*मानव जीवन में प्राय: एक शब्द सुनने को मिलता है सहिष्णुता एवं असहिष्णुता | आज यह शब्द अधिकतर प्रयोग किया जा रहा है , तो इसके विषय में जान लेना परम आवश्यक है कि सहिष्णुता कहा किसे कहा जाता है | सहिष्णुता का तात्पर्य है सहनशीलता ! किसी दूसरे के विचारों से सहमत ना होने के बाद भी उसे समझना एवं उसका सम्मान करना ही सहिष्णुता है | प्राचीन काल से हमारे देश के निवासियों ने सेवा , सदाचार के साथ-साथ सहिष्णुता को भी अपना धर्म माना था , जो भी आता गया उसका सम्मान करते गए यही कारण है कि हमारा देश भारत समय-समय पर चोट खाता रहा है | यद्यपि यही सत्य है कि मानव जीवन में सहिष्णुता का होना परम आवश्यक है क्योंकि सहिष्णुता एक भावनात्मक शक्ति है और भाव इंद्रिय , चेतन और मन से परे होता है | मन एवं इंद्रिय भाव से ही संचालित होती है इसलिए भाव सबसे ऊपर होता है | दूसरों को सहन करने का भाव सहिष्णुता कहलाता है | हमारे पूर्वजों ने अपने राष्ट्र भारत का सर्वांगीण विकास करने के उद्देश्य से ही सहिष्णुता को भी अपनाया था क्योंकि यह मानवीय संवेदना का प्रबल पक्ष है | वही किसी दूसरे के विचार को न सहन कर पाना असहिष्णुता का द्योतक है | पूर्व काल में जहां हमारे देश भारत में सभी लोग एक दूसरे से मिलकर के एक दूसरे का सम्मान करके जीवन यापन करते थे वहीं आज परिदृश्य एवं परिवेश में परिवर्तन स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है | पूर्व काल की ना तो शिक्षा रह गई है ना ही संस्कार | मनुष्य स्वयं को आधुनिक समझने लगा है और इस आधुनिकता ने भारतीय संस्कारों को निगल लिया है | सनातन धर्म सदैव से सहिष्णु रहा है शायद यही कारण है कि इस पर घातक प्रहार होते रहे हैं | जंगल में जब कोई वृक्ष काटने का मन करता है तो मनुष्य सदैव सीधा ही वृक्ष काटने का प्रयास करता है और तो और टेढ़े चंद्रमा को राहु भी नहीं ग्रसता है | सदैव सरल - सीधे व्यक्ति का ही बलिदान दिया गया है और उसमें ही सारा दोष देखा गया है यही हाल आज सनातन धर्म का दिखाई पड़ रहा है |*
*आज हमारे देश के उच्च पदों पर बैठे हुए कुछ बुद्धिजीवियों को ऐसा प्रतीत होता है कि भारत असहिष्णु हो गया है , जबकि सत्य यह है कि भारत ना तो असहिष्णु है और ना ही कभी होगा बल्कि असहिष्णु हो गए हैं दूसरों को असहिष्णु कहने वाले | आज हमारे देश में कुछ लोग ऐसे हैं जो दूसरे के प्रतीक चिन्हों का ना तो सम्मान करना चाहते हैं और ना ही उनको सहन कर पा रहे हैं | इस बढ़ती हुई असहिष्णुता के कारण ही धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर पहुंच गई है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज भारत की दशा देख कर के यह कहने पर विवश हो रहा हूं कि एक ही धरती पर जन्म लेकर के एक ही आसमान के नीचे रहने वाले लोगों ने किस प्रकार से भारतीय परिवेश को परिवर्तित करने का प्रयास किया है और सतत करते जा रहे हैं | आज धर्म विशेष की स्वतंत्रता पर आक्रमण किए जा रहे हैं , आए दिन होने वाले दंगों ने लोगों के दिलों में नफरत की लकीरें इतनी गहरी कर दी है कि एक संप्रदाय दूसरे संप्रदाय के खून का प्यासा होता जा रहा है | दूसरों को असहिष्णु कहने वाले स्वयं अपने अंदर झांक कर देखें कि वह कितने सहिष्णु हैं | यहां मेरा उद्देश्य किसी व्यक्ति या धर्म विशेष के ऊपर लांछन लगाना नहीं है बल्कि मैं यही कहना चाहता हूं कि जो मैं दूसरे को कह रहा हूं कहीं वही दोष मेरे भीतर तो नहीं है | मनुष्य को इसका अवलोकन अवश्य करना चाहिए | आज मनुष्य व्यक्तिवादी होता जा रहा है उसे दूसरों की कोई परवाह नहीं रह गई है और ना ही वह किसी दूसरे की बात को समझना ही चाहता है यही कारण है कि भारत का सामाजिक ढांचा चरमराने लगा है | बढ़ती हुई असहिष्णुता को कम करने के लिए आज लोगों को अपनी सोच में परिवर्तन करने की आवश्यकता है , दूसरों को सहन करने एवं उनका सम्मान करने की भावना विकसित करने की आवश्यकता है अन्यथा हमारा देश भारत अव्यवस्थित होने की ओर अग्रसर है |*
*हमारे देश के इतिहास को पढ़कर के यह जानना होगा कि किस प्रकार हमारे पूर्वजों ने आपसी सामंजस्य बना करके भारत का निर्माण किया था , परंतु आज कुछ लोगों के कारण वह सामाजिक समरसता छिन्न-भिन्न हो रही है | इसके लिए देश के उच्च पदों पर बैठे हुए आदरणीयों को ध्यान देने की आवश्यकता है |*