आइये इस कम्युनिज्म के काले, भयानक और अंधेरी दुनिया का तथ्यात्मक विश्लेषण करते हैँ। आरम्भ करते हैँ जर्मनी के उस छोटे से कस्बे से जंहा पर इस भयानक और समाजविरोधी सिद्धांत का जन्म हुआ था।
आइये इस कम्युनिज्म के काले, भयानक और अंधेरी दुनिया का तथ्यात्मक विश्लेषण करते हैँ। आरम्भ करते हैँ जर्मनी के उस छोटे से कस्बे से जंहा पर इस भयानक और समाजविरोधी सिद्धांत का जन्म हुआ था।आइये इस कम्युनिज्म के काले, भयानक और अंधेरी दुनिया का तथ्यात्मक विश्लेषण करते हैँ। आरम्भ करते हैँ जर्मनी के उस छोटे से कस्बे से जंहा पर इस भयानक और समाजविरोधी सिद्धांत का जन्म हुआ था।
मित्रों श्रीमान हेनरिक मार्क्स एक यहूदी थे जो जर्मनी के एक जाने माने वकील और अंगूरो के सफल व्यवसायी थे। श्रीमान हेनरिक की शादी हेनरीट प्रेसबर्ग के साथ हुई थी। हेनरीट प्रेसबर्ग एक समृद्ध व्यापारिक परिवार से जुड़ी एक डच यहूदी थीं, जिन्होंने बाद में फिलिप्स इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी की स्थापना की । हेनरीट प्रेसबर्ग की बहन सोफी प्रेसबर्ग ने लायन फिलिप्स से शादी की थी, लायन फिलिप्स हालैंड (डच) के एक धनवान तंबाकू निर्माता और उद्योगपति थे।मित्रों श्रीमान हेनरिक मार्क्स एक यहूदी थे जो जर्मनी के एक जाने माने वकील और अंगूरो के सफल व्यवसायी थे। श्रीमान हेनरिक की शादी हेनरीट प्रेसबर्ग के साथ हुई थी। हेनरीट प्रेसबर्ग एक समृद्ध व्यापारिक परिवार से जुड़ी एक डच यहूदी थीं, जिन्होंने बाद में फिलिप्स इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी की स्थापना की । हेनरीट प्रेसबर्ग की बहन सोफी प्रेसबर्ग ने लायन फिलिप्स से शादी की थी, लायन फिलिप्स हालैंड (डच) के एक धनवान तंबाकू निर्माता और उद्योगपति थे।
दिनांक ५ मई १८१८ को जर्मनी के राइन प्रांत के ट्रियर नगर में इन्हीं हेनरिक मार्क्स और हेनरीट प्रेसबर्ग के घर तीसरे पुत्र के रूप में एक ऐसे लड़के का जन्म हुआ जिसके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों कि आड़ में इंसानियत शर्मशार होती रही और खुन के घूंट पीती रही जो आज भी अनवरत जारी है। इस लड़के का नाम कार्ल हेनरिक मार्क्स रखा गया। इनके पिता के कुल ९ संताने थी।दिनांक ५ मई १८१८ को जर्मनी के राइन प्रांत के ट्रियर नगर में इन्हीं हेनरिक मार्क्स और हेनरीट प्रेसबर्ग के घर तीसरे पुत्र के रूप में एक ऐसे लड़के का जन्म हुआ जिसके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों कि आड़ में इंसानियत शर्मशार होती रही और खुन के घूंट पीती रही जो आज भी अनवरत जारी है। इस लड़के का नाम कार्ल हेनरिक मार्क्स रखा गया। इनके पिता के कुल ९ संताने थी।
पिता ने अपने व्यावसायिक हितों और तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए कार्ल हेनरिक मार्क्स के जन्म के चार वर्षो के पश्चात हि यहूदी धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।पिता ने अपने व्यावसायिक हितों और तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए कार्ल हेनरिक मार्क्स के जन्म के चार वर्षो के पश्चात हि यहूदी धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।
शिक्षा:-शिक्षा:-
मित्रों अब हम शैक्षणिक योग्यता पर थोड़ी सी दृष्टि डालकर आगे कार्ल हेनरिक मार्क्स के चरित्र का चित्रण करेंगे।
प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल जिमनेजियम में पूरी हुई। अपने पिता के सलाह पर बोन विश्वविद्यालय से उन्होंने कानून की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् बर्लिन विश्वविद्यालय से दर्शन एवं इतिहास का अध्ययन किया और जेना विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
विवाह:-विवाह:-
उन्होंने वर्ष १८४३ ई में जर्मन थिएटर समीक्षक और राजनीतिक कार्यकर्ता जेनी वॉन वेस्टफेलन से शादी की, जिनसे इन्हें ७ बच्चे पैदा हुए। साम्यवाद अर्थात सर्वहारा का सिद्धांत देने वाले कार्ल हेनरिक मार्क्स के चरित्र पर एक दृष्टि डालते हैँ:-
उन्होंने वर्ष १८४३ ई में जर्मन थिएटर समीक्षक और राजनीतिक कार्यकर्ता जेनी वॉन वेस्टफेलन से शादी की, जिनसे इन्हें ७ बच्चे पैदा हुए।साम्यवाद अर्थात सर्वहारा का सिद्धांत देने वाले कार्ल हेनरिक मार्क्स के चरित्र पर एक दृष्टि डालते हैँ:-
साम्यवाद अर्थात सर्वहारा का सिद्धांत देने वाले कार्ल हेनरिक मार्क्स के चरित्र पर एक दृष्टि डालते हैँ:-साम्यवाद अर्थात सर्वहारा का सिद्धांत देने वाले कार्ल हेनरिक मार्क्स के चरित्र पर एक दृष्टि डालते हैँ:-
परजीवी व्यक्ति:- परजीवी व्यक्ति:-
कार्ल हेनरिक मार्क्स, जीवन भर परजीवियों की भांति हि जीते रहे, इन्होंने इंसानियत का खुन पिने वाले सिद्धांतो को देने वाली किताबों, कविताओं, थिसिस, लेखों इत्यादि को लिखने के अलावा कभी कोई कार्य नहीं किया। इनके आकर्मण्यता का शिकार इनके परिवार और बच्चों को भी बनना पड़ा। इनके सात बच्चोँ जेनी कैरोलिन ; जेनी लौरा ; एडगर; हेनरी एडवर्ड गाय; जेनी एवलिन फ्रांसिस; जेनी जूलिया एलेनोर और एक और जिनका नाम लेने से पहले ही मृत्यु हो गई में से केवल तिन हि जिंदा बच पाए बाकी सभी अपने पिता के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त हो गये।कार्ल हेनरिक मार्क्स, जीवन भर परजीवियों की भांति हि जीते रहे, इन्होंने इंसानियत का खुन पिने वाले सिद्धांतो को देने वाली किताबों, कविताओं, थिसिस, लेखों इत्यादि को लिखने के अलावा कभी कोई कार्य नहीं किया। इनके आकर्मण्यता का शिकार इनके परिवार और बच्चों को भी बनना पड़ा। इनके सात बच्चोँ जेनी कैरोलिन ; जेनी लौरा ; एडगर; हेनरी एडवर्ड गाय; जेनी एवलिन फ्रांसिस; जेनी जूलिया एलेनोर और एक और जिनका नाम लेने से पहले ही मृत्यु हो गई में से केवल तिन हि जिंदा बच पाए बाकी सभी अपने पिता के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त हो गये।
अपनी पुरी शिक्षा दीक्षा अपने मां बाप के मेहनत की कमाई पर की। शादी भी इनके मां बाप के खर्चों पर हि हुई।अपनी पुरी शिक्षा दीक्षा अपने मां बाप के मेहनत की कमाई पर की। शादी भी इनके मां बाप के खर्चों पर हि हुई।
जब इस व्यक्ति के समाज विरोधी सिद्धांतों के लिए लंदन से भी भगा दिया गया तब ये अपनी जीविका के लिए अपनी मौसी सोफी प्रेसबर्ग और मौसा लायन फिलिप्स से पैसे उधार लेकर अपना जीवन यापन करते रहे।जब इस व्यक्ति के समाज विरोधी सिद्धांतों के लिए लंदन से भी भगा दिया गया तब ये अपनी जीविका के लिए अपनी मौसी सोफी प्रेसबर्ग और मौसा लायन फिलिप्स से पैसे उधार लेकर अपना जीवन यापन करते रहे।
फ्रेडरिक एंगेल्स' जो कि एक जर्मन समाजशास्त्री एवं दार्शनिक थे, ने १८४५ ई में इंग्लैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति पर "द कंडीशन ऑफ वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड" नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने मार्क्स के साथ मिलकर १८४८ ई में कम्युनिस्ट घोषणापत्र की रचना की और बाद में आधारहीन पुस्तक "पूंजी" दास कैपिटल को लिखने के लिये मार्क्स की आर्थिक तौर पर सहायता की। कार्ल हेनरिक मार्क्स के बाकी कि पुरी जिंदगी इसी एंगेल्स के दिये गये पैसों के आधार पर बीती। इसी एंगेल्स ने कार्ल हेनरिक मार्क्स और उसके परिवार का पूरा खर्च उठाया।फ्रेडरिक एंगेल्स' जो कि एक जर्मन समाजशास्त्री एवं दार्शनिक थे, ने १८४५ ई में इंग्लैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति पर "द कंडीशन ऑफ वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड" नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने मार्क्स के साथ मिलकर १८४८ ई में कम्युनिस्ट घोषणापत्र की रचना की और बाद में आधारहीन पुस्तक "पूंजी" दास कैपिटल को लिखने के लिये मार्क्स की आर्थिक तौर पर सहायता की। कार्ल हेनरिक मार्क्स के बाकी कि पुरी जिंदगी इसी एंगेल्स के दिये गये पैसों के आधार पर बीती। इसी एंगेल्स ने कार्ल हेनरिक मार्क्स और उसके परिवार का पूरा खर्च उठाया।
और यही नहीं मार्क्स की मौत हो जाने के बाद एंगेल्स ने "पूंजी के दूसरे और तीसरे खंड का संपादन भी किया। एंगेल्स ने अतिरिक्त पूंजी के नियम पर मार्क्स के लेखों को जमा करने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई और अंत में इसे पूंजी के चौथे खंड के तौर पर प्रकाशित किया गया।और यही नहीं मार्क्स की मौत हो जाने के बाद एंगेल्स ने "पूंजी के दूसरे और तीसरे खंड का संपादन भी किया। एंगेल्स ने अतिरिक्त पूंजी के नियम पर मार्क्स के लेखों को जमा करने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई और अंत में इसे पूंजी के चौथे खंड के तौर पर प्रकाशित किया गया।
मीडिया में उपलब्ध लेखों और अन्य सामग्रियों से ये जानकारी प्राप्त होती है कि ये कार्ल मार्क्स दार्शनिक ही नहीं, अपितु ‘दुसरे का माल अपना मानकर उपयोग करने वाले’ अर्थशास्त्री भी थे। रिश्तेदारों और मित्रों से उधार लेकर खा जाने के पश्चात उसे लौटाने के बदले उन्हें कोसने-धिक्कारने लगते थे, ताकि कोई उनसे दिया गया उधार ना वापस मांग ले । मीडिया में उपलब्ध लेखों और अन्य सामग्रियों से ये जानकारी प्राप्त होती है कि ये कार्ल मार्क्स दार्शनिक ही नहीं, अपितु ‘दुसरे का माल अपना मानकर उपयोग करने वाले’ अर्थशास्त्री भी थे। रिश्तेदारों और मित्रों से उधार लेकर खा जाने के पश्चात उसे लौटाने के बदले उन्हें कोसने-धिक्कारने लगते थे, ताकि कोई उनसे दिया गया उधार ना वापस मांग ले ।
इस कार्ल हेनरिक मार्क्स ने खुद के स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपनी मां की रही-सही बचत पर भी हाथ साफ़ कर दिया। ऐसे रिश्तेदारों को ये कार्ल हेनरिक मार्क्स ‘विरासत की राह का अड़ंगा’ कहा करता था, जो जल्दी मरते नहीं थे।इस कार्ल हेनरिक मार्क्स ने खुद के स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपनी मां की रही-सही बचत पर भी हाथ साफ़ कर दिया। ऐसे रिश्तेदारों को ये कार्ल हेनरिक मार्क्स ‘विरासत की राह का अड़ंगा’ कहा करता था, जो जल्दी मरते नहीं थे।
ज्ञात सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इसने अपने परम मित्र फ्रीड्रिश एंगेल्स के नाम एक पत्र में अपने एक बीमार नज़दीकी रिश्तेदार के बारे में लिखते हुए कहा कि , ‘यह कुत्ता यदि अब मर जाता, तो मेरा काम बन जाता।’ तीन साल बाद जब वह मर गया, तो मार्क्स ने अपनी खुशी को शब्दों में उतारते हुए लिखा, ‘कितनी खुशी की बात है!’ज्ञात सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इसने अपने परम मित्र फ्रीड्रिश एंगेल्स के नाम एक पत्र में अपने एक बीमार नज़दीकी रिश्तेदार के बारे में लिखते हुए कहा कि , ‘यह कुत्ता यदि अब मर जाता, तो मेरा काम बन जाता।’ तीन साल बाद जब वह मर गया, तो मार्क्स ने अपनी खुशी को शब्दों में उतारते हुए लिखा, ‘कितनी खुशी की बात है!’
चरित्र:
-इनके कामचोरी वाले व्यक्तित्व से तो आप परिचित हो गये, अब आइये इनके चरित्र से भी दो चार कर लेते है। इस कार्ल हेनरिक मार्क्स ने अपनी मां समान नौकरानी हेलेना देमुट से अनैतिक रूप से सम्भोग करके एक गर्भवती कर दिया और समय आने पर हेलेना देमुट ने जून १८५१ में एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम हेनरी फ्रेडरिक था। ये मार्क्स इतना डरपोक और कायर था की इसने जीवन भर अपने अवैध बच्चे हेनरिक फ्रेडरिक को ना तो अपना नाम दिया और ना हि उसका पालन पोषण किया। और अपने जीवन में उन्होंने ऐसे एक नहीं कम से कम ६ कारनामे किये और किसी की भी जिम्मेदारी नहीं ली। वही ये हेलेना देमुट इस कार्ल मार्क्स के मरने तक( दिनांक १४ मार्च १८८३) सेवा करती रही।इनके कामचोरी वाले व्यक्तित्व से तो आप परिचित हो गये, अब आइये इनके चरित्र से भी दो चार कर लेते है। इस कार्ल हेनरिक मार्क्स ने अपनी मां समान नौकरानी हेलेना देमुट से अनैतिक रूप से सम्भोग करके एक गर्भवती कर दिया और समय आने पर हेलेना देमुट ने जून १८५१ में एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम हेनरी फ्रेडरिक था। ये मार्क्स इतना डरपोक और कायर था की इसने जीवन भर अपने अवैध बच्चे हेनरिक फ्रेडरिक को ना तो अपना नाम दिया और ना हि उसका पालन पोषण किया। और अपने जीवन में उन्होंने ऐसे एक नहीं कम से कम ६ कारनामे किये और किसी की भी जिम्मेदारी नहीं ली। वही ये हेलेना देमुट इस कार्ल मार्क्स के मरने तक( दिनांक १४ मार्च १८८३) सेवा करती रही।
घृणा, राग, द्वेष, झूठ, फरेब और ईर्ष्या:-
कार्ल हेनरिक मार्क्स में ये सारे अवगुण कुट कूट कर भरे थे।कार्ल मार्क्स के एक मित्र थे अर्नोल्ड रूगे। उनके नाम एक पत्र में मार्क्स ने लिखा कि उनके लिए "यहूदी धर्म बहुत घृणित है।यहूदी धर्म का लौकिक आधार है स्वार्थीपन! यहूदियों की सांसारिक संस्कृति है शतरंजी मात देना! उनका लौकिक भगवान है पैसा!यहूदी धर्म कला, इतिहास और मानवीयता के प्रति दुर्भावना से भरा है। उसमें तो औरत भी शतरंज का मोहरा है।" इस पत्र में मार्क्स ने यहूदियों के बारे में जो कुछ लिखा है, वह हिटलर की नाज़ी पार्टी के किसी घृणा-प्रचार से कम नहीं है।
एक घर या फ्लैट किराए पर लेते समय,कार्ल मार्क्स अक्सर छद्म अर्थात नकली नामों का इस्तेमाल करते थे। पेरिस में रहते हुए, उन्होंने अपने लिए "महाशय रामबोज़" नाम का इस्तेमाल किया, जबकि लंदन में, उन्होंने "ए विलियम्स" के रूप में अपने पत्रों पर हस्ताक्षर किए। उनके दोस्तों ने उनके काले रंग और काले घुंघराले बालों के कारण उन्हें "मूर" कहा, जबकि उन्होंने अपने बच्चों को "ओल्ड निक" और "चार्ली" कहने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपने दोस्तों और परिवार को उपनाम और छद्म नाम भी दिए, फ्रेडरिक एंगेल्स को "जनरल" के रूप में संदर्भित करते हुए, उनके हाउसकीपर हेलेन को "लेनचेन" या "निम" के रूप में संदर्भित किया, जबकि उनकी बेटियों में से एक जेनीचेन को "जनरल" के रूप में संदर्भित किया गया था। (स्त्रोत विकिपीडिया)!
स्वास्थ्य:-
ट्रायर टैवर्न क्लब ड्रिंकिंग सोसाइटी में शामिल होने के पश्चात कार्ल मार्क्स ने अपनी मृत्यु तक जमकर शराब पी। कार्ल मार्क्स खराब स्वास्थ्य से पीड़ित थे (जिसे उन्होंने स्वयं "अस्तित्व की दयनीयता" के रूप में वर्णित किया था)। उनके जीवनी लेखक वर्नर ब्लूमेनबर्ग ने कार्ल मार्क्स के इस अवस्था के लिए एक अनुपयुक्त जीवन शैली के कारण हुए जिगर और पित्त की समस्याओं को जिम्मेदार ठहराया, जो कार्ल मार्क्स को वर्ष १८४९ ई में हुई थी और जिससे वे बाद में कभी मुक्त नहीं हुए। कार्ल मार्क्स अक्सर सिरदर्द, आंखों की सूजन, सिर में नसों का दर्द और आमवाती दर्द से पीड़ित रहते थे।
वर्ष १८७७ ई में कार्ल मार्क्स एक गंभीर तंत्रिका संबंधी विकार से पीड़ित हो गये और इसके पीछे दीर्घकालीन अनिद्रा एक कारण था और इससे उबरने के लिए कार्ल मार्क्स ने नशीले पदार्थों का सहारा लिया। रात में अत्यधिक काम और दोषपूर्ण आहार से बीमारी बढ़ गई थी। मार्क्स मसालेदार व्यंजन, स्मोक्ड फिश, कैवियार, मसालेदार खीरे के शौकीन थे जबकी "इनमें से कोई भी लिवर के रोगियों के लिए अच्छा नहीं है"। उन्हें शराब और लिकर भी पसंद थे और एक बड़ी मात्रा में धूम्रपान करते थे "और चूंकि उनके पास पैसे नहीं थे, यह आमतौर पर कार्ल हेनरिक मार्क्स खराब गुणवत्ता वाले सिगार का सेवन करते थे"। वर्ष १८६३ ई से, मार्क्स ने फोड़ों के बारे में बहुत शिकायत की उनके शरीर में उग आये फोड़े इतने खराब थे कि मार्क्स न तो सीधे बैठ सकते थे और न ही सीधे काम कर सकते थे। ब्लूमेनबर्ग के अनुसार, मार्क्स का चिड़चिड़ापन अक्सर लिवर के रोगियों में पाया जाता है।( स्त्रोत विकिपीडिया)
जलन:-
फेर्डिनांड लसाल मार्क्स के समय के एक ऐसे यहूदी थे, जिसने जर्मन श्रमिकों को एकजुट करने की एक संस्था बना रखी थी। वर्ष १८६२ में वे मार्क्स से लंदन में मिले थे। क्योंकि मार्क्स भी अपने आप को जर्मन मज़दूर वर्ग का एक बड़ा नेता मानते थे, इसलिए वे लसाल से बहुत जलते थे। एंगेल्स के नाम अपने पत्रों में वे लसाल के लिए ‘यहूदी नीग्रो’ (हब्शी) जैसे शब्दों का प्रयोग करते थे।
मार्क्स और एंगेल्स का मार्क्सवाद चाहे जितना तार्किक लगे, किंतु पूंजीवाद में अंतर्निहित विरोधाभासों की तरह ही न तो मार्क्सवाद और न ही इन दोनों का निजी जीवन विरोधाभासों से मुक्त था।
मार्क्स और एंगेल्स दोनों महानुभाव बात तो करते हैं सर्वहारा के उद्धार की, पर उन्होंने खुद मेहनत-मज़दूरी कभी नहीं की। इन्हीं तथ्यों को रेखांकित करते हुए, मई २०१७ में, जर्मनी के दो भाइयों ब्यौर्न और सीमोन अक्स्तीनात ने, कार्ल हेनरिक मार्क्स के द्वारा लिखे गये ऐसे ही पत्र आदि जुटा कर उन्हें पॉकेट-बुक के रूप में प्रकाशित किया। पुस्तक को नाम दिया, ’मार्क्स और एंगेल्स अंतरंग’ (मार्क्स उन्ट एंगेल्स इन्टीम)।सीमोन अक्स्तीनात के हाथ अचानक कुछ ऐसे उद्धरण लगे, थे, जो काफी घटिया क़िस्म के थे।
मजदूरों का अपमान:-
पुस्तक के लोकार्पण के दिन जर्मन मीडिया के साथ बातचीत में ब्यौर्न अक्स्तीनात ने कहा कि लोग यही मानते हैं कि मार्क्स सर्वहारा वर्ग के मसीहा थे और पूंजीपतियों, कुलीनों और सामंतों से लड़ने का आह्वान करते थे परन्तु, हम पाते हैं कि "कहने को तो वे मेहनत-मज़दूरी करने वालों को शोषण से मुक्ति दिलाना चाहते थे, किंतु मूलतः उन्हें ‘महामूर्ख’ ही मानते थे।" अपनी कई चिट्ठियों में उन्होंने मज़दूरों को अपमानित किया है।
ब्यौर्न और सीमोन अक्स्तीनात की पुस्तक मार्क्स और एंगेल्स अंतरंग’ (मार्क्स उन्ट एंगेल्स इन्टीम) में इसकी पुष्टि करता मार्क्स एक घटिया उद्धरण इस प्रकार है, "‘इन मज़दूरों से भी बड़ा संपूर्ण गधा तो कोई हो ही नहीं सकता।"’
दो खंडों वाली अपनी भारी-भरकम पुस्तक ‘दास कैपिटल’ के एक खंड के बारें में कार्ल हेनरिक मार्क्स ने खुद टिप्पणी की है, "मैं इस खंड को और लंबा खींच रहा हूं, क्योंकि जर्मन कुत्ते किताबों की क़ीमत वॉल्यूम में आंकते हैं...।" उन्हें इस बात पर भी काफ़ी गर्व था कि वे जर्मन हैं।
अतीत में जर्मन और फ्रांसीसी एक-दूसरे से ख़ूब लड़ा करते थे। इसी बात को लेकर मार्क्स ने एक पत्र में लिखा, "इन फ़्रांसीसियों को तो ख़ूब कूटा जाना चाहिये।" इस्लाम से भी उन्हें शिकायत थी उनका कहना था, "इस्लाम मुसलमानों और नास्तिकों के बीच एक सतत शत्रुता की स्थिति पैदा कर रहा है।"
कार्ल मार्क्स हीगेल के विचारों से प्रभावित थे।
कार्ल मार्क्स ने ‘होली फैमिली’ नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई जिसमें उन्होंने सर्वहारा वर्ग और भौतिक दर्शन की सैद्धांतिक विचारधारा पर सर्वाधिक प्रकाश डाला परन्तु इसमें लिखी बातों को कार्ल हेनरिक मार्क्स ने अपने जीवन में कभी नहीं अपनाया। वे परजीवी बनकर जिये और परजीवी बनकर मरे।
मार्क्स ने अपने साम्यवादी घोषणा-पत्र में पूंजीवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया था, परन्तु जिंदगी भर पूँजीपतियों के फेंके गये टुकड़ो लर पलते रहे। दूसरों की सम्पत्ति का उपभोग करना हि इनका मुख्य उद्देश्य था।
मार्क्स के अनुसार विश्व में अशांति एवं असंतोष का कारण गरीबों एवं अमीरों के मध्य का वर्ग संघर्ष ही है, पर मार्क्स के लिए यह संघर्ष कभी था हि नहीं, क्योंकि उधार पर जिंदगी जिने वाले के पास ना गरीबों की जिंदगी होती है और ना अमीरों की।
उन्होंने कहा कि उत्तराधिकार की प्रथा का अंत किया जाना चाहिये, इसके पीछे इनका एकमात्र उद्देश्य ये था इनके जैसे जान्गरचोर लोग केवल दूसरे की कमाई पर आसानी से जीवन यापन करते रहें, लोग कमाकर अपने वंशजो के लिए कुछ ना करें अपितु मार्क्स और एंगेल्स जैसे कामचोर लोगों को दान कर जाएँ।
मार्क्स का मत था कि आर्थिक एवं सामाजिक समानता हेतु शांतिपूर्वक क्रांति की जानी चाहिये और यदि इससे बदलाव न हो तो सशस्त्र क्रांति की जानी चाहिये।
मार्क्सवाद के नाम पर पिछले सौ वर्षों में दुनिया भर में जो दमन और अत्याचार हुए हैं, ख़ून और आंसू बहे हैं, उनके कारण जर्मनी के ट्रीयर के निवासियों को ही नहीं, जर्मनों के व्यापक बहुमत को भी इस बात पर गर्व की जगह शर्म महसूस होती है कि कार्ल मार्क्स एक जर्मन थे।
लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in