*मानव जीवन को सुचारू ढंग से जीने के लिए जहां अनेक प्रकार की आवश्यक आवश्यकता होती है वही समाज एवं परिवार में सामंजस्य बनाए रखने के लिए मनुष्य को एक दूसरे से सलाह परामर्श लेते हुए दूसरों का सम्मान भी करना चाहिए | ऐसा करने पर कभी भी आत्मीयता मे कमी नहीं आती | जहां परिवार में परामर्श नहीं होता है उसी परिवार में समस्याएं पनपने लगती हैं | प्रायः लोग समाज के लोगों से तो परामर्श लेना पसंद करते हैं परंतु अपने परिवार के सदस्यों से कोई परामर्श लेना नहीं चाहते जबकि विचारशील गृहसंचालक को अपने परिवार के सदस्यों से व्यक्तिगत संपर्क साधना और विचार - विनियम का क्रम आरंभ करना चाहिए , क्योंकि परिवार के प्रत्येक सदस्य की कुछ न कुछ समस्याएं , आवश्यकताएं एवं आकांक्षायें होती हैं उन्हें समझने और उपयुक्त समाधान के लिए प्रयत्न करने चाहिए | अयोध्या के महाराज दशरथ ने श्री राम के राज्याभिषेक के लिए यदि अपने परिवार में परामर्श लिया होता तो शायद वह घटना न घटती जो कि अयोध्या में घटी , परंतु उन्होंने गुरुजनों , प्रजाजनों एवं मंत्रियों के परामर्श के आधार पर राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी थी | इसीलिए कोई भी कार्य करने के पहले प्रत्येक मनुष्य को अपने पारिवारिक सदस्यों का सम्मान करते हुए उनकी सलाह को महत्व देना चाहिए | गुण एवं दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं , विचार कुविचार सब के मस्तिष्क में प्रकट होते हैं इन विचारों का यदि समय रहते निराकरण नहीं किया जाता है तो परिवार के लिए घातक हो जाते हैं | इसलिए पारिवारिक सदस्यों की मन:स्थिति को समय-समय पर जानते रहना चाहिए अन्यथा अचिंत्य चिंतन पनपता है और घुटन तक सीमित न रहकर कभी-कभी विस्फोट की तरह प्रकट होता है | ऐसी स्थितियां न उत्पन्न होने पाए इसके लिए पारस्परिक विचार - विनियम की प्रक्रिया भी परिवारों में पनपने चाहिए क्योंकि आपसी सलाह / परामर्श , एक - दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान मनुष्य की बौद्धिक क्षमता को तो बढ़ाता ही है साथ ही कठिन से कठिन समस्या का समाधान भी इससे प्राप्त हो जाता है |*
*आज समाज में जिस प्रकार परिवार विघटित हो रहे हैं उसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि आज परिवारों में आपसी सामंजस्य , आपसी सलाह एवं परामर्श का अभाव स्पष्ट दिख रहा है | प्रत्येक मनुष्य स्वयं को सबसे बुद्धिमान मानते हुए सारे निर्णय स्वयं लेना चाहता है | अनेकों बार तो ऐसा भी होता है कि वह निर्णय परिवार के विपरीत होता है | जब ऐसी स्थिति आती है तब परिवार में विघटन प्रारंभ हो जाता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि परिवार के मुखिया को यह जानकारी अवश्य रखनी चाहिए कि घर के किस सदस्य की विचारधारा किस दिशा में बढ़ रही है और उसके कृत्यों का प्रवाह किस ओर मुड़ रहा है | इसके लिए समय-समय पर अपने परिवार में सभी पारिवारिक सदस्यों के साथ बैठकर चर्चा - परिचर्चा अवश्य करनी चाहिए | आवश्यक जानकारियों से सभी को अवगत कराते हुए प्रत्येक विषय पर विचारों का आदान-प्रदान होना चाहिए और परिवार के प्रत्येक सदस्य को यह अनुभव कराना चाहिए कि परिवार के निर्माण में उनका भी उत्तरदायित्व है | आशंकाएं एवं कुकल्पनायें न उत्पन्न होने पाए इसके लिए आवश्यक है कि परिवार में आपसी सामंजस्य बना रहे | सामंजस्य वहीं बना रहता है जहां मनुष्य खुले मन से मनुष्य अपने विचार सबके साथ साझा करता है | कोई भी निर्णय लेने के पहले यदि उस विषय पर परिवार में परामर्श कर लिया जाए तो शायद कोई भी विस्फोटक स्थिति उत्पन्न नहीं होने पाए | ऐसा करके ही अपने परिवार एवं समाज को समुन्नत एवं विकसित किया जा सकता है |*
*जहां आपसी परामर्श एवं सलाह से कार्य संपादित होते हैं वह परिवार दिनों दिन सफलता की ओर अग्रसर होता रहता है और जहां इसका अभाव देखने को मिलता है उस परिवार को विघटित होने से कोई भी नहीं बचा सकता |*