*इस धराधाम पर मनुष्यों का दिव्य इतिहास रहा है | मनुष्य जहां जन्म लेता है वह परिवार एवं राष्ट्र उसके लिए सर्वोपरि होता है , राष्ट्र की सेवा एवं सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देने वाले महावीरा से हमारा इतिहास भरा पड़ा है | जब देश पर कोई संकट आता है तो प्रत्येक देशवासी का एक ही धर्म होता है अपने राजा की बात का शत-प्रतिशत पालन करना | उस समय नहीं देखना चाहिए राजा गलत है या सही | क्योंकि एक समय ऐसा होता है जब सही गलत का निर्णय करने का समय निकल चुका होता है उस समय संपूर्ण देश को एक साथ अपने राजा के साथ खड़े होना चाहिए | इसका अद्भुत उदाहरण हमें रामायण में देखने को मिलता है | लंका के राजा राक्षसराज रावण ने अनीतिपूर्वक सीता जी का हरण कर लिया था जिसके कारण भगवान श्रीराम ने वन्दर भालुओं की सेना लेकर लंका पर आक्रमण कर दिया | राक्षस होते हुए भी लंका के दो पात्र ऐसे हैं जो यह जानते थे कि हमारे राजा ने अनीति पूर्ण कार्य किया परंतु फिर भी राष्ट्र सर्वोपरि के सिद्धांत को अपनाते हुए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया | रावण की सेना का विनाश हो रहा था कुंभकरण को जगाया गया कुंभकर्ण ने रावण को बहुत समझाने का प्रयास किया परंतु रावण नहीं माना और कुंभकर्ण को खरी खोटी सुनाने लगा , तब कुंभकर्ण ने कहा था भैया ! यद्यपि मैं जानता हूँ कि आप दोषी हैं परंतु फिर भी राष्ट्र पर आई आपदा के समय मैं आपके साथ हूँ ! यह कहकर कुंभकर्ण ने युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दिया ! यही दशा मेघनाद की भी थी अपने पिता रावण से यह कहकर कि हे पिता जी ! यद्यपि आप कुमार्ग पर. हैं परंतु मैं आपका विरोध करके राष्ट्रद्रोही नहीं कहलाना चाहता , मेघनाद ने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया | इन पात्रों से हमें कुछ शिक्षा लेकर अपने संकटकाल में (सही - गलत को किनारे रखकर ) अपने राजा का समर्थन करना चाहिए क्योंकि ऐसा न करने वाला ही राष्ट्रद्रोही कहा जाने लगता है |*
*आज सम्पूर्ण विश्व एक अदृश्य एवं भयानक विषाणु (कोरोना) के संक्रमण से ग्रसित होकर अपने - अपने नागरिकों के प्राणों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है | आज प्रत्येक देश के राष्ट्राध्यक्षों के द्वारा अपने नागरिकों के लिए कुछ नये नियम बनाये जा रहे हैं जिसका पालन करना भी एक प्रकार से राष्ट्रसेवा है | आज जहाँ सम्पूर्ण विश्व के नागरिक इस संकटकाल में अपने शासक के आदेशों का पालन करते देखे जा रहे हैं वहीं हमारे देश में कुछ लोग सरकार का विरोध करके अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास करते हुए देखे जा सकते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे लोगों को इतिहास के अनुसार यदि राष्ट्रद्रोही न कहूँ तो क्या कहूँ ? जो लोग आज सरकार के बनाये नये नियमों (लॉकडाउन) आदि का विरोध कर रहे हैं उनको इस प्राणघातक विषाणु (कोरोना) के जनक चीन से सबक लेना चाहिए | यद्यपि चीन की जनता यह जानती है कि वहाँ की सरकार की गल्तियों के कारण ही आज सम्पूर्ण मानवजाति पर संकट आया है , परंतु चीन की जनता ने अपने राजा का विरोध नहीं किया | हमारे देश में कुछ तुच्छ मानसिकता के लोग संकट की इस घड़ी में भी स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए सरकार के प्रत्येक कदम का विरोध कर रहे हैं | सरकार का विरोध करना तो सही है परंतु संकटकाल में यदि सरकार या उसके निर्णयों का विरोध किया जाता है तो यह राष्ट्रद्रोह ही कहा जायेगा | आज ऐसे अनेक लोग हमारे देश में यह अपराध करते हुए देखे जा सकते हैं | इतिहास को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ऐसे लोगों से अच्छे तो लंका के राक्षस थे जिन्होंने राष्ट्र के नाम पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये | इन लोगों से यही कहना है कि यदि मनुष्यता में खोट दिखाई पड़ रही है तो राक्षसत्व से ही कुछ सीख लिया जाय |*
*देश पर आये संकट की घड़ी में प्रत्येक देशवासी का एक ही कर्तव्य होना चाहिए कि आपसी वैमनस्यता को भुलाकर राष्ट्रहित में लिए गये निर्णयों का समर्थन एवं पालन किया जाय अन्यथा इतिहास ऐसे लोगों को राष्ट्रद्रोहियों की पंक्ति में खड़ा कर देगा |*