*ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की संकल्पना की थी इसलिए इसे पुरुष प्रधान समाज कहा जाने लगा परंतु ब्रह्मा जी जैसे आदि पुरुष भी बिना नारी का सृजन किये इस सृष्टि को गतिमान नहीं कर पाये | नारी त्याग , तपस्या एवं समर्पण की प्रतिमूर्ति बनकर इस धरा धाम पर अवतरित हुई | सनातन धर्म में प्रतिदिन कोई न कोई पर्व एवं त्यौहार धार्मिक एवं सामाजिक उत्सव का कारण बनकर समसर्ता बिखेरते रहे हैं | इन पर्व त्यौहारों एवं व्रतों में अधिकतर व्रत नारियों के ही आस पास घूमते दिखाई पड़ते हैं पुरुषों का कोई विशेष महत्त्व इन व्रतों में नहीं होता है | पति के लिए , भाई के लिए तथा पुत्रों के लिए अनेकानेक व्रत रखकर नारियां उनके दीर्घायु होने की कामना जीवन भर करती रहती हैं | इन्हीं दिव्य व्रतों की श्रृंखला में आज अर्थात भाद्रपद कृष्णपक्ष की षष्ठी को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्मोत्सव भिन्न ढंग से मनाया जाता है | आज के व्रत को नारियों के द्वारा अपने पुत्रों को दीर्घायु करने की कामना से किया जाता है | इस व्रत को हलछठ , ललही छठ या तिन्नी छठ के नाम से जाना जाता है | आज के व्रत को किसानों के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है ! चूँकि बलराम जी का मुख्य अस्त्र हल एवं मूसल था इसलिए आज के दिन किसान अपने हल , मूसल एवं बैल की भी पूजा करते हैं | आज के दिन नारियाँ छठी माता का पूजन करके अपने पुत्रों की कुशलता की कामना करती हैं | यह व्रत अपने आप में विशेष एवं विचित्र इसलिए भी है क्योंकि जहाँ अन्य व्रतों में अनेक प्रकार के फलाहार की व्यवस्था होती है वहीं हलछठ के व्रत में नारियाँ हल से जोते हुए अन्न एवं फल का सेवन नहीं करती हैं | महुए की दातौन से इस व्रत का शुभारम्भ होता है | बलराम जी का अस्त्र हल होने के कारण ही आज हल से उत्पन्न किसी भी भोज्य पदार्थ का सेवन वर्जित माना जाता है | महुआ एवं तिन्नी का चावल ( एक विशेष चावल जो झीलों में स्वयं उगता है ) का ही सेवन आज के दिन इन व्रती माताओं के द्वारा किया जाता है | यही नहीं सनातन के प्रत्येक व्रत पूजन में विशेष स्थान रखने वाले गाय के दूध - दही को भी वर्जित माना गया है | आज के व्रत में भैंस के ही दूध - दही एवं घी का प्रयोग करके मातायें अपने पुत्रों के लिए यह कठिन व्रत करती हैं |*
*आज मन यह विचार करने को विवश हो जाता है कि पुरुष समाज के लिए समय समय पर त्याग करके उनकी कुशलता के लिए कठिन से कठिन से व्पत करती हैं नारियाँ और समाज को पुरुष प्रधान कहा जाता है | क्या वास्तव में यह समाज पुरुष प्रधान है ? किसी भी समाज की प्राथमिक ईकाई होता है परिवार और परिवार धुरी होती है नारी ! बिना नारी के पुरुष का कोई भी अस्तित्व हो ही नहीं सकता तो आखिर यह समाज अकेले पुरुषों का ही कैसे हो सकता है ? सृष्टि में एक दिव्यात्मा के रूप में प्रकट हुई है नारी जो जीवन भर अपने लिए तो कोई व्रत करती ही नहीं है इनका प्रत्येक व्रत पुरुष समाज के लिए ही होता है | एक बहन के रूप में भाई के लिए "बहुला चौथ" का निर्जल व्रत , पत्नी के रूप में पतियों के लिए "करवा चौथ" एवं "हरतालिका तीज" का कठिन व्रत तथा माता के रूप में पुत्रों के लिए अनेक व्रत करने वाली नारियाँ जब पुरुष समाज के द्वारा तिरस्कृत की जाती हैं तो परमात्मा भी रोने को विवश हो जाता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" पुरुष प्रधान समाज के अहं में जीवन जीने वाले पुरुष समाज को बताना चाहूँगा कि बिना नारी के पुरुष का कोई अस्तित्व ही नहीं है ! बिना नारी के पत्नी कौन बनेगा ? पुत्र को जन्म कौन देगा ? समाज का अस्तित्व र्या रह जायेगा ? पुरुष समाज को इन विषयों पर गहनता से विचार की आवश्यकता है | यदि पुरुष समाज नारी के लिए कोई व्रत नहीं कर सकता तो उनका सम्मान तो कर ही सकता है ? पुरुष समाज के द्वारा तिरस्कृत एवं उपेक्षित होने के बाद भी समय समय पर उनकी कुशलता के लिए अनेकानेक व्रत धारण करने नाली माताएं धन्य हैं ! पुरुष समाज को इनका सदैव सम्मान करना चाहिए अन्यथा जिस दिन नारी ने पुरुष समाज को तिरस्कृत एवं उपेक्षित करना प्रारम्भ कर दिया उसी दिन से यह सृष्टि भी अधोमुखी हो जायेगी |*
*धन्य हैं नारियाँ जो कि इतनी प्रताड़ना सहन करने के बाद भी पुरुष समाज की कुशलता के लिए सदैव चिन्तित रहती हैं ! सृष्टि की अनुपम कृति "नारी" को कोटिश: प्रणाम !*