*संपूर्ण सृष्टि का सार प्रेम को कहा गया है | प्रेम क्या होता है ?? प्रेम में क्या प्राप्त होता है ?? यदि इसका दर्शन करना हो तो श्री राधारानी का जीवन चरित्र अवश्य देखना चाहिए | जिनके नाम के बिना भगवान कृष्ण का नाम अधूरा माना जाता है , जिनकी पूजा किए बिना भगवान श्री कृष्ण नहीं प्राप्त हो पाते हैं , ऐसी भगवान श्री कृष्ण की प्राणप्रिया , रासरासेश्वरी , वृंदावन की अधिष्ठात्री देवी , कोटि-कोटि महालक्ष्मी भी जिनके चरणों की धूल के समान हैं | ऐसी महायोगिनी राधारानी का प्राकट्योत्सव भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था | आज के दिन को "राधाष्टमी" के नाम से जाना जाता है | श्री राधाजी वृषभानु जी की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं | वेद तथा पुराणादि में जिनका "कृष्णवल्लभा" कहकर गुणगान किया गया है, वे श्री वृन्दावनेश्वरी राधा सदा श्री कृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली साध्वी कृष्णप्रिया थीं | शास्त्रों में श्री राधा कृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवम प्राणों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित हैं , अतः राधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गयी है | श्रीमद्देवी भागवत में स्वयं श्री नारायण ने नारद जी के प्रति "श्री राधायै स्वाहा" षडाक्षर मंत्र की अति प्राचीन परंपरा तथा विलक्षण महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि श्री राधा जी की पूजा न की जाए तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार नहीं रखता | अतः समस्त वैष्णवों को चाहिए कि वे भगवती श्री राधा की अर्चना अवश्य करें | श्री राधा जू भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए भगवान इनके अधीन रहते हैं | यह संपूर्ण कामनाओं का राधन (साधन) करती हैं, इसी कारण इन्हें श्री राधा कहा गया है | प्रेम का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करने वाली राधाजू सरकार की महिमा का वर्णन कर पाने में स्वयं शारदा एवं शेष जी भी सक्षम नहीं हैं तो मेरे जैसा साधारण मनुष्य उनके विषय में भला अधिक कैसे जान और लिख सकता है |*
*आज प्रेम क्या है ? इसे शायद कोई नहीं जानता है , परंतु आज की युवा पीढ़ी आधुनिक प्रेम अर्थात आकर्षण मैं ही अपने जीवन का सब कुछ दांव पर लगा लेने के लिए तैयार दिखता है | आज यदि कोई किसी से प्रेम करता है तो उसे शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त करना चाहता है , जबकि यह सत्य है क्यों प्रेम में पाने से अधिक त्याग का महत्व है , क्योंकि यदि प्रेम को प्राप्त कर लिया जाता है तो प्रेम का आकर्षण धीरे धीरे कम होते हुए समाप्त हो जाता है , परंतु यदि प्रेम में त्याग की भावना हो तो प्रेम अक्षुण्ण बना रहता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" भगवान श्याम सुंदर कन्हैया एवं राधिका महारानी प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताना चाहूंगा कि जो लीला पुरुषोत्तम संपूर्ण सृष्टि को आकर्षित करने की क्षमता रखते थे वे स्वयं राधा रानी के आकर्षण को नहीं भूल पाए | जीवन भर प्रेम का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती हुई राधिका महारानी और भगवान कन्हैया का मिलन तो नहीं हो पाया परंतु यह प्रेम की पराकाष्ठा ही है कि बिना राधा का नाम लिए भगवान कृष्ण का नाम तक नहीं लिया जाता है | आज प्रातः काल बरसाना एवं वृन्दावन में कृष्णप्रिया , वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी राधा रानी जी सरकार का जन्मोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जा रहा है | जिस प्रकार बिना आधार के आधेय नहीं रह सकता है उसी प्रकार बिना राधा के कृष्ण का कोई अस्तित्व नहीं है | अतः आज की युवा पीढ़ी को यदि प्रेम का उदाहरण लेना हो तो भगवती राधिका के जीवन चरित्र को अवश्य पढ़ना चाहिए | गोलोकवासिनी , कृष्णप्रिया , भगवती राधिका महारानी जीवन भर भगवान कृष्ण की संगिनी तो नहीं बन पाई परंतु यह प्रेम की ही महिमा है कि आज भी उनके बिना भगवान कृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है |*
*रुक्मिणी जी ने भगवान से प्रेम करके उनको प्राप्त कर लिया , और राधा जी ने कन्हैया से प्रेम तो किया परंतु उन्हें प्राप्त करने का उद्योग नहीं किया , इसी का परिणाम है कि आज कन्हैया की पटरानी होने के बाद भी उनके साथ रुक्मिणी का नाम न लेकप त्याग की मूर्ति राधा जी का नाम लिया जाता है ! इससे यह सिद्ध होता है कि प्रेम में त्याग का अधिक महत्त्व है |*