*हमारा देश भारत कला , संस्कृति के साथ-साथ अनेकों रंग बिरंगे त्योहारों एवं मान्यताओं की परंपरा को स्वयं मैं समेटे हुए है | यहां प्रतिदिन कोई न कोई व्रत मानव मात्र के कल्याण के लिए मनाया जाता रहता है | इन्हीं व्रतों की श्रृंखला में माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को "संकष्टी गणेश चतुर्थी" का व्रत बड़े ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है | इस व्रत को "तिल चतुर्थी" या "तिलवा" भी कहा जाता है | आज के दिन माताओं के द्वारा तिल चतुर्थी का व्रत करते हुए भगवान गणेश की आराधना करके अपने परिवार की सारी बाधाएं दूर करके असीम सुख की प्राप्ति की कामना की जाती है | आज का दिन भगवान गणेश के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ? इसके लिए पुराणों में एक कथा प्राप्त होती है कि आज के ही दिन भगवान गणेश नें समस्त सृष्टि की परिक्रमा न करके अपने माता-पिता की परिक्रमा करके समस्त सृष्टि को माता-पिता में ही समाहित होने का दिव्य संदेश दिया गया है | गणेश जी के बुद्धिमत्ता पूर्ण इस कार्य के लिए भूतभावन भोलेनाथ ने उनको यह वरदान दिया कि आज के दिन अर्थात माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो भी तुम्हारा पूजन करेगा और चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप (दैहिक दैविक भौतिक) दूर हो जाएंगे | तब से लेकर आज तक संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत विशेषकर माताएं अपने पुत्रों के लिए करती चली आ रही है | भगवान गणेश विघ्नहर्ता कहे जाते हैं उनके इस व्रत को करने से व्रत धारी के सभी दुख तो दूर ही हो जाते हैं साथ ही ही उसके जीवन में सुख , संपत्ति एवं आश्चर्य की निरंतर वृद्धि होती रहती है | कोई भी व्रत उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है जितनी महत्वपूर्ण होती है उसके प्रति श्रद्धा एवं विश्वास | श्रद्धा एवं विश्वास के बिना किया हुआ कोई भी व्रत कभी भी फल नहीं प्रदान कर पाता इसलिए प्रत्येक व्रत में श्रद्धा एवं विश्वास की परम आवश्यकता होती है |*
*आज आधुनिकता ने चारों ओर अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर दिया है इस चकाचौंध भरी आधुनिकता से जहां मनुष्य प्रभावित हुआ है वही उसके द्वारा किए जा रहे व्रत एवं पर्व भी प्रभावित हुए है | आज निर्जल रहकर के कठिन व्रत रखने वाली माताओं में भी श्रद्धा और विश्वास की कमी स्पष्ट दिखाई पड़ती है परंतु फिर भी तिल के दातौन से अपना दिन प्रारंभ करने वाली मातायें दिन भर व्रत रहकर रात्रि काल में भगवान गणेश का पूजन करके तिल के ही बने लड्डू से भोग लगा कर अपने समाज एवं परिवार को सुखी बनाए रखने के लिए व्रत करती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इस व्रत के विषय में विचार करता हूं कि आदिकाल में किस प्रकार भगवान गणेश ने समस्त सृष्टि की परिक्रमा न करके माता-पिता में ही समस्त सृष्टि मान कर उनकी परिक्रमा कर ली थी वहीं आज की संताने अपने माता-पिता के प्रति इस प्रकार का व्यवहार कर रही हैं कि उनका बस चले तो माता-पिता को ही सृष्टि के बाहर कर दें | अनेक ऐसी माताएं भी समाज में देखी जाती है जिनको उनके पुत्र में अपने घर से उपेक्षित करके बाहर निकाल दिया है परंतु फिर भी उनके द्वारा अपने संतान के लिए यह कठिन व्रत किया जा रहा है | अधिकतर व्रत माताओं के द्वारा परिवार को सुखी रखने के लिए ही किए जाते हैं परंतु यहां पुरुष समाज विचार करें कि क्या उसके द्वारा भी कोई व्रत नारियों के लिए किया जा रहा है ? पुरुष समाज के लिए समय-समय पर व्रतों का पालन करने वाली नारियों के ऋण से पुरुष समाज कभी भी उऋण नहीं हो सकता परंतु दुर्भाग्यपूर्ण यही है कि इतना सब करने के बाद भी नारी उपेक्षा का शिकार होती रही है | यह अू विचार करना होगा कि नि:स्वार्थ भाव से पुरुष समाज के लिए कठिन से कठिन व्रत रखने वाली नारी सम्मान की अधिकारी तो है ही और उनको सम्मान मिलना भी चाहिए क्योंकि यदि मातृशक्तियां नहीं होंगी तो पुरुष समाज का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा |*
*धन्य है हमारा देश और धन्य है हमारी मातृ शक्तियां जिन्होंने पुरुष समाज के लिए अपना सब कुछ निछावर तो कर ही दिया है साथ ही समय-समय पर अनेक व्रत त्योहारों के माध्यम इनके लिए सुख ऐश्वर्य की कामना भी करती रहती हैं |*