मित्रों जब "The Kerala Story" में वो कन्वर्ट मुस्लिम लड़की पूछती है यह प्रश्न तो हिन्दु लड़कियों के पास इसका उत्तर नहीं होता है, क्योंकि वो अपने धर्म से कोसो दूर थी।
मित्रों जब "The Kerala Story" में वो कन्वर्ट मुस्लिम लड़की पूछती है यह प्रश्न तो हिन्दु लड़कियों के पास इसका उत्तर नहीं होता है, क्योंकि वो अपने धर्म से कोसो दूर थी। मित्रों जब "The Kerala Story" में वो कन्वर्ट मुस्लिम लड़की पूछती है यह प्रश्न तो हिन्दु लड़कियों के पास इसका उत्तर नहीं होता है, क्योंकि वो अपने धर्म से कोसो दूर थी।
पर क्या आपको इसका उत्तर पता है, जरा सोचिये फिर बताइये, तब तक मै इस लेख के माध्यम से ( श्रीमद्भागवत महापुराण तथा शैव पुराण में वर्णित कथा से कुछ तथ्य जुटाकर प्रेषित करने का प्रयास करता हुँ।पर क्या आपको इसका उत्तर पता है, जरा सोचिये फिर बताइये, तब तक मै इस लेख के माध्यम से ( श्रीमद्भागवत महापुराण तथा शैव पुराण में वर्णित कथा से कुछ तथ्य जुटाकर प्रेषित करने का प्रयास करता हुँ।
जैसा की हम सबको शास्त्रों ने बताया है कि " परमपिता ब्रह्मा इस सृष्टि के सृजनकर्ता हैँ, परमेश्वर विष्णु पालनकर्ता हैँ और जब पाप अपने चरमौतकर्ष पर पहुंच जाए तो उस सृष्टि का संहार कर नई सृष्टि की रचना के लिए मार्ग प्रसस्त करने का कार्य देवादिदेव महादेव करते हैँ।जैसा की हम सबको शास्त्रों ने बताया है कि " परमपिता ब्रह्मा इस सृष्टि के सृजनकर्ता हैँ, परमेश्वर विष्णु पालनकर्ता हैँ और जब पाप अपने चरमौतकर्ष पर पहुंच जाए तो उस सृष्टि का संहार कर नई सृष्टि की रचना के लिए मार्ग प्रसस्त करने का कार्य देवादिदेव महादेव करते हैँ।
प्रजापिता ब्रह्मा के पुत्र "दक्ष" का विवाह स्वयंभू मनु की सुपुत्री "प्रसूती" से हुआ था। और इन्हीं "दक्ष" और "प्रसूती" की कन्या थी "सती"!प्रजापिता ब्रह्मा के पुत्र "दक्ष" का विवाह स्वयंभू मनु की सुपुत्री "प्रसूती" से हुआ था। और इन्हीं "दक्ष" और "प्रसूती" की कन्या थी "सती"!
शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी को भगवान् शिव के विवाह की चिन्ता हुई तो उन्होंने भगवान् विष्णु की स्तुति की और विष्णु जी ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी को बताया कि यदि भगवान् शिव का विवाह करवाना है तो आप अपने पुत्र " दक्ष" को आदेश दीजिये की वो देवी "शिवा" की आराधना करे और उन्हें अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगे।शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी को भगवान् शिव के विवाह की चिन्ता हुई तो उन्होंने भगवान् विष्णु की स्तुति की और विष्णु जी ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी को बताया कि यदि भगवान् शिव का विवाह करवाना है तो आप अपने पुत्र " दक्ष" को आदेश दीजिये की वो देवी "शिवा" की आराधना करे और उन्हें अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगे।
उनके कथनानुसार प्रजापति दक्ष ने देवी शिवा की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवा ने उन्हें वरदान दिया कि मैं आपकी पुत्री के रूप में जन्म लूँगी। उनके कथनानुसार प्रजापति दक्ष ने देवी शिवा की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवा ने उन्हें वरदान दिया कि मैं आपकी पुत्री के रूप में जन्म लूँगी।
देवी ने कहा कि " मैं तो सभी जन्मों में भगवान शिव की दासी हूँ; अतः मैं स्वयं भगवान् शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करूँगी और उनकी पत्नी बनूँगी।"देवी ने कहा कि " मैं तो सभी जन्मों में भगवान शिव की दासी हूँ; अतः मैं स्वयं भगवान् शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करूँगी और उनकी पत्नी बनूँगी।"
साथ ही उन्होंने दक्ष से यह भी कहा कि जब आपका आदर मेरे प्रति कम हो जाएगा तब उसी समय मैं अपने शरीर को त्याग दूँगी, अपने स्वरूप में लीन हो जाऊँगी अथवा दूसरा शरीर धारण कर लूँगी। प्रत्येक सर्ग या कल्प के लिए दक्ष को उन्होंने यह वरदान दे दिया।साथ ही उन्होंने दक्ष से यह भी कहा कि जब आपका आदर मेरे प्रति कम हो जाएगा तब उसी समय मैं अपने शरीर को त्याग दूँगी, अपने स्वरूप में लीन हो जाऊँगी अथवा दूसरा शरीर धारण कर लूँगी। प्रत्येक सर्ग या कल्प के लिए दक्ष को उन्होंने यह वरदान दे दिया।
तदनुसार देवी भगवती "शिवा" ने "सती" के रूप में "दक्ष" की पुत्री के रूप में जन्म लेती है और घोर तपस्या करके भगवान् शिव को प्रसन्न करती है तथा भगवान् शिव से उनका विवाह होता है। तदनुसार देवी भगवती "शिवा" ने "सती" के रूप में "दक्ष" की पुत्री के रूप में जन्म लेती है और घोर तपस्या करके भगवान् शिव को प्रसन्न करती है तथा भगवान् शिव से उनका विवाह होता है।
महादेव और दक्ष में वैमनस्य:-महादेव और दक्ष में वैमनस्य:-
एक बार "प्रयाग" में प्रजापतियों के एक यज्ञ में "दक्ष" पधारे। वंहा पर त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उपस्थित थे। यज्ञ स्थल पर प्रजापति "दक्ष" के पधारने पर सभी देवतागण खड़े होकर उन्हें आदर देते हैं, परन्तु ब्रह्मा जी और विष्णु जी के साथ शिवजी भी बैठे ही रह जाते हैं।एक बार "प्रयाग" में प्रजापतियों के एक यज्ञ में "दक्ष" पधारे। वंहा पर त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उपस्थित थे। यज्ञ स्थल पर प्रजापति "दक्ष" के पधारने पर सभी देवतागण खड़े होकर उन्हें आदर देते हैं, परन्तु ब्रह्मा जी और विष्णु जी के साथ शिवजी भी बैठे ही रह जाते हैं।
चुंकि ब्रह्मा जी प्रजापति दक्ष के पिता थे और परमेश्वर विष्णु उनके आराध्य देव इसीलिए उनका बैठे रहना प्रजापति दक्ष को परेशान नहीं करता, परन्तु महादेव तो उनके "दामाद" थे अत: महादेव का बैठे रहना उन्हें अपना अपमान लगा और वो स्वयं को अपमानित महसूस करने लगे और उन्होंने इसी कारण भगवान शिव के प्रति अनेक कटूक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्हें यज्ञ-भाग से वंचित होने का शाप दे दिया और यही नहीं वे महादेव से इस अपमान का प्रतिशोध लेने हेतु उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।चुंकि ब्रह्मा जी प्रजापति दक्ष के पिता थे और परमेश्वर विष्णु उनके आराध्य देव इसीलिए उनका बैठे रहना प्रजापति दक्ष को परेशान नहीं करता, परन्तु महादेव तो उनके "दामाद" थे अत: महादेव का बैठे रहना उन्हें अपना अपमान लगा और वो स्वयं को अपमानित महसूस करने लगे और उन्होंने इसी कारण भगवान शिव के प्रति अनेक कटूक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्हें यज्ञ-भाग से वंचित होने का शाप दे दिया और यही नहीं वे महादेव से इस अपमान का प्रतिशोध लेने हेतु उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।
दक्ष का प्रतिशोध:-दक्ष का प्रतिशोध:-
एक बार प्रजापति दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान् शिव और अपनी पुत्री सती को छोड़कर लगभग सभी को आमंत्रित किया।एक बार प्रजापति दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान् शिव और अपनी पुत्री सती को छोड़कर लगभग सभी को आमंत्रित किया।
माता सती ने जब सभी देवी देवताओं को एक हि दिशा में प्रस्थान करते हुए देखा तो वो आश्चर्य में पड़ गयी। माता सती ने रोहिणी को चन्द्रमा के साथ जाते देखा तो अपने सखी रोहिणी से पूछा कि "वो कंहा जा रहे हैँ" और सखी के द्वारा यह पता चलने पर कि वे लोग उन्हीं के पिता दक्ष के विराट यज्ञ में भाग लेने जा रहे हैं, सती का मन भी वहाँ जाने को व्याकुल हो गया।माता सती ने जब सभी देवी देवताओं को एक हि दिशा में प्रस्थान करते हुए देखा तो वो आश्चर्य में पड़ गयी। माता सती ने रोहिणी को चन्द्रमा के साथ जाते देखा तो अपने सखी रोहिणी से पूछा कि "वो कंहा जा रहे हैँ" और सखी के द्वारा यह पता चलने पर कि वे लोग उन्हीं के पिता दक्ष के विराट यज्ञ में भाग लेने जा रहे हैं, सती का मन भी वहाँ जाने को व्याकुल हो गया।
माता सती ने महादेव से वंहा चलने का आग्रह किया, परन्तु महादेव तो सत्य को जानते थे अत: उन्होंने स्वयं जाने से इंकार तो किया हि देवी को भी वंहा जाने से मना किया। महादेव के समझाने के बावजूद माता सती की व्याकुलता बनी रही और उनके बारम्बार आग्रह पर भगवान शिव ने अपने गणों के साथ उन्हें वहाँ जाने की आज्ञा दे दी।माता सती ने महादेव से वंहा चलने का आग्रह किया, परन्तु महादेव तो सत्य को जानते थे अत: उन्होंने स्वयं जाने से इंकार तो किया हि देवी को भी वंहा जाने से मना किया। महादेव के समझाने के बावजूद माता सती की व्याकुलता बनी रही और उनके बारम्बार आग्रह पर भगवान शिव ने अपने गणों के साथ उन्हें वहाँ जाने की आज्ञा दे दी।
वहाँ जाकर जब माता सती ने सभी देवताओं को वंहा उपस्थित पाया पर भगवान् शिव का यज्ञ-भाग न देखकर उनको गहरा दुख हुआ और माता सती ने अपने पिता से इस भेदभाव के लिए घोर आपत्ति जतायी।वहाँ जाकर जब माता सती ने सभी देवताओं को वंहा उपस्थित पाया पर भगवान् शिव का यज्ञ-भाग न देखकर उनको गहरा दुख हुआ और माता सती ने अपने पिता से इस भेदभाव के लिए घोर आपत्ति जतायी।
प्रजापति दक्ष ने अपने शब्दों के वाणो से महादेव के प्रति अत्यंत कठोर शब्द कहे और उन्हें इस यज्ञ के भाग के लायक़ मानने से इंकार कर दिया और सती को भी वंहा से चले जाने का आदेश दिया। माता अपना अपमान तो सह सकती थी, परन्तु पिता के द्वारा सभी देवताओं और अन्य जीवो की उपस्थिति में अपने पति का किया गया अपमान उन्हें बर्दास्त नहीं होता है और अति क्रोधावस्था में वो यज्ञ के हवन कुंड में स्वयं को झोक देती है।प्रजापति दक्ष ने अपने शब्दों के वाणो से महादेव के प्रति अत्यंत कठोर शब्द कहे और उन्हें इस यज्ञ के भाग के लायक़ मानने से इंकार कर दिया और सती को भी वंहा से चले जाने का आदेश दिया। माता अपना अपमान तो सह सकती थी, परन्तु पिता के द्वारा सभी देवताओं और अन्य जीवो की उपस्थिति में अपने पति का किया गया अपमान उन्हें बर्दास्त नहीं होता है और अति क्रोधावस्था में वो यज्ञ के हवन कुंड में स्वयं को झोक देती है।
माता सती का यह हश्र देख सभी शिवगण क्रोधित होकर यज्ञ शाला में तांडव मचाने लगते हैँ अत: इन्हें शांत करने हेतु दक्ष के प्रार्थना पर महर्षि भृगु ने दक्षिणाग्नि में आहुति देकर अपने तपोबल से ऋभु नामक देवताओं को उत्पन्न किया, जिन्होंने शिवगणो को यज्ञ स्थल छोड़ने के लिए विवश कर दिया।माता सती का यह हश्र देख सभी शिवगण क्रोधित होकर यज्ञ शाला में तांडव मचाने लगते हैँ अत: इन्हें शांत करने हेतु दक्ष के प्रार्थना पर महर्षि भृगु ने दक्षिणाग्नि में आहुति देकर अपने तपोबल से ऋभु नामक देवताओं को उत्पन्न किया, जिन्होंने शिवगणो को यज्ञ स्थल छोड़ने के लिए विवश कर दिया।
महादेव का प्रतिशोध और वियोग:-महादेव का प्रतिशोध और वियोग:-
जब उपर्युक्त घटना की सूचना महादेव को दी गयी तो, महादेव अत्यंत क्रोधित हो गये और तांडव करते हुए उन्होंने अपने शिश से एक केश तोड़कर उससे हजारों हाथों वाले अत्यंत भयानक परम बलशाली "विरभद्र" को उत्पन्न किया और महादेव के आदेश पर उस महाबाहु "विरभद्र" ने शिवगणो को साथ लेकर दक्ष की यज्ञशाला को नष्ट कर "दक्ष" के शिश को काट डाला और उसे उसी हवनकुंड में जला डाला।जब उपर्युक्त घटना की सूचना महादेव को दी गयी तो, महादेव अत्यंत क्रोधित हो गये और तांडव करते हुए उन्होंने अपने शिश से एक केश तोड़कर उससे हजारों हाथों वाले अत्यंत भयानक परम बलशाली "विरभद्र" को उत्पन्न किया और महादेव के आदेश पर उस महाबाहु "विरभद्र" ने शिवगणो को साथ लेकर दक्ष की यज्ञशाला को नष्ट कर "दक्ष" के शिश को काट डाला और उसे उसी हवनकुंड में जला डाला।
अब उस विरभद्र को रोकने की शक्ति जब किसी में भी नहीं थी, तब सभी देवताओं ने महादेव की स्तुति करके उनके क्रोध को शांत किया और तत्पश्चात महादेव ने यज्ञशाला के पवित्रता को पुन: स्थापित किया और यही नहीं उन्होंने "दक्ष" के कटे शिश के स्थान पर एक बकरे के शिश का प्रत्यारोपड़ कर उन्हें भी जिवनदान दिया।अब उस विरभद्र को रोकने की शक्ति जब किसी में भी नहीं थी, तब सभी देवताओं ने महादेव की स्तुति करके उनके क्रोध को शांत किया और तत्पश्चात महादेव ने यज्ञशाला के पवित्रता को पुन: स्थापित किया और यही नहीं उन्होंने "दक्ष" के कटे शिश के स्थान पर एक बकरे के शिश का प्रत्यारोपड़ कर उन्हें भी जिवनदान दिया।
तत्पश्चात् देवताओं सहित ब्रह्मा जी के द्वारा स्तुति किए जाने से प्रसन्न भगवान् शिव ने पुनः यज्ञ में हुई क्षतियों की पूर्ति की तथा दक्ष का सिर जल जाने के कारण बकरे का सिर जुड़वा कर उन्हें भी जीवित कर दिया। फिर उनके अनुग्रह से यज्ञ पूर्ण हुआ।त्पश्चात् देवताओं सहित ब्रह्मा जी के द्वारा स्तुति किए जाने से प्रसन्न भगवान् शिव ने पुनः यज्ञ में हुई क्षतियों की पूर्ति की तथा दक्ष का सिर जल जाने के कारण बकरे का सिर जुड़वा कर उन्हें भी जीवित कर दिया। फिर उनके अनुग्रह से यज्ञ पूर्ण हुआ।
यंहा पर यह ध्यान देने वाली बात है कि, जो सती हवन कुंड में भस्म होने के लिए कुड़ पड़ी वो छायासती थी, (क्योंकि यह तो बस एक लीला थी प्रजापति दक्ष के अहंकार को भस्म करने के लिए) अत: सती अर्थात देवी शिवा अपने छायासती को आदेश देकर अंतर्धान हो जाति हैँ।यंहा पर यह ध्यान देने वाली बात है कि, जो सती हवन कुंड में भस्म होने के लिए कुड़ पड़ी वो छायासती थी, (क्योंकि यह तो बस एक लीला थी प्रजापति दक्ष के अहंकार को भस्म करने के लिए) अत: सती अर्थात देवी शिवा अपने छायासती को आदेश देकर अंतर्धान हो जाति हैँ।
छायासती के भस्म हो जाने पर बात खत्म नहीं होती बल्कि शिव के प्रसन्न होकर यज्ञ पूर्णता का संकेत दे देने के बाद छायासती की लाश सुरक्षित तथा देदीप्यमान रूप में दक्ष की यज्ञशाला में ही पुनः मिल जाती है।
छायासती के भस्म हो जाने पर बात खत्म नहीं होती बल्कि शिव के प्रसन्न होकर यज्ञ पूर्णता का संकेत दे देने के बाद छायासती की लाश सुरक्षित तथा देदीप्यमान रूप में दक्ष की यज्ञशाला में ही पुनः मिल जाती है[ छायासती के भस्म हो जाने पर बात खत्म नहीं होती बल्कि शिव के प्रसन्न होकर यज्ञ पूर्णता का संकेत दे देने के बाद छायासती की लाश सुरक्षित तथा देदीप्यमान रूप में दक्ष की यज्ञशाला में ही पुनः मिल जाती है[
और फिर लौकिक पुरुष की तरह शिवजी विलाप करते हैं तथा सती की लाश सिर पर धारण कर विक्षिप्त की तरह भटकते हैं।और फिर लौकिक पुरुष की तरह शिवजी विलाप करते हैं तथा सती की लाश सिर पर धारण कर विक्षिप्त की तरह भटकते हैं।
अब शिवजी के एक छायासती के प्रति इस मोह और विलाप के कारण सृष्टि की व्यवस्था डगमगाने लगती है अत: इस भयानक स्थिति से उबरने के लिए और सृष्टि को त्राण दिलाने तथा परिस्थिति को सँभालने हेतु भगवान् विष्णु सुदर्शन चक्र से सती की लाश को क्रमशः खंड-खंड कर देते हैं। इस प्रकार सती के विभिन्न अंग तथा आभूषणों के विभिन्न स्थानों पर गिरने से वे स्थान शक्तिपीठ की महिमा से युक्त हो गये।[इस प्रकार 51 शक्तिपीठों का निर्माण हो गया। फिर सती की लाश न रह जाने पर भगवान् शिव ने जब व्याकुलतापूर्वक देवताओं से प्रश्न किया तो देवताओं ने उन्हें सारी बात बतायी।
इस पर निःश्वास छोड़ते हुए भगवान् शिव ने भगवान् विष्णु को त्रेतायुग में सूर्यवंश में अवतार लेकर इसी प्रकार पत्नी से वियुक्त होने का शाप दे दिया और फिर स्वयं 51 शक्तिपीठों में सर्वप्रधान 'कामरूप' में जाकर भगवती की आराधना की और उस पूर्णा प्रकृति के द्वारा अगली बार हिमालय के घर में पार्वती के रूप में पूर्णावतार लेकर पुनः उनकी पत्नी बनने का वर प्राप्त हुआ।इस पर निःश्वास छोड़ते हुए भगवान् शिव ने भगवान् विष्णु को त्रेतायुग में सूर्यवंश में अवतार लेकर इसी प्रकार पत्नी से वियुक्त होने का शाप दे दिया और फिर स्वयं 51 शक्तिपीठों में सर्वप्रधान 'कामरूप' में जाकर भगवती की आराधना की और उस पूर्णा प्रकृति के द्वारा अगली बार हिमालय के घर में पार्वती के रूप में पूर्णावतार लेकर पुनः उनकी पत्नी बनने का वर प्राप्त हुआ।
इस प्रकार यही सती अगले जन्म में पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री बनकर पुनः भगवान शिव को पत्नी रूप में प्राप्त हो गयी।इस प्रकार यही सती अगले जन्म में पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री बनकर पुनः भगवान शिव को पत्नी रूप में प्राप्त हो गयी।
अब यह एक पूर्ण कथा है, इससे एक साथ कई प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो जाते हैँ जैसे:-अब यह एक पूर्ण कथा है, इससे एक साथ कई प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो जाते हैँ जैसे:-
१:- यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अहंकारी "दक्ष" के अहंकार को नष्ट करने के उद्देश्य से शुरु होती है;१:- यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अहंकारी "दक्ष" के अहंकार को नष्ट करने के उद्देश्य से शुरु होती है;
२:- इसी घटना से त्रेतायुग में परमेश्वर विष्णु द्वारा भगवान श्रीराम के रूप में अवतार लेने का मार्ग प्रसस्त हुआ;
३:- इस लीला से पति और पत्नी के मध्य समर्पण, प्रेम और विश्वाश की अनुपम सिख मिलती है;
४:- अपनी पत्नी की लाश को अपने हाथो में आम आदमी की भांति लेकर विलाप करने से पूर्व महादेव ने अपने शिश के एक बाल से विरभद्र को पैदा करके सकल ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण शक्तियों के समक्ष ना केवल दक्ष के यज्ञ का विनाश किया अपितु उस दक्ष के शिश को भी काट डाला;
५:- यही नहीं जब सकल ब्रह्माण्ड कि शक्तियाँ उसके समक्ष नतमस्तक हो गयी तो सबके कल्याण हेतु उसने यज्ञ की पवित्रता को पुनर्स्थापित कर दिया और दक्ष को जिवनदान भी दिया।
६:- सती ने अपने पति के अपमान को बर्दास्त नहीं किया और हमारे महादेव ने अपनी पत्नी के अपमान और सती होने के कारण को बर्दास्त किया दोनों ने अपने पति और पत्नी के धर्म को निभाया।
परन्तु मित्रों ये भला वो लोग कैसे समझ पाएंगे, जिनके यंहा शादी एक कांट्रेक्ट होता है।परन्तु मित्रों ये भला वो लोग कैसे समझ पाएंगे, जिनके यंहा शादी एक कांट्रेक्ट होता है।
परन्तु मित्रों ये भला वो लोग कैसे समझ पाएंगे, जिनके यंहा शादी एक कांट्रेक्ट होता है।यदी ये तथ्य उन हिन्दु लड़कियों को पता होती तो वो उस कन्वर्ट मुस्लिम लड़की को उत्तर दे सकती थीं।
यदी ये तथ्य उन हिन्दु लड़कियों को पता होती तो वो उस कन्वर्ट मुस्लिम लड़की को उत्तर दे सकती थीं।यदी ये तथ्य उन हिन्दु लड़कियों को पता होती तो वो उस कन्वर्ट मुस्लिम लड़की को उत्तर दे सकती थीं।
लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह
(अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in