*सनातन धर्म में प्रत्येक तिथियों के विशेष देवता बताए गए हैं , अमावस्या तिथि के देवता पितर होते हैं | वर्ष भर की प्रत्येक अमावस्या को पितरों का पूजन श्राद्ध तर्पण आदि किया जाता रहा परंतु आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या का विशेष महत्व है क्योंकि भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक सोलह दिन के लिए विशेष रूप से पितरों के लिए तर्पण श्राद्ध पिंडदान आदि की व्यवस्था बनाई गई है | विगत पन्द्रह दिनोॉ से पितरों को समर्पित यह विशेष पक्ष आज "सर्वपितृ अमावस्या" के दिन पूर्ण हो रहा है | "सर्वपितृ अमावस्या" के दिन श्राद्ध कर्ता के द्वारा अपने पितरों का विधिवत पूजन पिंडदान आदि किया जाता है | ज्ञात अज्ञात सभी पितरों के लिए आज के दिन तर्पण एवं पिंडदान करते हुए श्राद्ध करने की व्यवस्था बताई गई है | आज "सर्वपितृ अमावस्या" के दिन श्राद्ध कर्ता के द्वारा प्रदत्त जल तर्पण पिंड दान एवं श्राद्ध में बनाये गये पकवानों का रस एवं गंध ग्रहण करके पितर पुनः अपने पितृलोक को वापस लौट जाते हैं | श्राद्ध श्रद्धा का विषय है , श्रद्धा पूर्वक आज के दिन सभी पितरों के लिए विधिवत श्राद्ध कर्म करके मनुष्य पितरों की कृपा प्राप्त करता है | पितृपक्ष की अमावस्या के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर के स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें तथा अपने पितरों का तर्पण करते हुये श्रद्धा के साथ उनका श्राद्ध मना करके ब्राह्मण को भोजन तथा दान आदि करते हुए अपने पितरों से प्रार्थना करनी चाहिए | सायंकाल के समय घर की चौखट के पास मिट्टी के चार दीपक सरसों के तेल में बाती डालकर जलाना चाहिए | चारों दीपक जब जल जायं तो थोड़ी देर के बाद एक दीपक वहां से उठाकर पितृ पूजन के स्थान पर बैठ जायं और अपने पितरों का ध्यान करके उनसे प्रार्थना करें कि हे पितृ देव इस पितृपक्ष में हमसे जो बन पाया हमने आपका तर्पण एवं श्राद्ध आदि किया , आज पितृपक्ष का समापन हो रहा है इसलिए है कि पितृदेव आप परिवार के सभी सदस्यों को आशीष प्रदान करके पितृलोक को गमन करें तथा अपनी कृपा परिवार पर सदैव बनाए रखें | इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य के द्वारा अपने पितरों की विदाई करके पितृपक्ष का समापन करना चाहिए |*
*आज विगत पन्द्रह दिनों से पृथ्वी लोक में अपने परिवार के आसपास भ्रमण करने वाले पितृगण अपने कुल के व्यक्तियों के द्वारा प्राप्त श्राद्ध सामग्री का अंश प्राप्त करके अपने लोक को गमन करेंगे | विगत पन्द्रह दिनों से होने वाले इस कार्यक्रम का समापन आज "सर्वपितृ अमावस्या" के साथ हो जाएगा | आज अनेकों नवयुवक इस प्रकार समाज में देखे जाते हैं जो यह कहते हैं कि तर्पण श्राद्ध एवं पिंडदान से क्या होता है ? जो मृत्यु को प्राप्त हो गया है वह पुनः पृथ्वी पर आकर अपना अंश कैसे स्वीकार करेगा ? उन सभी आधुनिक नवयुवकों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि जिस प्रकार मनुष्य टेलीविजन देखते समय जो चाहे वह हो चैनल लगा लेता है और मनचाहा कार्यक्रम देखने लगता है | टेलीविजन चलने का एक ही माध्यम है वायुमंडल में तैर रही तरंगे | जब वायुमंडल में तैर रही तरंगों के माध्यम से टेलीविजन पर मनचाहा कार्यक्रम देखा जा सकता है तो वायु रूप में भ्रमण कर रहे हमारे पितर इस धरा धाम पर क्यों नहीं आ सकते हैं | जिस प्रकार तरंग प्राप्त होते ही टेलीविजन पर कार्यक्रम आने लगता है उसी प्रकार जब हमारे पितरों के अंश हमारे परिवार में हमारे याद करने पर आते हैं तब हमें उनकी तरंग का आभास होने लगता है | हमारे धर्म ग्रंथों में कुछ भी अनर्गल नहीं लिखा गया है आवश्यकता है उसे जानने - मानने एवं महसूस करने की | माता-पिता से बढ़कर ना तो कोई देवता है ना ही कोई तीर्थ | जीवन में यदि हमारे द्वारा अपने माता पिता के प्रति कोई त्रुटि भी हो गई हो तो हमें उनका श्राद्ध करके अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए उनसे क्षमा याचना करनी चाहिए | आज पितृविसर्जन के दिन पितृपक्ष का समापन करते हुए अपने पितरों की विदाई बड़े ही श्रद्धा एवं प्रेम के साथ करना चाहिए क्योंकि जिस घर के पितृ असंतुष्ट हो जाते हैं उस घर में पितृदोष परिलक्षित होने लगता है तथा परिवार कभी भी प्रगति नहीं कर सकता | यदि परिवार की प्रगति निरंतर बनाए रखनी है तो अपने पितरों को संतुष्ट करते रहना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य बन जाता है |*
*पितरों के सम्मान एवं पितृ पूजन की मर्यादा का पालन करते हुए उनके निमित्त निर्धनों को दान एवं भूखों को भोजन कराने से भी मात्र से पितरों की कृपा प्राप्त होती रहती है |*