मित्रों पिछले अंक में आपने देखा था कि जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी हमारे मित्र ने सनातन धर्मीयो को अनपढ़, अंधविश्वासी, कर्मकांडी और विज्ञान से परे बताते हुए जबरदस्त आलोचना कि थी। उन्होंने सनातन धर्मीयो पर तुलसी नामक पौधे को माता कह कर आस्था से जोड़ने और नीम तथा बरगद के पेड़ से अन्धविश्वास फैलाने का आरोप लगाया था।
वामपंथी मित्र ने इस बात कि कटु आलोचना कि थी कि सारी दुनिया आज चाँद पर पहुंच गई और हम सनातनी आज भी नीम के डण्ठल से दांत और मुँह स्वच्छ कर रहे हैं।
मैंने अपने वामपंथी मित्र के आलोचना का उत्तर देते हुए उन्हें सनातन धर्म के ज्ञान विज्ञान के प्रकाश का एक और रंग दिखलाया और कहा, हे वामपंथी मित्र सुनो!
"नीम का पेड़ भारत का मूल वृक्ष है। इसकी जड़ से लेकर पत्तियां, फूल, फल, बीज, छाल और लकड़ी सभी में गुण ही गुण भरे हैं। अत्यधिक उपयोगी कंपाउंड्स से युक्त होता है नीम। इसीलिए नीम के लाभ अनगिनत हैं जिन्हें हमारे महर्षियों ने हजारों लाखों वर्ष पूर्व हि पहचान लिया था, इसलिए नीम को भी हमारे विश्वास के साथ जोड़ दिया।
हे वामपंथी सुनो:- नीम एक औषधीय पेड़ है, जिसके लगभग सभी भागों का इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है। यह महोगनी परिवार से संबंध रखता है और इसका वानस्पतिक नाम अजादिरछा इंडिका (Azadirachta Indica) है। नीम के वृक्ष का जीवनकाल १५०-२०० वर्ष तक का हो सकता है। अनुमान यह है कि भारत में लगभग लाखों नीम के वृक्ष हैं।
हमारे ऋषि मुनियों ने यूरोप और अरब में प्रारम्भिक विज्ञान के जन्म लेने से सैकड़ो वर्ष पूर्व हि नीम के औषधिय गुणों कि पहचान कर ली थी। नीम के पत्तों में १३० से अधिक विभिन्न प्रकार के ऑर्गनिक कंपाउंड होते हैं, जैसे कि निंबिन, निमांडियल जो शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं।
संस्कृत में नीम को “अरिष्ठा” कहते हैं। जिसका अर्थ है उत्तम, अविनाशी यानी अमर और सम्पूर्ण, मतलब बीमारियों से राहत देने वाला। हज़ारों तरह की दवा बनाने में नीम का उपयोग होता है। हमारे शास्त्र मे कुछ इस प्रकार बताया गया है:-
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम् न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
अश्वत्थः = पीपल (१००% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
पिचुमन्दः = नीम (८०% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता
है)
न्यग्रोधः = वटवृक्ष(८०% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
चिञ्चिणी = इमली (८०% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
कपित्थः = कविट (८०% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
बिल्वः = बेल(८५% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आमलकः = आवला(७४% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आम्रः = आम (७०% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
अर्थात्- जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नहीं करना पड़ेंगे।
हे वामपंथी मित्र सुनो अब मैं तुम्हारे मस्तिष्क में नीम के कुछ औषधिय गुणों का बीजारोपण करने का प्रयास करता हूँ:-
१:-नीम अपने एंटी-एजिंग गुणों के लिए जाना जाता है। अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण नीम हानिकारक UV किरणों, प्रदूषण और पर्यावरण से स्किन की देख भाल करता है। नीम में मौजूद विटामिन और फैटी एसिड त्वचा की लोच को बनाए रखते हैं, झुर्रियों को कम करते हैं। इससे मानवीय त्वचा युवा रहती है और मानव जवान दिखते हैं। फंगल इंफेक्शन में भी नीम अत्यंत लाभदायक होता है। इसके एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण हानिकारक बैक्टीरिया और फंगस को दूर रखते हैं। इस प्रकार नीम त्वचा के लिए उत्तम है और स्किन संबंधी रोगों से आपको दूर रखता है।
२:-आयुर्वेद जो हमेशा से उपचार और दवा के लिए प्राकृतिक स्वरूप का पालन करता रहा है, वो नीम की पत्तियों के अर्क को एक प्रमुख कंपाउंड की तरह उपयोग करता है।
३:-नीम लिवर को उत्तेजित करके टॉक्सिन्स को शरीर से निकाल देता है। इससे मेटाबोलिज्म (उपापचय) की गतिविधियों को सुचारु रूप से संचालन करने में सहायता मिलती है। हर दिन हमारी स्किन पर मिक्रोब्ज़,मिक्रोऑर्गेनिज़्म्स, धूल और घास इत्यादि के कण जमा होते हैं। नीम का लेप चेहरे पर लगाने से ऐसे केमिकल्स,पेथोजेन्स और गंदगी को साफ़ करने में सहायता मिलती है।
४:-नीम का पाउडर, नीम का तेल, नीम की पत्तियों, नीम की चाय और नीम से बने हर पदार्थ में नीम के एंटीबैक्टीरियल और एंटीमाइक्रोबियल का असर होता है। यह हमारे शरीर के अंदरूनी और बाहरी दोनों हिस्सों को सुधारने में अहम भूमिका निभाते हैं।
५:-नीम अपने एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुणों के कारण शैम्पू और स्केलप क्लीनर में बहुत उपयोग किया जाता है। यह बालों की त्वचा को मजबूत करता है, उन्हें हाइड्रेटेड रखता है और डैंड्रफ़ को खत्म करने में सहायक होता है। नीम में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं जिसके कारण यह बालों के रोम को भी स्वस्थ रखता है। नीम बालों के बढ़ने में सहायक है और गंजापन को रोकने में भी असरदार।
६:-नीम की पत्तियों में कैल्शियम और मिनरल्स मौजूद होते हैं जो हड्डियों को मजबूत बनाने और किसी भी सूजन को कम करने में सहायक होते हैं। नीम की पत्तियों और नीम के तेल को अक्सर गठिया के दर्द और उम्र के साथ होने वाले किसी भी दर्द को दूर करने के लिए बुजुर्ग रोगियों को दिया जाता है। नीम के तेल की नियमित मालिश करने से हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है।
७:-अगर आपके घर में कीटनाशक नहीं हैं तो आपके लिए नीम की पत्तियां बहुत काम आ सकती हैं। आप घर में खिड़कियों के पास नीम के तेल में भीगी हुई रूई रख सकते हैं या कीड़ों को भगाने के लिए नीम की पत्तियों को जला सकते हैं। यह बहुत असरदार होता है और इसका उपयोग मच्छरों से बचने के लिए भी किया जाता है।
८:-एक शोध के अनुसार, नीम एंटी बैक्टीरियल गुणों से समृद्ध होता है। इस अध्ययन से यह बात सामने आई है कि नीम पैथोजेनिक बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण के उपचार के लिए एक प्रभावी एंटीबैक्टीरियल एजेंट के रूप में काम कर सकता है ।
९:- नीम की पत्तियों में मौजूद क्वेरसेटिन (Quercetin) और बी-साइटोस्टरोल (ß-sitosterol) पॉलीफेनोलिक फ्लेवोनोइड में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुणों की पुष्टि हुई है (3)। ऐसे में बैक्टीरियल संक्रमण से बचाव के लिए नीम का उपयोग लाभकारी हो सकता है।
१०:-एनसीबीआई (NCBI-नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, नीम के मेथनॉल-अर्क में उपस्थित पॉलीफेनोल में एंटी हाइपरटेंसिव गुण यानी उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के गुण की पुष्टि हुई है । ऐसे में उच्च रक्तचाप की समस्या से बचाव या उसे नियंत्रित करने के लिए नीम का उपयोग लाभकारी हो सकता है। हालांकि, अगर कोई हाई बीपी की दवा का सेवन कर रहा है, तो नीम के सेवन से पहले एक बार चिकित्सकीय परामर्श भी जरूर लें लेना चाहिए।
११:-नीम के पत्तों में एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी बैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद हैं। इसके ये सभी गुण पल्मोनरी इन्फ्लेमेशन (pulmonary inflammation- रोगों का समूह जो फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है) के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रभाव प्रदर्शित कर सकता है।
१२:- नीम का एंटी-एलर्जिक गुण अस्थमा की समस्या के लिए उपयोगी हो सकता है। ऐसे में दमा की समस्या के लिए योग के साथ-साथ नीम का उपयोग लाभकारी साबित होता है। दमा के लिए नीम एक आयुर्वेदिक औषधि की तरह काम करता है।
१३:-एक शोध के अनुसार, नीम के छाल का अर्क गैस्ट्रिक हाइपरएसिडिटी (गैस्ट्रिक एसिड का अधिक उत्पादन) और अल्सर पर सकारात्मक प्रभाव दिखा सकता है। नीम के छाल का अर्क औषधि की तरह काम करता है।
१४:-वहीं, एनसीबीआई के एक शोध में नीम में एंटीअल्सर गुण होने का जिक्र किया गया है(9) । इस आधार पर कहा जा सकता है कि नीम का एंटीअल्सर गुण अल्सर से बचाव में एक सहायक भूमिका निभा सकता है।
१५:- नीम, मुंह के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होता है। साथ ही नीम में मौजूद एंटीमाइक्रोबियल गुण दांतों में प्लाक को बढ़ाने वाले स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटन (Streptococcus Mutans) जैसे बैक्टीरिया को पनपने से रोक सकता है। इसके अलावा, एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर नीम की पत्तियां मुंह और मसूड़ों में सूजन की स्थिति को ठीक करने में मदद कर सकती हैं। साथ ही नीम मसूड़ों से ब्लीडिंग, दांतों की सड़न की समस्या से भी बचाव कर सकता है।
१६:- आज भी स्वस्थ दांत के लिए कई लोग नीम के दातून का उपयोग करते हैं। ऐसे में आप भी दांतों को मजबूत बनाने के लिए कभी-कभी नीम के दातून का विकल्प चुन सकते हैं। ऐसा करते वक्त हम दांतो से नीम के दातुन को चबाते हैं, जिससे नीम का रस हमारे लार के साथ उदर में पहुंचता है और उसे स्वच्छ करने में सहायता पहुंचाता है, नीम के रस कि कडवाहट से दांतो में रोग फैलाने वाले कीटाणु और विषाणु नष्ट हो जाते हैं और दांत तथा मसूड़े स्वस्थ और मजबूत बनते हैं।
मित्रों आक से कुछ ३०-३५ वर्ष पूर्व चलें जाए तो कोलगेट जैसी कम्पनियां कोयले के चूर्ण या नीम के दातुन से दांत स्वच्छ करने को लेकर मजाक उड़ाते थे पर आज यही कोलगेट और इसके जैसी कम्पनियां बड़े गर्व से कहती हैं " हमारे टुथपेस्ट में नमक है, हमारे टुथपेस्ट में नीम है या हमारे टुथपेस्ट में कोल है"।
१७:-कुष्ठ रोग के उपचार के तौर पर नीम के बीज के तेल के उपयोग की बात कही गई है। वहीं, आयुर्वेद में भी कुष्ठ रोग के इलाज के लिए नीम के पत्तों को उपयोगी बताया गया है ।
१८:-मलेरिया के प्रभाव और इसके लक्षणों को कम करने में नीम के पत्तों के फायदे देखे जा सकते हैं। दरअसल, नीम की पत्तियां एंटीमलेरियल गुणों (Antimalarial Properties) से भरपूर होती है, जो मलेरिया की दवा के रूप में काम कर सकती है और इस समस्या से उबरने में मदद कर सकती हैं ।
१९:- चेचक (Small Pox) के मरीजों के लिए भी नीम एक औषधि के रूप में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है।
२०:-एनसीबीआई की वेबसाइट पर पब्लिश एक स्टडी के अनुसार, नीम में मौजूद एजेडिराक्टिन-ए (azadirachtin-A) कंपाउंड हेप्टोप्रोटेक्टिव (Hepatoprotective) यानी लिवर को सुरक्षा देने वाला गुण प्रदर्शित कर सकता है। ऐसे में लिवर को स्वस्थ रखने के लिए नीम का सेवन उपयोगी हो सकता है ।
२१:-एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, नीम के बीज, पत्ते, फूल और फलों का अर्क विभिन्न प्रकार के कैंसर के विरुद्ध कीमोप्रिवेंटिव, एंटी कैंसर और एंटीट्यूमर गुण को प्रदर्शित कर सकता है। इसके अलावा, नीम का अर्क कैंसर कोशिकाओं के प्रसार को रोकने में भी सहायता कर सकता है।
२२:-नीम का उपयोग गर्भनिरोधक के रूप में भी किया जा सकता है। इससे जुड़े शोध, से पता चलता है कि यह शुक्राणुओं के प्रसार को 0.05 से 1 प्रतिशत तक कम कर सकता है। नीम में मौजूद इम्यून मॉड्यूलेटर (immune modulators) गुण उन कोशिकाओं और मैक्रोफेज (macrophages- एक प्रकार की कोशिका) को जीवित करते हैं, जो गर्भावस्था को समाप्त कर सकते हैं।
२३:- मित्रों नीम कोटेड यूरिया का नाम तो आपने सुना हि होगा, जी हाँ यह एक प्राकृतिक यूरिया कि किस्म है जिसमें नीम के फल नीमकौड़ी के कारण बिना किसी अतिरिक्त प्रभाव दिए, फसल को किटों से सुरक्षा प्रदान करता है।
नीम का पेड़ सूखे के प्रतिरोध के लिए विख्यात है। सामान्य रूप से यह उप-शुष्क और कम नमी वाले क्षेत्रों में फलता है जहाँ वार्षिक वर्षा ४०० से १२०० मिमी के बीच होती है। यह उन क्षेत्रों में भी फल सकता है जहाँ वार्षिक वर्षा ४०० मिमी से कम होती है पर उस स्थिति में इसका अस्तित्व भूमिगत जल के स्तर पर निर्भर रहता है। नीम कई अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में विकसित हो सकता है, लेकिन इसके लिये गहरी और रेतीली मिट्टी जहाँ पानी का निकास अच्छा हो, सबसे अच्छी रहती है। यह उष्णकटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय जलवायु में फलने वाला वृक्ष है और यह २२-३२° सेंटीग्रेड के बीच का औसत वार्षिक तापमान सहन कर सकता है। यह बहुत उच्च तापमान को तो बर्दाश्त कर सकता है, पर ४ डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान में मुरझा जाता है। नीम एक जीवनदायी वृक्ष है विशेषकर तटीय, दक्षिणी जिलों के लिए। यह सूखे से प्रभावित (शुष्क प्रवण) क्षेत्रों के कुछ छाया देने वाले (छायादार) वृक्षों में से एक है। यह एक नाजुक पेड़ नहीं हैं और किसी भी प्रकार के पानी मीठा या खारा में भी जीवित रहता है।
हमारे शास्त्र नीम जैसे औषधिय गुणों से परिपूर्ण वृक्ष को निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं:-
मूल ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेव च,
पत्र-पत्रेका सर्वादेवनाम, वृक्षाराज नमस्तुते।’
अर्थात वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, त्वचा में भगवान विष्णु, शाखाओं में शिव और पत्तों में समस्त देवाताओं का वास होता है, इसलिए पेड़ों की वंदना व पूजा की जाती है।
हे जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र सुनो, प्राकृतिक चिकित्सा की भारतीय प्रणाली ‘आयुर्वेद’ के आधार-स्तंभ माने जाने वाले दो प्राचीन ग्रंथों ‘चरक संहिता’ और ‘सुश्रुत संहिता’ में नीम के लाभकारी गुणों की चर्चा की गई है। इस वृक्ष का हर भाग इतना लाभकारी है कि संस्कृत में इसको एक यथायोग्य नाम दिया गया है – “सर्व-रोग-निवारिणी” यानी ‘सभी बीमारियों की दवा।’ लाख दुखों की एक दवा!
अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम्।
धन्या महीरूहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिन:।।
भावार्थ:– इस श्लोक का अर्थ है कि सब प्राणियों पर उपकार करने वाले इन पेड़ों का जन्म सर्वोत्तम है । ये वृक्ष धन्य हैं जिनके पास से कोई भी याचक कभी भी निराश नहीं लौटता है ।
और नीम जैसे वृक्ष के महत्व को निम्न श्लोक से जाना जा सकता है:-
दश कूप समा वापी, दशवापी समोहद्रः।
दशहृद समः पुत्रो, दशपुत्रो समो द्रुमः।
अर्थात दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है।( मत्स्य पुराण)
चेष्टा वायुः खमाकाशमूष्माग्निः सलिलं द्रवः।
पृथिवी चात्र सङ्कातः शरीरं पाञ्चभौतिकम्॥
हिंदी अर्थ:- महर्षि भृगु कहते हैं कि इन वृक्षों के शरीर में चेष्टा अर्थात् गतिशीलता वायु का रूप है,खोखलापन आकाश का रूप है,गर्मी अग्नि का रूप है, तरल पदार्थ सलिल का रूप है, ठोसपन पृथ्वी का रूप है। इस प्रकार (इन वृक्षों का यह) शरीर पाँच महाभूतों (वायु, आकाश, अग्नि, जल और पृथ्वी तत्त्वों) से बना है।
अब नीम के वृक्ष के अस्तित्व के महत्व को समझकर हमारे जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र निरुत्तर हो गए और एक बार फिर अपनी हार स्वीकार कर, मेरे घर से प्रस्थान कर गए।
लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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