*धरा धाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य के द्वारा अनेकों प्रकार के कर्म संपादित होते हैं | अपने संपूर्ण जीवन काल में अपने कर्मों के अनुसार मानव महामानव बन जाता है | मानव मात्र की आकांक्षा , अभिलाषा एवं आवश्यकता आदि की पूर्ति के लिए हमारे महापुरुषों ने तीन प्रकार के साधन बताये हैं :- १- कर्म , २- चिन्तन एवं ३- प्रार्थना | इन तीनों के समन्वित प्रयासों से ही जीवनलक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है | ईश्वर की स्तुति या प्रार्थना से सनातन धर्म के समस्त धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं | जितने भी महापुरुष हुए हैं उनके जीवन का अनिवार्य अंग रही है प्रार्थना , क्योंकि प्रार्थना के बिना आत्मबल की उपलब्धि नहीं हो सकती | प्रार्थना मानव जीवन का सबसे सशक्त एवं सूक्ष्म एक ऐसा ऊर्जा स्रोत है जिसे प्रत्येक मनुष्य उत्पादित करके स्वयं को उत्कृष्ट व्यक्तित्व में सम्मिलित कर सकता है | कर्म चिंतन एवं प्रार्थना तीनों के सहयोग से ही मनुष्य किसी भी कार्य में सफल हो सकता है | प्रार्थना के महत्व को हमारे पूर्वजों ने समझा और उसे अपने दैनिक जीवन का अंग बनाया | ईश्वर कण-कण में व्याप्त है और प्रत्येक रूप में उसकी प्रार्थना हमारे पूर्वजों के द्वारा की गई है | इसी का परिणाम है कि जो कार्य मनुष्य अपनी शक्ति से नहीं कर सकता वह कार्य ईश्वर की प्रार्थना से संपन्न हो जाता है | प्रार्थना को सफल बनाने के लिए ईश्वर पर विश्वास रखते हुए स्वयं को उन से जोड़ना होता है साथ ही कोई भी प्रार्थना हृदय के अंतस्थल से निकलनी चाहिए | करुणभाव से हृदय से निकलने वाली प्रार्थना ईश्वर अवश्य सुनता है और उसका परिणाम भी मनुष्य के पक्ष में आता है | हमारे पुराणों में वर्णन है कि भक्तों की पुकार पर भगवान नंगे पांव दौड़े चले आते हैं | प्रार्थना की शक्ति को शब्दों में नहीं वर्णित किया जा सकता है क्योंकि यह कहने का नहीं बल्कि एहसास करने का विषय है | पूर्वकाल से लेकर के मध्यकाल तक यहां तक कि आधुनिक काल में भी अनेक ऐसे उदाहरण प्राप्त होते हैं जहां संसार के सारे साधन निष्फल हो गये हैं वहां मनुष्य की प्रार्थना ने उसके बिगड़े हुए कार्य संपन्न किए हैं , परंतु समय के साथ मनुष्य की भावना परिवर्तित हो गई और आज की जाने वाली प्रार्थनाएं निष्फल होने लगी |*
*आज का आधुनिक मनुष्य जीवन के सूत्र को भूलता चला जा रहा है | सफल जीवन के सूत्र कर्म , चिंतन एवं प्रार्थना मे से मनुष्य कर्म एवं चिंतन तो कर रहा है परंतु प्रार्थना से दूर होता चला जा रहा है | प्राय: लोग कहते हैं कि ईश्वर की प्रार्थना क्यों किया जाय ? क्योंकि यहां सब कुछ कर्म के द्वारा प्राप्त होता है | यद्यपि यह सत्य है कि सब कुछ कर्म के द्वारा प्राप्त होता है परंतु इसके बाद भी मनुष्य को ईश्वर को अनदेखा न करते हुए उसकी दैनिक प्रार्थना अवश्य करते रहना चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज मन्दिरों में भगवान के समक्ष लोगों को रोते हुए देखता हूं जिंदगी की समस्याओं को भगवान से सुनाते हुए लोगों को देखा जा सकता है | इसे लोग प्रार्थना मांनते हैं , जबकि यह प्रार्थना नहीं बल्कि का स्वार्थ होता है | यदि प्रार्थना को सफल बनाना है तो सर्वप्रथम ईश्वर पर विश्वास रखते हुए कण-कण में उसके व्याप्त होने की अनुभूति होने के साथ प्रार्थना लोक कल्याण की होनी चाहिए | किसी दूसरे का अहित करने के लिए प्रार्थना न की जाय | अपने साथ साथ समस्त विश्व के कल्याण की भावना हृदय में रखकर यदि प्रार्थना की जाती है वह प्रार्थना कभी निष्फल नहीं हो सकती , क्योंकि ईश्वर समदर्शी है वह सबको एक समान पुत्रवत मानता है | आज की जा रही प्रार्थना यदि सफल नहीं हो रही है तो उसका कारण यही है कि आज का मनुष्य जो कुछ भी मांगता है अपने लिए मांगता है किसी दूसरे की कल्याण की भावना के लिए उसके ह्रदय से प्रार्थना नहीं निकलती है | प्रार्थना को दैनिक जीवन का अंग बनाते हुए लोक कल्याण की भावना बनाए रखना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है |*
*कर्म चिंतन एवं प्रार्थना तीनों नित्य प्रति करते रहने से मनुष्य अपने जीवन में सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला जाता है और अंततोगत्वा वह महापुरुषों की श्रेणी में गिना जाने लगता है , इसलिए जीवन में प्रार्थना के महत्व को कभी भूलना नहीं चाहिए |*