जब स्व. श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जम्मू कश्मीर के एक जेल में रहस्यमी ढंग से मौत के घाट उतार दिया गया। जब स्व (पंडित) दिन दयाल उपाध्याय जी का मृत शरीर मुगलसराय में रेल की पटारियों पर गिरा हुआ मिलता है। जब स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की ताशकन्द में हत्या कर दी जाती है। जब स्व श्रीमति इंदिरा गांधी जी को उनके हि बडीगार्ड गोलियों से भून देते हैँ। जब भोपाल में यूनियन करबाइड गैस कांड के मुख्य आरोपी एंडर्सन को सही सलामत भारत से बाहर भगा दिया जाता है। जब कश्मीर से रालीव गालीव और चालीव का खूंखार नारा लगाकर कश्मीरी हिन्दुओ का कत्लेआम किया गया और उन्हें बंदूक की नोक पर भागने को विवश कर दिया गया था। जब समझौता एक्सप्रेस में बम ब्लास्ट करने वाले पकड़े गये पाकिस्तानी आतंकवादी को छोड़कर एक हिन्दु स्वामी असीमानंद को फंसाकर भगवा आतंकवाद की झूठी अवधारणा रची गयी थी। जब मालेगाव ब्लास्ट में सेना के वीर और देशभक्त जवान कर्नल पुरोहित को फंसाया गया तथा उसके साथ हि कई हिन्दुओ को फसाकर भगवा को एक बार फिर बदनाम और अपमानित किया गया था। जब सनातन धर्म के सबसे बड़े धर्मगुरु आदरणीय शंकराचार्य को झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। जब दिल्ली की सड़कों पर हजारों सिक्खों को कत्ल कर दिया गया था। जब अभिषेक मनु संघवी अपने कार्यालय में उच्च न्यायालय में महिला जज बनाने की आड़ में अपने हवस की आग बुझा रहा था। जब स्व श्रीमती इंदिरा गांधी के दबाव में संविधान का गला स्वयं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश कर रहे थे।
खैर उपर्युक्त सब तो कुछ पुराने उदाहरण हैँ जब संविधान भी था, देश में अदालते भी थी, ओवैसी, रशीद सालवी, ममता बनर्जी, मुलायम सिंह यादव तथा अन्य विपक्षी नेता परेता भी थे परन्तु आश्चर्य है कि उस वक्त ना तो अदालतों ने और ना हि इन धपोरसंखी और घड़ियाली आंसू बहाने वाले प्रेताओं ने कभी कुछ बोला या चीखा या चिल्लाया था, जैसा की पुलिस मुठभेड़ में हुई असद की मौत या फिर पुलिस की उपस्थिति में अतिक और अशरफ जैसे खूंखार आतंकियों की तिन अन्य उन्हीं की दुनियाँ के लोगों द्वारा हत्या करने पर चीख, चिल्ला और बोल रहे हैँ।
अब कुछ नए उदाहरण ले लेते हैँ, महाराष्ट्र में स्व श्री सुशांत सिंह राजपूत की तथा उनके सेक्रेटरी दिशा सैलियन की हत्या, हनुमान चालीसा पढ़ने पर अमरावती के महिला सांसद को १० से अधिक दिनों तक जेल में बंद कर उत्पीड़ित करना, व्यापारी मनसुख हिरेन की पुलिस द्वारा हत्या, एक पत्रकार और रिपब्लिक भारत के सर्वेसर्वा श्री अर्णव गोस्वामी को झूठे आरोप लगाकर उसके घर से उठा ले जाना इत्यादि, इसी प्रकार पंजाब में गायक सिद्धू मुसेवाला को दिन दहाड़े हत्या कर देना इसके साथ हि दो दो हिन्दु नेताओं को पुलिस की उपस्थिति में ताबड़तोड़ गोलियां मारकर मौत कर घाट उतार देना, अमृतपाल सिंह का उसके देशद्रोहि साथियों के साथ मिलकर "खालिस्तान" के नाम पर देश को जलाने की साजिश पनपते देखना तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश के द्वारा पक्षपात करते हुए एक भारतीय स्त्री नूपुर के द्वारा दिये गये बयानों को देश में मजहब के नाम पर शांतिदूतो द्वारा किये जा रहे कत्लेआम के लिए जिम्मेदार बताना इत्यादि के समय क्या इस देश में अदालते या संविधान नहीं था।
कांग्रेसी नेता रशीद सालवी, सदैव अपने जहरीले बयानों से देश का वातावरण खराब करते रहते हैं । अतिक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की हत्या के पश्चात उसनेउन्होंने अपना बयान देते हुए कहा कि, हत्यारे जय श्रीराम का नारा लगा रहे थे और विश्वाश मानिये इस बयान को जानबूझकर हिन्दुओ के धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए किया गया ताकि देश भर में दंगे फैलाये जा सके। इसके पूर्व भी रशीद सालवी इस तरह का जहर फैलाकर वातावरण को विशाक्त कर चुके हैं , पर करें क्या उनकी आदत बन चुकी है।
अब प्रश्न ये है कि आखिर खूंखार आतंकी अतिक और उसके भाई अशरफ को तिन नौजवानों (लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरुण मौर्य) ने क्यों कत्ल कर दिया वो भी इतने दुस्साहसपूर्ण तरीके से।
ये तीनों नौजवान मीडिया कर्मी बनकर पिछले तिन दिनों से अन्य मीडियकर्मियों के साथ साथ अतिक और अशरफ को ले जाने और ले आने वाली गाड़ी के पीछे पीछे आ जा रहे थे। ABP न्यूज़, AajTak, News Nation, News 18, India TV इत्यादि न्यूज़ चैनल वालो के साथ लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरुण मौर्य भी मिडियाकर्मी बनकर अपने लक्ष्य को भेदने के लिए तैयारी कर रहे थे।
अब प्रश्न ये है कि क्या इन ABP न्यूज़, AajTak, News Nation, News 18, India TV इत्यादि न्यूज़ चैनल वालो को कभी ये संदेह नहीं हुआ कि आखिर ये तिन नौजवान किसी मीडिया ग्रुप से जुड़े हैँ भी या नहीं और यदी जुड़े भी हैँ तो किस मीडिया ग्रुप से। ये इलेक्ट्राणिक मीडिया न्यूज़ चैनल वाले भी उतने ही इन खूंखार आतंकियों के कत्ल के जिम्मेदार हैँ, जितना पुलिस द्वारा प्रदत्त सुरक्षा में चूक। बताया जा रहा है कि "श्री लवलेश तिवारी, श्री सनी सिंह और श्री अरुण मौर्य " ने उन खूंखार अपराधियों को मौत के घाट उतारने के पश्चात बयान दिया कि " वो बहुत बड़े माफिया बनना चाहते थे" अत: बस इसीलिए इनका कत्ल किया।
परन्तु यंहा पर यह भी जानने और समझने योग्य है कि, " अतिक अहमद का समबंध " लश्करे तोयबा " जैसे आतंकी संगठन तथा पाकिस्तानी नापाक जासूसी संस्था ISI से भी था, अत: प्रश्न उठता है कि जब श्री अखिलेश यादव जी की सरकार उत्तर प्रदेश में थी और उन्होंने आतंकवादियों (जिन्हें बाद में फांसी और उम्रकैद की सजा दी गयी) के सिर से मुकदमे वापस लेने का फैसलाकर उसे अमल में लाने लगे, तो क्या यह "लश्करे तोयबा" और ISI के दवाब में किया जा रहा था?
एक पार्टी के सांसद का लश्करे तोयबा जैसे आतंकी संगठन और ISI से संबंध है, क्या उस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को पता था और उन्होंने जानबूझकर चुप्पी साध रखी थी?
ऐसे लोगो के लिए हि हमारी पवित्र पुस्तक "मनु स्मृति" के अध्याय ७ में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि: -
तं राजा प्रणयन्सम्यक् त्रिवर्गेणाभिवर्धते । कामात्मा विषमः क्षुद्रो दण्डेनैव निहन्यते ॥२७॥
(तम् राजा प्रणयन् सम्यक् त्रिवर्गेण अभिवर्धते काम-आत्मा विषमः क्षुद्रः दण्डेन एव निहन्यते ।)
अर्थात:- उस दण्ड का समुचित प्रयोग करने वाला राजा त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ एवं काम) की दृष्टि से समृद्ध होता है । अर्थात् न्याय के मार्ग पर चलने वाले राजा को आर्थिक संपन्नता के साथ सुखभोग और धर्म-संपादन में सफलता मिलती है । इसके विपरीत जो राजा भोगविलास या सत्तासुख में डूबा रहता है, जो लोगों के प्रति असमान या गैरबराबरी (अन्यायपूर्ण) का बरताव करता हो, और जो नीच स्वभाव का हो, वह उसी दण्ड के द्वारा मारा जाता है ।
अब सपा सरकार में ऐसे दुर्जनों को सजा मिले, ये बात भी अकल्पनीय थी।अतिक अहमद ने ये राज खोला था कि " पाकिस्तान से जो हथियार ड्रोन के जरिये पंजाब में गिराए जाते हैँ तो स्थानीय लोग उन्हें एकत्र करते हैँ और अतिक अहमद और उसके गुर्गे फिर उन हथियारों की खरीद फरोख्त करता था, तो क्या उसी हथियार विक्रेता माफिया ने अतिक और अशरफ की हत्या करवाई।
उमेश पाल हत्या की जाँच करने के दौरान यह पता चला कि इस हत्या के दो मुख्य आरोपी गुलाम और असद अहमद को दिल्ली के एक सांसद ने पुलिस से छिपने में सहायता की थी, तो क्या उस सांसद ने अपना नाम सामने ना आने देने के लिए अतिक और अशरफ की सुपाड़ी इन नौजवानो को दे दी और इन तीनों ने अतिक और अशरफ को मुक्ति दे दी।
आज असद्दूदिन ओवैसी छाती पीटते हुए कह रहा है कि उत्तर प्रदेश में विधि व्यवस्था नहीं अपितु बंदूक व्यवस्था है। उत्तर प्रदेश में जो कुछ हो रहा है, उससे अदालतों और संविधान में लोगों का विश्वाश कम हो जायेगा। पर मित्रों जब स्व श्री कमलेश तिवारी जी की हत्या चार से पांच खूंखार जानवरो ने किया था केवल "ईश निंदा" के आधार पर तब यही ओवैसी " मियां भाई मियां भाई गाने पर ठुमके लगा रहा था।" जब राजस्थान के उदयपुर में एक दर्जी कन्हैयालाल का गला दो जानवर मिलकर केवल इसलिए कर देते हैँ कि उसने नूपुर शर्मा का सपोर्ट करने हेतु Facebook पर एक पोस्ट कर दिया था, तब भी यह ओवैसी जश्न मनाता हुआ दिखाई देता है और तब इसको ना तो अदालतो का ख्याल आता है और ना संविधान का।
अब प्रश्न ये है मित्रों कि अपराधी चाहे कनपुर का विकास दुबे हो या फिर प्रयागराज का अतिक अहमद और या फिर गाजीपुर/मऊ का मुख़्तार अंसारी, समाज के ठेकेदारों की दृष्टि में इनके मानवाधिकारों की रक्षा आवश्यक है, परन्तु ये दरिंदे कितने भी मासूमों का या पुलिसवालों का खुन पी जाए पर आप इन सामाजिक ठेकेदारों को इनके मानवाधिकार की लड़ाई लड़ते कभी नहीं देखोगे। आज फिर से ये सबके सब घड़ियाली आँसू बहा रहे हैँ और छाती पीट रहे हैँ, पर देश की जनता अच्छे तरीके से समझती है कि "सही क्या है और गलत क्या है"।
हमारे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने तो शुरु में हि चेतावनी दे दी थी कि " कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे" और जनता ने कर्तल ध्वनि से उसका स्वागत किया था परन्तु विपक्षी राज में जनता का खुन चख चुके इन जानवरों को उनकी बात समझ में हि नहीं आयी, तो फिर ना तो जनता जिम्मेदार है और ना सरकार।
अतिक अहमद के द्वारा ४४ वर्षो में बनाया गया आतंक का साम्राज्य मात्र १ महीनें के अंदर मिट्टी में मिल गया जो की उत्तर प्रदेश में अपना खुनी साम्राज्य बनाने वाले माफियाओं, गुंडों, हत्यारों डकैतों और चोर उचक्कों के लिए एक बहुत बड़ी मिशाल है। जो समझ गया वो बच गया।
हमारी पवित्र पुस्तक "मनु स्मृति" के अध्याय ७ में वर्णित श्लोको में स्पष्ट रूप से सजा के प्रावधान पर कहा गया है:-
यदि न प्रणयेद्राजा दण्डं दण्ड्येष्वतन्द्रितः ।शूले मत्स्यानिवापक्ष्यन्दुर्बलान्बलवत्तराः ॥२०॥
(यदि न प्रणयेत् राजा दण्डम् दण्ड्येषु अतन्द्रितः शूले मत्स्यान् इव अपक्ष्यन् दुर्बलान् बलवत्तराः ।)
अर्थात यदि राजा दण्डित किए जाने योग्य दुर्जनों के ऊपर दण्ड का प्रयोग नहीं करता है, तो बलशाली व्यक्ति दुर्बल लोगों को वैसे ही पकाऐंगे जैसे शूल अथवा सींक की मदद से मछली पकाई जाती है ।दूसरे शब्दों में तात्पर्य यह है कि समुचित सजा का कार्यान्वयन न होने पर बलहीन लोगों पर बलशाली जन अत्याचार करेंगे । ध्यान रहे कि अत्याचार करने वाले शक्तिशाली होते हैं; वे धनबल, बाहुबल, शासकीय पहुंच आदि के सहारे अपनी इच्छा से कार्य करने वाले होते हैं, और निर्बलों को कच्चा चबा जाने की नीयत रखते हैं । आज के सामाजिक माहौल में ऐसा सब हो रहा है यह हम सभी देख रहे हैं । दण्डित होने का भय दुर्जनों को रोकता है । राजनीति कहती है कि राजा का कर्तव्य है कि अपराधी को दण्ड देने में उसे रियायत तथा विलंब नहीं करना चाहिए ।
तो मित्रों अब देखना ये है कि राजनीति किस करवट बैठती है। पर आप सोचना और समझना ना छोड़े। अब जंहा तक बात अदालतों और क़ानूनी प्रक्रिया के रहने या ना रहने का है तो वो तब भी थीं और आज भी हैं |