*इस संसार को गतिशील करने के लिए ब्रह्मा जी ने नर नारी का जोड़ा उत्पन्न करके मैथुनी सृष्टि की जिससे कि मानव की वंशबेल इस धराधाम पर विस्तारित हुई ! आदिकाल से ही एक धारणा मनुष्य के हृदय में बैठ गयी कि पुत्र होना आवश्यक है ! इतिहास / पुराण में अनेकों कथानक प्राप्त होते हैं जहाँ लोगों ने पुत्र प्राप्ति के लिए अनेकानेक उपाय भी किये ! श्रीमद्भागवत के माहात्म्य में पं० आत्मदेव की कथा का वर्णन मिलता है जिन्होंने तपस्वी के मना करने पर भी पुत्र की कामना की ! धुंधुकारी जैसे पुत्र के कारण उनको सपत्नीक असमय काल के गाल में जाना पड़ा ! लोगों का ऐसा मानना है कि पुत्र ही पिता को सद्गति प्रदान करता है ! यह सत्य हो सकता है परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे रूढ़िवादी विचारों को न मानने पर विवश हो जाता हूँ क्योंकि हमारे पुराणों में अनेक पात्र ऐसे हैं जिन्हें पुत्र ने नहीं बल्कि उनके कर्मों ने सद्गति प्रदान की है | महाराज बलि , बालक ध्रुव , भक्त प्रहलाद , माता शबरी , महाराज रंतिदेव आदि अनेकों पात्र हैं जो इसके ज्वलंत उदाहरण हैं ! यद्यपि हमारे शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि पुत नामक नरक से बचाने के लिए ( पिण्डदान - श्राद्धादि के लिए ) पुत्र का होना आवश्यक है परंतु वहीं दूसरी ओर हमें अनेक उपाय भी बताये गये हैं जिसके अनुसार पुत्र के अतिरिक्त अन्यों के द्वारा भी मनुष्य को सद्गति प्राप्त हो सकती है ! पुत्र की लालसा के कारण ही पुत्रियों को आज तक उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है ! परिवार में पुत्रों की अपेक्षा पुत्रियों को उतना लाड - दुलार नहीं मिल पाता जबकि यह अकाट्य सत्य है कि जितनी सेवा एवं स्नेह पुत्रियाँ अपने माता - पिता से करती हैं उतना पुत्र कभी भी नहीं कर सकता है | पुत्र प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का स्वप्न होता है परंतु कर्मफल को नहीं नकारा जा सकता है ! किसी को पुत्र न होना कोई अभिशाप नहीं बल्कि पूर्वजन्मों के कर्म का प्रभाव ही मानना चाहिए क्योंकि इस संसार में मनुष्य को अपने द्वारा किये गये कर्मों का फल ही उसको प्राप्त होता है |*
*आज का मनुष्य एवं उसका मस्तिष्क पहले की अपेक्षा अधिक विकसित हुआ है | आज अनेक रूढ़िवादी विचारों का त्याग मानव समाज कर रहा है | देश की सरकार तथा अनेक सामाजिक संगठनों के द्वारा "बेटी बेटा एक समान" का नारा भी दिया जा रहा है परंतु इतना सब कुछ होने के बाद भी इसी समाज में कुछ अनपढ़ गंवार लोग ऐसे भी हैं जो किसी के यहां पुत्र ना होने पर अनेकों प्रकार के ताने मारा करते हैं | सबसे ज्यादा कष्ट रक्षाबंधन एवं भाई दूज के दिन उन बहनों को होता है जिनके भाई नहीं होता उनके कष्ट का कारण तब और बढ़ जाता है जब समाज के कुछ कतिपय लोग इन पावन अवसरों पर उनको देखकर हंसी उड़ाते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि ऐसे लोगों को मानसिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है | विचार कीजिए प्रजापति महाराज दक्ष के यदि इतनी पुत्रियां ना होतीं तो सृष्टि का संचालन होना कठिन हो जाता | यह भी विचारणीय है कि यदि सबको पुत्र ही होगा और पुत्रियां नहीं हुई तो ब्रह्मा जी की बनाई हुई मैथुनी सृष्टि गतिमान कैसे हो सकती है ? इसलिए पुत्र एवं पुत्री दोनों का होना परम आवश्यक है | ऐसे लोग जो मानसिक रोगी हैं , जो दूसरों को देखकर हंसते हैं उनको शायद यह नहीं पता है कि किसी को भी पुत्र या पुत्री होना मनुष्य के हाथ में नहीं होता | कर्म फल के सिद्धांत को काटा नहीं जा सकता है | यदि किसी के यहां पुत्र नहीं है तो उसको ताने मारने की अपेक्षा उसकी सहायता करते हुए पुत्रियों को ही पुत्र मानकर उनकी बड़ाई एवं सम्मान करना चाहिए क्योंकि पुत्र तो एक ही घर को प्रकाशित करता है परंतु पुत्रियां दो कुलों का सम्मान रखते हुए अपने जीवन को समर्पित कर देती है | यद्यपि यह सत्य है कि पुत्र से कुल का मान बढ़ता है परंतु यह भी सत्य है पुत्रियां भी अपने कुल के सम्मान को बढ़ाती रही हैं | ज्यादा कुछ ना लिख करके यही कहना चाहूंगा कि समाज में ऐसे मानसिक रोगियों की पहचान करके (जो दूसरों पर हंसते हैं) उनको समाज से बहिष्कृत कर देने की आवश्यकता है तभी "बेटा बेटी एक समान" का उद्घोष सफल माना जा सकता है |*
*किसी को पुत्र होना या ना होना पूर्वजन्म के कर्म सिद्धांत पर आधारित होता है | संचित , क्रियमाण एवं प्रारब्ध कर्मों को कोई भी नहीं काट सकता इसलिए इस विषय पर बहुत चिंतित होने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए |*