मित्रों शांतिदूतो से पैसा मिलने पर पाकिस्तानी आतंकवादियों का भी केस लड़ने का हुनर रखने वाले सर्वोच्च न्यायालय के तथाकथित वकील ने अपने मस्तिष्क के पश्च भाग का सम्पूर्ण बल प्रयोग कर लिया अपनी समस्त ज्ञान झोंक दिया परन्तु वो केरला स्टोरी को रुकवा नहीं पाया।
सर्वोच्च न्यायालय: -
केरल स्टोरी में दिखाई गयी सच्चाई से अपना मानसिक संतुलन खोकर मानसिक व्याधि की असहनीय पीड़ा से बाधित "जमीयत उलेमा ए हिंद" के शांतिदूतों द्वारा प्रेषित की गयी याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश श्री डी. वाई.चंद्रचूर्ण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि केरल उच्च न्यायालय इस मामले पर सुनवाई कर रहा है। ऐसे में याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाना चाहिए।
मुख्य न्यायधीश ने यह भी कहा कि सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को प्रमाणपत्र दे दिया है, अत: हम इस याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकते।
मद्रास उच्च न्यायालय: -
मित्रों इन शांतिदूतों, छद्मधर्मनिरपेक्षता के आवरण में अपना असली चेहरा छुपाये हिन्दुओं, वामपंथियों, तर्कवादियों और धुर्तों की टोली को मद्रास उच्च न्यायालय में भी मुंह की खानी पड़ी।
जी हाँ मद्रास उच्च न्यायालय में चेन्नई के एक पत्रकार बी.आर. अरविंदक्षण ने यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि फिल्म देश की संप्रभुता और एकता को प्रभावित करेगी जिससे सार्वजनिक व्यवस्था में खलल पड़ेगा। इस याचिककर्ता के रूप में शांतिदूतों के हितैषी ने तर्क दिया था कि फिल्म केरल राज्य को आतंकवादी-समर्थक राज्य के रूप में चित्रित करने का एक जानबूझकर प्रयास है।
इस पर जस्टिस एडी जगदीश चंदिरा और जस्टिस सी सरवनन की अवकाशकालीन खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा "कि वे बिना फिल्म देखे यह कैसे मान सकते हैं कि फिल्म कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा करेगी।" मित्रों इसका उत्तर देने के स्थान पर उसके वकील ने यह कहना शुरु किया कि " अगर फिल्म को रिलीज करने की अनुमति दी जाती है, तो यह पूरे देश के लिए अपमानजनक होगा क्योंकि इससे यह धारणा बनेगी कि भारत एक ऐसा देश है जो आतंकवादी पैदा करता है।"
याचिककर्ता की धूर्त्तता को समझकर जस्टिस चंदिरा ने कहा,
"इतनी देर से क्यों आ रहे हो? अगर आप पहले आ जाते तो हम किसी को फिल्म देखने और फैसला करने के लिए कह सकते थे। आपने अभी तक फिल्म नहीं देखी है। आप कैसे मान सकते हो कि समस्या होगी? इसके अलावा केरल उच्च न्यायालय ने पहले ही इस मामले को अपने संज्ञान में ले चुका है..हम इस मामले को खारिज कर रहे हैं। केरल उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय पहले ही इस मुद्दे से निपट चुके हैं।"
अब उस धूर्त ने एक और चाल चलते हुए फिल्म को दिए गए प्रमाणपत्र को चुनौती इस तर्क के साथ दिया कि " फिल्म सिनेमैटोग्राफी अधिनियम की धारा 5 (बी) के तहत प्रमाणन के लिए अयोग्य थी, जो फिल्म के किसी भी हिस्से को राज्य की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता के खिलाफ पाए जाने पर प्रमाणन को रोकता है।"
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि फिल्म के निर्माताओं ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और दावा किया था कि 32000 महिलाएं आईएसआईएस संगठन में शामिल हुई हैं। यह भी कहा गया कि गृह मंत्रालय के पास भी इतनी बड़ी संख्या में लोगों के आतंकवादी संगठन में शामिल होने का कोई आंकड़ा नहीं है।
जब खंडपीठ ने जानना चाहा कि क्या फिल्म किसी अनुभवजन्य डेटा या रिकॉर्ड पर आधारित तब याचिकाकर्ता के वकील द्वारा न्यायालय को अवगत कराया गया कि फिल्म के निर्देशक ने यह दावा करते हुए साक्षात्कार दिया था कि आंकड़े केरल के एक पूर्व मुख्यमंत्री के भाषण के आधार पर आए थे।
फिल्म निर्माता श्री विपुल अमृतलाल शाह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सतोष परासरन ने कहा कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। और मित्रों इस प्रकार मद्रास उच्च न्यायालय ने भी इनकी याचिका को रद्द कर दिया।
केरल उच्च न्यायालय: -
मित्रों केरल उच्च न्यायालय में तर्क वितर्क जबरदस्त हुआ और याचिककर्ता और उनके वकील साहेब को उत्तर देते ना बना। आइये देखते हैँ कुछ प्रश्नोत्तर:-
जस्टिस एन. नागरेश (Justices N Nagaresh) और जस्टिस सोफी थॉमस (Sophy Thomas) की खंडपीठ के सामने इस मामले की सुनवाई हुई।
खंडपीठ ने याचिककर्ता के अधिवक्ता के तर्को को सुनने के पश्चात स्पष्ट रूप से कहा कि "इस फिल्म में इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ कुछ भी नहीं है। बल्कि इराक और सीरिया के बारे में दिखाया गया है। इस फिल्म में मुस्लिम धर्म पर कोई आरोप नहीं लगाया गया है, बल्कि आईआसआईएस (ISIS) की कहानी दिखाई गई है।
याचिककर्ता के वकील:-सुनवाई के दौरान अधिवक्ता शाह ने यह तर्क देते हुए अपने याचिका का बचाव किया कि "इस फिल्म का असर ऐसा होगा कि कोई मां बाप अपने बच्चे को मुस्लिम बच्चों के साथ हॉस्टल में रहने तक को नहीं भेजेगा। उन्होंने कहा कि मेरा पॉइंट बस इतना है कि वे लोग (फिल्ममेकर्स) दावा कर रहे हैं कि ये सच्ची कहानी पर आधारित है।"
माननीय खंडपीठ:-इस पर जस्टिस एन. नागरेश (Justices N Nagaresh) और जस्टिस सोफी थॉमस (Sophy Thomas) की खंडपीठ ने कहा कि ‘अगर ऐसा दावा कर रहे हैं तो ISIS को आकर इसका खंडन करने दीजिए…अगर इस बयान से आईएसआईएस को ठेस पहुंच रही है तो उन्हें कहने दीजिए…’।
याचिककर्ता के अधिवक्ता:- सुनवाई के दौरान अधिवक्ता शाह ने दावा किया कि जांच में सामने आया है कि लव जिहाद के कोई मामला है ही नहीं।
माननीय खंडपीठ :-ने कहा कि वास्तव में तो भूत और वैंपायर भी नहीं होते हैं, लेकिन फिल्म में तो दिखाते हैं। फिल्म पूरी तरह फिक्शन पर आधारित है। सिर्फ इसलिए कि किसी एक धर्म के प्रमुख को दिखाया गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि पूरे धर्म पर टिप्पणी है। हिंदी और मलयाली फिल्मों में तो लंबे वक्त से होता है’।
जस्टिस एन. नागरेश (Justices N Nagaresh) और जस्टिस सोफी थॉमस (Sophy Thomas) की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद हमने पाया कि इसमें किसी समुदाय के प्रति कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। किसी भी याचिकाकर्ता ने फिल्म देखी तक नहीं। कई ऐसी फिल्में हैं, जिनमें हिंदू संन्यासियों को स्मगलर या रेपिस्ट तक दिखाया गया है। लेकिन कुछ नहीं हुआ, किसी ने कोई प्रोटेस्ट नहीं किया। इस तरह की तमाम हिंदी और मलयाली फिल्में मिल जाएंगी।
और इस प्रकार इन वामपंथियों, सेक्यूलरो, तर्कवादियों और शांतिदूतों के लाख छाती पीटने के पश्चात भी "The Kerala Story" पूरे आन मान और सम्मान के साथ सच को दिखाती हुई सुपर डुपर ब्लाक ब्लस्टर फिल्म साबित होने जा रही है।
सेंसर बोर्ड से "द केरला स्टोरी" को ए सर्टिफिकेट मिला है! इसके साथ ही सेंसर बोर्ड ने फिल्म से कुल १० सच्चाई से भरे दृश्य भी हटवा दिये थे।
मित्रों आपको मीडिया रिपोर्ट के हवाले से बताते चलें कि "अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने वर्ष २०२० में ‘Country Reports on Terrorism 2020: India’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। इसके अनुसार नवंबर, २०२० तक कुल ६६ भारतीय आईएसआईएस (इसीस) की तरफ से लड़ रहे थे। गौर करने वाली बात यह है कि अब तक जो डाटा सामने आया है, इंटेलिजेंस एजेंसियों के मुताबिक इनमें से ९०% लोग दक्षिण भारत के राज्यों से हैं। चर्चित थिंक टैंक ORF की एक रिपोर्ट के मुताबिक आईएसआईएस ने भारत से जिन लोगों को भर्ती किया है, उनमें से ज्यादातर केरल के लोग हैं जो गल्फ कंट्री में काम करते थे या वहां से लौटने के बाद आईएसआईएस की तरफ उनका झुकाव बढ़ा।
मित्रों
जो लोग आमिर खान द्वारा PK जैसी घटिया फिल्म (जो केवल हिन्दु धर्म को बदनाम करने के उद्देश्य से बनायीं गयी) के निर्माण को , तांडव जैसी घटिया फिल्म के निर्माण को, पठान जैसी घटिया फिल्म(जिसमे ISI के जासूस को भारत का दोस्त और RAW ऑफिसर को भारत का दुश्मन दिखाया गया), पाताललोक और आश्रम जैसी घटिया वेब सीरीज इत्यादि को अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom ऑफ एक्सप्रेशन) बताकर खूब सराहना करते हैँ वही धूर्त और मक्कारों की टोली "The Kashmir Files", The Tashkand Files और " The Kerala Story" के विरोध में कैसे खड़े हो जाते हैँ। इसे प्रॉपगेंडा फिल्म कैसे बताने लगते हैँ।
या फिर इनका मानना केवल इतना है कि, सनातन धरमियों को कोई अधिकार हि नहीं है, जो है बस शांतिदूतों के लिए और इन वामपंथियों के लिए है।
कल तक यही छाती पीट पीट कर, पिछवाड़ा तोड़ तोड़ कर चिल्ला रहे थे कि "आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता" तथा "ISIS का इस्लाम असली इस्लाम नहीं है" और आज बेशर्मों की भांति ISIS को इस्लाम से जोड़कर , ISIS के क्रूरता, धूर्त्तता और जाहिलाना आतंकवाद के बचाव में खड़े हो रहे हैँ, "The Kerala Story" का विरोध करके।
मित्रों बालीवुड़ के पहले सुपर स्टार जिसके अभिनय के समक्ष अमिताभ बच्चन चिड़िमार लगते थे, वो काका स्व.श्री राजेश खन्ना जी ने अपनी "दुश्मन" फिल्म में कहा था कि "सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, की खुशबु आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से"! मित्रों वो बात आज भी सत्य है।
" The Kerala Story" आप भी देखें और अन्य लोगों को भी दिखाएँ। "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि!
लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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