सनातन धर्म में कर्म ही प्रधान
कर्म एवं भाग्य पर प्राय: चर्चा हुआ करती है | कर्म बड़ा या भाग्य ? यह विषय आदिकाल से प्राय:सबके ही मस्तिष्क में घूमा करता है | Sanatana Dharma के धर्मग्रंथों वेद , पुराण , उपनिषद एवं गीता आदि में कर्म को ही कर्तव्य मानकर इसी की प्रधानता प्रतिपादित की गयी है | कर्म को ही पुरुषार्थ कहा गया है | मनुष्य एक भी क्षण कर्म किये बिना नहीं रह सकता | यदि बैठा हुआ मनुष्य सांस भी लेता है तो वह भी कर्म ही है | बिना कर्म किये गति नहीं प्राप्त हो सकती है | कुछ लोग भाग्यशाली होते हैं जिनको बिना कुछ किये जन्मजात सबकुछ विरासत में मिला होता है परंतु यदि उनके द्वारा भी कर्म नहीं किया जाता है तो भाग्य भी उनका साथ छोड़ देता है , और जो लोग कर्म को प्रधान मानकर कर्म करते रहते हैं उनका भाग्य प्रबल होता जाता है | जो मनुष्य कर्म न करके भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं वे संसार में तो नाना प्रकार के कष्टों को तो भोगते ही हैं अन्त में उनकी दुर्गति भी निश्चित है | यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि Sanatan Religion में भाग्य की महत्ता तो है परंतु यह भाग्य प्रधान न हो करके कर्म प्रधान ही है | कर्म से ही भविष्य एवं भाग्य का निर्माण होता है | कर्म एवं कर्तव्य से मुंह मोड़ने वाला अधोगति को प्राप्त होता है | हमारे धर्मशास्त्रों में मुख्यत: छ: प्रकार के कर्म कहे गये हैं :- १- नित्य कर्म , २- नैमित्य कर्म (नियमशील कार्य) , ३- काम्य कर्म (किसी कामनावश किया हुआ कार्य) , ४- निष्काम कर्म (नि:स्वार्थ भावना से किया हुआ कार्य) , ५- संचित कर्म (प्रारब्ध से संचित कर्म) ६- निषिद्ध कर्म (नहीं करने योग्य कर्म) आदि | जिस प्रकार किसी अपराध करने वाले के साथ रहने वाले मित्र भी दण्ड के भागी बन जाते हैं उसी प्रकार काम्य एवं संचित कर्म में हमें भी अपनों के द्वारा किये हुए कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है |
इसीलिए कहा गया है कि सदैव सत्कर्म करने के साथ ही परिवार को भी सत्कर्म करने की शिक्षा तो दें ही साथ ही ऐसे लोगों से मित्रता करें जिनके कर्म भी सत्कर्म की श्रेणी में आते हों | इसके साथ ही निरंतर कर्म करते रहें भाग्य स्वयं प्रबल होता रहेगा |* *आज के युग में मनुष्य मशीन की तरह तरह कार्य कर रहा है परंतु आज निष्काम कर्म करने वाले लोग बहुत कम दिखाई पड़ते हैं | ऐसा नहीं है कि निष्काम करने वालों से धरा विहीन हो गयी है परंतु ऐसे लोग विरले ही दिखाई पड़ते हैं | आज लोगों का झुकाव ज्योतिष एवं राशिफल की ओर कुछ ज्यादा ही दिख रहा है | ज्योतिष एवं राशिफल के भरोसे भाग्यफल जानने वालों की अच्छी खासी भीड़ ज्योतिषकेन्द्रों पर देखी जा सकती है | अपने भविष्य के विषय में जानकारी करना अच्छी बात है परंतु भविष्य निर्माण का कार्य स्वयं अपने हाथ में हैं | कर्म किये बिना भाग्य भी नहीं फलीभूत होता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कर्म एवं भाग्य के विषय में इतना ही कहना चाहूँगा कि आपके अभिभावकों के कर्म से आपको भोजन प्राप्त हुआ , परोसी हुई थाली आपके समक्ष प्रस्तुत हो गयी यह आपका भाग्य है , परंतु उस भोजन का स्वाद लेने एवं उदरपूर्ति के लिए भी आपको कर्म करना ही पड़ेगा | अपने हाथों से उठाकर भोजन करना पड़ेगा | यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो वह भोजन आपकी उदरपूर्ति नहीं कर पायेगा | आपके भाग्य में भोजन तो है परंतु यदि कर्म नहीं गया तो वह भाग्य दुर्भाग्य में परिवर्तित हो जायेगा और आपको भूखा ही रहना पड़ेगा | आज समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कर्म न करके मन्दिरों , संतों , ज्योतिषियों आदि की परिक्रमा करते हुए देखे जा सकते हैं | ऐसे लोग इन कप्मों से अपना भाग्य परिवर्तित हो जाने की आशा में जीवन के मूल्यवान क्षण व्यर्थ में गंवाते रहते हैं | जबकि यह स्पष्ट है कि भाग्य का निर्माण कर्म से ही होता है और ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जो कर्मयोगी हैं | अत: कर्म करते रहें |* *मनुष्य क्रियाशील रहे , सतत कर्म कर्म करता रहे तो उसके लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है | कर्म को प्रधान बताना ही सनातन को दिव्य बनाता है |*