हे मित्रों जैसा की आप जानते हैं की हमारे एक जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र हैं और उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये है कि वो सनातन धर्म के धुर विरोधी हैं और सनातन धर्म को निचा दिखने का कोई अवसर वो नहीं चूकते | एक बार पुन: वो मानव समाज के क्रमिक विकास के ज्ञान को लेकर हमसे शास्त्रार्थ करने हेतु मैदान में आ डटे अर्थात मेरे निवास स्थान पर पधारे , और चाय की पहली चुस्की के साथ ही व्यंगात्मक बाणो की बौछार करते हुए कहा , तुम सनातनियों ने धर्म का पाखंड फैला कर सभी को मनु और शतरूपा की संतान बता दिया अरे ऐसी मूर्खता क्यों करते हो तुम लोग ? अरे वो तो चार्ल्स डार्विन का भला हो जिसने हम मानवो के क्रमिक विकास का इतिहास और विज्ञान बतलाया |
हमने मुस्कराकर उत्तर देते हुए कहा " हे तर्कवादी मित्र" अपने तर्क ज्ञान पर जोर देते हुए तनिक ये बताओ की क्या अब्राहमिक पंथो जैसे यहूदी और ईसाई ने यह नहीं बतलाया की सभी मानव एडम और ईव की संताने है तथा क्या इस्लाम नहीं कहता की सभी मानव आदम और हव्वा की संताने हैं | हमारे तर्कवादी मित्र के माथे पर संकोच की लकीरे खिंच आयी और बोले , सुनो तुम सनातनी लोग अपने अंधकार को किसी और से तुलना कर छुपा नहीं सकते , ये सच है की अगर चार्ल्स डार्विन नहीं होते तो तुम लोग हमे सदैव अंधकार में रखते |
मित्रो हमें अपने वामपंथी मित्र के उक्त व्यंग्य का तनिक भी बुरा नहीं लगा, क्योंकि उनके कथन से एक ब्बत तो स्पष्ट थी की वे सनातन धर्म की श्रेष्ठता को स्वीकार कर रहे थे | हमने, वामपंथी मित्र से कहा , हे तर्कवादी मित्र, क्या तुमने हमारे परमेश्वर श्री हरी विष्णु के देश अवतारों के बारे में कुछ सुना है| हमारा ये प्रश्न सुनते ही वामपंथी मित्र जोर से हँसे और उपहास उड़ाते हुए कहने लगे, तुम लोग कभी नहीं सुधरोगे , एक बार फिर तुम अपने परमेश्वर की शरण में चले गए जबकि मैं विज्ञान की बात कर रहा हूँ |
हमने कहा सुनो मित्र मैं भी विज्ञान की ही बात कर रहा हूँ , आओ तुम्हे मैं "सच से सामना कराता हूँ" :-
चार्ल्स डार्विन (12 फरवरी, 1809 – 19 अप्रैल 1882) ने क्रमविकास (evolution) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। अल्फ्रेड रसेल वॉलेस के साथ एक संयुक्त प्रकाशन में, उन्होंने अपने वैज्ञानिक सिद्धांत का परिचय दिया कि विकास का यह शाखा पैटर्न एक ऐसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ, जिसे उन्होंने प्राकृतिक वरण या नेचुरल सेलेक्शन कहा।उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक जीवजाति का उद्भव (Origin of Species (हिंदी में - ' प्रजाति की उत्पत्ति ')) है |
क्रमविकास सिद्धांत की मुख्य बातें:-
1. विशेष प्रकार की कई प्रजातियों के पौधे पहले एक ही जैसे होते थे, पर संसार में अलग अलग जगह की भुगौलिक प्रस्थितियों के कारण उनकी रचना में परिवर्तन होता गया जिससे उस एक जाति की कई प्रजातियां बन गई.
2. पौधों की तरह जीवों का भी यही हाल है, मनुष्य के पूर्वज किसी समय बंदर हुआ करते थे, पर कुछ बंदर अलग से विशेष तरह से रहने लगे. धीरे – धीरे जरूरतों के कारण उनका विकास होता गया. वो मनुष्य बन गए, जिसे प्राकृतिक चयन का सिद्धांत ( Law Of Natural Selection) कहते हैं |
इस तरह से जीवों में वातावरण और परिस्थितियों के अनुसार या अनुकूलकार्य करने के लिए क्रमिक परिवर्तन तथा इसके फलस्वरूप नई जाति के जीवों की उत्पत्ति को क्रम – विकास या विकासवाद (Evolution) कहते हैं। इसको हम निम्न प्रकार से समझने का प्रयास करते हैं :-डार्विन विस्तार से बताते हैं कि प्राकृतिक चयन का सिद्धांत ( Law Of Natural Selection) क्या है| डार्विन एक सरल भाषा में लिखते थे, इसलिए इस किताब को पढ़ना काफी सरल है, और इसे पढ़ने के लिए जीव विज्ञान मे विशेषज्ञ होना बिलकुल भी जरूरी नहीं है| डार्विन के सिद्धांत के मूल रूप से तीन स्तंभ हैं|
पहला:- विविधता, एक आबादी मे किसी भी रूप (जैसे आंख, कान, इत्यादि) को लेकर विविधता होगी| यह हम अपने आसपास देख कर ही बता सकते हैं- जैसे कुछ लोग छोटे होते हैं, तो कुछ लंबे|
दूसरा:- प्रतियोगिता, हर एक क्षेत्रफल एक सीमित जनसंख्या को संभाल सकता है| यदि जनसंख्या बेहिसाब बढ़ने लगे तो सब वहां नहीं रह पाएंगे, कुछ लोगों को वहां से जाना होगा, इसलिए, जनसंख्या मे प्रतियोगिता होती है- अपने क्षेत्र में रहने की| इसे ऐसे भी समझा जा सकता है| मान लीजिए एक जंगल मे केवल १०० चिता रह सकते हैं, पर वहां रहती मादाओं ने २०० बच्चों को जन्म दिए हैं| अब जाहिर है कि सभी २०० नहीं बच पाएंगे, इनके बीच एक संघर्ष होगा, उस स्थान में बने रहने का|
तीसरा:- चुनाव, प्रतियोगिता के कारण २०० में से वही १०० चिता बचेंगे जो वहां रहने के लिए सबसे अधिक अनुकूलित होंगे| जब ऐसा हजारों सालों तक, अलग-अलग स्थान पर चलता है- तो नए जीव-जंतु उत्पन्न होते हैं, इसे हि प्राकृतिक चयन का सिद्धांत ( Law Of Natural Selection) हैं |
हमारे तर्कवादी वामपंथी मित्र ने कहा , इतना तो मैं भी नहीं जानता था , पर आखिरकार तुमने मान ही लिया की चार्ल्स डार्विन ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने सच को सर्वप्रथम बतलाया | हमने कहा हे मित्र तुमने जो सुना वो अधूरा सच है, अब पूरा सच सुनो :- चार्ल्स डार्विन के मजहब और उनके देश के अस्तित्व में आने से हजारो वर्ष पूर्व ही सनातन धर्म के इतिहास में भगवान विष्णु के दस अवतारो का उल्लेख किया गए जो वास्तव में चरितार्थ हुआ है , अब हम तुम्हे क्रमिक विकास के इस महत्व को बतलाता हूँ |
१ :- जैसा की विज्ञान बताता है की आज से करीब २००० मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जीवन का प्रथम कोशिकीय रूप उत्पन्न हुआ। इसके पश्चात एक कोशिकिय से द्विकोशकीय और फिर बहुकोशिकीय जीवों का क्रमिक विकास हुआ।इनमें से कुछ कोशिकाओं में ऑक्सीजन (O2 ) को मुक्त करने की क्षमता उतपन्न हो गयी। लगभग ५०० मिलियन वर्ष पूर्व अकेशेरुकीय जीव विकसित और क्रियाशील हुए। जबड़ा रहित मछली संभवत: ३५० मिलियन वर्ष पूर्व उतपन्न हुई। समुद्री खर पतवार एवं कुछ परिस्थितिनुकुल पादप भी लगभग ३२० मिलियन वर्ष पूर्व अस्तित्व में आये और धरती पर फैलने वाले ये प्रथम जीव थे, तो हे मित्र विज्ञान भी यही कहता है कि, मछली जलचर के रूप में अस्तित्व में आयी।
१:-मत्स्य अवतार:- भगवान विष्णु के दशों अवतारों में से "मत्स्य-अवतार" सर्वप्रथम अवतार है। पुराणों के अनुसार भगवान नें एक मछली के रूप में राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान दिया था और उन्हें भविष्य में आने वाले प्रलय से बचने का उपाय बताया था। अब यह प्रथम अवतार को विज्ञान भी मान्यता देता है, वो स्पष्ट कहता है कि, सर्वप्रथम जल में जीवन आया और मछली अस्तित्व में आयी और इधर प्रथम अवतार भी मछली का हि है।
२:- इसके पश्चात उभयचर प्राणियों का विकास हुआ, जिसमे सरिसृप वर्ग के उभयचर सर्वप्रथम अस्तित्व में आये और अब जीवन ने समुद्री जल से निकलकर स्थल अर्थात भूमि की ओर भी बढ़ने लगा। और प्रलय आने के पश्चात समस्त विषय वस्तु जलमग्न हो चुकी थी अत: आवश्यक वस्तुओ को समुद्र से बाहर निकलना भी अवश्यक था! तो विज्ञान भी यही दर्शाता है कि मेढक, कच्चुवा और घड़ियाल जैसे जीव जल से निकलकर पृथ्वी पर भी जीवन यापन करना शुरु कर दिया।
२:-कूर्म अवतार: यह भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिसमें भगवान कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र मंथन में सहायता करते है। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार दुसरे चरण में जलीय जीवों नें समुद्र से बाहर निकल ज़मीन पर चलना शुरू किया और इस तरह से उभयचर अस्तित्व में आये। कछुआ भी एक उभयचर ही है जो भूमि और जल दोनों पर जीवित रह सकते है।
३:-पहले स्तनधारी प्राणी श्रु (मंजोरु) थे जिसके जीवश्म छोटे आकार के हैँ।स्तन धारी प्राणी जरायूज होते हैँ तथा उनके अजन्मे शिशु माता के शरीर में (गर्भ में) सुरक्षित रहते हैँ। जब सरीसृपो की कमी हुई, तो स्तन धारी जीवो ने स्थल पर कब्जा कर लिया। यंहा पर वराह (सूअर), दरियाइ घोड़ा और खरगोश इत्यादी।
३:-वराह अवतार:- जब दैत्य हिरण्याक्ष नें पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था तब भगवान विष्णु नें वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी को पुनः वापस लाया था। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार उभयचर से विकसित होकर जीवों नें पूर्ण रूप से भूमि पर रहना शुरू कर दिया। भगवान का यह रूप भी एक वराह का था जो भूमि पर ही निवास करता है।
४:- इसके पश्चात चार पैरो पर चलने वाले जीवो ने दो पैरो पर भी चलना शुरु कर दिया, क्रमिक विकास के दौरान स्तन धारीयो के शरीर में अभूतपूर्व परिवर्तन होने लगा, वो अर्धचौपाये के रूप में विकसित होने लगे।लगभग १५ मिलियन वर्ष पूर्व ड्रायोपीथिकस और रामापीथिकस नामक नरवानर विद्यमान थे।इन लोगो के श्रीर बालो से भरपुर थे, और दाँत और जबड़े बड़े और अत्यधिक सशक्त थे।
४:-नृसिंह अवतार: नृसिंह अवतार में ईश्वर नें हिरण्यकशिपु का वध कर अपने परम भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। यह भगवान का वह रूप था जिसमें उन्होंने आधा मनुष्य और आधा पशु का रूप धारण किया था और डार्विन के सिद्धांत के अनुसार भी जीव अगले चरण में पशु रूप से आगे बढ़ मनुष्य के रूप में विकसित हो रहे थें।
५:- इथोपिया और तंजनिया में कुछ पायी गयी जीवश्म अस्थियां मानव जैसी हैँ । ये जीवश्म मानवीय विशिष्टता दर्शाते हैँ , जो इस विश्वाश को आगे बढ़ाते हैँ कि ३-४ मिलियन वर्ष पूर्व मानव जैसे नर वानर गण (प्राइमेट्स) पूर्वी अफ्रीका में विचरण करते रहे थे। ये लोग संभवत: ऊँचाई में ४ फुट से बड़े नहीं थे, किन्तु वो खड़े होकर चलते थे।
५:- वामन अवतार: भगवान विष्णु नें यह अवतार असुरों के राजा बलि का वध कर उसके अहंकार को तोड़ने के लिए लिया था। राजा बलि नें अपनी शक्तियों से स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया था और इस कारण भगवान नें वामन (बौने) का अवतार लेकर उनसे दान के रूप में तीन पग धरती मांगी। जब बलि नें उनका यह दान स्वीकार किया तब भगवान नें एक विशाल रूप धारण किया और एक पग में धरती, दुसरे पग में स्वर्ग और तीसरे पग में राजा बलि को अपने पैर के नीचे लेकर उन्हें पाताल लोक पहुचा दिया। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार भी मनुष्यों नें विकसित होना प्रारंभ किया था परन्तु उनका पूर्ण रूप से विकास नहीं हुआ था। तो यह भी मान सकते है कि डार्विन का मतलब मनुष्यों के बौने रूप से था।
६:- लगभग २ मिलियन वर्ष पूर्व ओस्ट्रालोपीथेसिन (आदिमानव) संभवत: पूर्वी अफ्रीका के घास के स्थलों पर रहता था।साक्ष्य यह प्रकट करते हैँ की वे प्रारम्भ में पत्थर के हाथियारों से शिकार करते थे, किन्तु प्रारम्भ में फलो का हि भोजन करते थे। इस जीव को पहला मानव जैसे प्राणी के रूप में जाना गया और उन्हे होमो हैबिलिस कहा गया था।
६:- परशुराम अवतार: अपने छठे अवतार में भगवान विष्णु नें परशुराम का अवतार लेते हैँ, जिनका हथियार भी फरसा है, और वो छाल या खाल रूपी वस्त्र धारण करते हैँ। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार अब तक मनुष्य पूर्ण रूप से विकसित हो चूका था परन्तु उनके रहने का तरीका भिन्न था, वह जंगलों में वास करते थें और गुफाओं में रहते थें और पत्थर तथा लकड़ियों के हथियारों से युद्ध करते थें, ठीक वैसे ही जैसे परशुराम किया करते थें।
७:- होमो हैबिलिस के पश्चात मानव का और परिश्कृत रूप होमो इरेक्ट्स विकसित हुआ, इसके पश्चात होमो सपियंस का विकास हुआ। अब मानव गुफाओ और पहाड़ो से निकलकर बस्तियाँ बनाना शुरु कर दिया था। उन्होंने एक मानव समाज की सरंचना और परिवार का दृष्टिकोण उत्पन्न कर लिया था। अब मानव में सभ्यता विकसित होने लगी थी और मान, सम्मान, अपमान या स्वाभिमान जैसे मानवीय गुणों का विकास शुरु हो गया था।
७:-श्रीराम अवतार: विष्णु के इस अवतार को कौन नहीं जानता है। इस अवतार में विष्णु एक स्वाभिमानी व मर्यादा पुरुषोत्तम राजा का रूप धारण करते है और धरती से रावन जैसे अधर्मी और अहंकारी राक्षस का वध करते है। डार्विन के सिद्धांत के अनुसार अगले चरण में मनुष्य सभ्य रूप से एक समाज में रहना शुरू करते है और बड़े प्रेम भाव से हर समस्या का समाधान निकालते है, ठीक वैसे ही जैसे राम राज्य में हुआ करता था।
८:- बस्तियाँ बसाने के पश्चात मानव कृषि का विकास करता है, और अपनी बुद्धि का उपयोग करके उसने धरती से अन्न उपजाना शुरु कर दिया और इस प्रकार अन्न उत्पादन मानव जीवन का अत्यंत आवश्यक अंग बन गया।
८:-बलराम अवतार:- इस अवतार में आप सदैव देखेंगे की बलराम जी के कंधो पर सदैव हल दिखाई देता है, इस हल का उपयोग धरती को फसल के बिज बोने से पूर्व जोतने के लिए उपयोग में लाया जाता है। बलराम जी को इसीलिए हलधर के नाम से भी जाना जाता है।
९:- इसके पश्चात मानव समाज में अपने अपने राज्य बन गये और क्षेत्र बन गये। मानव समाज कई वर्णों में विभक्त हो गया। युद्ध और शांति का वातावरण बनने लगा। शक्तिशाली ने निर्बल को दबाना शुरु कर दिया। ज्यादा से ज्यादा धरती अपने अधिकार में करने की होड़ मच गयी।
९:-श्रीकृष्ण अवतार: द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। उन्हें धर्म-अधर्म, जीवन-मृत्यु, मोक्ष और कर्मा हर विषय में ज्ञान था। वह राजनीति, कूटनीति, मित्रता व शत्रुता हर रिश्ते निभाने में परिपक्व थें। डार्विन के अनुसार भी मनुष्य अब तक अपने जीवन के वास्तविकता को समाझने में सक्षम हो गया था।
१०:- जैसा की विज्ञान भी मानता है की जिस विषय वस्तु की उत्पत्ति हुई है, उसका अंत भी निश्चित है, ठीक उसी प्रकार, इस ब्रह्माण्ड का जिसमे हमारी पृथ्वी भी स्थित है, उसका विनाश निश्चित है, और इसके पश्चात पुन: नई सृष्टि का निर्माण होगा और फिर से एक नई दुनिया अस्तित्व में आयेगी। ये अकाट्य सत्य है।
१०:-. कल्कि अवतार: यह भगवान विष्णु का दसवां अवतार है। कहते है कि कलयुग में बढ़ते अधर्म, भ्रष्टाचार और पापों को नष्ट करने के लिए ईश्वर यह रूप लेंगे। डार्विन नें भी अपने सिद्धांत के अंतिम चरण में यह कहा है कि मनुष्य अपनी सीमाओं को पार कर अधर्म के ओर अग्रसर होगा, इंसान इतना अहंकारी हो जाएगा की वह अज्ञानता के अन्धकार में खो जाएगा। कल्कि अवतार लेकर भगवान विष्णु समस्त अधर्म, असत्य और अंधकार का नाश करेंगे और फिर एक नवीन सृष्टि का आरम्भ करेंगे।
उपरोक्त विश्लेषण देने के पश्चात हमने अपने तर्कवादी वामपंथी मित्र से पूछा की हे मित्र अब बताओ क्या तुम्हारे चार्ल्स डार्वीन ने जो कुछ बताया, उनसे हजारों वर्ष पूर्व हुए इन नौवतारों और होने वाले दसवे अवतार बता चुके हैँ की नहीं।
हमारे वामपंथी मित्र एक बार पुन: अपना शिश झुका और मन मसोस कर चाय खत्म किये और कुछ सोचते हुए चले गये।
लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता )
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