*इस संसार में अनादिकाल से जो धर्म स्थित है उसे सनातन धर्म कहा जाता है | सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो | जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है | जैसे सत्य सनातन है , ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है , मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है | वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है | जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं | यही सनातन धर्म का सत्य है | अन्य धर्मों की अपेक्षा सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य , अहिंसा , दया , क्षमा , दान , जप , तप , यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है | अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था | बृहदारण्य उपनिषद में लिखा है :- असतो मा सदगमय , तमसो मा ज्योर्तिगमय , मृत्योर्मा अमृतं गमय !" अर्थात :- हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो , अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो , मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो | सनातन इसलिए सनातन है कि सनातन में जड़ एवं चेतन की मान्यता है | जड़ पांच तत्व से दृश्यमान है - आकाश , वायु , जल , अग्नि और पृथ्वी | यह सभी शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं | यह अपना रूप बदलते रहते हैं किंतु समाप्त नहीं होते | प्राण की भी अपनी अवस्थाएं हैं: प्राण , अपान , समान और यम | उसी तरह आत्मा की अवस्थाएं हैं :- जाग्रत , स्वप्न , सुसुप्ति और तुरीय | ज्ञानी लोग ब्रह्म को निर्गुण और सगुण कहते हैं | उक्त सारे भेद तब तक विद्यमान रहते हैं जब तक कि आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले | यही सनातन धर्म का सत्य है |*
*आज संसार में अनेकों प्रकार के धर्म देखने को मिलते हैंं , जिनकी मान्यताएं अलग-अलग है | प्रत्येक धर्म अपने धर्म के अतिरिक्त और किसी धर्म को ना तो मानना चाहता है और ना ही उनका ध्यान देना चाहता है , वही सनातन धर्म सदैव विश्व के कल्याण की भावना करता है | प्राय: अनेकों लोग पूछते हैं कि सनातन धर्म में सनातन क्या है ? ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बता देना चाहता हूं कि सनातन धर्म में सनातन सत्य है | जहां अन्य धर्मों की आधारशिला रखने वाले महापुरुषों के विषय में पढ़ने को मिलता है कि अमुक धर्म को किसने प्रारंभ किया , वही सनातन धर्म इसलिए सनातन है क्योंकि उसका प्रतिपादक कोई नहीं है | सृष्टि के आदिकाल से ही सनातन धर्म स्थित है | सनातन धर्म की आधारशिला किसने रखी यह कोई नहीं जानता | जहां अन्य धर्म अपने धर्म को श्रेष्ठ और अन्य को छोटा बताते हैं वही सनातन धर्म सर्वधर्म समभाव की भावना का प्रचार करता है | समस्त प्राणियों में सद्भाव की कामना करता है वह प्राणी चाहे जिस धर्म का हो | सनातन इसीलिए सनातन है क्योंकि सनातन का अर्थ शास्वत होता है अर्थात इसका आदि - अंत नहीं है | अन्य धर्म कब प्रारंभ हुये , इन की आधारशिला कब रखी गई इसका वर्णन तो मिलता परंतु सनातन धर्म के विषय में यह जान पाना असंभव है | यही सनातन में सनातन है |*
*सनातन धर्म के अतिरिक्त कहे जाने वाले धर्म धर्म नहीं बल्कि पंथ , सम्प्रदाय एवं मजहब हैं | सनातन ही सभी धर्मों की जड़ है शेष सभी सनातन की ही शाखायें हैं |*