अलग-अलग महा माया द्वारा रचित ब्रह्मांडो की आत्माओं की आत्मा है । इन्ही की नाभिकमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति होती है । विष्णु के इसी स्वरूप की कल्पना चातुर्मास या देवशयन काल के नाम से विख्यात है।२:-गर्भोदकशायी विष्णु उन सभी महा माया द्वारा रचित ब्रह्मांडो मे गर्भोदकशायी विष्णु के रूप मे प्रवेश करते हैं । हर एक ब्रह्मांड मे एक गर्भोदकशायी विष्णु । यह गर्भोदकशायी विष्णु अलग-अलग महा माया द्वारा रचित ब्रह्मांडो की आत्माओं की आत्मा है । इन्ही की नाभिकमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति होती है । विष्णु के इसी स्वरूप की कल्पना चातुर्मास या देवशयन काल के नाम से विख्यात है।
३:-क्षीरोदकशायी विष्णु, विष्णु प्रत्येक ब्रह्मांड में जीवित शरीरों मे क्षीरोदकशायी विष्णु के रूप में बसते है, अर्थात प्रत्येक जीवात्मा (जिसमें पेड़ पौधे भी सम्मिलित हैँ) इन्हीं का अंश होती है। इसीलिए सनातन धर्म में यह अध्यात्मिक सिद्धांत स्थापित है कि "कण कण में भगवान होते हैँ" और इसीलिए हम सनातनी समस्त जीवों की उपासना करते हैँ। श्री हरी विष्णु, जिनके पास देवता मदद मांगने जाते है या जिन्हे हम परमात्मा कहते है वह क्षीरोदकशायी विष्णु ही है । ३:-क्षीरोदकशायी विष्णु, विष्णु प्रत्येक ब्रह्मांड में जीवित शरीरों मे क्षीरोदकशायी विष्णु के रूप में बसते है, अर्थात प्रत्येक जीवात्मा (जिसमें पेड़ पौधे भी सम्मिलित हैँ) इन्हीं का अंश होती है। इसीलिए सनातन धर्म में यह अध्यात्मिक सिद्धांत स्थापित है कि "कण कण में भगवान होते हैँ" और इसीलिए हम सनातनी समस्त जीवों की उपासना करते हैँ। श्री हरी विष्णु, जिनके पास देवता मदद मांगने जाते है या जिन्हे हम परमात्मा कहते है वह क्षीरोदकशायी विष्णु ही है ।
भगवद गीता अध्याय १५ श्लोक ७भगवद गीता अध्याय १५ श्लोक ७
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।
मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥
भावार्थ : इस देह में यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है (जैसे विभागरहित स्थित हुआ भी महाकाश घटों में पृथक-पृथक की भाँति प्रतीत होता है, वैसे ही सब भूतों में एकीरूप से स्थित हुआ भी परमात्मा पृथक-पृथक की भाँति प्रतीत होता है, इसी से देह में स्थित जीवात्मा को भगवान ने अपना 'सनातन अंश' कहा है) और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षित करता है॥ावार्थ : इस देह में यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है (जैसे विभागरहित स्थित हुआ भी महाकाश घटों में पृथक-पृथक की भाँति प्रतीत होता है, वैसे ही सब भूतों में एकीरूप से स्थित हुआ भी परमात्मा पृथक-पृथक की भाँति प्रतीत होता है, इसी से देह में स्थित जीवात्मा को भगवान ने अपना 'सनातन अंश' कहा है) और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षित करता है॥
अब मित्रों प्रश्न ये है कि हम भगवान विष्णु के इन स्वरूपों के बारे में चर्चा और परिचर्चा क्यों कर रहे हैँ? तो मित्रों इसकी पृष्ठभूमि में अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान के द्वारा जारी किया गया एक चित्र है, जिसे उनके हबल टेलीस्कोप ने खिंचा है। अब मित्रों प्रश्न ये है कि हम भगवान विष्णु के इन स्वरूपों के बारे में चर्चा और परिचर्चा क्यों कर रहे हैँ? तो मित्रों इसकी पृष्ठभूमि में अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान के द्वारा जारी किया गया एक चित्र है, जिसे उनके हबल टेलीस्कोप ने खिंचा है।
NASA ने इसे "मिस्टिक माउंटेन" का नाम दिया है। यह आकृति पृथ्वी से लगभग ७५०० प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। जैसा की आप जानते हैँ कि एक प्रकाश वर्ष लगभग "९.४६१ × १० की घात १२ किलोमीटर" के बराबर होता है। विज्ञान की भाषा में यह एक कैरीना नेबूला है, पर इसकी तस्वीर ने सम्पूर्ण विश्व को हैरत में डाल दिया है।NASA ने इसे "मिस्टिक माउंटेन" का नाम दिया है। यह आकृति पृथ्वी से लगभग ७५०० प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। जैसा की आप जानते हैँ कि एक प्रकाश वर्ष लगभग "९.४६१ × १० की घात १२ किलोमीटर" के बराबर होता है। विज्ञान की भाषा में यह एक कैरीना नेबूला है, पर इसकी तस्वीर ने सम्पूर्ण विश्व को हैरत में डाल दिया है।
NASA का यह मिस्टिक माउंटेन का चित्र पूर्णतया वेदों के द्वारा प्रस्तुत किये गये गर्भोदकशायी महा विष्णु के चित्र के समानांतर है। यहां अलग अलग दो चित्र इसकी स्पष्टता के लिए दिखाए जा रहे हैं । इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वेदों में वर्णित खगोल विज्ञान आदि विषय कितना सच्चाई से भरा पड़ा है।NASA का यह मिस्टिक माउंटेन का चित्र पूर्णतया वेदों के द्वारा प्रस्तुत किये गये गर्भोदकशायी महा विष्णु के चित्र के समानांतर है। यहां अलग अलग दो चित्र इसकी स्पष्टता के लिए दिखाए जा रहे हैं । इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वेदों में वर्णित खगोल विज्ञान आदि विषय कितना सच्चाई से भरा पड़ा है।
सम्पूर्ण विश्व इस तथ्य को स्वीकार करता है कि दुनिया की सबसे प्राचीन पुस्तक वेद हि हैँ। इन्हीं वेदों ने खगोल विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, समाज शास्त्र, राजनितिक शास्त्र, अध्यात्म, गणित, ज्यामितीय, वनस्पति शास्त्र, सान्ख्यिकी, धर्मशास्त्र, कर्मशास्त्र, मनोविज्ञान, ज्योतिष शास्त्र तथा शैल्य क्रिया शास्त्र इत्यादि का सृजन अर्थात सूत्रपात किया, जिसे पहले अरबियों, चिनियों ने तथा बाद में अंग्रेजों ने नकल करके अपने यंहा प्रचारित और प्रसारित किया।सम्पूर्ण विश्व इस तथ्य को स्वीकार करता है कि दुनिया की सबसे प्राचीन पुस्तक वेद हि हैँ। इन्हीं वेदों ने खगोल विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, समाज शास्त्र, राजनितिक शास्त्र, अध्यात्म, गणित, ज्यामितीय, वनस्पति शास्त्र, सान्ख्यिकी, धर्मशास्त्र, कर्मशास्त्र, मनोविज्ञान, ज्योतिष शास्त्र तथा शैल्य क्रिया शास्त्र इत्यादि का सृजन अर्थात सूत्रपात किया, जिसे पहले अरबियों, चिनियों ने तथा बाद में अंग्रेजों ने नकल करके अपने यंहा प्रचारित और प्रसारित किया।
पर सच तो सच है, जो है बस सनातन धर्म का है।पर सच तो सच है, जो है बस सनातन धर्म का है।
लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in