जी हाँ मित्रों यदि राजा देश और देश की प्रजा से अधिक स्वयं के अहंकार को महत्व देता है तो वह देश पाकिस्तान या फिर यूक्रेन जैसी भयानक परिस्थितियों का शिकार हो जाता है | यूक्रेन में २०१९ से पूर्व एक संजीदा और गंभीर सरकार कार्य कर रही थी | यूक्रेन के जनता के पास खाने को पर्याप्त खाना , पहनने को वस्त्र तथा रहने को पर्याप्त मात्रा में आवास था | यूक्रेन की जनता को गैस, पेट्रोल , बिजली ,पानी , डीजल और केरोसिन तेल जैसे आवश्यक वस्तुओ की कोई कमी नहीं थी | यूक्रेन आधुनिक सुख सुविधाओं में रचा बसा एक खुशहाल देश था | यूक्रेन की जनता के पास भगवान का दिया सबकुछ था , धन था, दौलत थी, शोहरत थी और सुकून था, परन्तु कभी कभी अधिक सुख-सुविधाये जनता को प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं और आनंदमय जीवन जीने वाली जनता प्रयोग करते वक्त दूर की सोच नहीं रख पाती और तत्क्षण उसे जो अच्छा लगता है निर्णय ले लेती है| और यही सब कुछ किया यूक्रेन वालो ने |
वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की का जन्म दिनांक २५ जनवरी १९७८ को एक यहूदी परिवार में हुआ था | एक यूक्रेनी यहूदी परिवार में जन्मे, ज़ेलेंस्की केंद्रीय यूक्रेन में निप्रॉपेट्रोस ओब्लास्ट के एक प्रमुख शहर क्रिवी रीह में एक मूल रूसी वक्ता के रूप में बड़े हुए। अपने अभिनय करियर से पहले, उन्होंने कीव नेशनल इकोनॉमिक यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कॉमेडी (मसखरे वाला) में करियर बनाया| वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने प्रारम्भिक सफलता प्राप्त करने के पश्चात स्वयं की एक प्रोडक्शन कंपनी "क्वार्टल ९५" के नाम से बनाई, जिसने फिल्मों, कार्टून और टीवी शो का निर्माण किया|
इसी "क्वार्टल ९५" के बैनर तले एक टीवी सीरीज़ "सर्वेंट ऑफ़ द पीपल" का भी निर्माण किया गया, जिसमें ज़ेलेंस्की ने यूक्रेनी राष्ट्रपति की भूमिका निभाई, टिक उसी प्रकार जैसे बॉलीवुड के "नायक" फिल्म में अनिल कपूर ने एक दिन के मुख्यमंत्री और उसके पश्चात जनता के सहयोग से पांच वर्ष के मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई थी।
वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की की यह सीरीज "सर्वेंट ऑफ़ द पीपल" वर्ष २०१५ से २०१९ तक प्रसारित हुई और बेहद लोकप्रिय रही। उस वक्त तत्कालीन यूक्रेनी सरकार में व्याप्त कुछ भ्र्ष्टाचार से यूक्रेन की जनता नाखुश थी और कुछ परिवर्तन चाहती थी, इसी समय "सर्वेंट ऑफ़ द पीपल" में यूक्रेन के राष्ट्रपति की भूमिका निभा रहे वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की, भ्र्ष्टाचार से लड़ते हुए अत्यधिक लोकप्रिय हो गए और यूक्रेन की जनता को उसी में भावी नायक दिखाई देने लगा | इसी का लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए "Kvartal 95" के कर्मचारियों द्वारा मार्च २०१८ में टेलीविज़न शो के समान नाम वाली अर्थात "सर्वेंट ऑफ़ द पीपल" नामक एक राजनीतिक पार्टी बनाई गई |
वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने दिनांक ३१ दिसंबर २०१८ की शाम को टीवी चैनल 1+1 पर तत्कालीन राष्ट्रपति "पेट्रो पोरोशेंको" के नए साल की पूर्व संध्या के संबोधन के साथ २०१९ के राष्ट्रपति चुनाव में अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की। वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की टीवी शो वाली अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए पहले से ही चुनाव के लिए हुए जनमत सर्वेक्षणों में अग्रणी बन गए , अर्थात वो सर्वाधिक पसंदीदा उम्मीदवार के रूप में उभर कर सामने आये। यूक्रेन की जनता ने टीवी पर भ्र्ष्टाचार से लड़ते हुए वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की को असली नायक मान लिया और उन्हें लगा की यह मसखरा जिस प्रकार टीवी में दिखाए जाने वाले अपने सीरीज में भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध लड़ता है, उसी प्रकार यूक्रेन की जनता के लिए वह वास्तव में नायक की तरह उभरेगा और भ्र्ष्टाचार व अन्य परेशानियों से उन्हें मुक्ति दिलाएगा |
यूक्रेन की जनता की भावनाये वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की के द्वारा बनाये गए आभाषी व्यक्तित्व से जुड़ गयी और उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति पोरोशेंको को हराकर ७३.२३ प्रतिशत वोट के साथ चुनाव जीता। उन्होंने खुद को एक विरोधी प्रतिष्ठान और भ्रष्टाचार विरोधी व्यक्ति के रूप में जनता के सामने प्रस्तुत किया । उनकी पार्टी ने राष्ट्रपति के रूप में उनके चयन के तुरंत बाद हुए स्नैप विधायी चुनाव में शानदार जीत हासिल की। अपने प्रशासन के पहले दो वर्षों के दौरान, वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की का प्रशासन सामान्य रहा |
मित्रों यह तो सर्वविदित है की सोवियत संघ के विघटन से पूर्व पुरे विश्व में तीन धुरियां थी , १:- अमेरिका और उसके सहयोगी देश, २:- सोवियत संघ और उसके सहयोगी देश तथा ३:- भारत के नेतृत्व वाला गुटनिरपेक्ष देश | सोवियत संघ के विघटन के पश्चात रूस और चीन अमेरिका के एक प्रमुख प्रतिद्वंदी देश के रूप में उभरे |
मित्रों द्रितीय विश्वयुद्ध के पश्चात यूरोपीय देशों में सोवियत संघ के द्वारा फैलाये जा रहे कम्युनिस्ट प्रभाव के कारण यूरोप के देश खासकर इंग्लॅण्ड, फ़्रांस , अमेरिका इत्यादि अत्यंत भयभीत रहते थे अत: सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए एक सैन्य गठबंधन का जन्म दिनांक ४ अप्रैल , १९४९ को हुआ जिसे उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) कहते हैं| यह उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा स्थापित सैन्य गठबंधन, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मध्य और पूर्वी यूरोप में तैनात सोवियत सेनाओं का मुकाबला करने के उदेश्य से अस्तित्व में आया था । इसके मूल सदस्य बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका थे। मूल हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल होने वाले थे ग्रीस और तुर्की (१९५२ ); पश्चिम जर्मनी (१९५५ में तत्पश्चात १९९० में संयुक्त जर्मनी के रूप में); स्पेन (१९८२ ); चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड (१९९९); बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया (२००४ ); अल्बानिया और क्रोएशिया (२००९ ); मोंटेनेग्रो (२०१७ ); और उत्तर मैसेडोनिया (२०२० )। फ़्रांस १९६६ में नाटो की एकीकृत सैन्य कमान से हट गया लेकिन संगठन का सदस्य बना रहा, इसने २००९ में नाटो के सैन्य कमान में अपनी स्थिति फिर से शुरू की। फ़िनलैंड और स्वीडन, दो लंबे-तटस्थ देशों को औपचारिक रूप से २०२२ में नाटो में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था।
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात रूस और चीन अमेरिका के एक प्रमुख प्रतिद्वंदी देश के रूप में उभरे | मित्रों रूस ये कदापि नहीं चाहेगा की उसके देश की सीमाएं जिस किसी भी देश से मिलती हैं , वो देश रूस को छोड़कर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी देशो के साथ जाए | और रूस ने सोवियत संघ के विघटन के फलस्वरूप उत्पन्न हुए सभी नए देशो को स्पष्ट रूप से चेतावनी दे राखी थी की जो कोई भी NATO या उसके सदस्य देशो के साथ किसी भी प्रकार का सैन्य गठबंधन करता है या NATO का सदस्य बनता है तो वो रूस का सबसे बड़ा दुश्मन होगा और रूस इसके लिए उसे कभी भी क्षमा नहीं करेगा |
यूक्रेन की सत्ता सम्हालने से पूर्व वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की को रूस और NATO के मध्य विश्वविख्यात दुश्मनी के बारे में पहले से ही पता था जब वो कपिल शर्मा की तरह मसखरी करके लोगो को हसाया करते थे | वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की से पूर्व के जितने भी राष्ट्रपति हुए थे उन सबमे से किसी ने भी रूस के विरुद्ध जाकर NATO का सदस्य बनना तो दूर उससे मित्रता की बात भी नहीं सोचता था | परन्तु वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने वही किया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था कम से कम एक असैनिक देश होने के कारण | मित्रों आपको बताते चले की यूक्रेन ने एक समझौते के तहत अपने देश की सेना को नगण्य बना दिया था , यहीनहीं स्वतंत्र होने के पश्चात उसके पास जितने भी परमाणु बम थे वो सब भी रूस ने ले लिए थे | ऐसे में यूक्रेन रूस जैसे सर्वशक्तिशाली देश के विरुद्ध जाने की सोचता है तो निसंदेह वो अपने विनाश को आमंत्रित करता है |
राष्ट्रपति के रूप में वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की की पहली आधिकारिक विदेश यात्रा जून २०१९ में ब्रसेल्स की थी, जहाँ उन्होंने यूरोपीय संघ और नाटो (NATO) के अधिकारियों के साथ मुलाकात की। इसके पश्चात ही यह तय हो गया था की वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की की गयी ये भूल यूक्रेन को खून के आंसू रुलायेगी | रूस के राष्ट्रपति बलादिमिर पुतिन, जिनसे अमेरिका, ब्रिटेन , फ़्रांस और जर्मनी जैसे यूरोपीय देश सीधे उलझने में डरते हैं , वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने NATO से मुलाकात करके उनको सीधी चुनौती दे दी | इसका परिणाम ये निकला की रूस ने सरेआम चेतावनी दी की यदि यूक्रेन NATO के करीब जाता है तो उसे भरी कीमत चुकानी पड़ेगी | अब वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने ब्लादिमीर पुतिन की चेतावनी को भी अपने टीवी सीरीज का एक डायलॉग समझने की भूल की और उधर यूक्रेन की जनता इस सोच में थी की एक अच्छा नेता चुन लिया है वो सब सम्हाल लेगा |
इधर रूस के दुश्मन देश ब्रिटेन और अमेरिका के द्वारा झाड़ पर चढ़ाने (अर्थात झूठी प्रशंसा सुनने ) के पश्चात तो वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की स्वयं को बाघ बहादुर समझने लगे और उन्होंने ब्लादिमीर पुतिन को चेतावनी देना शुरू कर दिया और यही नहीं उन्होंने टीवी के माध्यम से यूक्रेन और रूस दोनों देशो की जनता को ब्लादिमीर पुतिन के विरुद्ध भड़काना शुरू कर दिया | इन सबका परिणाम ये निकला की जो क्रोध ब्लादिमीर पुतिन ने अपने छाती में दबा रखा था , वो अब उफान मार कर बाहर आने लगा | वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की को पूरा विश्वाश था की ब्लादिमीर पुतिन द्वारा आक्रमण करने से पूर्व ही ब्रिटेन, अमेरिका, फ़्रांस, जर्मनी, चेक गणराज्य , इटली और ब्राजील जैसे देश उन्हें तुरंत पैसा और हथियार भेजना शुरू कर देंगे, जिसके डैम पर वो रूस का सामना डटकर कर लेंगे |
अप्रैल २०२१ में, यूक्रेनी सीमाओं पर रूसी सैन्य बलो का जमाव शुरु हो गया जिसे देख वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन से बात की और NATO सदस्यों से सदस्यता के लिए यूक्रेन के अनुरोध को शीघ्रातिशीघ्र स्वीकार कर कार्यवाही पूरी करने का अनुरोध किया । परन्तु मित्रों अमेरिका सहित NATO के अन्य देशो को इस तथ्य का भलीभांति ज्ञान था कि, यदि यूक्रेन को NATO की सदस्य्ता दी गयी तो रूस विश्वयुद्ध छेड़ देगा , जिसके कारण पहले से ही डूबी हुई यूरपो की अर्थव्यवस्था पूर्णतया डूब जाएगी, अत: यूरोप को बचने के लिए NATO ने वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की को धोखा दे दिया और आज तक उसे NATO का सदस्य नहीं बनाया |
इसी बिच दिनाँक २६ नवंबर २०२१ को, ज़ेलेंस्की ने रूस और यूक्रेनी कुलीन रिनैट अख्मेतोव पर उनकी सरकार को उखाड़ फेंकने की योजना का समर्थन करने का आरोप लगाया | दिनांक २४ फरवरी २०२१ की सुबह ब्लादिमीर पुतिन ने आखिरकार घोषणा कर दी कि रूस, यूक्रेन के एक हिस्से डोनबास में "विशेष सैन्य अभियान" शुरू कर रहा है और रूसी मिसाइलों ने यूक्रेन में कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया जिसके फलस्वरूप वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने पूरे देश में मार्शल लॉ घोषित कर दिया।
इधर यूक्रेन रूस के मिसाइलों से धधकने लगा, जीते-जागते , हँसते-खेलते शहर शमशान बनने लगे , निर्दोष जनता असमय काल का ग्रास बनने लगी, मासूम बच्चो की लाशे दिखने लगी, रोटी, कपड़ा ,मकान, दवा, बिजली और पानी सबके सब अचानक गायब होने लगे और उधर वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की को यूरोपीय और धूर्त देशो ने युध्दकालीन नेता के रूप में स्थापित करने लगे और वो मसखरा स्वयं को दुनिया का महान युद्धनेता समझने लगा और गौरवान्वित होने लगा | अपने देश को युद्ध की विभीषिका में झोंक कर व् जनता को मरने के लिए छोड़कर वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की अपना छाती फुलाए सभी यूरोपीय देशो का दौरा करने लगे और गोला बारूद,तोप, मिसाइल बेम, रॉकेट, लड़ाकू विमान, हेलीकाप्टर तथा मिसाइल रोधी तकनीक जुटाने लगे |
जब इतिहासकार एंड्रयू रॉबर्ट्स ने उनकी तुलना विंस्टन चर्चिल से की तो वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की और फूल के कुप्पा हो गये | हार्वर्ड पॉलिटिकल रिव्यू ने कहा कि ज़ेलेंस्की ने "पारंपरिक द्वारपालों को दरकिनार करते हुए इतिहास के पहले सही मायने में ऑनलाइन युद्धकालीन नेता बनने के लिए सोशल मीडिया की शक्ति का उपयोग किया है क्योंकि वह लोगों तक पहुंचने के लिए इंटरनेट का उपयोग करते हैं।" ये बाते सुनकर वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ख़ुशी के सातवे आसमान पर पहुंच गए, पर वो भूल गए की उनका हँसता खेलता देश आज मातम मनाने के लिए विवश है इसके पीछे केवल और केवल उनका अपना अहंकार और ऐतिहासिक भूल है |
यही नहीं इंग्लॅण्ड जैसे धूर्त और मक्कार देशों ने उन्हें एक राष्ट्रीय नायक के रूप में वर्णित किया। द हिल, डॉयचे वेले, डेर स्पीगेल और यूएसए टुडे जैसे प्रकाशनों सहित कई टिप्पणीकारों द्वारा वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की को "वैश्विक नायक" का ख़िताब दिया जाने लगा । बीबीसी न्यूज़ और द गार्जियन ने बताया है कि आक्रमण के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को उनके आलोचकों से भी प्रशंसा मिली है। और इन सभी ने मिलकर मसखरे वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की को एक ऐसे आभाषी दुनिया में पहुंचा दिया जंहा से वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की को अपने देश की बर्बादी और तिल तिल कर मर रही जनता का करुण रुदन नहीं दिख रहा | इतनी बर्बादी होने के पश्चात भी वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने दिनाक २८ फरवरी २०२२ को युद्ध के दौरान यूरोपीय संघ में सदस्यता के लिए आवेदन पर हस्ताक्षर करने के बाद यूक्रेनी लोगों के लिए अभिशाप को आमंत्रित किया |
दिनांक ७ मार्च २०२२ को, चेक राष्ट्रपति मिलोस ज़मैन ने "रूस के आक्रमण के सामने उनकी बहादुरी और साहस" के लिए ज़ेलेंस्की को चेक गणराज्य के सर्वोच्च राज्य पुरस्कार, ऑर्डर ऑफ़ द व्हाइट लायन से सम्मानित करने का निर्णय लिया। परन्तु प्रश्न ये उठता है की क्या ये सभी ख़िताब या पुरस्कार या सम्मान ,यूक्रेन को पुरानी स्थिति में ला सकते हैं | क्या वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की की व्यक्तिगत उपलब्धियां यूक्रेनी जनता के मारे गए सगे संबंधियों और बच्चों को वापस ला सकते हैं |
आज दिनांक १६ फरवरी २०२३ है अर्थात २४ फरवरी २०२१ को शुरू हुआ यह युद्ध आज तक जारी है और इसने यूक्रेन की पूरी अर्थव्यवस्था को लगभग खत्म सा कर दिया है | ब्रिटेन, अमेरिका , फ़्रांस और जर्मनी जैसे देशों का और वंहा की जनता का तो कुछ नहीं बिगड़ा परन्तु उनके बहकावे में आकर वलोडिमिर ऑलेक्ज़ेंड्रोविच ज़ेलेंस्की ने अपने देश और जनता का सर्वनाश कर दिया | मित्रों युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं देता, यदि देता है तो केवल विध्वंश जो मानसिक , आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक प्रत्येक रूप में सामने आता है |
इस सम्पूर्ण लेख का निचोड़ केवल इतना है की जनता को भी अपने देश का नेतृत्व चुनने हेतु उसी मार्गदर्शिका का पालन करना चाहिए जिसका पालना भारत की महान जनता करती है |
लेखन और संकलन:-नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता )
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