
*इस सकल सृष्टि में हर प्राणी प्रसन्न रहना चाहता है , परंतु प्रसन्नता है कहाँ ? लोग सामान्यतः अनुभव करते हैं कि धन, शक्ति और प्रसिद्धि प्रसन्नता के मुख्य सूचक हैं | यह सत्य है कि धन, शक्ति और प्रसिद्धि अल्प समय के लिए एक स्तर की संतुष्टि दे सकती है | परन्तु यदि यह कथन पूर्णतयः सत्य था तब वो सभी जिन्होंने उक्त सभी को प्राप्त कर लिया है, उन्हें पूर्ण रूप से प्रसन्न होना चाहिए | हम जानते हैं कि ऐसा नहीं है | हमारे सभी भौतिक एवं मानसिक प्रयत्न हमारा समय तथा धन, हमारे सम्बन्ध प्रसन्नता को प्राप्त करने के इर्द गिर्द होते हैं | हम निरंतर इसके पीछे पड़े रहते हुए प्रतीत होते हैं | हम संसार की अधिकाधिक वस्तुओं को संग्रह करना जारी रखते हैं | ये हमे कुछ समय के लिए संतुष्टि देती है | तब पुनः हम अपनी प्रसन्नता को खो देते हैं, तथा हम दूसरे प्रकार के प्रयत्न उद्धयोग तथा संग्रह के चक्रों को आरम्भ करते हैं | हम कब यह जान पाएंगे कि प्रसन्नता उन चीजों में निहित नहीं हैं | क्या वस्तुएँ हमें प्रसन्नता को देने की अंतर्निहित क्ष्रमता प्रदान करती हैं ? क्या रोटी का टुकड़ा सभी को एक समान खाने का आनन्द देता है ? क्या लोग एक समान आम को चखने तथा खाने के दौरान अन्तर महसूस करते हैं ? क्या रोटी और आम में स्वनिर्मित ऐसे गुण निहित होते हैं, जो सभी को एकसमान प्रसन्नता प्रदान करे | क्या विद्युत रहित गाँव में एक निरक्षर व्यक्ति प्रसन्न होगा यदि उसे अत्याधुनिक लेपटॉप प्रदान किया जाय ? क्या एक गुब्बारे को एक बच्चे तथा वयस्क को पाने की प्रसन्नता एक समान होगी ? नहीं | ऐसा नहीं है |* *आज हम इस सत्य को जान सकते हैं जब हम इसके बारे में सोंचते हैं | हम में से अधिकांश सत्य से वास्तव में अवगत होते हैं | तब हम लोग क्यों अपने बाहर की प्रसन्नता एवं भौतिक वस्तुओं में निरंतर पड़े रहते हैं ? प्रत्येक
धर्म हमें सिखाता है कि हमे अपने अन्दर जाना चाहिए | क्योंकि प्रसन्नता का स्रोत हमारे अन्दर ईश्वर की चिंगारी हमारी आत्मा होती है | ईश्वर आनन्द होता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" जहाँ तक जान पाया हूँ कि आत्मा का स्वभाव आनन्द होता है | यह आनन्द जब खुल जाता है, तेज़ी से चमकता है और हमें हर समय प्रसन्न बनाये रखता है | यह तब होता है जहाँ एक परम गुरु खोजकर्ता की सहायता करते हैं | जब हमारे पास एक परमगुरु होता है और हम मंत्र जाप तथा ध्यान का अभ्यास करते हैं, हम अपने अन्दर जाते हैं तथा अपने मस्तिष्क एवं विचारों का अवलोकन करते हैं | हम बाहर से अन्दर की ओर का अवलोकन करते हुए अवस्था बदलते हैं | जब हमारी आंतरिक क्रियाकलापों की समझ बढती है तब अज्ञानता की परतों से छुटकारा पाना जो आत्मा को ढके होती है तथा आत्मा के प्रकाश को देखना एवं अपने अन्दर हर समय आनन्द का अनुभव करना आसान हो जाता है | जिन लोगों के पास गुरु नहीं होता है वे स्वयं से अपने अन्दर देखना तथा अपने विचारों का अनुपालन करना सीखते हैं | तुम उभरते हुए विचारों के नमूनों को देखोगे तथा समझोगे | तुम इस
ज्ञान को प्राप्त कर लोगे कि क्या पकड़ कर रखना तथा किससे छुटकारा पाना है | जब तुम्हारी ईश्वर तथा सत्य से इच्छाशक्ति दृढ़ हो जाती है, तुम्हारे गुरु तुम्हारे पास आयेंगे और आगे तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे |* *स्मरण रहे कि केवल आंतरिक प्रसन्नता स्थायी होती है | क्यों की वह आत्मा से सम्बंधित होती है और आत्मा ईश्वर की एक चिंगारी होती है, जो सनातन है | यह सत्य तुम्हे स्वयं के अन्दर जाने में शक्ति प्रदान करेगा एवं तुम्हारी स्वयं सहायता करेगा |*