एक वामपंथी से सनातनी का शास्त्रार्थ:-एक वामपंथी से सनातनी का शास्त्रार्थ:-
मित्रों जैसा की आपको पता है कि मेरे एक मित्र हैँ जो जन्म से ब्राह्मण पर कर्म और सोच से वामपंथी हैँ और वामपंथी होकर सनातन धर्म का और उनके देवी देवताओं का मजाक ना उड़ाए ऐसा हो हि नहीं सकता।
पिछले कई मुद्दों पर मुंह की खाकर भागने वाले वामपंथी मित्र अपने ब्राह्मण कुल को झुठलाते हुए पुन: मुझसे आ भिड़े और इस बार अपने साथ एक कन्वर्ट ईसाई महिला को भी लेकर आये और आते हि मुझसे शास्त्रार्थ की बात कह डाली। और यह भी कहा कि आज आपको मिस सेंड्रेला के प्रश्नों का उत्तर देना पड़ेगा।
हमने दोनो का स्वागत किया और चाय नास्ते के पश्चात, सेंड्रेला से निवेदन किया कि हे महिला आप प्रश्न पूछे, हम आपको संतुष्ट करने के लिए तैयार हैँ।
सेंड्रेला: - महाशय मै एक नन हुँ और मेरे विचार से "जिसस" GOD का बेटा है और वही इस दुनिया को चलाता है।
सनातनी:- आपने कहा जिसस GOD का बेटा है और वही इस दुनिया को चलाता है, इसका अर्थ ये है कि आपने स्वीकार किया कि GOD की आज्ञा से हि उसका पुत्र इस दुनिया को चलाता है और वो GOD केवल और केवल "श्री कृष्णा" है।, क्योंकि हमारा श्रीकृष्णा" हि सम्पूर्ण विश्व के समक्ष सीधे और स्पष्ट रूप से कहता है कि "मै हि आदि हुँ, मै हि अंत हुँ, अब मुझसे हि जन्म लेते हैँ और अंत में मुझमें ही विलीन हो जाते हैँ, मै हि परमेश्वर हुँ!"
भगवद गीता अध्याय १५ श्लोक १६
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टोमत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥
भावार्थ : मैं ही सब प्राणियों के हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (विचार द्वारा बुद्धि में रहने वाले संशय, विपर्यय आदि दोषों को हटाने का नाम 'अपोहन' है) होता है और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने योग्य (सर्व वेदों का तात्पर्य परमेश्वर को जानने का है, इसलिए सब वेदों द्वारा 'जानने के योग्य' एक परमेश्वर ही है) हूँ तथा वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ॥
भगवद गीता अध्याय ८ श्लोक५
अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ৷
भावार्थ : जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है॥
भगवद गीता अध्याय ८ श्लोक४
अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम् ।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥
भावार्थ : उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष (जिसको शास्त्रों में सूत्रात्मा, हिरण्यगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा इत्यादि नामों से कहा गया है) अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! इस शरीर में मैं वासुदेव ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ॥
सेंड्रेला और वामपंथी:- GOD और कौन श्रीकृष्णा, क्या कृष्णा GOD है, वो कृष्णा जिसकी १६१०८ रानियां थी, यह कहकर वो जोर से हसते हैँ, पर उनके इस अमर्यादित आचरण से हम दुखी नहीं होते हैँ, क्योंकि हम सनातनी जानते है कि ये अंधेरे में झूठ और फरेब की दुनिया बसाकर जिने वाले लोग हैँ और सच से कोसो दूर हैँ।
सेंड्रेला और वामपंथी:- कहो सनातनी ये कैसा भगवान है, उसका कोई नैतिकता से संबंध है या नहीं।
सनातनी:- हमने कहा हे कन्वर्ट सेंड्रेला और वामपंथी सुनों, मै तुम्हें इस प्रश्न के दो उत्तर देता हुँ और तीसरा प्रश्न करता हुँ आप जवाब देना। हमने फिर कहा, सुनों तुम्हारे प्रश्न का उत्तर लौकिक अर्थात सामाजिक और परालौकिक अर्थात अध्यात्मिक दोनों प्रकार से मै देता हुँ।
लौकिक (सामाजिक उत्तर):- भगवद महापुराण के दशम सकंध के ५९ वें अध्याय में इसका सम्पूर्ण वर्णन किया गया है। इसके अनुसार भगवान श्री कृष्ण कि कुल ८ पत्नियां थी, जिनसे परिस्थितियों के मांग के अनुसार उनका विवाह हुआ था। यही आठ पत्नियां भगवान श्रीकृष्ण की धर्मपत्नियां मानी जाती हैँ जिनके नाम निम्नलिखित है:- १:- देवी रुक्मिणी, २:- देवी सत्यभामा, ३:- देवी जाम्बवन्ति, ४:- देवी कालिंदी, ५:- देवी मित्रबिंदा, ६:- देवी सत्य, ७:- देवी भद्रा और ८:- देवी लक्ष्मणा।
अब सुनो १६१०० अन्य पत्नियों के संदर्भ में भगवतपुराण क्या कहता है?
उस समय प्राज्ञज्योतीशपुर नामक राज्य में एक "भौमासुर" नामक असुर राज करता था। असुर प्रजाति होने के कारण, देव, मानव और किन्नर प्रजाति को यह अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता था। इसे वरदान प्राप्त था कि "इसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथो हि हो सकती है"!
इसने आपने आतंक अर्थात, हत्या, लूटपाट, बलात कब्जा और अत्यंत क्रूरतम अपराधिक कार्यो से सर्वत्र नरक मचा रखा था, इसलिए इसे " नर्कासुर" भी कहते हैँ। एक बार देवाधीपती इंद्र भगवान श्रीकृष्ण के पास गये और उन्होंने उनसे सहायता मांगी और प्रार्थना की "हे प्रभु इस "नरकासूर" से हमें मुक्ति दिलवाइये। इस असुर ने विभिन्न राजाओं को हराकर करीब १६१०० राजकुमारियों और रानीयो को बंदी बना रखा है।
प्रभु समझ गये कि अब इस भौमासुर अर्थात नरकासुर के संहार का वक्त आ गया है, अत: उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सत्यभामा को साथ लिया और निकल पड़े उस असुर को मुक्ति देने। भीषण युद्ध के पश्चात देवी सत्यभामा के हाथों कार्तिक शुक्ल के कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी के समय इस नरकासुर का वध हुआ इसीलिए हम दिवाली के ठीक एक दिन पूर्व "नरक चतुर्दशी" का त्यौहार मनाते हैँ।
नरकासुर् के वध के पश्चात उसके कैद से १६१०० राजकुमारियों और रानियों को स्वतंत्र कराया। परन्तु इन राजकुमारियों के पास अब एक समस्या थी, कि समाज इन्हें अपनायेगा कि नहीं, क्योंकि नरकासुर के कैद में इतने दिनों से पड़े होने के कारण इनका जीवन लांक्षित और कलंकित हो चुका है, ऐसा वो मानने लगी थी। अब उन्होंने कृष्ण से कहा हे प्रभु हमारे पास केवल एक विकल्प है कि हम इस संसार का त्याग कर दे, क्योंकि हमें नहीं लगता कि ये समाज हमें अपनायेगा।
उनके इस करुण क्रन्दन को सुन प्रभु ने सबको अभयदान देते हुए अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया और बगैर किसी वैवाहिक संबंध के उन सभी ने प्रभु श्रीकृष्ण को अपना पति स्वीकार कर लिया और द्वारिका में प्रभु के महल में भजन कीर्तन करते अन्य सामाजिक कार्य करते खुशी खुशी अपना जीवन यापन करने लगी।
हे सेंड्रेला हे वामपंथी अब तुम बताओ श्रीकृष्णा ने तो एक ओर नरकासुर के कैद से स्वतंत्र कराकर उन १६१०० राजकुमारियों को नया जीवन दिया, वही दूसरी ओर उन्हें अपना नाम देकर जीवन जिने का मार्ग दिखाया और उन्हें पूर्ण अवसर दिया अपनी इच्छा से अपना जीवन जिने का तो नैतिक रूप से श्रेष्ठता हि तो साबित की।
अब परा लौकिक अर्थात अध्यात्मिक उत्तर सुनों:- हमारे वेदो में यादी देखें तो कुल मिलाकर १६१०८ ऋचाएं या श्लोक हैँ। ये सभी श्लोक उसी GOD अर्थात श्रीकृष्णा के द्वारा ब्रह्मा को और ब्रह्मा के द्वारा सम्पूर्ण सृष्टि को ज्ञात हुआ। प्रत्येक श्लोक GOD श्रीकृष्णा के एक पत्नी के समान है अर्थात उन्हीं के स्वरूप को पूर्ण करने वाला है अर्थात एक पत्नी जिस प्रकार अपने पति को इस समाज में व्यक्त कर पूर्णता प्रदान करती है और अर्धांगिनी कहलाती है, वैसे हि ये ऋचाएं अर्थात श्लोक हैँ। इसीलिए ये १६१०८ श्लोक प्रभु के पत्नियों के समान हैँ।
इतना बताने के पश्चात जब हमने सेंड्रेला से पूछा कि क्या अब भी तुम इस प्रकार से मेरे GOD के बारे में प्रश्न करोगे। सेंड्रेला ने एक कुटिल मुस्कान बिखेरी और कहा परालौकिक उत्तर तो मेरी समझ मे नहीं आया पर लौकिक उत्तर जो तुमने दिया वो समझ में तो आया पर मै नहीं मानती। और ये कहकर वे हंस पड़े।
सनातनी :- हमने कहा ठीक है, दो उत्तर देने के पश्चात अब प्रश्न पूछने की बारी हमारी है।
सेंड्रेला: - पूछो, पूछो हमारे GOD के बेटे जिसस के बारे में पूछो, मै तुम्हें बताऊँगी, कोई कहानी नहीं बनाऊँगी।
सनातनी:- हे सेंड्रेला तुम्हारे यंहा "नन" कैसे बनते हैँ?
सेंड्रेला: - हमारे धर्मग्रंथ में पुरा इसका विधि विधान है और इसको पुरा करने के लिए एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है?
सनातनी:- हे कन्वर्ट सेंड्रेला तुम बस इतना बता दो कि "नन" चर्च में यीशु मसीह के समक्ष क्या शपथ लेती हैँ, यदि तुम्हें पता हो तो!
सेंड्रेला: - एक किताब निकालकर उसके एक विशेष पन्ने को खोलकर पढ़ती है"मै जीजस को अपना पति स्वीकार करती हूँ और उनके अलावा किसी अन्य पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाउंगी।" बस यही शपथ लेती हैँ।
सनातनी:- तो क्या "जिसस" हर "नन" को पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैँ?
सेंड्रेला: - हाँ, बिल्कुल स्वीकार करते हैँ, तभी तो वो पुरा जीवन जिसस अर्थात यशु मशीह को समर्पित कर देती हैँ।
सनातनी:- अब तनिक ये भी बता दो कि इस संसार में ऐसे "नन" की संख्या कितनी होगी।
सेंड्रेला: - यही को ६ से १० लाख।
सनातनी:- इसका अर्थ तो ये हो गया कि GOD के बेटे "जिसस" के पास ६लाख से लेकर १० लाख तक पत्नियां हैँ "ननों" के रूप में और तुम्हें ये नैतिक लगता है।
अब सेंड्रेला और वामपंथी अवाक़ रह गये, उनको उम्मीद नहीं थी कि वो अपने जाल में स्वयं फंस जाएंगे। और जब इसका कोई उत्तर उनसे नहीं बना तो शिश झुका कर चुपचाप उठकर वो अपना पैर पटकते चले गये।
मित्रों मै आपको बताता चलूँ कि "नन" के रूप में यहां मैरी मेग्दलीन की बात नहीं हो रही है जिन्हें दुनिया ईसा मसीह की पत्नी के रूप में जानती है और कुछ लोग तो उन्हें ईसा मसीह के बच्चों की मां के रूप में भी जानते हैं, यंहा बात उन महिलाओं की हो रही है जो महिलाएं अपना जीवन ईसा मसीह को समर्पित कर देती हैं।
इन ननों के अतिरिक्त कुछ अन्य महिलाएँ भी होती हैँ जिन्हें ईसाई धर्म में कहा जाता है कॉन्सिक्रेटेड वर्जिन ( consecrated virgin- पवित्र कुवांरी) इन्हें चर्च की तरफ से ही ये उपाधि दी जाती है। चर्च की ये उपाधि देने का मतलब है उस महिला ने खुद को ईसा मसीह की पत्नी मान लिया है और वो दुनिया में किसी और से शादी नहीं करेगी और आजीवन कुंवारी रहेगी।
१९७० में जब पोप पॉल VI के नेतृत्व में इसमें बदलाव किए गए थे। अगर इसकी शुरुआत की बात की जाए तो ईसाई धर्म में ये Apostolic एरा (यानी ईसा मसीह के १२ घनिष्ट अनुयाइयों का काल) से चली आ रही है। चूंकि ये प्रथा इतनी पुरानी है इसलिए रूढ़ीवादी समाज में शुरुआती दौर की कई महिलाओं को इसके कारण अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। क्योंकि उन्होंने प्रतिष्ठिक व्यक्तियों से शादी के लिए मना कर दिया था.
१९८३ का कोड ऑफ कैनन लॉ और १९९६ का एपोस्टोलिक एक्हॉर्टेशन विटा (Apostolic Exhortation Vita Consecrata) जिसमें जॉन पॉल II ने इन महिलाओं को ऑर्डर ऑफ वर्जिन कहा था।इनकी छवि बदलने का प्रयास किया था और इन्हें हेवेनली ब्राइड यानी स्वर्ग की पत्नियां कहा गया था।
हालांकि 'कुंवारियां' बहुत पहले से चर्च का हिस्सा रही हैं। पहली तीन शताब्दियों ईसवी में कई महिलाओं ने स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर दिया और फिर ईश्वर के लिए वफ़ादार बने रहने की कोशिश में ही शहादत दे दी,इन्हीं में से एक थी 'एग्नेस ऑफ़ रोम' जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी 'पवित्रता' की रक्षा के लिए शहर के गवर्नर से शादी करने से मना कर दिया और इसके लिए इन्हें मार डाला गया।
ज्ञात स्त्रोतों और मीडिया में उपलब्ध जानकारी के अनुसार
मध्यकाल में यह प्रथा कुछ हाशिये पर चली गई क्योंकि मठ-संबंधी धार्मिक जीवन को बढ़ावा मिला। लेकिन १९७१ में इस प्रथा को 'ऑर्डो कॉन्सीक्रेशनिस वर्जिनम' नाम के एक दस्तावेज़ के ज़रिये नया जीवन मिला! इसी दस्तावेज़ के आधार पर वैटिकन ने महिलाओं के शाश्वत कुंवारेपन को चर्च के भीतर जीवन जीने के स्वैच्छिक तरीक़े के तौर पर स्वीकार किया!
अमरीकी एसोसिएशन ऑफ़ कॉन्सीक्रेटेड वर्जिन्स (यूएसएसीवी) के मुताबिक़, अमरीका में २५४ 'ईश्वर की दुल्हनों' हैं।ये महिलाएं नर्स, अकाउंटेंट, दमकलकर्मी से लेकर मनोवैज्ञानिक तक का काम करती हैं। २०१५ के एक सर्वे के मुताबिक़, दुनिया में चार हज़ार कॉन्सीक्रेटेड वर्जिन्स हैं!
मित्रों ऐसे हि दंभी,अहंकारी और अज्ञानी लोगों के संदर्भ में भगवद गीता अध्याय १६ श्लोक४ में कहा गया है:-
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्॥
भावार्थ : हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं!
तो मित्रों विधर्मियों और वामपंथियों को उत्तर देने हेतु आपको अपने और उनके दोनों के शास्त्रों की कुछ आधारभुत जानकारियां अवश्य अपने पास रखनी चाहिए।
लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in